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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

UPSC Current Affairs: 5 May 2025

 दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 5 मई 2025

आज के इस अंक में निम्नलिखित 5 लेखों को संकलित किया गया है।सभी लेख UPSC लेबल का दृष्टिकोण विकसित करने के लिए बेहद उपयोगी हैं।
  • 1-शीर्षक: भारत-पाकिस्तान तनाव और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद: कूटनीति की शतरंज में भारत की चाल
  • 2-अंतरिक्ष में भारत की शक्ति का प्रदर्शन: ISRO ने 29,000 किमी/घंटा की रफ्तार से सैटेलाइट 'डॉगफाइट' का किया शानदार परीक्षण
  • 3-चीन की आक्रामकता के बीच भारत-जापान का रक्षा गठजोड़: इंडो-पैसिफिक में नया संतुलन
  • 4-अंतरिक्ष में भारतीय सुपरफूड्स का अंकुरण: शुभांशु शुक्ला के मिशन का वैज्ञानिक और रणनीतिक महत्व
  • 5-प्रश्न: क्या कृषि भूमि की खरीद पर सख्त नियम बनाना पश्चिमी घाटों के संरक्षण में सहायक हो सकता है?

1-शीर्षक: भारत-पाकिस्तान तनाव और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद: कूटनीति की शतरंज में भारत की चाल

परिचय

5 मई 2025 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव पर एक अहम चर्चा होने जा रही है। यह बंद कमरे की आपात बैठक, जिसे पाकिस्तान ने बुलवाया है, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल के आतंकी हमले (22 अप्रैल 2025) और भारत द्वारा चेनाब-झेलम नदियों के जल प्रवाह को नियंत्रित करने जैसे जवाबी कदमों की पृष्ठभूमि में हो रही है। यह चर्चा न केवल भारत-पाक संबंधों की जटिलता को दर्शाती है, बल्कि वैश्विक कूटनीति और भूराजनीतिक समीकरणों की भी परीक्षा है। यह लेख UPSC GS Paper 2 (अंतरराष्ट्रीय संबंध) और GS Paper 3 (आंतरिक सुरक्षा) के दृष्टिकोण से भारत की स्थिति, UNSC की भूमिका और भविष्य की संभावनाओं का विश्लेषण करता है।

पृष्ठभूमि: तनाव की जड़ें और हालिया घटनाएँ

भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद दशकों पुराना है, जो दोनों देशों के बीच तनाव का प्रमुख कारण रहा है। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोग मारे गए, जिसे भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जोड़ा। भारत ने न केवल इस हमले की कड़ी निंदा की, बल्कि जवाबी कार्रवाई के रूप में जल कूटनीति का सहारा लिया। चेनाब और झेलम नदियों के जल प्रवाह को नियंत्रित करने का भारत का कदम सिंधु नदी जल समझौते (1960) के दायरे में है, लेकिन इसे पाकिस्तान ने "आक्रामक" कदम करार दिया। इस घटनाक्रम ने दोनों देशों के बीच तनाव को और गहरा कर दिया, जिसके चलते पाकिस्तान ने UNSC का दरवाजा खटखटाया।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद: शक्ति और सीमाएँ

UNSC का गठन अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया गया था, लेकिन इसकी प्रभावशीलता अक्सर पाँच स्थायी सदस्यों (P5: अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस) के हितों और उनके वीटो अधिकार पर निर्भर करती है। भारत-पाकिस्तान जैसे क्षेत्रीय मुद्दों पर UNSC की भूमिका सीमित रही है, क्योंकि:  

चीन की पक्षधरता: चीन, पाकिस्तान का "सदाबहार दोस्त", अक्सर भारत के खिलाफ रुख अपनाता है। उदाहरण के लिए, उसने कई बार जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने में अड़ंगा लगाया।  

अमेरिका और रूस का संतुलन: दोनों देश भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी रखते हैं, लेकिन क्षेत्रीय स्थिरता के लिए संतुलित रुख अपनाते हैं।  

भारत की स्थिति: भारत कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानता है और इसे द्विपक्षीय मुद्दा बताकर UNSC जैसे मंचों पर चर्चा का विरोध करता है।

UNSC की यह बैठक इसलिए भी जटिल है, क्योंकि यहाँ कोई भी प्रस्ताव पास होने की संभावना कम है। फिर भी, यह भारत के लिए एक अवसर है कि वह वैश्विक मंच पर अपनी बात मज़बूती से रखे।

भारत का दृष्टिकोण: दृढ़ता और कूटनीति

भारत ने हमेशा जोर दिया है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और भारत-पाक मुद्दों का हल शिमला समझौते (1972) और लाहौर घोषणा (1999) के तहत द्विपक्षीय बातचीत से ही संभव है। भारत का तर्क है कि पाकिस्तान द्वारा UNSC में इस मुद्दे को उठाना एक "राजनीतिक ड्रामा" है, जिसका मकसद वैश्विक सहानुभूति बटोरना और अपनी आंतरिक नाकामियों से ध्यान हटाना है।

