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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Judicial Independence Under Threat: Retired Judges Condemn Motivated Campaign Against India’s Chief Justice

मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध कथित “प्रेरित अभियान” की पूर्व न्यायाधीशों द्वारा निंदा : एक शैक्षणिक, विश्लेषणात्मक लेख 10 दिसम्बर 2025 को देश की न्याय-व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण और दुर्लभ क्षण दर्ज हुआ, जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों के 44 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी कर मुख्य न्यायाधीश (CJI) के विरुद्ध चल रहे कथित “प्रेरित अभियान” की कठोर आलोचना की। यह घटना न्यायपालिका के आंतरिक आचरण से अधिक बाहरी दबावों की प्रकृति और न्यायिक स्वतंत्रता पर उसके निहितार्थों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त करती है। 1. पृष्ठभूमि और विवाद का उद्भव रोहिंग्या शरणार्थियों के अवैध प्रवेश, मानवाधिकार और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी प्रश्न लंबे समय से भारतीय न्यायालयों के सामने जटिल संवैधानिक चुनौती बने हुए हैं। इसी संदर्भ में एक याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गई कुछ मौखिक टिप्पणियों को विभिन्न राजनीतिक दलों, कुछ संगठनों तथा मीडिया के एक तबके द्वारा “विवादास्पद” बताया गया। इन टिप्पणियों को उनके संदर्भ से काटकर प्रस्तुत किया गया और सोशल मीडिया पर अचानक...

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Judicial Independence Under Threat: Retired Judges Condemn Motivated Campaign Against India’s Chief Justice

मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध कथित “प्रेरित अभियान” की पूर्व न्यायाधीशों द्वारा निंदा : एक शैक्षणिक, विश्लेषणात्मक लेख 10 दिसम्बर 2025 को देश की न्याय-व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण और दुर्लभ क्षण दर्ज हुआ, जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों के 44 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी कर मुख्य न्यायाधीश (CJI) के विरुद्ध चल रहे कथित “प्रेरित अभियान” की कठोर आलोचना की। यह घटना न्यायपालिका के आंतरिक आचरण से अधिक बाहरी दबावों की प्रकृति और न्यायिक स्वतंत्रता पर उसके निहितार्थों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त करती है। 1. पृष्ठभूमि और विवाद का उद्भव रोहिंग्या शरणार्थियों के अवैध प्रवेश, मानवाधिकार और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी प्रश्न लंबे समय से भारतीय न्यायालयों के सामने जटिल संवैधानिक चुनौती बने हुए हैं। इसी संदर्भ में एक याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गई कुछ मौखिक टिप्पणियों को विभिन्न राजनीतिक दलों, कुछ संगठनों तथा मीडिया के एक तबके द्वारा “विवादास्पद” बताया गया। इन टिप्पणियों को उनके संदर्भ से काटकर प्रस्तुत किया गया और सोशल मीडिया पर अचानक...

Rwanda Genocide to Congo Crisis: Colonial Roots, Tutsi Rise and Today's M23–FDLR Conflict

रवांडा–कांगो संकट: औपनिवेशिक जातीय राजनीति से आधुनिक त्रिकोणीय संघर्ष तक पूर्वी अफ्रीका का रवांडा–कांगो क्षेत्र आज विश्व के सबसे जटिल और लंबे संघर्षों में से एक का केंद्र है। इसकी जड़ें सीधे बेल्जियम औपनिवेशिक शासन में बोए गए जातीय विष से शुरू होकर 1959 की हुतु क्रांति , 1994 के नरसंहार , तुत्सी-सत्ता की पुनर्स्थापना, लाखों हुतुओं के कांगो पलायन , और आज के M23–FDLR–FARDC त्रिकोणीय युद्ध तक फैली हैं। वर्तमान में यह संकट इतना गंभीर हो चुका है कि अमेरिका को भी बीच-बचाव के लिए हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। नीचे पूरे घटनाक्रम को क्रमवार समझा गया है। 1. बेल्जियम शासन काल में जातीय जहर बोना (1890–1959) रवांडा में तुत्सी और हुतु ऐतिहासिक रूप से एक ही भाषा, संस्कृति और धर्म साझा करते थे। इनके बीच कोई कठोर नस्लीय अंतर नहीं था; सामाजिक भेद मुख्यतः आर्थिक था। लेकिन बेल्जियम शासन ने स्थिति बदल दी— तुत्सियों को "नस्लीय रूप से श्रेष्ठ" कहा हुतुओं को "निम्न श्रेणी" घोषित कर दिया पहचान-पत्रों में ‘Hutu–Tutsi–Twa’ स्थायी रूप से लिख दिया प्रशासन, शिक्षा, चर्च—हर जगह तुत्सियो...

