दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 4 मई 2025
- 1-भारत-ब्रिटेन सांस्कृतिक सहयोग समझौता: सांस्कृतिक कूटनीति का नया युग।
- 2-भारतीय सेना की बढ़ती ताकत: रूस से Igla-S मिसाइल की आपूर्ति और रणनीतिक संदेश।
- 3-शीर्षक: पाकिस्तान की सैन्य कमजोरी: तोपखाने का संकट और दक्षिण एशिया की सुरक्षा चुनौतियाँ।
- 4-शीर्षक: घरेलू हिंसा की कटु सच्चाई: भारत के सामने एक सामाजिक चुनौती।
- 5-शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट और ईडी की शक्तियाँ: लोकतंत्र की कसौटी पर एक ऐतिहासिक समीक्षा।
1-भारत-ब्रिटेन सांस्कृतिक सहयोग समझौता: सांस्कृतिक कूटनीति का नया युग
प्रस्तावना
समझौते की मुख्य विशेषताएँ
रचनात्मक क्षेत्रों में साझेदारी: फिल्म, संगीत, नृत्य, साहित्य और फैशन जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों के कलाकारों को एक-दूसरे के साथ काम करने और अपनी प्रतिभा दिखाने के नए मंच मिलेंगे।
आर्थिक और सांस्कृतिक लाभ: ब्रिटेन को भारत के विशाल सांस्कृतिक बाजार तक बेहतर पहुँच मिलेगी, जिससे रचनात्मक उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही, भारत अपनी सॉफ्ट पावर को और सशक्त करेगा।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में महत्व
सांस्कृतिक कूटनीति का नया दौर: आज की दुनिया में सॉफ्ट पावर किसी देश की वैश्विक छवि को परिभाषित करता है। यह समझौता भारत को अपनी संस्कृति, कला और दर्शन को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का अवसर देता है।
विश्वगुरु की ओर कदम: भारत की "वसुधैव कुटुंबकम्" की भावना और उसकी सांस्कृतिक विविधता को यह समझौता विश्व तक ले जाएगा। योग, आयुर्वेद, भारतीय संगीत और साहित्य जैसे तत्व वैश्विक सांस्कृतिक संवाद का हिस्सा बन सकते हैं।
इंडो-पैसिफिक में सांस्कृतिक प्रभाव: भारत और ब्रिटेन इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सांस्कृतिक सहयोग के माध्यम से अपनी सॉफ्ट पावर को बढ़ा सकते हैं, जो भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
चुनौतियाँ और समाधान
औपनिवेशिक संवेदनशीलताएँ: ब्रिटिश संग्रहालयों में मौजूद भारतीय कलाकृतियों की वापसी का मुद्दा एक संवेदनशील विषय है। भारत को इस मुद्दे पर कूटनीतिक संतुलन बनाए रखते हुए अपनी विरासत की रक्षा करनी होगी।
संसाधनों का अभाव: सांस्कृतिक परियोजनाओं के लिए पर्याप्त बजट और बुनियादी ढांचे की कमी एक चुनौती हो सकती है। भारत को निजी-सरकारी भागीदारी (PPP) मॉडल और अंतरराष्ट्रीय सहायता का उपयोग करना होगा।
UPSC GS पेपर 1 और 2 के दृष्टिकोण से विश्लेषण
GS पेपर 1 (भारतीय समाज और संस्कृति)
सांस्कृतिक संरक्षण और प्रचार: यह समझौता भारत की सांस्कृतिक विरासत को डिजिटल और भौतिक रूप में संरक्षित करने में मदद करेगा। उदाहरण के लिए, भारतीय संग्रहालयों में डिजिटल अभिलेखन को बढ़ावा मिलेगा।
विविधता में एकता: भारत की सांस्कृतिक विविधता को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने से देश की एकता और वैश्विक पहचान मजबूत होगी।
सामाजिक प्रभाव: सांस्कृतिक आदान-प्रदान से युवाओं में अपनी विरासत के प्रति गर्व और जागरूकता बढ़ेगी।
GS पेपर 2 (अंतरराष्ट्रीय संबंध)
सांस्कृतिक कूटनीति का उपकरण: यह समझौता भारत की विदेश नीति में सांस्कृतिक कूटनीति को एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में स्थापित करता है।
द्विपक्षीय संबंधों में नया आयाम: भारत-ब्रिटेन संबंध अब रक्षा और व्यापार तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि सांस्कृतिक सहयोग एक नया आधार प्रदान करेगा।
वैश्विक मंचों पर भारत की भूमिका: यह समझौता भारत को UNESCO जैसे मंचों पर अपनी सांस्कृतिक नीतियों को और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में मदद करेगा।
