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Pahalgam Attack Fallout: How a Pakistani Mother Lost Her Child at the Wagah Border

सत्यकथा: सरहद की एक माँ भारत-पाक सीमा पर माँ-बेटे की जुदाई: एक मर्मस्पर्शी मानवीय संकट अटारी बॉर्डर पर ठंडी हवाएँ चल रही थीं, पर फ़रहीन की आँखों से गर्म आँसुओं की धार थमने का नाम नहीं ले रही थी। उसके कांपते हाथों में 18 महीने का मासूम बेटा सिकुड़ा हुआ था, जैसे उसे भी पता हो कि कुछ अनहोनी होने वाली है। सिर पर दुपट्टा था, पर चेहरे पर मातृत्व की वेदना ने जैसे सारी दुनिया की नज़रों को थाम रखा था। "उतर जा बेटा... उतर जा," — सास सादिया की आवाज़ रिक्शे के भीतर से आई, लेकिन वह आवाज़ न तो कठोर थी, न ही साधारण। वह टूटे हुए रिश्तों की वह कराह थी जिसे सिर्फ़ एक माँ ही समझ सकती है। रिक्शा भारत की ओर था, पर फ़रहीन को पाकिस्तान जाना था—अपनी जन्मभूमि, पर अब बेगानी सी लगने लगी थी। फ़रहीन, प्रयागराज के इमरान से दो साल पहले ब्याही गई थी। प्यार हुआ, निकाह हुआ और फिर इस प्यार की निशानी—एक नन्हा बेटा हुआ। बेटे का नाम उन्होंने आरिफ़ रखा था, जिसका मतलब होता है—“जानने वाला, पहचानने वाला।” लेकिन आज वो नन्हा आरिफ़ समझ नहीं पा रहा था कि उसकी माँ उसे क्यों छोड़ रही है। "मैं माँ हूँ... कोई अपराधी नही...

Supreme Court Verdict on Bulldozers Justice

बुलडोज़र न्याय और संवैधानिक अधिकार प्रस्तावना भारत में कानून के शासन (Rule of Law) को सुनिश्चित करने के लिए न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रयागराज में की गई बुलडोज़र कार्रवाई को असंवैधानिक घोषित किया जाना, न केवल प्रशासनिक जवाबदेही पर एक कठोर संदेश है, बल्कि नागरिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक मील का पत्थर भी है। यह निर्णय संवैधानिक नैतिकता, विधिक प्रक्रिया और सामाजिक न्याय की दृष्टि से बहुस्तरीय प्रभाव डालता है। न्यायिक हस्तक्षेप और संविधान की रक्षा सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 21, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है, की व्याख्या को और अधिक स्पष्ट करता है। इसमें आवास का अधिकार (Right to Shelter) भी शामिल है, जिसे विधायिका और कार्यपालिका को संज्ञान में रखना आवश्यक है। जब कोई प्रशासनिक निकाय बिना उचित प्रक्रिया के नागरिकों के अधिकारों का हनन करता है, तो न्यायपालिका का हस्तक्षेप लोकतंत्र की मजबूती का संकेत होता है । प्रशासनिक मनमानी और विधिक प्रक्रिया स्थानीय प्रशासन, विशेष रूप से शहरी नियोज...

Women Empowerment: Achievements and Challenges

महिला सशक्तिकरण : उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ भूमिका भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में पिछले 11 वर्षों में कई महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं। सरकार ने महिलाओं के उत्थान के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य उन्हें आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना है। हालांकि, इन उपलब्धियों के बावजूद, कई क्षेत्रों में चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। इस लेख में हम महिला सशक्तिकरण की उपलब्धियों का मूल्यांकन करेंगे और उन क्षेत्रों की समालोचना करेंगे जहां सुधार की आवश्यकता है। महिला सशक्तिकरण की प्रमुख उपलब्धियाँ 1. लैंगिक अनुपात में सुधार 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में जन्म के समय लिंगानुपात 918 लड़कियों प्रति 1000 लड़कों का था। सरकार द्वारा 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसी योजनाओं के तहत जागरूकता अभियान चलाने और कड़ी निगरानी रखने के कारण यह आंकड़ा 933 तक पहुंच गया। यह सुधार सकारात्मक है, लेकिन अभी भी यह आदर्श स्तर से काफी कम है। 2. शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हुई है। पिछ...

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