Free Speech in Contemporary India: Evaluating Salman Rushdie’s Critique of Civil Liberties under Modi’s Administration

Free Speech in Contemporary India: Salman Rushdie की आलोचना और मोदी शासन के संदर्भ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल्यांकन (A fresh, original, flowing, exam-oriented essay) भूमिका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी भी लोकतंत्र का प्राणतत्व है—एक ऐसा संवैधानिक आश्वासन जो नागरिकों को सत्ता से सवाल पूछने, अन्याय पर आवाज़ उठाने और समाज में बौद्धिक विविधता को बनाए रखने की क्षमता देता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) यही लोकतांत्रिक आधार प्रदान करता है, हालांकि अनुच्छेद 19(2) के "उचित प्रतिबंध" इस अधिकार को सीमित भी करते हैं। उपनिवेशकालीन विरासत से उत्पन्न ये सीमाएँ समय-समय पर राजनीतिक परिस्थितियों से प्रभावित होती रही हैं। इसी व्यापक परिप्रेक्ष्य में प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी ने दिसंबर 2025 के एक साक्षात्कार में भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के क्षरण को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने आरोप लगाया कि बढ़ते "हिंदू राष्ट्रवाद" और "इतिहास के पुनर्लेखन" की आधिकारिक परियोजनाओं ने लेखकों, पत्रकारों तथा शिक्षाविदों पर दबाव बढ़ाया है, जिससे सार्वजनिक विमर्श भ...

DynamicGK.in: Rural and Hindi Background Candidates UPSC and Competitive Exam Preparation

डायनामिक जीके: ग्रामीण और हिंदी पृष्ठभूमि के अभ्यर्थियों के सपनों को साकार करने का सहायक लेखक: RITU SINGH भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी एक चुनौतीपूर्ण यात्रा है, खासकर उन अभ्यर्थियों के लिए जो ग्रामीण इलाकों से आते हैं या हिंदी माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। अंग्रेजी-प्रधान संसाधनों की भरमार में हिंदी भाषी छात्रों को अक्सर कठिनाई होती है। ऐसे में dynamicgk.in जैसी वेबसाइट एक वरदान साबित हो रही है। यह न केवल सामान्य ज्ञान (जीके) और समसामयिक घटनाओं पर केंद्रित है, बल्कि ग्रामीण और हिंदी पृष्ठभूमि के युवाओं के सपनों को साकार करने में विशेष रूप से सहायक भूमिका निभा रही है। इस लेख में हम समझेंगे कि यह प्लेटफॉर्म कैसे इन अभ्यर्थियों की मदद करता है। हिंदी माध्यम की पहुंच: भाषा की बाधा को दूर करना ग्रामीण भारत में अधिकांश छात्र हिंदी माध्यम से पढ़ते हैं, लेकिन अधिकांश प्रतियोगी परीक्षा संसाधन अंग्रेजी में उपलब्ध होते हैं। dynamicgk.in इस कमी को पूरा करता है। वेबसाइट का अधिकांश कंटेंट हिंदी में उपलब्ध है, जो हिंदी भाषी अभ्यर्थियों को सहज रूप से समझने में मद...

