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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

महाराष्ट्र सरकार का फैसला: मराठों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र | Maratha Reservation 2025

महाराष्ट्र सरकार का निर्णय: मराठों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र – सामाजिक न्याय की एक नई राह प्रस्तावना भारत का सामाजिक ढांचा जटिल है, और आरक्षण नीति इसके केंद्र में है। यह नीति सामाजिक न्याय और समान अवसरों का वादा करती है, लेकिन कई बार यह विवादों का कारण भी बनती है। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग ने दशकों से राजनीति और समाज को हिलाकर रखा है। हाल ही में, महाराष्ट्र सरकार ने एक नया रास्ता चुना – हैदराबाद गज़ेटियर के आधार पर मराठा समुदाय के उन लोगों को कुनबी जाति प्रमाणपत्र देना, जो यह साबित कर सकें कि उनके पूर्वज कुनबी थे। यह कदम न सिर्फ मराठा आंदोलन को शांत करने की कोशिश है, बल्कि सामाजिक और संवैधानिक संतुलन की दिशा में एक बड़ा प्रयोग भी है। आइए, इस निर्णय को सरल और रुचिकर ढंग से समझें। मराठा और कुनबी: एक ऐतिहासिक झलक मराठा समुदाय महाराष्ट्र की रीढ़ है। खेती से लेकर राजनीति तक, उनका प्रभाव हर जगह दिखता है। लेकिन आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों ने मराठा समाज को आरक्षण की मांग की ओर धकेला। 2018 में, महाराष्ट्र सरकार ने मराठों को SEBC (सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग) के तहत आरक्ष...

Maratha Quota Deadlock: Between Social Justice and Electoral Politics

Maratha Quota Deadlock: Between Social Justice and Electoral Politics (UPSC के दृष्टिकोण से विश्लेषणात्मक लेख) प्रस्तावना महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की माँग को लेकर चल रहा आंदोलन एक बार फिर राजनीतिक विमर्श के केंद्र में है। मुंबई के आज़ाद मैदान में मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल की भूख हड़ताल ने सामाजिक न्याय, आरक्षण व्यवस्था और राजनीति के अंतर्संबंधों पर गहरी बहस छेड़ दी है। तीसरे दिन में प्रवेश कर चुके इस आंदोलन ने न केवल राज्य सरकार की नीतिगत दुविधाओं को उजागर किया है बल्कि आगामी चुनावों की पृष्ठभूमि में मराठा–ओबीसी समीकरण को भी चुनौती दी है। मुद्दे की पृष्ठभूमि मराठा समुदाय लंबे समय से शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की माँग करता रहा है। जरांगे की प्रमुख माँग है कि मराठाओं को कुनबी जाति के रूप में ओबीसी श्रेणी में मान्यता दी जाए और 10% आरक्षण प्रदान किया जाए। 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठाओं के लिए आरक्षण का प्रयास किया था, किंतु 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने 50% की सीमा का हवाला देते हुए इसे निरस्त कर दिया। वर्तमान घटनाक्रम जरांगे की भूख हड़ताल ने महाराष्ट्...

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