इमिग्रेशन और फॉरेनर्स एक्ट, 2025 – भारत की शरणार्थी नीति में नया अध्याय 1 सितंबर 2025 को लागू हुआ इमिग्रेशन और फॉरेनर्स एक्ट, 2025 भारत की आप्रवासन और शरणार्थी नीति में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अधिनियम विदेशी नागरिकों के प्रवेश, ठहरने और निकास को नियंत्रित करने के लिए नए नियम और आदेश लाता है, जो देश की सुरक्षा को मजबूत करने के साथ-साथ मानवीय मूल्यों को भी संरक्षित करता है। इसकी सबसे खास बात है तिब्बती शरणार्थियों और पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक शरणार्थियों (हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध, और ईसाई समुदायों) को दी गई छूट। यह कदम भारत की शरणार्थी नीति को न केवल पुनर्परिभाषित करता है, बल्कि इसे वैश्विक मंच पर एक संतुलित दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत करता है। आइए, सरल और रुचिकर भाषा में इस अधिनियम के महत्व और प्रभाव को समझें। क्या है नया अधिनियम? यह अधिनियम विदेशी नागरिकों के लिए भारत में प्रवेश, रहने और देश छोड़ने की प्रक्रिया को और अधिक व्यवस्थित और सख्त करता है। पहले जहां आप्रवासन नियम कुछ हद तक अस्पष्ट या जटिल थे, यह नया कानून स्पष्टता लाता है। यह सुनिश्चि...
एससीओ शिखर सम्मेलन और भारतीय विदेश नीति का बदलता संतुलन प्रस्तावना भारत की विदेश नीति ऐतिहासिक रूप से "रणनीतिक स्वायत्तता" और "संतुलन" के सिद्धांतों पर आधारित रही है। किंतु हाल के वर्षों में यह नीति अमेरिका और पश्चिमी देशों की ओर झुकी हुई दिखाई दी थी। ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सात वर्षों बाद चीन की यात्रा करना और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में सक्रिय भागीदारी यह संकेत देता है कि भारत अपनी विदेश नीति में पुनः संतुलन साधने की दिशा में बढ़ रहा है। यह बदलाव न केवल एशिया बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन की राजनीति में भी महत्वपूर्ण है। संदर्भ और पृष्ठभूमि 2020 के गलवान संघर्ष और उसके बाद बने अविश्वास के माहौल ने भारत-चीन संबंधों को गहरे संकट में डाल दिया था। लंबे समय तक वार्ता और सैन्य स्तर पर पीछे हटने की प्रक्रिया के बाद, 2024 से दोनों देशों ने संबंध सामान्य करने की पहल शुरू की। इस पृष्ठभूमि में तियानजिन में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भेंट एक ऐतिहासिक क्षण के रूप में देखी जा रही है। यह पहली बार था जब दोनों नेता खुले तौर पर ...