सत्यकथा: सरहद की एक माँ भारत-पाक सीमा पर माँ-बेटे की जुदाई: एक मर्मस्पर्शी मानवीय संकट अटारी बॉर्डर पर ठंडी हवाएँ चल रही थीं, पर फ़रहीन की आँखों से गर्म आँसुओं की धार थमने का नाम नहीं ले रही थी। उसके कांपते हाथों में 18 महीने का मासूम बेटा सिकुड़ा हुआ था, जैसे उसे भी पता हो कि कुछ अनहोनी होने वाली है। सिर पर दुपट्टा था, पर चेहरे पर मातृत्व की वेदना ने जैसे सारी दुनिया की नज़रों को थाम रखा था। "उतर जा बेटा... उतर जा," — सास सादिया की आवाज़ रिक्शे के भीतर से आई, लेकिन वह आवाज़ न तो कठोर थी, न ही साधारण। वह टूटे हुए रिश्तों की वह कराह थी जिसे सिर्फ़ एक माँ ही समझ सकती है। रिक्शा भारत की ओर था, पर फ़रहीन को पाकिस्तान जाना था—अपनी जन्मभूमि, पर अब बेगानी सी लगने लगी थी। फ़रहीन, प्रयागराज के इमरान से दो साल पहले ब्याही गई थी। प्यार हुआ, निकाह हुआ और फिर इस प्यार की निशानी—एक नन्हा बेटा हुआ। बेटे का नाम उन्होंने आरिफ़ रखा था, जिसका मतलब होता है—“जानने वाला, पहचानने वाला।” लेकिन आज वो नन्हा आरिफ़ समझ नहीं पा रहा था कि उसकी माँ उसे क्यों छोड़ रही है। "मैं माँ हूँ... कोई अपराधी नही...
पंडित दीनदयाल उपाध्याय: जीवन और योगदान भारत का राजनीतिक और सामाजिक इतिहास महान विचारकों और नेताओं से भरा पड़ा है, जिन्होंने देश की उन्नति और सामाजिक समरसता के लिए कार्य किया। इनमें से एक प्रमुख नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय का है। उनकी पुण्यतिथि पर जब हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, तब उनके जीवन और योगदान को याद करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय न केवल एक महान विचारक थे, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज की जड़ों में व्याप्त असमानताओं और विषमताओं को समझकर उनके समाधान के लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया। उनके विचारों ने भारतीय जनसंघ की नींव रखी और उन्होंने भारतीय समाज की समग्र दृष्टि से सेवा की, जिसका उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भर और आत्मसम्मान के साथ एक प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में स्थापित करना था। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नगला चंद्रभान नामक गांव में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य थी, लेकिन उनके घर में सांस्कृतिक और धार्मिक शिक्षा का गहरा प्रभाव था। पंडित जी का जीव...