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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

U.S. Drops Denuclearization Goal for North Korea: A Strategic Shift in Trump’s 2025 Security Roadmap

अमेरिकी विदेश नीति में एक मौन परिवर्तन: ट्रंप प्रशासन के नए वैश्विक सुरक्षा रोडमैप में उत्तर कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण लक्ष्य का लोप परिचय दिसंबर 2025 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के आरंभिक चरण में जारी Global Security Roadmap ने अमेरिकी विदेश नीति के एक अत्यंत महत्वपूर्ण और कम चर्चित बदलाव की ओर संकेत किया। पहली बार इस दस्तावेज़ में उत्तर कोरिया (डीपीआरके) के “परमाणु निरस्त्रीकरण” (Denuclearization) को अमेरिकी रणनीतिक लक्ष्य के रूप में शामिल नहीं किया गया है। यह चूक या त्रुटि नहीं है—यह अमेरिकी नीति-ढांचे में एक गहरे परिवर्तन का संकेतक है, जो कोरियाई प्रायद्वीप की भू-राजनीति और हिंद-प्रशांत सुरक्षा के समीकरण को दीर्घकालिक रूप से प्रभावित करेगा। तीन दशकों से वॉशिंगटन की आधिकारिक नीति “पूर्ण, सत्यापित और अपरिवर्तनीय परमाणु निरस्त्रीकरण” (CVID) रही है। ट्रंप का नया दस्तावेज़ इस ऐतिहासिक नीति को प्रथम बार औपचारिक रूप से त्यागता प्रतीत होता है। यह न केवल भाषा का बदलाव है, बल्कि एक रणनीतिक स्वीकृति (strategic acceptance) भी है कि परमाणु-सशस्त्र उत्तर कोरिया आज एक d...

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China’s 2025 Mega Naval Deployment: Expanding Maritime Power in East Asian Waters

China's Maritime Power Projection in East Asian Waters: An Analysis of the 2025 Deployment Abstract दिसंबर 2025 में चीन ने पूर्वी एशियाई समुद्री क्षेत्रों में अपने अब तक के सबसे व्यापक नौसैनिक अभियान को अंजाम दिया, जिसमें 100 से अधिक नौसेना और कोस्ट गार्ड पोत शामिल थे। यह घटना, जिसे पहले रॉयटर्स ने रिपोर्ट किया, क्षेत्र में शक्ति-संतुलन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देती है। यह शोध-पत्र इस तैनाती के पैमाने, उद्देश्यों और संभावित सुरक्षा प्रभावों का विश्लेषण करता है। अध्ययन यह तर्क प्रस्तुत करता है कि यद्यपि इसे “नियमित प्रशिक्षण” के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन यह तैनाती चीन की ग्रे-ज़ोन रणनीति का हिस्सा है, जिसमें पारंपरिक सैन्य प्रदर्शन को कूटनीतिक दबाव के साथ मिश्रित कर बिना प्रत्यक्ष युद्ध में प्रवेश किए प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। Introduction इंडो-पैसिफिक क्षेत्र 21वीं सदी में सामरिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन चुका है। समुद्री क्षेत्रों पर नियंत्रण न केवल व्यापार और ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ा है, बल्कि यह महाशक्तियों के भू-राजनीतिक प्रभाव का भी मापक...

Justice Suryakant Becomes the 53rd Chief Justice of India: A New Direction for the Judiciary and Key Constitutional Challenges

भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति सूर्य कांत : न्यायपालिका की नई दिशा का उद्घोष 24 नवंबर 2025 भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक नए अध्याय का आरंभ होगा, जब न्यायमूर्ति सूर्य कांत भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे। वे न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई के उत्तराधिकारी बनेंगे, जिनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 को समाप्त हुआ। न्यायमूर्ति गवई की विदाई न केवल एक संवैधानिक पदावनति का क्षण थी, बल्कि सामाजिक न्याय की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव भी—क्योंकि वे स्वतंत्र भारत के प्रथम बौद्ध और दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश रहे। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई : संवैधानिक साहस और सामाजिक न्याय की विरासत न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल कई दृष्टियों से ऐतिहासिक रहा। उन्होंने उन पीठों का नेतृत्व या सदस्यता निभाई, जिनके निर्णयों ने भारतीय संघवाद, लोकतांत्रिक जवाबदेही और व्यक्तिगत अधिकारों के विमर्श को गहराई से प्रभावित किया। अनुच्छेद 370 निर्णय संविधान पीठ के सदस्य के रूप में उन्होंने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त करने के केंद्र सरकार के निर्णय को संवैधानिक ठहराने ...

