The Mysterious Death of Zubeen Garg: Tragedy of Assam’s Cultural Icon and Questions Over Administrative Negligence
जुबिन गर्ग: असम की आत्मा की आवाज़, जिसकी मौत ने कई सवाल छोड़े
पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक हृदय में जब कोई सुर टूटता है, तो वह केवल एक आवाज़ नहीं जाती—वह एक युग की भावनाओं को भी मौन कर देता है। जुबिन गर्ग की अचानक मृत्यु ने असम ही नहीं, पूरे उत्तर-पूर्व को भीतर तक झकझोर दिया है। “या अली” की गूंज, “मोमोर चोखोटे” की मिठास और असमिया अस्मिता के प्रतीक उस स्वर के साथ जाने वाला यह अध्याय अब रहस्यमय सवालों से घिरा हुआ है।
🎵 संगीत से सामाजिक चेतना तक का सफर
1972 में मेघालय के तुरा में जन्मे जुबिन गर्ग ने बाल्यावस्था में ही संगीत को जीवन बना लिया था। असमिया संगीत में उन्होंने जो आत्मा फूंकी, वह केवल कला नहीं थी—वह असम की सांस्कृतिक चेतना थी। हिंदी, असमिया, बंगाली, नेपाली, तमिल—हर भाषा में उन्होंने अपनी रचनात्मक पहचान छोड़ी।
लेकिन उन्हें असम का ‘जननायक’ उस समय कहा गया जब उन्होंने अपने गीतों और मंचों से सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण और नागरिक अधिकारों की आवाज़ उठाई। 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ असम में जब जनता सड़कों पर थी, तब जुबिन गर्ग ने भी अपने संगीत से विरोध को स्वर दिया। वे केवल गायक नहीं थे, वे उस धरती की आत्मा थे जो अपनी पहचान और गरिमा के लिए संघर्षरत है।
⚖️ मौत या लापरवाही? सवाल जस का तस
19 सितंबर 2025 को सिंगापुर में नॉर्थ ईस्ट इंडिया फेस्टिवल के दौरान एक यॉट ट्रिप पर जुबिन गर्ग की मौत “डूबने” से हुई बताई गई। सिंगापुर प्राधिकारियों ने इसे एक दुर्घटना माना, लेकिन असम लौटते ही यह घटना एक “रहस्य” बन गई।
परिवार और प्रशंसकों का आरोप है कि गर्ग को बिना लाइफ जैकेट समुद्र में जाने दिया गया, जबकि वे अस्वस्थ थे। मैनेजर सिद्धार्थ शर्मा और आयोजक श्यामकानु महंत पर लापरवाही और साजिश के आरोप लगे। यह तथ्य भी चौंकाता है कि मेडिकल सहायता देर से पहुंची और सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया।
🕵️ जांच और राजनीति का घालमेल
मौत के बाद असम में 55 से अधिक FIR दर्ज हुईं—कुछ लापरवाही के, कुछ हत्या के संदेह में। असम पुलिस ने SIT गठित की, और अब न्यायिक आयोग भी बना है। लेकिन इसी बीच मामला राजनीतिक रंग लेने लगा है।
विपक्ष ने CBI जांच की मांग की, जबकि आयोजक पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। लाखों प्रशंसक सड़कों पर उतरे—मोमबत्ती जुलूस, नारे, और पुलिस लाठीचार्ज तक की नौबत आई। यह केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं, बल्कि असम की आत्मा की बेचैनी थी जो इन प्रदर्शनों में झलक रही थी।
🏛️ प्रशासनिक जिम्मेदारी पर प्रश्नचिह्न
जुबिन गर्ग जैसे सांस्कृतिक दूतों की सुरक्षा केवल निजी नहीं, बल्कि राज्य की नैतिक जिम्मेदारी होती है। विदेशों में आयोजित कार्यक्रमों के लिए कलाकारों के मेडिकल फिटनेस, बीमा, सुरक्षा प्रोटोकॉल और आपातकालीन सहायता जैसी व्यवस्थाओं का न होना एक गंभीर लापरवाही है।
यदि कोई कलाकार, जो भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा है, असुरक्षित माहौल में अपनी जान गंवाता है, तो यह केवल व्यक्तिगत क्षति नहीं, बल्कि संस्थागत विफलता है।
💔 सांस्कृतिक विरासत और जनस्मृति में अमर जुबिन
मौत ने भले ही उनकी सांसें छीन लीं, लेकिन उनकी आवाज़ अब भी हर असमिया के दिल में गूंजती है। “या अली” की तान हो या “तुमी दिले ना” की उदासी—हर गीत आज न्याय की पुकार बन गया है।
असम के युवाओं के लिए जुबिन केवल एक गायक नहीं थे; वे उम्मीद, संघर्ष और स्वाभिमान के प्रतीक थे। उनकी स्मृति में बने स्मारक, श्रद्धांजलि समारोह और ऑनलाइन अभियानों ने एक बार फिर साबित किया कि सच्चे कलाकार कभी मरते नहीं—वे जनता की चेतना में बस जाते हैं।
🧭 संपादकीय दृष्टि: सच्चाई और जवाबदेही की आवश्यकता
अब यह केवल एक जांच का विषय नहीं, बल्कि एक संस्थागत आत्मपरीक्षण का अवसर है। प्रशासन को यह समझना होगा कि सांस्कृतिक आइकन किसी प्रदेश की अस्मिता का दर्पण होते हैं—उनकी सुरक्षा, सम्मान और जीवन की रक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए।
जुबिन गर्ग के मामले में पारदर्शी जांच और निष्पक्ष न्याय न केवल एक परिवार के लिए, बल्कि पूरी असमिया जनता के लिए न्याय होगा। क्योंकि जब एक कलाकार की मृत्यु रहस्य में डूब जाती है, तो समाज की संवेदना भी मौन हो जाती है।
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