China’s 2025 Mega Naval Deployment: Expanding Maritime Power in East Asian Waters

China's Maritime Power Projection in East Asian Waters: An Analysis of the 2025 Deployment Abstract दिसंबर 2025 में चीन ने पूर्वी एशियाई समुद्री क्षेत्रों में अपने अब तक के सबसे व्यापक नौसैनिक अभियान को अंजाम दिया, जिसमें 100 से अधिक नौसेना और कोस्ट गार्ड पोत शामिल थे। यह घटना, जिसे पहले रॉयटर्स ने रिपोर्ट किया, क्षेत्र में शक्ति-संतुलन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देती है। यह शोध-पत्र इस तैनाती के पैमाने, उद्देश्यों और संभावित सुरक्षा प्रभावों का विश्लेषण करता है। अध्ययन यह तर्क प्रस्तुत करता है कि यद्यपि इसे “नियमित प्रशिक्षण” के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन यह तैनाती चीन की ग्रे-ज़ोन रणनीति का हिस्सा है, जिसमें पारंपरिक सैन्य प्रदर्शन को कूटनीतिक दबाव के साथ मिश्रित कर बिना प्रत्यक्ष युद्ध में प्रवेश किए प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। Introduction इंडो-पैसिफिक क्षेत्र 21वीं सदी में सामरिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन चुका है। समुद्री क्षेत्रों पर नियंत्रण न केवल व्यापार और ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ा है, बल्कि यह महाशक्तियों के भू-राजनीतिक प्रभाव का भी मापक...

Mexico’s Tariff Hike on Non-FTA Countries: Impact on India-Mexico Trade and WTO Implications

गैर-FTA देशों पर मेक्सिको की टैरिफ वृद्धि: भारत–मेक्सिको व्यापार संबंधों का एक समालोचनात्मक अध्ययन सारांश (Abstract) दिसंबर 2025 में मेक्सिको द्वारा मुक्त व्यापार समझौते (FTA) से बाहर के देशों से आयात पर 35% से 50% तक शुल्क लगाने का निर्णय वैश्विक व्यापार व्यवस्था में बढ़ते संरक्षणवाद का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। यह नीति भारत, चीन तथा अन्य एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। भारत ने इस कदम को “एकतरफ़ा” बताते हुए वैश्विक व्यापार मानदंडों की भावना के विरुद्ध करार दिया है। यह शोधपरक लेख मेक्सिको की टैरिफ नीति की पृष्ठभूमि, इसके औचित्य, आर्थिक एवं कानूनी निहितार्थों तथा भारत–मेक्सिको द्विपक्षीय व्यापार पर इसके प्रभावों का निष्पक्ष मूल्यांकन करता है। लेख WTO ढांचे, व्यापार अर्थशास्त्र और कूटनीतिक व्यवहार के संदर्भ में यह विश्लेषण करता है कि यह निर्णय विधिक रूप से वैध होते हुए भी व्यवहारिक रूप से एकतरफ़ा क्यों प्रतीत होता है। भूमिका (Introduction) 21वीं सदी का वैश्विक व्यापार परिदृश्य मुक्त व्यापार और संरक्षणवाद के बीच निरंतर संघर्ष का साक्षी रहा है। कोविड-19 के बाद की...

Temple–Mosque Dispute: Path to Resolution or Escalation of Tensions?

मंदिर–मस्जिद विवाद: समाधान का मार्ग या तनाव का विस्तार? एक समग्र विश्लेषण परिचय भारतीय समाज में धार्मिक स्थलों को लेकर उत्पन्न होने वाले विवाद कोई नई बात नहीं हैं। इतिहास, आस्था और राजनीति—इन तीनों के संगम पर खड़े ऐसे मुद्दे अक्सर समाज को विचार-विमर्श और टकराव, दोनों की ओर ले जाते हैं। हाल ही में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक के.के. मुहम्मद ने एक इंटरव्यू में सुझाव दिया है कि धार्मिक विवादों को अयोध्या, मथुरा और ज्ञानवापी जैसे तीन स्थलों तक सीमित रखा जाए। उन्होंने ताजमहल के “हिंदू मूल” के दावों को पूरी तरह खारिज करते हुए चेताया कि नए और आधारहीन दावे सामाजिक तनाव को और बढ़ाएँगे। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश के कई हिस्सों में धार्मिक स्थलों को लेकर अदालती कार्यवाहियाँ जारी हैं और जनमत निरंतर विभाजित हो रहा है। यह लेख इसी पृष्ठभूमि में यह समझने का प्रयास करता है कि क्या और अधिक विवाद उठाना न्याय की ओर बढ़ना होगा या केवल तनाव को ही बढ़ाएगा। ऐतिहासिक संदर्भ भारत का इतिहास धार्मिक संरचनाओं के निर्माण–विध्वंस और पुनर्निर्माण की घटनाओं से भरा पड़ा...