निष्कर्ष
GS Mains (विशेषतः GS Paper 2 व 1) के लिए संभावित प्रश्न:
1. "सांस्कृतिक कूटनीति वैश्विक संबंधों को मजबूत करने का एक प्रभावशाली माध्यम है।" भारत-UK सांस्कृतिक सहयोग समझौते के परिप्रेक्ष्य में चर्चा करें।
(GS Paper 2 – अंतर्राष्ट्रीय संबंध)
2. भारत की सांस्कृतिक विविधता को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने में द्विपक्षीय सांस्कृतिक समझौते किस प्रकार सहायक हो सकते हैं? भारत-UK सहयोग के उदाहरण के साथ स्पष्ट करें।
(GS Paper 1 – भारतीय समाज और संस्कृति)
3. भारत की 'सॉफ्ट पावर' रणनीति में सांस्कृतिक सहयोग की भूमिका का विश्लेषण करें।
निबंध (Essay) के लिए संभावित विषय:
1. "सांस्कृतिक सहयोग: सीमाओं से परे संबंधों का सेतु"
2. "जब कला और कूटनीति मिलती हैं – भारत की वैश्विक पहचान का पुनर्निर्माण"
श्रोत:
2-भारतीय सेना की बढ़ती ताकत: रूस से Igla-S मिसाइल की आपूर्ति और रणनीतिक संदेश
प्रस्तावना
Igla-S मिसाइल प्रणाली: एक तकनीकी चमत्कार
मारक क्षमता: 6 किलोमीटर तक की रेंज और 3.5 किलोमीटर तक की ऊँचाई।
उन्नत तकनीक: रात में ऑपरेशन और इलेक्ट्रॉनिक काउंटरमेजर (जैमिंग) से बचने की क्षमता।
रणनीतिक महत्व: भारत की सुरक्षा में एक नया आयाम
सीमावर्ती क्षेत्रों में ताकत: जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में ड्रोन और हेलीकॉप्टरों से होने वाली घुसपैठ एक बड़ी चुनौती रही है। Igla-S की तैनाती से भारतीय सेना को इन खतरों को तत्काल और प्रभावी ढंग से निष्प्रभावी करने की क्षमता मिलेगी। यह प्रणाली आतंकी गतिविधियों और सीमा पार से होने वाले हवाई हमलों के खिलाफ एक मजबूत कवच प्रदान करेगी।
मल्टी-लेयर वायु रक्षा का हिस्सा: Igla-S भारत की वायु रक्षा रणनीति को और सुदृढ़ करती है, जो पहले से ही आकाश, बराक-8 और S-400 जैसे सिस्टमों से लैस है। यह प्रणाली छोटे और त्वरित खतरों को लक्षित कर मल्टी-लेयर डिफेंस को पूर्णता प्रदान करती है।
रूस-भारत रणनीतिक साझेदारी: यह आपूर्ति भारत और रूस के बीच दशकों पुराने रक्षा सहयोग को और मजबूत करती है। ऐसे समय में जब भारत पश्चिमी देशों (जैसे अमेरिका और फ्रांस) से भी रक्षा सौदे कर रहा है, रूस के साथ यह समझौता भारत की मल्टी-अलाइनमेंट नीति को रेखांकित करता है।
आर्थिक और भू-राजनीतिक निहितार्थ
आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम: हालांकि Igla-S रूस में निर्मित है, भारत ने इस सौदे में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और भविष्य में स्वदेशी उत्पादन की संभावनाओं पर जोर दिया है। यह न केवल भारत की रक्षा निर्भरता को कम करेगा, बल्कि मेक इन इंडिया और डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को भी बढ़ावा देगा।
पड़ोसी देशों को कड़ा संदेश: Igla-S की तैनाती पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों को भारत की सैन्य ताकत और तत्परता का स्पष्ट संदेश देती है। खासकर, चीन के साथ LAC पर तनाव और पाकिस्तान द्वारा ड्रोन हमलों के बढ़ते उपयोग के संदर्भ में, यह प्रणाली भारत की जवाबी कार्रवाई की क्षमता को रेखांकित करती है।
वैश्विक भू-राजनीति में भारत की स्थिति: यह सौदा भारत की वैश्विक मंच पर बढ़ती साख को दर्शाता है। रूस के साथ सहयोग भारत को भू-राजनीतिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है, विशेषकर जब पश्चिमी देश रूस के खिलाफ प्रतिबंधों का समर्थन कर रहे हैं।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह
लागत और रखरखाव: Igla-S जैसे उन्नत सिस्टम की खरीद और रखरखाव में उच्च लागत शामिल है। भारत को दीर्घकालिक वित्तीय योजना के साथ इसे संतुलित करना होगा।