Declining Quality of India’s Legislative Process: Impact of Passing 70% Bills Without Committee Review in 2025

“भारत की घटती विधायी गुणवत्ता: 2025 में 70% विधेयक बिना समिति परीक्षण के पारित होने के प्रभाव” प्रस्तावना भारत की संसदीय प्रणाली विश्व की सबसे विशाल और बहुस्तरीय लोकतांत्रिक संरचनाओं में से एक है। तथापि, पिछले एक दशक में संसद की विधायी प्रक्रिया में एक चिंताजनक प्रवृत्ति उभरी है—विधेयकों को बिना विभागीय स्थायी समितियों (Departmentally Related Standing Committees – DRSCs) के परीक्षण के सीधे पारित करना। PRS Legislative Research के आंकड़े बताते हैं कि 16वीं लोकसभा (2014–2019) में जहाँ केवल 25% विधेयक बिना समिति परीक्षण के पारित हुए थे, वहीं 17वीं लोकसभा (2019–2024) में यह संख्या बढ़कर 60% हो गई। 18वीं लोकसभा के प्रारंभिक तीन सत्रों (जून 2024–अगस्त 2025) के दौरान यह आँकड़ा और बढ़कर 70% तक पहुँच गया। वर्ष 2025 के तीनों सत्रों (बजट, मानसून और शीतकालीन) के दौरान कुल 47 विधेयकों में से केवल 14 ही समिति को भेजे गए। यह प्रवृत्ति न केवल संख्यात्मक रूप से चिंताजनक है, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक विधिनिर्माण की गुणवत्ता, पारदर्शिता और जवाबदेही की मूलभूत संरचनाओं पर गंभीर प्रभाव छोड़ती है। स्थ...

Revival of the Monroe Doctrine: Trump’s 2025 National Security Strategy and a Reordered Global Power Map

ट्रम्प प्रशासन की 2025 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति: मॉनरो सिद्धांत का पुनर्जागरण और अमेरिकी वैशिक प्राथमिकताओं का पुनर्गठन भूमिका: एक वैचारिक वक्र—19वीं सदी की वापसी, 21वीं सदी की चुनौतियाँ दिसंबर 2025 में जारी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (National Security Strategy—NSS) अमेरिकी विदेश नीति में एक निर्णायक मोड़ का संकेत देती है। यह दस्तावेज़ केवल रणनीतिक प्राथमिकताओं का सूचक नहीं, बल्कि अमेरिकी विदेश नीति के दीर्घकालिक वैचारिक रूपांतरण का घोषणापत्र है। इस रणनीति में 1823 के मॉनरो सिद्धांत को औपचारिक रूप से पुनर्जीवित करने की घोषणा की गई है—एक ऐसा सिद्धांत जिसने लगभग दो शताब्दियों तक अमेरिकी महाद्वीप को वाशिंगटन के "विशेष प्रभाव क्षेत्र" के रूप में परिभाषित किया था। नई NSS स्वयं को “ लचीला यथार्थवाद (Flexible Realism) ” की संज्ञा देती है और अमेरिका की वैश्विक प्राथमिकताओं के क्रम को तीन स्तरों में ढालती है— पश्चिमी गोलार्ध में अमेरिकी वर्चस्व की पुनर्स्थापना , हिंद-प्रशांत में सैन्य उपस्थिति व गठबंधनों का विस्तार , यूरोप के साथ संबंधों का कठ...

Right to Live-In Relationships for Young Adults: A Critical Analysis of the Rajasthan High Court Verdict

विवाह योग्य आयु से कम दो वयस्कों के लाइव-इन संबंध का अधिकार: राजस्थान हाईकोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय का आलोचनात्मक विश्लेषण सार राजस्थान हाईकोर्ट ने 5 दिसंबर 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि दो सहमति देने वाले वयस्क , भले ही वे विवाह योग्य आयु (पुरुष—21 वर्ष, महिला—18 वर्ष) तक न पहुँचे हों, फिर भी लाइव-इन संबंध में रहने का पूर्ण संवैधानिक अधिकार रखते हैं। न्यायमूर्ति अनूप धंड ने इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गरिमा और निजता —जो अनुच्छेद 19(1)(a), 21 और 21-A में निहित हैं—का अभिन्न हिस्सा बताया। कोटा के 18 वर्षीय युवती और 19 वर्षीय युवक द्वारा सुरक्षा माँगते हुए दायर याचिका पर दिया गया यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुदृढ़ करता है बल्कि भारत के सामाजिक-कानूनी ढाँचे में गैर-पारंपरिक संबंधों की मान्यता को भी एक नया आयाम देता है। भूमिका भारत का वैवाहिक कानून लंबे समय तक विवाह संस्था को ही व्यक्तिगत संबंधों की वैधता का आधार मानता आया है। ऐसे माहौल में लाइव-इन संबंध , विशेषकर युवाओं के बीच, अभी भी परिवार और समाज की कठोर निगाहों से घिरे रहते हैं। सामाजिक प्रतिरोध, ...

