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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Mexico’s Tariff Hike on Non-FTA Countries: Impact on India-Mexico Trade and WTO Implications

गैर-FTA देशों पर मेक्सिको की टैरिफ वृद्धि: भारत–मेक्सिको व्यापार संबंधों का एक समालोचनात्मक अध्ययन

सारांश (Abstract)

दिसंबर 2025 में मेक्सिको द्वारा मुक्त व्यापार समझौते (FTA) से बाहर के देशों से आयात पर 35% से 50% तक शुल्क लगाने का निर्णय वैश्विक व्यापार व्यवस्था में बढ़ते संरक्षणवाद का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह नीति भारत, चीन तथा अन्य एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। भारत ने इस कदम को “एकतरफ़ा” बताते हुए वैश्विक व्यापार मानदंडों की भावना के विरुद्ध करार दिया है।
यह शोधपरक लेख मेक्सिको की टैरिफ नीति की पृष्ठभूमि, इसके औचित्य, आर्थिक एवं कानूनी निहितार्थों तथा भारत–मेक्सिको द्विपक्षीय व्यापार पर इसके प्रभावों का निष्पक्ष मूल्यांकन करता है। लेख WTO ढांचे, व्यापार अर्थशास्त्र और कूटनीतिक व्यवहार के संदर्भ में यह विश्लेषण करता है कि यह निर्णय विधिक रूप से वैध होते हुए भी व्यवहारिक रूप से एकतरफ़ा क्यों प्रतीत होता है।


भूमिका (Introduction)

21वीं सदी का वैश्विक व्यापार परिदृश्य मुक्त व्यापार और संरक्षणवाद के बीच निरंतर संघर्ष का साक्षी रहा है। कोविड-19 के बाद की आर्थिक अनिश्चितताओं, भू-राजनीतिक तनावों और आपूर्ति-श्रृंखला सुरक्षा की चिंताओं ने अनेक देशों को संरक्षणवादी नीतियों की ओर अग्रसर किया है।
मेक्सिको द्वारा गैर-FTA देशों पर उच्च आयात शुल्क लगाने का निर्णय इसी व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है। यह कदम केवल एक आर्थिक नीति नहीं, बल्कि रणनीतिक और भू-राजनीतिक संदेश भी देता है। भारत जैसे उभरते निर्यातक देशों के लिए यह निर्णय न केवल व्यापारिक चुनौती है, बल्कि बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न खड़ा करता है।


भारत–मेक्सिको व्यापार संबंधों की पृष्ठभूमि

भारत और मेक्सिको के बीच व्यापार संबंध पिछले एक दशक में निरंतर विस्तारित हुए हैं। द्विपक्षीय व्यापार लगभग 10 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर तक पहुँच चुका है।
भारत मुख्यतः ऑटोमोबाइल, ऑटो-पार्ट्स, फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग वस्तुएँ और रसायन निर्यात करता है, जबकि मेक्सिको से भारत कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और कुछ औद्योगिक उत्पाद आयात करता है।

हालाँकि, दोनों देशों के बीच किसी औपचारिक मुक्त व्यापार समझौते का अभाव इस संबंध को नीतिगत झटकों के प्रति संवेदनशील बनाता है। भारत का निर्यात संरचनात्मक रूप से उन क्षेत्रों में केंद्रित है, जिन्हें मेक्सिको की नई टैरिफ नीति ने सीधे लक्षित किया है—विशेषकर ऑटोमोबाइल और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर।


मेक्सिको की टैरिफ नीति: उद्देश्य और संरचना

मेक्सिको की संसद द्वारा दिसंबर 2025 में पारित कानून के अंतर्गत 1,400 से अधिक उत्पाद श्रेणियों पर आयात शुल्क में उल्लेखनीय वृद्धि की गई। इस नीति के पीछे तीन प्रमुख उद्देश्य बताए गए हैं:

  1. घरेलू उद्योगों का संरक्षण – विशेषकर स्टील, टेक्सटाइल और ऑटो सेक्टर में
  2. व्यापार घाटे में कमी – विशेष रूप से एशियाई देशों के साथ
  3. अनुचित व्यापार प्रथाओं पर रोक – विशेषकर डंपिंग और ट्रांसशिपमेंट