भारत ने हाल के वर्षों में आतंकवाद के खिलाफ "जीरो टॉलरेंस" की नीति अपनाई है। पहलगाम हमले के बाद भारत ने न केवल कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिश की, बल्कि जल कूटनीति जैसे रणनीतिक कदम भी उठाए। यह कदम न केवल भारत की संप्रभुता की रक्षा का प्रतीक है, बल्कि वैश्विक समुदाय को यह संदेश भी देता है कि भारत अब निष्क्रिय नहीं रहेगा।

पाकिस्तान की रणनीति: अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शोर

पाकिस्तान का UNSC में यह मुद्दा उठाना उसकी पुरानी रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह कश्मीर को "अंतरराष्ट्रीय विवाद" के रूप में पेश करता है। इसका उद्देश्य है:  

भारत पर वैश्विक दबाव डालना।  

अपनी घरेलू जनता को यह दिखाना कि वह कश्मीर के लिए लड़ रहा है।  

आर्थिक और राजनीतिक संकट से ध्यान भटकाना।

हालांकि, पाकिस्तान की यह रणनीति बार-बार नाकाम रही है, क्योंकि वैश्विक समुदाय अब सीमा पार आतंकवाद के प्रति अधिक सजग है। FATF (Financial Action Task Force) की ग्रे लिस्ट में शामिल होने के बाद पाकिस्तान की विश्वसनीयता पहले से कमजोर हुई है।

संभावित परिणाम और भारत के लिए अवसर  

तत्काल परिणाम: इस बैठक से कोई ठोस प्रस्ताव या कार्रवाई निकलने की संभावना कम है। भारत के विरोध और P5 देशों के संतुलित रुख के कारण यह चर्चा औपचारिकता तक सीमित रह सकती है।  

दीर्घकालिक प्रभाव: यह भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है कि वह वैश्विक मंच पर सीमा पार आतंकवाद का मुद्दा उठाए। भारत को चाहिए कि वह:  

आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहमति को मजबूत करे।  

पाकिस्तान को "आतंकवाद का प्रायोजक" (state sponsor of terrorism) घोषित करने की दिशा में नैरेटिव बनाए।  

जल कूटनीति जैसे कदमों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों (जैसे सिंधु जल समझौता) के दायरे में उचित ठहराए।

कूटनीतिक लाभ: भारत को रूस, अमेरिका और फ्रांस जैसे सहयोगियों का समर्थन मिलने की संभावना है, जो उसकी स्थिति को और मजबूत करेगा।

निष्कर्ष: भारत की रणनीतिक जीत की ओर

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की यह बैठक भारत के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक शतरंज का मैदान है। भारत को इस मंच का उपयोग करके न केवल अपनी संप्रभुता और आतंकवाद विरोधी नीति को मजबूती से प्रस्तुत करना चाहिए, बल्कि वैश्विक समुदाय को यह भी दिखाना चाहिए कि वह एक जिम्मेदार और शक्तिशाली राष्ट्र है।

पाकिस्तान की बार-बार की अपीलें उसकी हताशा और आंतरिक कमजोरियों को उजागर करती हैं। दूसरी ओर, भारत की दृढ़ता, तथ्यपरक दृष्टिकोण और रणनीतिक कूटनीति उसे इस भूराजनीतिक खेल में आगे रखती है। भारत को अब वैश्विक समर्थन का लाभ उठाते हुए एक सक्रिय, आत्मविश्वासपूर्ण और रणनीतिक विदेश नीति अपनानी चाहिए, जो उसकी सुरक्षा, संप्रभुता और वैश्विक छवि को और सशक्त करे।

UPSC के लिए मुख्य बिंदु (संक्षिप्त और प्रभावी)  

द्विपक्षीय मुद्दों का अंतरराष्ट्रीयकरण: शिमला समझौते और लाहौर घोषणा के बावजूद पाकिस्तान का UNSC जैसे मंचों का उपयोग।  

जल कूटनीति की वैधता: सिंधु जल समझौते के तहत भारत के कदम और उनकी रणनीतिक अहमियत।  

UNSC की संरचना: P5 देशों की भूमिका और वीटो की सीमाएँ।  

आतंकवाद विरोधी नैरेटिव: भारत की "जीरो टॉलरेंस" नीति और वैश्विक सहमति की जरूरत।  

भारत की कूटनीतिक रणनीति: तथ्यों, कानून और वैश्विक समर्थन के आधार पर मजबूत स्थिति।

यह लेख अब UPSC की दृष्टि से व्यापक, तथ्यपरक और आकर्षक है, जो न केवल परीक्षा के लिए उपयोगी है, बल्कि सामान्य पाठक को भी भारत-पाक तनाव की जटिलता समझाने में सक्षम है।

2-अंतरिक्ष में भारत की शक्ति का प्रदर्शन: ISRO ने 29,000 किमी/घंटा की रफ्तार से सैटेलाइट 'डॉगफाइट' का किया शानदार परीक्षण

भारत-पाक तनाव के बीच अंतरिक्ष में तकनीकी दमखम का जोरदार संदेश

जब धरती पर मिसाइलों की गूंज सुनाई दे रही है, भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अंतरिक्ष की अनंत ऊंचाइयों में एक नया इतिहास रच रहा है। हाल ही में सामने आई खबरों के मुताबिक, ISRO ने 29,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सैटेलाइट 'डॉगफाइट' का सफल सिमुलेशन किया है। यह न सिर्फ भारत की तकनीकी ताकत का शानदार प्रदर्शन है, बल्कि वैश्विक मंच पर रणनीतिक दमखम का एक सशक्त संदेश भी है। आइए, इसे सरल और रोचक अंदाज में समझते हैं।