स्वदेशीकरण की गति: भारत को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का लाभ उठाकर जल्द से जल्द स्वदेशी MANPADS (Man-Portable Air-Defence Systems)विकसित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
श्रोत:
- रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की पूर्व प्रेस विज्ञप्तियाँ एवं सामरिक दस्तावेज।
- Rostec (रूसी रक्षा कंपनी) द्वारा प्रकाशित Igla-S मिसाइल की तकनीकी जानकारी।
- जनरल UPSC सिलेबस और रणनीतिक विषयों से संबंधित मानक स्रोत जैसे:
- रक्षा अध्ययन (Defense Studies) से संबंधित स्रोत
- भारत-रूस रक्षा सहयोग पर रिपोर्ट्स (IDSA, ORF जैसी थिंक टैंक रिपोर्ट्स)
3-शीर्षक: पाकिस्तान की सैन्य कमजोरी: तोपखाने का संकट और दक्षिण एशिया की सुरक्षा चुनौतियाँ
प्रस्तावना
तोपखाने का संकट: एक कमजोर सैन्य ढांचा
आर्थिक तंगी: पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कर्ज के बोझ तले दबी है, जिसके चलते वह न तो घरेलू स्तर पर गोला-बारूद का उत्पादन बढ़ा पा रहा है और न ही आयात के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा जुटा पा रहा है।
पुरानी तकनीक: पाकिस्तान की सेना अभी भी सोवियत-युग के हथियारों और सीमित चीनी समर्थन पर निर्भर है, जो आधुनिक युद्ध की जरूरतों को पूरा करने में अपर्याप्त हैं।
रणनीतिक निहितार्थ: खतरनाक भ्रम और परमाणु छाया
परमाणु निर्भरता का खतरा: अपनी पारंपरिक सैन्य कमजोरी को संतुलित करने के लिए पाकिस्तान अपनी परमाणु हथियार नीति पर अधिक झुकाव दिखा सकता है। उसकी ‘प्रथम प्रयोग’ (first use) नीति का संकेत देना दक्षिण एशिया में तनाव को और बढ़ा सकता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता खतरे में पड़ सकती है।
आतंकवाद पर बढ़ती निर्भरता: सैन्य शक्ति की कमी को पूरा करने के लिए पाकिस्तान आतंकवादी समूहों को और बढ़ावा दे सकता है, जो भारत और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के लिए सुरक्षा चुनौती बढ़ाएगा।
क्षेत्रीय असंतुलन: पाकिस्तान की कमजोरी क्षेत्र में शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकती है, जिससे चीन जैसे अन्य खिलाड़ी दक्षिण एशिया में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश करें।
भारत के लिए अवसर और चुनौतियाँ
चुनौतियाँ:
अस्थिर पड़ोसी का खतरा: एक कमजोर पाकिस्तान अधिक अप्रत्याशित और आक्रामक कदम उठा सकता है, जैसे सीमा पर तनाव बढ़ाना या आतंकवादी हमलों को प्रायोजित करना।
परमाणु जोखिम: पाकिस्तान की परमाणु नीति भारत के लिए लगातार चिंता का विषय बनी रहेगी।
अवसर:
कूटनीतिक पहल: भारत क्षेत्रीय शांति के लिए कूटनीतिक प्रयासों को बढ़ा सकता है, जैसे SAARC को पुनर्जनन देना या अन्य पड़ोसी देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना।
आत्मनिर्भरता पर जोर: भारत को अपनी रक्षा आत्मनिर्भरता को और तेज करना चाहिए, ताकि वह किसी भी क्षेत्रीय संकट का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार रहे।
निष्कर्ष: शांति और सहयोग की राह
4-शीर्षक: घरेलू हिंसा की कटु सच्चाई: भारत के सामने एक सामाजिक चुनौती
प्रस्तावना
घरेलू हिंसा: एक गहरी जड़ें जमाए सामाजिक बीमारी
इसके प्रमुख कारण हैं:
पितृसत्तात्मक मानसिकता: समाज में गहरे बैठी वह सोच जो पुरुषों को परिवार का "नियंत्रक" मानती है और हिंसा को "घरेलू मामले" के रूप में सामान्य ठहराती है।
संस्थागत कमियाँ: पुलिस और न्यायिक तंत्र में संवेदनशीलता की कमी, शिकायत दर्ज करने में देरी, और पीड़िताओं को दोषी ठहराने का रवैया।
सामाजिक कलंक: कई महिलाएँ सामाजिक दबाव और परिवार की "इज्जत" के नाम पर चुप रहने को मजबूर होती हैं।
सामाजिक और संस्थागत चुनौतियाँ
घरेलू हिंसा की समस्या केवल कानून-व्यवस्था का मसला नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौती है। कानून तो बनाए गए, लेकिन उनकी धार कुंद क्यों है?