मेक्सिको का तर्क है कि WTO के अंतर्गत प्रत्येक देश को अपने ‘बाउंड टैरिफ’ की सीमा के भीतर शुल्क बढ़ाने का संप्रभु अधिकार प्राप्त है। चूँकि यह नीति सभी गैर-FTA देशों पर समान रूप से लागू होती है, इसलिए इसे MFN सिद्धांत का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए।


एकतरफ़ापन का प्रश्न: भारत की आपत्ति का विश्लेषण

भारत की आपत्ति का केंद्र इस नीति की प्रक्रिया है, न कि केवल उसका परिणाम
भारतीय दृष्टिकोण से यह कदम एकतरफ़ा इसलिए है क्योंकि:

  • किसी पूर्व द्विपक्षीय परामर्श का अभाव रहा
  • नीति का क्रियान्वयन अत्यंत त्वरित और अचानक किया गया
  • भारत जैसे देशों को चीन के समान श्रेणी में रख दिया गया, जबकि व्यापार व्यवहार और मूल्य-संवर्धन स्तर भिन्न हैं

अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था केवल कानूनी वैधता पर नहीं, बल्कि पूर्वानुमेयतापारदर्शिता और परामर्श पर भी आधारित होती है। इसी संदर्भ में भारत का यह तर्क महत्वपूर्ण हो जाता है कि भले ही मेक्सिको का कदम WTO-अनुमत हो, परंतु यह बहुपक्षीय व्यापार की भावना के विपरीत है।


WTO और अंतरराष्ट्रीय विधिक आयाम

GATT और WTO ढाँचे के अंतर्गत सदस्य देशों को अपने आयात शुल्क को बाउंड रेट तक बढ़ाने की अनुमति है। इस दृष्टि से मेक्सिको का कदम विधिक रूप से सुरक्षित प्रतीत होता है।
किन्तु WTO व्यवस्था केवल अधिकार नहीं, बल्कि दायित्व भी निर्धारित करती है—विशेष रूप से पारदर्शिता और परामर्श के संदर्भ में।

यदि भारत यह सिद्ध कर सके कि यह नीति व्यावहारिक रूप से कुछ देशों को असमान रूप से प्रभावित करती है या व्यापार को अनावश्यक रूप से बाधित करती है, तो विवाद निपटान तंत्र के अंतर्गत मामला उठाया जा सकता है। हालाँकि, वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में WTO की विवाद समाधान प्रणाली की सीमाएँ भी स्पष्ट हैं।


आर्थिक प्रभाव और व्यापक वैश्विक निहितार्थ

भारत पर प्रभाव

  • निर्यात प्रतिस्पर्धा में गिरावट
  • ऑटो और इंजीनियरिंग सेक्टर पर प्रत्यक्ष असर
  • निर्यात बाज़ारों के विविधीकरण की आवश्यकता

मेक्सिको पर प्रभाव

  • अल्पकालिक रूप से घरेलू उद्योगों को लाभ
  • दीर्घकाल में उपभोक्ता कीमतों में वृद्धि
  • आपूर्ति-श्रृंखला दक्षता में संभावित गिरावट

वैश्विक व्यापार पर प्रभाव

  • क्षेत्रीय व्यापार ब्लॉकों की मजबूती
  • बहुपक्षीयता से द्विपक्षीयता की ओर झुकाव
  • वैश्विक दक्षिण के देशों के बीच नई व्यापारिक प्रतिस्पर्धा

निष्कर्ष और सुझाव (Conclusion & Way Forward)

मेक्सिको की टैरिफ वृद्धि नीति विधिक रूप से बचाव योग्य होते हुए भी कूटनीतिक और नैतिक दृष्टि से विवादास्पद है। भारत की आपत्ति पूर्णतः असंगत नहीं कही जा सकती, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल नियमों का खेल नहीं, बल्कि विश्वास और संवाद की प्रक्रिया भी है।

आगे की राह:

  • भारत–मेक्सिको के बीच FTA वार्ता को गति देना
  • द्विपक्षीय संवाद और सेक्टोरल छूट की संभावनाएँ तलाशना
  • WTO मंच पर समन्वित और संतुलित दृष्टिकोण अपनाना

यह प्रकरण दर्शाता है कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था को अब केवल “कानूनी वैधता” नहीं, बल्कि “नीतिगत उत्तरदायित्व” की भी आवश्यकता है। स्थायी और न्यायसंगत वैश्वीकरण तभी संभव है, जब संप्रभुता और सहयोग के बीच संतुलन स्थापित किया जाए।



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