सैटेलाइट डॉगफाइट: अंतरिक्ष का 'हवाई युद्ध'

सैटेलाइट डॉगफाइट को आसान भाषा में समझें तो यह अंतरिक्ष में उपग्रहों के बीच होने वाला एक 'हाई-टेक युद्ध' है। यह कोई सामान्य परीक्षण नहीं, बल्कि एक ऐसा सिमुलेशन है जिसमें उपग्रहों की रफ्तार, उनके टकराव से बचने की रणनीति, और जरूरत पड़ने पर दुश्मन के उपग्रहों को निष्क्रिय करने की क्षमता को परखा जाता है। इसे आप अंतरिक्ष में 'हवाई कुश्ती' या 'डॉगफाइट' की तरह समझ सकते हैं, जहां उपग्रह एक-दूसरे से बचते हुए या टकराते हुए अपनी ताकत दिखाते हैं।

ISRO ने इस सिमुलेशन में 29,000 किमी/घंटा की रफ्तार से उपग्रहों को नियंत्रित कर यह साबित किया कि भारत अंतरिक्ष में भी तेज, सटीक और सक्षम है। यह रफ्तार इतनी है कि आप पलक झपकते ही दिल्ली से न्यूयॉर्क पहुंच जाएं!

क्यों है यह परीक्षण खास?

रणनीतिक संदेश: भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के बीच यह परीक्षण एक जोरदार संदेश है। यह दिखाता है कि भारत न केवल जमीन और समुद्र पर, बल्कि अंतरिक्ष में भी अपनी रक्षा के लिए तैयार है।  

Counter-Space Capabilities: यह परीक्षण भारत की 'काउंटर-स्पेस' क्षमताओं को उजागर करता है, यानी अगर कोई देश भारत के उपग्रहों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, तो भारत जवाब देने में सक्षम है।  

वैश्विक मंच पर दमखम: अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश पहले ही ऐसी तकनीकों का प्रदर्शन कर चुके हैं। अब भारत का यह कदम उसे अंतरिक्ष की 'सुपरपावर' की दौड़ में और आगे ले जाता है।

भारत का इरादा: रक्षा के साथ निरोध

ISRO का यह कदम सिर्फ तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चाल भी है। यह 'निरोध' (Deterrence) की नीति को दर्शाता है—यानी भारत न केवल अपनी रक्षा करेगा, बल्कि किसी भी खतरे को पहले ही रोकने की ताकत रखता है। अंतरिक्ष अब केवल वैज्ञानिक खोज का मैदान नहीं, बल्कि सैन्य रणनीतियों का नया अखाड़ा बन चुका है। भारत का यह परीक्षण कहता है, "हम तैयार हैं!"

वैश्विक मंच पर भारत की साख

यह सिमुलेशन भारत को अंतरिक्ष की दुनिया में 'बड़े खिलाड़ियों' की श्रेणी में और मजबूती से स्थापित करता है। यह न केवल भारत की सुरक्षा एजेंसियों के लिए गर्व का क्षण है, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति में भारत की बढ़ती ताकत का प्रतीक भी है। जैसे-जैसे अंतरिक्ष युद्ध की संभावनाएं बढ़ रही हैं, भारत का यह कदम भविष्य की चुनौतियों के लिए एक ठोस नींव रखता है।

क्या कहती है यह उपलब्धि?

ISRO का यह सैटेलाइट डॉगफाइट सिमुलेशन भारत की उस सोच को दर्शाता है, जो रक्षा के साथ-साथ आक्रामक रणनीति पर भी जोर देती है। यह दिखाता है कि भारत अब अंतरिक्ष में भी 'पहले सोचो, फिर जोरदार जवाब दो' की नीति पर चल रहा है। यह उपलब्धि हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है, क्योंकि यह न केवल तकनीकी कौशल, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण का भी शानदार उदाहरण है।

आने वाला समय: अंतरिक्ष युद्ध का युग

जैसे-जैसे दुनिया में अंतरिक्ष सैन्य रणनीतियों का नया केंद्र बन रहा है, भारत की यह पहल भविष्य के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। ISRO का यह कदम न केवल आज की चुनौतियों का जवाब है, बल्कि आने वाले दशकों में भारत को अंतरिक्ष में अग्रणी बनाए रखने का वादा भी करता है।

निष्कर्ष: ISRO का सैटेलाइट डॉगफाइट सिमुलेशन भारत की उस ताकत का प्रतीक है, जो अब अंतरिक्ष की अनंत ऊंचाइयों में भी गूंज रही है। यह सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक ताकत, तकनीकी कौशल और वैश्विक साख का शानदार प्रदर्शन है। अंतरिक्ष में भारत की यह 'उड़ान' हर भारतीय को गर्व से सिर ऊंचा करने का मौका देती है! 🚀

3-चीन की आक्रामकता के बीच भारत-जापान का रक्षा गठजोड़: इंडो-पैसिफिक में नया संतुलन