न्याय में देरी: लंबी कानूनी प्रक्रियाएँ और "समझौते" के लिए सामाजिक दबाव पीड़िताओं को हतोत्साहित करते हैं।
आर्थिक निर्भरता: कई महिलाएँ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होने के कारण हिंसा सहने को मजबूर होती हैं।
सकारात्मक संकेत और संभावनाएँ
आगे की राह: एक समग्र रणनीति
जागरूकता अभियान: स्कूलों, कॉलेजों, और समुदायों में लैंगिक समानता और हिंसा के खिलाफ जागरूकता फैलाने की जरूरत है। पुरुषों और युवाओं को इस बदलाव का हिस्सा बनाना होगा।
संवेदनशील संस्थाएँ: पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को लैंगिक संवेदनशीलता का प्रशिक्षण देना और त्वरित शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना।
आर्थिक सशक्तिकरण: महिलाओं को शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण, और रोजगार के अवसर प्रदान कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना।
सहायता तंत्र: आश्रय गृहों की संख्या बढ़ाना, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श को सुलभ बनाना, और हेल्पलाइन सेवाओं को मजबूत करना।
सामाजिक बदलाव: पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती देना और महिलाओं की गरिमा को सामाजिक मूल्य के रूप में स्थापित करना।
निष्कर्ष: एक सुरक्षित और समावेशी समाज की ओर
5-शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट और ईडी की शक्तियाँ: लोकतंत्र की कसौटी पर एक ऐतिहासिक समीक्षा
प्रस्तावना
ED की शक्तियाँ: एक दोधारी तलवार
प्रवर्तन निदेशालय को मनी लॉन्ड्रिंग और आर्थिक अपराधों से निपटने के लिए विशेष शक्तियाँ दी गई हैं। PMLA, 2002 के तहत ED बिना प्राथमिकी (FIR) के गिरफ्तारी कर सकता है, संपत्ति जब्त कर सकता है, और पूछताछ के दौरान दर्ज बयानों को अदालत में साक्ष्य के रूप में पेश कर सकता है। 2022 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इन शक्तियों को और मजबूत किया, जिससे ED को एक ताकतवर जांच एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया।
लेकिन, इन शक्तियों के साथ कई सवाल भी उठे हैं:
- क्या इतनी व्यापक शक्तियाँ नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन करती हैं?
- क्या ED का उपयोग राजनीतिक प्रतिशोध के हथियार के रूप में हो रहा है?
- क्या ऐसी अनियंत्रित शक्तियाँ लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकती हैं?