Temple–Mosque Dispute: Path to Resolution or Escalation of Tensions?

मंदिर–मस्जिद विवाद: समाधान का मार्ग या तनाव का विस्तार? एक समग्र विश्लेषण परिचय भारतीय समाज में धार्मिक स्थलों को लेकर उत्पन्न होने वाले विवाद कोई नई बात नहीं हैं। इतिहास, आस्था और राजनीति—इन तीनों के संगम पर खड़े ऐसे मुद्दे अक्सर समाज को विचार-विमर्श और टकराव, दोनों की ओर ले जाते हैं। हाल ही में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक के.के. मुहम्मद ने एक इंटरव्यू में सुझाव दिया है कि धार्मिक विवादों को अयोध्या, मथुरा और ज्ञानवापी जैसे तीन स्थलों तक सीमित रखा जाए। उन्होंने ताजमहल के “हिंदू मूल” के दावों को पूरी तरह खारिज करते हुए चेताया कि नए और आधारहीन दावे सामाजिक तनाव को और बढ़ाएँगे। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश के कई हिस्सों में धार्मिक स्थलों को लेकर अदालती कार्यवाहियाँ जारी हैं और जनमत निरंतर विभाजित हो रहा है। यह लेख इसी पृष्ठभूमि में यह समझने का प्रयास करता है कि क्या और अधिक विवाद उठाना न्याय की ओर बढ़ना होगा या केवल तनाव को ही बढ़ाएगा। ऐतिहासिक संदर्भ भारत का इतिहास धार्मिक संरचनाओं के निर्माण–विध्वंस और पुनर्निर्माण की घटनाओं से भरा पड़ा...

DynamicGK.in: Rural and Hindi Background Candidates UPSC and Competitive Exam Preparation

डायनामिक जीके: ग्रामीण और हिंदी पृष्ठभूमि के अभ्यर्थियों के सपनों को साकार करने का सहायक लेखक: RITU SINGH भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी एक चुनौतीपूर्ण यात्रा है, खासकर उन अभ्यर्थियों के लिए जो ग्रामीण इलाकों से आते हैं या हिंदी माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। अंग्रेजी-प्रधान संसाधनों की भरमार में हिंदी भाषी छात्रों को अक्सर कठिनाई होती है। ऐसे में dynamicgk.in जैसी वेबसाइट एक वरदान साबित हो रही है। यह न केवल सामान्य ज्ञान (जीके) और समसामयिक घटनाओं पर केंद्रित है, बल्कि ग्रामीण और हिंदी पृष्ठभूमि के युवाओं के सपनों को साकार करने में विशेष रूप से सहायक भूमिका निभा रही है। इस लेख में हम समझेंगे कि यह प्लेटफॉर्म कैसे इन अभ्यर्थियों की मदद करता है। हिंदी माध्यम की पहुंच: भाषा की बाधा को दूर करना ग्रामीण भारत में अधिकांश छात्र हिंदी माध्यम से पढ़ते हैं, लेकिन अधिकांश प्रतियोगी परीक्षा संसाधन अंग्रेजी में उपलब्ध होते हैं। dynamicgk.in इस कमी को पूरा करता है। वेबसाइट का अधिकांश कंटेंट हिंदी में उपलब्ध है, जो हिंदी भाषी अभ्यर्थियों को सहज रूप से समझने में मद...

Fatima Bosch Fernández and Miss Universe Controversy: A New Global Debate on Gender Respect and Dignity

