करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है — “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...
JNU and the Decline of Free Speech: A Legal and Administrative Analysis of India’s Premier University Crisis (2025)
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मुक्त भाषण की गिरती साख: एक कानूनी और प्रशासनिक विश्लेषण परिचय: संवाद से डर तक की यात्रा भारत में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) लंबे समय तक उस वैचारिक ऊर्जा का प्रतीक रहा है, जिसने राष्ट्र को सोचने, असहमत होने और परिवर्तन की दिशा में बढ़ने की प्रेरणा दी। 1969 में स्थापित यह विश्वविद्यालय अपने पहले तीन दशकों में स्वतंत्र चिंतन, छात्र राजनीति और सामाजिक चेतना का केंद्र रहा। "विचारों का संघर्ष" यहां उतना ही स्वाभाविक था जितना कक्षा में पढ़ाई का क्रम। किंतु पिछले एक दशक में यह संस्थान धीरे-धीरे संवाद से डर की संस्कृति की ओर बढ़ता दिख रहा है। हाल ही में द इंडियन एक्सप्रेस की 2025 की जांच ने यह स्पष्ट किया कि जिस विश्वविद्यालय को कभी ‘मुक्त भाषण की प्रयोगशाला’ कहा जाता था, वह आज कानूनी मुकदमों, अनुशासनात्मक कार्रवाइयों और प्रशासनिक अविश्वास के जाल में उलझ चुका है। रिपोर्ट के अनुसार, 2011 से अब तक JNU दिल्ली उच्च न्यायालय में 600 से अधिक मामलों का पक्षकार रहा है। यह आंकड़ा सिर्फ प्रशासनिक असंतुलन का नहीं, बल्कि एक गहरे संस्थागत संकट का सं...