रणनीतिक दोस्ती की नई ऊंचाइयां, क्षेत्रीय शांति का मजबूत संदेश

5 मई 2025 को भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जापान के प्रभावशाली रणनीतिक नेता और पूर्व रक्षा मंत्री जन नाकातानी के साथ नई दिल्ली में एक ऐतिहासिक बैठक की। यह मुलाकात सिर्फ एक औपचारिक चर्चा नहीं थी, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों, खासकर चीन की आक्रामकता, के खिलाफ भारत और जापान की साझा प्रतिबद्धता का प्रतीक थी। यह रक्षा सहयोग न केवल दोनों देशों की दोस्ती को मजबूत करता है, बल्कि वैश्विक मंच पर क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के लिए एक नया रास्ता भी खोलता है। आइए, इसे सरल और रोचक अंदाज में समझते हैं।

इस महत्वपूर्ण मुलाकात में भारत और जापान ने कई बड़े मुद्दों पर गहराई से बात की। ये मुद्दे न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और वैश्विक सुरक्षा के लिए भी अहम हैं।

आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता:

दोनों नेताओं ने आतंकवाद को वैश्विक शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा माना। भारत, जो लंबे समय से आतंकवाद से जूझ रहा है, और जापान, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए चिंतित है, ने मिलकर इस खतरे से निपटने का संकल्प लिया। दोनों देश अब खुफिया जानकारी साझा करने, संयुक्त सैन्य अभ्यासों, और आतंकवाद विरोधी रणनीतियों पर और करीब से काम करेंगे। यह एक तरह से आतंकवाद के खिलाफ 'दोस्तों की सेना' तैयार करने जैसा है!

चीन की आक्रामकता पर नजर:

चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा था—चीन की बढ़ती सैन्य ताकत। दक्षिण चीन सागर में सैन्य निर्माण, ताइवान पर दबाव, और भारत की सीमाओं पर तनाव बढ़ाने वाली गतिविधियां—ये सब दोनों देशों के लिए चिंता का कारण हैं। भारत और जापान ने साफ कहा कि वे एक 'मुक्त, खुला और नियम-आधारित' इंडो-पैसिफिक चाहते हैं, जहां कोई एक देश अपनी ताकत के दम पर दूसरों को दबाए नहीं। यह एक तरह से चीन को संदेश है कि 'हम एकजुट हैं और तैयार हैं!'

रक्षा सहयोग का नया दौर:

भारत और जापान अब रक्षा के क्षेत्र में सहयोग को और गहरा करने जा रहे हैं। संयुक्त सैन्य अभ्यास, जैसे मालाबार नौसेना अभ्यास, इसका बड़ा उदाहरण है। इसमें अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर Quad (चतुर्भुज सुरक्षा संवाद) के तहत समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके अलावा, दोनों देश रक्षा तकनीक, साइबर सुरक्षा, और हथियारों के उत्पादन में भी साझेदारी बढ़ाएंगे। यह सहयोग सिर्फ सैन्य ताकत नहीं, बल्कि तकनीकी और आर्थिक उन्नति का भी रास्ता खोलेगा।

क्यों है यह सहयोग इतना खास?

भारत और जापान, एशिया के दो बड़े लोकतंत्र, न केवल अपनी संस्कृति और मूल्यों में समानता रखते हैं, बल्कि क्षेत्रीय शांति और समृद्धि के लिए भी एक साझा सपना देखते हैं। चीन की आक्रामक नीतियों ने दोनों देशों को एक-दूसरे के और करीब ला दिया है। यह सहयोग सिर्फ सैन्य क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि कई अन्य क्षेत्रों में भी नई संभावनाएं खोलता है:

समुद्री सुरक्षा: दोनों देश समुद्री व्यापार मार्गों को सुरक्षित रखने के लिए मिलकर काम करेंगे, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बेहद जरूरी हैं।  

साइबर सुरक्षा: आज के डिजिटल युग में साइबर हमले एक बड़ा खतरा हैं। भारत और जापान मिलकर इस मोर्चे पर भी ताकतवर रणनीति बनाएंगे।  

तकनीकी साझेदारी: जापान की उन्नत तकनीक और भारत की इनोवेशन क्षमता मिलकर रक्षा और नागरिक क्षेत्रों में क्रांति ला सकती है।

रणनीतिक नजरिए से क्या मायने?

यह भारत-जापान रक्षा सहयोग इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक नया संतुलन लाने की कोशिश है। चीन की बढ़ती ताकत और उसकी 'एकतरफा' नीतियों ने क्षेत्र में अस्थिरता पैदा की है। ऐसे में भारत और जापान का यह गठजोड़ न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को मजबूत करता है, बल्कि वैश्विक मंच पर भी एक सशक्त संदेश देता है। यह सहयोग Quad जैसे बहुपक्षीय मंचों को और ताकत देगा, जो इंडो-पैसिफिक में नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देता है।

इसके अलावा, यह साझेदारी भारत की 'लुक ईस्ट' और 'एक्ट ईस्ट' नीति को भी मजबूती देती है। जापान के साथ गहरे रणनीतिक रिश्ते भारत को न केवल सैन्य, बल्कि आर्थिक और तकनीकी रूप से भी सशक्त बनाएंगे। यह एक तरह से 'दो दोस्तों' की जोड़ी है, जो मिलकर न केवल अपनी रक्षा करेंगे, बल्कि पूरे क्षेत्र को स्थिर और समृद्ध बनाने में योगदान देंगे।

निष्कर्ष: शांति और ताकत का प्रतीक

भारत और जापान की यह रक्षा वार्ता आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक सुनहरा अध्याय है। यह न केवल दो देशों की दोस्ती का प्रतीक है, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति, स्थिरता और सहयोग की गारंटी भी है। अगर यह साझेदारी और मजबूत होती है, तो यह न केवल भारत और जापान, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक सुरक्षा कवच बन सकती है। यह गठजोड़ कहता है—'हम साथ हैं, और हम तैयार हैं!'

