“समाज में पनपती खटमल प्रवृत्ति: शोषण और मानसिक उत्पीड़न का जाल” परिचय भारतीय समाज में समय-समय पर विभिन्न सामाजिक समस्याएँ उभरती रही हैं। हाल के वर्षों में एक नई प्रवृत्ति सामने आई है, जिसे हम रूपक में “खटमल प्रवृत्ति” कह सकते हैं। जैसे खटमल बिना श्रम किए दूसरों का रक्त चूसकर जीवित रहता है, वैसे ही कुछ लोग दूसरों की मेहनत, संसाधनों और मानसिक शांति का शोषण करके अपने स्वार्थ पूरे करते हैं। यह केवल आर्थिक परजीविता तक सीमित नहीं है, बल्कि अब इसका नया रूप मानसिक उत्पीड़न (psychological exploitation) के रूप में दिखाई देने लगा है। यह प्रवृत्ति न केवल व्यक्तिगत जीवन, बल्कि संस्थागत और सामाजिक ढाँचे पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। आर्थिक परजीविता से मानसिक शोषण तक परंपरागत रूप से यह प्रवृत्ति भ्रष्टाचार, मुफ्तखोरी और कार्यस्थल पर दूसरों का श्रेय चुराने जैसे उदाहरणों में दिखाई देती रही है। परंतु अब इसका सूक्ष्म रूप मानसिक उत्पीड़न है — निरंतर आलोचना, अपमानजनक व्यवहार, सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, और असहज तुलना। यह प्रवृत्ति व्यक्ति की mental well-being , समाज की trust capital और संस्थाओं ...
महिलाओं की सुरक्षा: शहरी भारत में एक चुनौतीपूर्ण परिदृश्य क्या कोई शहर वास्तव में सुरक्षित तब कहा जा सकता है, जब उसकी आधी आबादी (महिलाएँ) रात ढलते ही घरों में कैद हो जाएँ? राष्ट्रीय वार्षिक रिपोर्ट एवं सूचकांक (एनएआरआई) 2025 इसी असहज प्रश्न को हमारे सामने रखती है। 31 शहरों में 12,770 महिलाओं के सर्वेक्षण पर आधारित यह रिपोर्ट केवल अपराध-सांख्यिकी नहीं, बल्कि महिलाओं की रोज़मर्रा की अनुभूतियों का सामाजिक आईना है। शहरों का सुरक्षा मानचित्र कोहिमा, विशाखापट्टनम, भुवनेश्वर, आइजोल, गंगटोक, ईटानगर और मुंबई—ये वे शहर हैं जो महिलाओं के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित माने गए। वहीं पटना, जयपुर, फरीदाबाद, दिल्ली, कोलकाता, श्रीनगर और रांची सबसे निचली श्रेणी में आए। यह विभाजन केवल कानून-व्यवस्था का सवाल नहीं है, बल्कि उस शहरी संस्कृति, सामाजिक सामंजस्य और संस्थागत प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब है जो महिलाओं की स्वतंत्रता को परिभाषित करता है। आंकड़े जो सोचने पर मजबूर करते हैं 60% महिलाओं ने अपने शहर को "सुरक्षित" माना, लेकिन 40% ने असुरक्षा जताई। रात होते ही सुरक्षा की धारणा ध्वस्त हो जात...