करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है — “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...
शाह बानो केस: लिंग न्याय, धार्मिक स्वायत्तता और भारतीय धर्मनिरपेक्षता के द्वंद्व का एक अध्ययन परिचय 1985 का शाह बानो केस भारतीय संवैधानिक इतिहास की उन दुर्लभ घटनाओं में से है, जिसने धर्मनिरपेक्षता, न्यायिक सक्रियता और लिंग समानता के बीच गहन विमर्श को जन्म दिया। एक 62 वर्षीय मुस्लिम महिला का भरण-पोषण का अधिकार धीरे-धीरे एक राष्ट्रीय राजनीतिक बहस में बदल गया, जिसने भारतीय लोकतंत्र के चरित्र को चुनौती दी और समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) की बहस को पुनर्जीवित कर दिया। हाल ही में आई फिल्म हक (2025) ने इस ऐतिहासिक केस को मानवीय दृष्टिकोण से पुनः प्रस्तुत किया है—जहां एक साधारण स्त्री की न्याय के लिए लड़ाई, भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे की सीमाओं और संभावनाओं दोनों को उजागर करती है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि शाह बानो बेगम का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। उन्होंने 1932 में मोहम्मद अहमद खान नामक वकील से विवाह किया और पाँच बच्चों की माँ बनीं। चार दशकों तक चले वैवाहिक जीवन के बाद, 1975 में उनके पति ने दूसरी शादी कर ली और शाह बानो को घर से निकाल दिया। शाह बानो को उनके पति द्व...