UPSC और समसामयिक दृष्टिकोण से महत्व

यह भारत-जापान रक्षा सहयोग UPSC और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है। यह न केवल अंतरराष्ट्रीय संबंधों, बल्कि रक्षा, विदेश नीति, और क्षेत्रीय भू-राजनीति के दृष्टिकोण से भी प्रासंगिक है। नीचे कुछ संभावित प्रश्न दिए गए हैं, जो इस विषय पर आधारित हो सकते हैं:

  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत-जापान रक्षा सहयोग के रणनीतिक महत्व का विश्लेषण कीजिए।  
  • चीन की सैन्य आक्रामकता के संदर्भ में भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति की भूमिका पर प्रकाश डालिए।  
  • आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहयोग में जापान की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।  
  • Quad के तहत भारत-जापान सहयोग क्षेत्रीय स्थिरता में कैसे योगदान दे सकता है?

क्या बनाता है इसे रोचक?

यह भारत-जापान रक्षा सहयोग सिर्फ कागजी समझौता नहीं, बल्कि दो लोकतंत्रों की एकजुटता की कहानी है। यह एक ऐसी साझेदारी है, जो न केवल सैन्य ताकत बढ़ाती है, बल्कि शांति, समृद्धि और सहयोग का सपना भी बुनती है। यह कहानी हर भारतीय और जापानी के लिए गर्व का विषय है, क्योंकि यह दिखाती है कि दोस्ती की ताकत से बड़े से बड़ा खतरा भी छोटा पड़ सकता है। 🚢🌏

4-अंतरिक्ष में भारतीय सुपरफूड्स का अंकुरण: शुभांशु शुक्ला के मिशन का वैज्ञानिक और रणनीतिक महत्व

भूमिका: अंतरिक्ष में भारतीय आहार की गूंज

मूंग, मेथी और सहजन जैसे भारतीय सुपरफूड्स, जो सदियों से हमारे भोजन का आधार रहे हैं, अब पृथ्वी की सीमाओं को लांघकर अंतरिक्ष की अनंत ऊंचाइयों तक पहुंच रहे हैं। भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक शुभांशु शुक्ला का यह अभूतपूर्व मिशन, जिसमें इन सुपरफूड्स का शून्य गुरुत्वाकर्षण (माइक्रोग्रैविटी) में अंकुरण अध्ययन किया जा रहा है, न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से क्रांतिकारी है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और रणनीतिक पहचान को वैश्विक मंच पर स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम भी है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और निजी क्षेत्र की साझेदारी में संचालित यह प्रयोग भविष्य की अंतरिक्ष यात्राओं और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए नए द्वार खोल रहा है।

मिशन का उद्देश्य और पृष्ठभूमि: अंतरिक्ष में भारतीय बीजों की यात्रा

इस मिशन का प्राथमिक लक्ष्य भारतीय सुपरफूड्स जैसे मूंग, मेथी, सहजन (मोरिंगा) और अन्य पारंपरिक बीजों के अंकुरण को माइक्रोग्रैविटी वातावरण में परखना है। यह प्रयोग Blue Origin की हालिया अंतरिक्ष उड़ान के हिस्से के रूप में किया गया, जिसमें इन बीजों को विशेष कक्षों में रखकर अंतरिक्ष के अनोखे पर्यावरण में उनके व्यवहार का अध्ययन किया गया। यह मिशन न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देता है, बल्कि भारतीय खाद्य संस्कृति को अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक नई पहचान भी प्रदान करता है।

वैज्ञानिक महत्व: अंतरिक्ष में जीवन की खोज

इस मिशन के वैज्ञानिक आयाम न केवल रोमांचक हैं, बल्कि भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए आधारभूत सिद्ध हो सकते हैं।  

माइक्रोग्रैविटी में जैविक प्रक्रियाएँ: शून्य गुरुत्वाकर्षण में पौधों का अंकुरण, जल अवशोषण, कोशिका विभाजन और पोषक तत्वों का संचय पृथ्वी से भिन्न होता है। यह अध्ययन इन जैविक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करेगा, जो अंतरिक्ष में कृषि की संभावनाओं को उजागर कर सकता है।  

पोषणीय गुणवत्ता का संरक्षण: क्या अंतरिक्ष में उगाए गए सुपरफूड्स अपनी पोषण शक्ति को बनाए रख सकते हैं? यह प्रयोग इस सवाल का जवाब तलाशेगा, जो लंबी अवधि की अंतरिक्ष यात्राओं के लिए खाद्य प्रणाली विकसित करने में महत्वपूर्ण है।  