फ़ातिमा बोश फ़र्नांडीज़ और मिस यूनिवर्स विवाद: गरिमा, लैंगिक सम्मान और वैश्विक विमर्श का नया अध्याय भूमिका मिस यूनिवर्स जैसी प्रतियोगिताएँ अक्सर ग्लैमर और मनोरंजन की सुर्खियों तक सीमित मानी जाती हैं, लेकिन वर्ष 2025 की विजेता फ़ातिमा बोश फ़र्नांडीज़ के इर्द-गिर्द उभरा घटनाक्रम इससे कहीं अधिक व्यापक सामाजिक संदेश देता है। केवल कुछ दिन पहले एक प्रभावशाली अधिकारी द्वारा कैमरे के सामने “ dumb ” कहकर उनका अपमान किया गया। किंतु परिणाम घोषित होते ही वही महिला—दृढ़, शांत और आत्मविश्वासी—वैश्विक मंच पर सौंदर्य से अधिक सम्मान और सहनशक्ति का प्रतीक बनकर उभरी। यह विवाद केवल एक मॉडल की व्यक्तिगत यात्रा नहीं है; यह लैंगिक गरिमा , सार्वजनिक भाषा की मर्यादा , कार्यस्थल में शक्ति असमानता , और महिला-सम्मान से जुड़ी व्यापक समस्याओं को उजागर करता है। UPSC के दृष्टिकोण से यह घटना सामाजिक-नैतिक मूल्यों , महिला अधिकारों , और सार्वजनिक संस्थानों की जवाबदेही जैसे बड़े विमर्शों से जुड़ी है। घटना का सार 16 नवंबर 2025 को आयोजित मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता के दौरान एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि फ़ातिमा “du...

UPSC 2024 Topper Shakti Dubey’s Strategy: 4-Point Study Plan That Led to Success in 5th Attempt

UPSC 2024 टॉपर शक्ति दुबे की रणनीति: सफलता की चार सूत्रीय योजना से सीखें स्मार्ट तैयारी का मंत्र लेखक: Arvind Singh PK Rewa | Gynamic GK परिचय: हर साल UPSC सिविल सेवा परीक्षा लाखों युवाओं के लिए एक सपना और संघर्ष बनकर सामने आती है। लेकिन कुछ ही अभ्यर्थी इस कठिन परीक्षा को पार कर पाते हैं। 2024 की टॉपर शक्ति दुबे ने न सिर्फ परीक्षा पास की, बल्कि एक बेहद व्यावहारिक और अनुशासित दृष्टिकोण के साथ सफलता की नई मिसाल कायम की। उनका फोकस केवल घंटों की पढ़ाई पर नहीं, बल्कि रणनीतिक अध्ययन पर था। कौन हैं शक्ति दुबे? शक्ति दुबे UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2024 की टॉपर हैं। यह उनका पांचवां  प्रयास था, लेकिन इस बार उन्होंने एक स्पष्ट, सीमित और परिणामोन्मुख रणनीति अपनाई। न उन्होंने कोचिंग की दौड़ लगाई, न ही घंटों की संख्या के पीछे भागीं। बल्कि उन्होंने “टॉपर्स के इंटरव्यू” और परीक्षा पैटर्न का विश्लेषण कर अपनी तैयारी को एक फोकस्ड दिशा दी। शक्ति दुबे की UPSC तैयारी की चार मजबूत आधारशिलाएँ 1. सुबह की शुरुआत करेंट अफेयर्स से उन्होंने बताया कि सुबह उठते ही उनका पहला काम होता था – करेंट अफेयर्...

M23 Rebellion in Eastern Congo: US Mediation, Mineral Wars & Rising Secession Risks

पूर्वी कांगो में M23 विद्रोह: ऐतिहासिक जटिलताएँ, अमेरिकी मध्यस्थता और संभावित “अनौपचारिक राष्ट्र-विभाजन” का उभरता परिदृश्य भूमिका: अफ्रीका के ग्रेट लेक्स क्षेत्र की लम्बी सुलगती आग कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) के पूर्वी भाग में आज जो संघर्ष दिखाई देता है, वह किसी अचानक भड़की आग का परिणाम नहीं है—यह उन ऐतिहासिक दरारों की निरंतरता है, जो 1990 के दशक में रवांडा नरसंहार, शरणार्थी संकट, सीमा-पार विद्रोह और महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा के साथ गहरी होती चली गईं। 1994 के नरसंहार में लगभग 8 लाख तुत्सी और मध्यमार्गी हुतु मारे गए। नरसंहार के अपराधी इंटराहाम्वे के हजारों सदस्य और लाखों हुतु शरणार्थी कांगो के पूर्वी क्षेत्रों में जा बसे। इससे क्षेत्र में ऐसी जातीय-सुरक्षा राजनीति जन्मी, जिसमें रवांडा सरकार की चिंताएँ (FDLR जैसे हुतु मिलिशिया के खिलाफ) और कांगो की प्रशासनिक विफलताएँ एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का आधार बन गईं। 1996–2003 के बीच छिड़ा “अफ्रीका का विश्व युद्ध” नौ देशों की प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष संलिप्तता का परिणाम था। 50 लाख से अधिक मौतें, कांगो की खनिज-संपदा (कोल्टन, कोबाल्ट, सोना)...