संवैधानिक दृष्टिकोण: लोकतंत्र की रक्षा (GS पेपर 2)
न्यायिक समीक्षा की ताकत: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 नागरिकों को अपने मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालयों का दरवाजा खटखटाने का अधिकार देते हैं। यदि ED की शक्तियाँ निजता के अधिकार (अनुच्छेद 21) या स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती हैं, तो उनकी समीक्षा संवैधानिक दायित्व है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न्यायिक सक्रियता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा का प्रतीक है।
बिना FIR गिरफ्तारी का विवाद: ED को बिना प्राथमिकी के गिरफ्तारी का अधिकार देना दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के सामान्य सिद्धांतों से अलग है। यह प्रक्रिया पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठाती है, क्योंकि इससे मनमानी कार्रवाई की आशंका बढ़ती है।
संस्थागत स्वायत्तता का संकट: हाल के वर्षों में ED पर राजनीतिक दुरुपयोग के आरोप लगातार सामने आए हैं। विपक्षी नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, और पत्रकारों के खिलाफ ED की कार्रवाइयों को "राजनीतिक बदले" के रूप में देखा गया है। यह स्वतंत्र जांच एजेंसियों की निष्पक्षता और लोकतंत्र की संस्थागत अखंडता पर गंभीर सवाल उठाता है।
शासन और नीति के आयाम
कार्यपालिका का बढ़ता दबदबा: ED जैसी जांच एजेंसियों को असीमित शक्तियाँ देना कार्यपालिका के केंद्रीकरण को दर्शाता है। यह सत्ता के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धांत को कमजोर करता है, जो लोकतंत्र का आधार है।
नागरिक अधिकारों पर खतरा: PMLA की धारा 50 के तहत ED व्यक्तियों को पूछताछ के लिए बुला सकता है और उनके बयानों को साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। यह स्वयं के खिलाफ गवाही न देने के अधिकार (अनुच्छेद 20(3)) का उल्लंघन हो सकता है। इसके अलावा, पूछताछ के दौरान भय या दबाव की आशंका भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कमजोर करती है।
नीतिगत सुधार की जरूरत: सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा ED की शक्तियों को संतुलित करने और जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए नीतिगत सुधारों का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। उदाहरण के लिए, गिरफ्तारी से पहले प्राथमिकी अनिवार्य करना या बयानों की स्वैच्छिकता सुनिश्चित करना।
नैतिकता और प्रशासनिक अखंडता (GS पेपर 4)
न्याय का नैतिक सिद्धांत: कानून और जांच एजेंसियों का उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना होना चाहिए, न कि व्यक्तियों या समूहों को दबाने का साधन बनना। ED की शक्तियों का दुरुपयोग नैतिकता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा इस नैतिक दायित्व को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक कदम है।
प्रशासनिक तटस्थता: जांच एजेंसियों और सिविल सेवकों को राजनीतिक तटस्थता और कानूनी मर्यादाओं के भीतर काम करना चाहिए। यदि ED को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, तो यह प्रशासनिक ईमानदारी और जनता के विश्वास को कमजोर करता है।
पारदर्शिता और जवाबदेही: लोकतंत्र में संस्थाओं को पारदर्शी और जवाबदेह होना चाहिए। ED की अपारदर्शी कार्यप्रणाली और अनियंत्रित शक्तियाँ जनता के विश्वास को डिगा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप न केवल ED की जवाबदेही सुनिश्चित करेगा, बल्कि जांच एजेंसियों के प्रति जनता का भरोसा भी बहाल करेगा।
आगे की राह: संतुलन और सुधार
सुप्रीम कोर्ट की यह समीक्षा न केवल ED की शक्तियों को संतुलित करने का अवसर है, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने का भी मौका है। कुछ संभावित सुधार हो सकते हैं:
पारदर्शी प्रक्रिया: गिरफ्तारी और पूछताछ की प्रक्रिया में स्पष्ट दिशानिर्देश और निगरानी तंत्र स्थापित करना।
नागरिक अधिकारों की रक्षा: PMLA के प्रावधानों को संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप बनाना, जैसे स्वयं के खिलाफ गवाही न देने का अधिकार।
संस्थागत स्वायत्तता: जांच एजेंसियों को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखने के लिए स्वतंत्र निगरानी समिति का गठन।
निष्कर्ष: लोकतंत्र का मजबूत आधार
सुप्रीम कोर्ट द्वारा ED की शक्तियों की समीक्षा न केवल एक कानूनी कदम है, बल्कि लोकतंत्र, संवैधानिक मूल्यों, और नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा का प्रतीक है। यह पहल सुनिश्चित करेगी कि शक्तिशाली जांच एजेंसियाँ कानून के दायरे में रहें और नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करें। यह भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में सत्ता के संतुलन और न्याय की सर्वोच्चता को मजबूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
UPSC अभ्यर्थियों के लिए नोट:
GS पेपर 2: इस मुद्दे को न्यायिक सक्रियता, सत्ता का पृथक्करण, और संस्थागत जवाबदेही जैसे विषयों के साथ जोड़ा जा सकता है।
GS पेपर 4: नैतिक प्रशासन, पारदर्शिता, और निष्पक्षता के सिद्धांतों के संदर्भ में इसका उपयोग करें।
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