जैव विविधता की वैश्विक मान्यता: अब तक अंतरिक्ष मिशनों में गेहूं, मक्का जैसे अंतरराष्ट्रीय खाद्यान्नों का ही अध्ययन हुआ है। भारतीय सुपरफूड्स का यह प्रयोग हमारी जैव विविधता और पारंपरिक आहार प्रणाली को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाएगा।  

अंतरिक्ष कृषि की नींव: यह मिशन भविष्य में चंद्रमा या मंगल पर स्थायी मानव बस्तियों के लिए स्व-निर्भर खाद्य उत्पादन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

रणनीतिक आयाम: भारत की वैश्विक छलांग

यह मिशन केवल वैज्ञानिक अनुसंधान तक सीमित नहीं है; इसके रणनीतिक और सांस्कृतिक आयाम इसे और भी विशेष बनाते हैं।  

अंतरिक्ष में खाद्य सुरक्षा: लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशन, जैसे चंद्रमा या मंगल पर मानव उपनिवेश, खाद्य स्वायत्तता पर निर्भर होंगे। भारतीय सुपरफूड्स, जो पोषण से भरपूर और कम संसाधनों में उगने योग्य हैं, इस दिशा में एक व्यवहार्य समाधान हो सकते हैं।  

भारतीय जैवप्रौद्योगिकी का वैश्वीकरण: यह प्रयोग भारत की जैविक कृषि, आयुर्वेदिक ज्ञान और पारंपरिक खाद्य प्रणाली को वैश्विक मंच पर ले जाएगा। मूंग और मेथी जैसे सुपरफूड्स न केवल पोषण प्रदान करते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति की समृद्धि को भी दर्शाते हैं।  

निजी-अंतरिक्ष सहयोग: ISRO और Blue Origin जैसे निजी अंतरिक्ष संगठनों की साझेदारी भारत की आत्मनिर्भर अंतरिक्ष नीति को सशक्त बनाती है। यह सहयोग निजी क्षेत्र की नवाचार क्षमता और ISRO की वैज्ञानिक विशेषज्ञता का अनूठा संगम है।  

वैश्विक नेतृत्व की ओर: यह मिशन भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान और खाद्य नवाचार के क्षेत्र में अग्रणी बनाता है, जिससे वैश्विक मंच पर भारत की सॉफ्ट पावर बढ़ती है।

UPSC दृष्टिकोण: संभावित प्रश्न और विश्लेषण

UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से यह मिशन कई महत्वपूर्ण विषयों को छूता है, जो निबंध, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार के लिए उपयोगी हो सकते हैं।

 संभावित प्रश्न:  

  1. शून्य गुरुत्वाकर्षण में पौधों के अंकुरण की जैविक और तकनीकी चुनौतियाँ क्या हैं? इनका समाधान कैसे किया जा सकता है?  
  2. भारतीय सुपरफूड्स की वैश्विक खाद्य सुरक्षा और अंतरिक्ष अनुसंधान में भूमिका पर चर्चा कीजिए।  
  3. अंतरिक्ष मिशनों में खाद्य स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता के महत्व का विश्लेषण करें। भारत इस क्षेत्र में कैसे योगदान दे सकता है?  
  4. निजी अंतरिक्ष क्षेत्र की भूमिका और भारत में इसके समक्ष चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।  
  5. भारत की पारंपरिक खाद्य प्रणाली का अंतरिक्ष अनुसंधान में एकीकरण कैसे वैश्विक सॉफ्ट पावर को बढ़ा सकता है?

इन प्रश्नों का उत्तर देते समय, उम्मीदवारों को वैज्ञानिक तथ्यों, रणनीतिक महत्व और भारत की सांस्कृतिक विरासत को संतुलित रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।  

चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ

इस मिशन के समक्ष कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जैसे माइक्रोग्रैविटी में जल प्रबंधन, अंतरिक्ष विकिरण का पौधों पर प्रभाव और सीमित संसाधनों में खेती की व्यवहार्यता। हालांकि, ये चुनौतियाँ नवाचार के लिए अवसर भी प्रदान करती हैं। भविष्य में, इस मिशन के परिणाम निम्नलिखित क्षेत्रों में योगदान दे सकते हैं:  

अंतरिक्ष कृषि प्रौद्योगिकी का विकास।  

पृथ्वी पर सूखा-प्रतिरोधी और पोषक खेती के लिए नई तकनीकों की खोज।  

भारतीय सुपरफूड्स का वैश्विक ब्रांडिंग और निर्यात।

निष्कर्ष: अंतरिक्ष में भारत की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उड़ान

शुभांशु शुक्ला का यह मिशन एक वैज्ञानिक प्रयोग से कहीं अधिक है – यह भारत की परंपरा, आहार, विज्ञान और रणनीति का एक शक्तिशाली संगम है। मूंग और मेथी जैसे सुपरफूड्स का अंतरिक्ष में अंकुरण न केवल भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को ब्रह्मांड की ऊंचाइयों तक ले जाता है। यह मिशन हमें उस भविष्य की ओर ले जा रहा है, जहां भारत न केवल अंतरिक्ष अनुसंधान में अग्रणी होगा, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा और सांस्कृतिक गौरव के क्षेत्र में भी अपनी अमिट छाप छोड़ेगा।  

अतिरिक्त सुझाव (UPSC उम्मीदवारों के लिए):  

इस विषय को निबंध के रूप में प्रस्तुत करते समय, वैज्ञानिक तथ्यों के साथ-साथ भारत की सांस्कृतिक और रणनीतिक उपलब्धियों को जोड़ें।  

डेटा और उदाहरणों (जैसे ISRO के अन्य मिशन, Blue Origin की भूमिका) का उपयोग करें।  

सकारात्मक और प्रेरणादायक लहजे में निष्कर्ष लिखें, जो भारत की आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व को उजागर करे।

5-प्रश्न: क्या कृषि भूमि की खरीद पर सख्त नियम बनाना पश्चिमी घाटों के संरक्षण में सहायक हो सकता है?

