“समाज में पनपती खटमल प्रवृत्ति: शोषण और मानसिक उत्पीड़न का जाल” परिचय भारतीय समाज में समय-समय पर विभिन्न सामाजिक समस्याएँ उभरती रही हैं। हाल के वर्षों में एक नई प्रवृत्ति सामने आई है, जिसे हम रूपक में “खटमल प्रवृत्ति” कह सकते हैं। जैसे खटमल बिना श्रम किए दूसरों का रक्त चूसकर जीवित रहता है, वैसे ही कुछ लोग दूसरों की मेहनत, संसाधनों और मानसिक शांति का शोषण करके अपने स्वार्थ पूरे करते हैं। यह केवल आर्थिक परजीविता तक सीमित नहीं है, बल्कि अब इसका नया रूप मानसिक उत्पीड़न (psychological exploitation) के रूप में दिखाई देने लगा है। यह प्रवृत्ति न केवल व्यक्तिगत जीवन, बल्कि संस्थागत और सामाजिक ढाँचे पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। आर्थिक परजीविता से मानसिक शोषण तक परंपरागत रूप से यह प्रवृत्ति भ्रष्टाचार, मुफ्तखोरी और कार्यस्थल पर दूसरों का श्रेय चुराने जैसे उदाहरणों में दिखाई देती रही है। परंतु अब इसका सूक्ष्म रूप मानसिक उत्पीड़न है — निरंतर आलोचना, अपमानजनक व्यवहार, सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, और असहज तुलना। यह प्रवृत्ति व्यक्ति की mental well-being , समाज की trust capital और संस्थाओं ...
Maratha Quota Deadlock: Between Social Justice and Electoral Politics (UPSC के दृष्टिकोण से विश्लेषणात्मक लेख) प्रस्तावना महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की माँग को लेकर चल रहा आंदोलन एक बार फिर राजनीतिक विमर्श के केंद्र में है। मुंबई के आज़ाद मैदान में मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल की भूख हड़ताल ने सामाजिक न्याय, आरक्षण व्यवस्था और राजनीति के अंतर्संबंधों पर गहरी बहस छेड़ दी है। तीसरे दिन में प्रवेश कर चुके इस आंदोलन ने न केवल राज्य सरकार की नीतिगत दुविधाओं को उजागर किया है बल्कि आगामी चुनावों की पृष्ठभूमि में मराठा–ओबीसी समीकरण को भी चुनौती दी है। मुद्दे की पृष्ठभूमि मराठा समुदाय लंबे समय से शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की माँग करता रहा है। जरांगे की प्रमुख माँग है कि मराठाओं को कुनबी जाति के रूप में ओबीसी श्रेणी में मान्यता दी जाए और 10% आरक्षण प्रदान किया जाए। 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठाओं के लिए आरक्षण का प्रयास किया था, किंतु 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने 50% की सीमा का हवाला देते हुए इसे निरस्त कर दिया। वर्तमान घटनाक्रम जरांगे की भूख हड़ताल ने महाराष्ट्...