सत्यकथा: सरहद की एक माँ भारत-पाक सीमा पर माँ-बेटे की जुदाई: एक मर्मस्पर्शी मानवीय संकट अटारी बॉर्डर पर ठंडी हवाएँ चल रही थीं, पर फ़रहीन की आँखों से गर्म आँसुओं की धार थमने का नाम नहीं ले रही थी। उसके कांपते हाथों में 18 महीने का मासूम बेटा सिकुड़ा हुआ था, जैसे उसे भी पता हो कि कुछ अनहोनी होने वाली है। सिर पर दुपट्टा था, पर चेहरे पर मातृत्व की वेदना ने जैसे सारी दुनिया की नज़रों को थाम रखा था। "उतर जा बेटा... उतर जा," — सास सादिया की आवाज़ रिक्शे के भीतर से आई, लेकिन वह आवाज़ न तो कठोर थी, न ही साधारण। वह टूटे हुए रिश्तों की वह कराह थी जिसे सिर्फ़ एक माँ ही समझ सकती है। रिक्शा भारत की ओर था, पर फ़रहीन को पाकिस्तान जाना था—अपनी जन्मभूमि, पर अब बेगानी सी लगने लगी थी। फ़रहीन, प्रयागराज के इमरान से दो साल पहले ब्याही गई थी। प्यार हुआ, निकाह हुआ और फिर इस प्यार की निशानी—एक नन्हा बेटा हुआ। बेटे का नाम उन्होंने आरिफ़ रखा था, जिसका मतलब होता है—“जानने वाला, पहचानने वाला।” लेकिन आज वो नन्हा आरिफ़ समझ नहीं पा रहा था कि उसकी माँ उसे क्यों छोड़ रही है। "मैं माँ हूँ... कोई अपराधी नही...
प्लेटिनम जुबली: वर्तमान में सोने से भी कम मूल्यवान धातु, फिर भी गोल्डन जुबली के बाद क्यों? ✍️ भूमिका: समय के साथ समाज में कई परंपराएँ बनती हैं, जिनका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। लेकिन जब वास्तविक परिस्थितियाँ बदल जाती हैं, तो पुरानी परंपराएँ कई बार अप्रासंगिक हो जाती हैं। ऐसा ही मामला है जुबली सालगिरहों के क्रम का, जिसमें प्लेटिनम जुबली को गोल्डन जुबली के बाद मनाया जाता है। ऐतिहासिक रूप से प्लेटिनम को अधिक दुर्लभ और मूल्यवान मानकर इसे 70 साल की जुबली का प्रतीक बनाया गया। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है—प्लेटिनम की कीमत सोने से भी कम हो गई है, इसलिए गोल्डन जुबली को प्लेटिनम से ऊपर स्थान मिलना चाहिए। यह समय के अनुसार परंपरा को नए सिरे से परिभाषित करने का उपयुक्त अवसर है। 💡 जुबली का ऐतिहासिक क्रम: जुबली सालगिरह का परंपरागत क्रम कुछ इस प्रकार है: 25 साल: सिल्वर जुबली – चाँदी, जो शुद्धता का प्रतीक है। 50 साल: गोल्डन जुबली – सोना, जो समृद्धि और मूल्य का प्रतीक है। 60 साल: डायमंड जुबली – हीरा, जो कठोरता और अमरता का प्रतीक है। 70 साल: प्लेटिनम जुबली – प्लेटिनम, जो दुर्लभता और स्थाय...