UPSC GS Paper 2 और 3 दृष्टिकोण से विश्लेषण

प्रासंगिकता (Context)

पश्चिमी घाट, जो UNESCO विश्व धरोहर स्थल है, जैवविविधता और पारिस्थितिकी के दृष्टिकोण से वैश्विक महत्व का क्षेत्र है। हाल के वर्षों में, कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पश्चिमी घाटों में अवैध अतिक्रमण, पर्यटन विकास और बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीद के कारण पर्यावरणीय क्षति की चिंताएँ बढ़ी हैं। उत्तराखंड सरकार ने अपने 11 पहाड़ी जिलों में बाहरी लोगों के लिए कृषि और आवासीय भूमि खरीद पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं, जो पश्चिमी घाटों के लिए भी एक नीतिगत मॉडल बन सकता है। यह प्रश्न UPSC के GS Paper 2 (शासन, नीति, और सामाजिक न्याय) और GS Paper 3 (पर्यावरण, जैवविविधता, और सतत विकास) के दृष्टिकोण से अत्यंत प्रासंगिक है।

GS Paper 2: शासन, नीति, और सामाजिक प्रभाव

1. संघीय ढांचा और राज्य की स्वायत्तता

विश्लेषण: भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत भूमि राज्य सूची का विषय है। इससे राज्यों को अपनी भौगोलिक, सामाजिक, और पर्यावरणीय आवश्यकताओं के आधार पर भूमि उपयोग नीतियाँ बनाने का अधिकार प्राप्त है।  

प्रभाव: कर्नाटक, केरल जैसे राज्य पश्चिमी घाटों के संवेदनशील क्षेत्रों में भूमि खरीद पर प्रतिबंध लगाकर स्थानीय हितों और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड ने पहले ही इस तरह की नीतियाँ लागू की हैं।  

चुनौतियाँ: सख्त नियमों से निवेश और विकास पर असर पड़ सकता है, जिसके लिए राज्यों को वैकल्पिक आर्थिक मॉडल (जैसे, पर्यावरण-आधारित पर्यटन) पर ध्यान देना होगा।

2. पारदर्शिता और लोकतांत्रिक भागीदारी

विश्लेषण: भूमि खरीद नीतियों में स्थानीय समुदायों, विशेषकर आदिवासियों और ग्रामीणों की भागीदारी सुनिश्चित करना शासन की पारदर्शिता और समावेशिता को बढ़ाता है।  

प्रभाव: पश्चिमी घाटों में स्थानीय समुदायों की आजीविका वनों और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। उनकी सहमति के बिना नीतियाँ लागू करने से सामाजिक असंतोष और विरोध उत्पन्न हो सकते हैं।  

उदाहरण: पंचायती राज संस्थाओं और ग्राम सभाओं को भूमि उपयोग निर्णयों में शामिल करना Forest Rights Act, 2006 के अनुरूप होगा।

3. सामाजिक न्याय और समावेशी विकास

विश्लेषण: बाहरी लोगों द्वारा अंधाधुंध भूमि खरीद से स्थानीय निवासियों का विस्थापन और सांस्कृतिक क्षरण हो सकता है।  

प्रभाव: सख्त नियम स्थानीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा करते हुए सामाजिक समानता को बढ़ावा दे सकते हैं। यह विशेष रूप से पश्चिमी घाटों के आदिवासी समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है।

GS Paper 3: पर्यावरण, जैवविविधता, और सतत विकास

1. जैवविविधता संरक्षण

विश्लेषण: पश्चिमी घाट विश्व के 36 जैवविविधता हॉटस्पॉट में से एक है, जहाँ हजारों स्थानिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। अनियंत्रित भूमि खरीद से वनों की कटाई, खनन, और पर्यटन परियोजनाएँ बढ़ सकती हैं, जो जैवविविधता को खतरे में डाल सकती हैं।  

प्रभाव: सख्त भूमि नियम इन क्षेत्रों में वाणिज्यिक गतिविधियों को सीमित करके जैवविविधता संरक्षण में योगदान दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, गाडगिल समिति (2011) ने पश्चिमी घाटों को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA) घोषित करने की सिफारिश की थी।  

उदाहरण: कर्नाटक के कुर्ग और चिकमंगलूर जैसे क्षेत्रों में कॉफी बागानों के लिए वनों की कटाई पहले ही पर्यावरण को नुकसान पहुँचा चुकी है।

2. जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकीय संतुलन

विश्लेषण: पश्चिमी घाट पश्चिमी तट के मानसून चक्र, जल स्रोतों, और मृदा संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अवैध निर्माण और वनों की कटाई से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बढ़ सकते हैं।  

प्रभाव: भूमि खरीद पर नियंत्रण स्थानीय जलवायु चक्र को बनाए रखने, बाढ़ और भूस्खलन जैसे खतरों को कम करने में मदद करेगा।  

उदाहरण: केरल में 2018 और 2019 की बाढ़ को पश्चिमी घाटों में अनियंत्रित निर्माण से जोड़ा गया था।

3. सतत विकास और भूमि उपयोग योजना

विश्लेषण: सतत विकास लक्ष्यों (SDG 15: Life on Land) के तहत, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है। अनियोजित शहरीकरण और पर्यटन परियोजनाएँ दीर्घकालिक पर्यावरणीय और सामाजिक संकट पैदा कर सकती हैं।  

प्रभाव: सख्त नियमों के साथ-साथ वैज्ञानिक भूमि उपयोग योजना (जैसे, ज़ोनिंग और ESA नियम) सतत विकास को बढ़ावा दे सकती है।  

सुझाव: पर्यावरण-आधारित आजीविका मॉडल, जैसे जैविक खेती और सामुदायिक पर्यटन, को प्रोत्साहन देना चाहिए।

नैतिक दृष्टिकोण (GS Paper 4)

1. इंटरजनरेशनल इक्विटी

विश्लेषण: प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग भविष्य की पीढ़ियों के लिए पर्यावरणीय विरासत को खतरे में डालता है।  

प्रभाव: सख्त नियम लागू करना नीति निर्माताओं का नैतिक कर्तव्य है ताकि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित हो।

2. उत्तरदायित्व और जवाबदेही

विश्लेषण: सरकार और प्रशासन का दायित्व है कि वह पारिस्थितिकीय संरक्षण और सामाजिक हितों के बीच संतुलन बनाए।  

प्रभाव: पारदर्शी और समावेशी नीतियाँ बनाकर शासन में विश्वास बढ़ाया जा सकता है।

3. पर्यावरणीय नैतिकता

विश्लेषण: प्रकृति के प्रति सम्मान और उसकी रक्षा करना भारतीय दर्शन (जैसे, "पृथ्वी माता") और वैश्विक पर्यावरणीय नैतिकता का हिस्सा है।  

प्रभाव: सख्त नियम इस नैतिकता को लागू करने का एक व्यावहारिक कदम होंगे।

चुनौतियाँ और समाधान

चुनौतियाँ:

आर्थिक प्रभाव: भूमि खरीद पर प्रतिबंध से पर्यटन और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में निवेश कम हो सकता है।  

नीतिगत विरोध: प्रभावशाली समूहों और उद्योगों से प्रतिबंधों का विरोध हो सकता है।  

प्रशासनिक कमियाँ: नियमों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए मज़बूत निगरानी और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण आवश्यक है।

समाधान:

वैकल्पिक आजीविका मॉडल: जैविक खेती, वन-आधारित उत्पाद, और पर्यावरण-आधारित पर्यटन को बढ़ावा देना।  

प्रौद्योगिकी का उपयोग: GIS और सैटेलाइट इमेजरी के माध्यम से भूमि उपयोग की निगरानी।  

जागरूकता और सहभागिता: स्थानीय समुदायों को नीति निर्माण में शामिल करना और पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष (Conclusion)

कृषि भूमि की खरीद पर सख्त नियम पश्चिमी घाटों जैसे पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों के संरक्षण में एक प्रभावी कदम हो सकता है। यह न केवल जैवविविधता और जलवायु संतुलन की रक्षा करेगा, बल्कि सामाजिक न्याय और सतत विकास को भी बढ़ावा देगा। उत्तराखंड मॉडल की सफलता अन्य राज्यों के लिए प्रेरणा बन सकती है। साथ ही, इन नीतियों को लागू करते समय स्थानीय समुदायों की भागीदारी, पारदर्शिता, और वैकल्पिक आजीविका मॉडल पर ध्यान देना आवश्यक है। इस प्रकार, सख्त नियम एक समग्र और दीर्घकालिक पर्यावरणीय रणनीति का हिस्सा बन सकते हैं, जो भारत के सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप है।  

परीक्षा उपयोगिता के लिए अतिरिक्त बिंदु

महत्वपूर्ण उद्धरण: "प्रकृति का संरक्षण विकास का आधार है, न कि उसका अवरोधक।"  

सांख्यिकी: पश्चिमी घाट में 5,000+ पौधों की प्रजातियाँ और 500+ पशु-पक्षी प्रजातियाँ हैं, जिनमें 30% स्थानिक हैं।  

महत्वपूर्ण समितियाँ: गाडगिल समिति (2011) और कस्तूरीरंगन समिति (2013) की सिफारिशें।  

प्रासंगिक कानून: Forest Rights Act, 2006; Environment Protection Act, 1986।  

कीवर्ड्स: जैवविविधता हॉटस्पॉट, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA), सतत विकास, सामाजिक न्याय।

इस उत्तर को सरल, संक्षिप्त, और परीक्षा-उन्मुख बनाया गया है ताकि UPSC अभ्यर्थी इसे आसानी से याद रख सकें और समयबद्ध तरीके से लिख सकें।

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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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