National Interest Over Permanent Friends or Foes: India’s Shifting Strategic Compass

राष्ट्रीय हित ही सर्वोपरि: भारत की बदलती कूटनीतिक दिशा प्रस्तावना : : न मित्र स्थायी, न शत्रु अंतरराष्ट्रीय राजनीति का यथार्थवादी दृष्टिकोण बार-बार यह स्पष्ट करता है कि विश्व राजनीति में न कोई स्थायी मित्र होता है और न ही कोई स्थायी शत्रु। यदि कुछ स्थायी है, तो वह है प्रत्येक राष्ट्र का राष्ट्रीय हित (National Interest) । बदलती वैश्विक परिस्थितियों में यही राष्ट्रीय हित कूटनीतिक रुख, विदेश नीति के निर्णय और अंतरराष्ट्रीय समीकरणों को निर्धारित करता है। वर्तमान समय में भारत की विदेश नीति इसी सिद्धांत का मूर्त रूप प्रतीत हो रही है। जहाँ एक ओर भारत और अमेरिका के बीच कुछ असहजता और मतभेद देखने को मिल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारत और चीन, सीमा विवाद और गहरी अविश्वास की खाई के बावजूद संवाद और संबंध सुधारने की दिशा में आगे बढ़ते नज़र आ रहे हैं। यह परिदृश्य एक बार फिर यह रेखांकित करता है कि भावनात्मक स्तर पर मित्रता या शत्रुता से परे जाकर, अंतरराष्ट्रीय राजनीति का आधार केवल और केवल हित-आधारित यथार्थवाद है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य भारत के विदेश नीति इतिहास में यह कथन अनेक बार सत्य सिद्ध हुआ ...

UPSC 2024 Topper Shakti Dubey’s Strategy: 4-Point Study Plan That Led to Success in 5th Attempt

UPSC 2024 टॉपर शक्ति दुबे की रणनीति: सफलता की चार सूत्रीय योजना से सीखें स्मार्ट तैयारी का मंत्र लेखक: Arvind Singh PK Rewa | Gynamic GK परिचय: हर साल UPSC सिविल सेवा परीक्षा लाखों युवाओं के लिए एक सपना और संघर्ष बनकर सामने आती है। लेकिन कुछ ही अभ्यर्थी इस कठिन परीक्षा को पार कर पाते हैं। 2024 की टॉपर शक्ति दुबे ने न सिर्फ परीक्षा पास की, बल्कि एक बेहद व्यावहारिक और अनुशासित दृष्टिकोण के साथ सफलता की नई मिसाल कायम की। उनका फोकस केवल घंटों की पढ़ाई पर नहीं, बल्कि रणनीतिक अध्ययन पर था। कौन हैं शक्ति दुबे? शक्ति दुबे UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2024 की टॉपर हैं। यह उनका पांचवां  प्रयास था, लेकिन इस बार उन्होंने एक स्पष्ट, सीमित और परिणामोन्मुख रणनीति अपनाई। न उन्होंने कोचिंग की दौड़ लगाई, न ही घंटों की संख्या के पीछे भागीं। बल्कि उन्होंने “टॉपर्स के इंटरव्यू” और परीक्षा पैटर्न का विश्लेषण कर अपनी तैयारी को एक फोकस्ड दिशा दी। शक्ति दुबे की UPSC तैयारी की चार मजबूत आधारशिलाएँ 1. सुबह की शुरुआत करेंट अफेयर्स से उन्होंने बताया कि सुबह उठते ही उनका पहला काम होता था – करेंट अफेयर्...

Right to Live-In Relationships for Young Adults: A Critical Analysis of the Rajasthan High Court Verdict

विवाह योग्य आयु से कम दो वयस्कों के लाइव-इन संबंध का अधिकार: राजस्थान हाईकोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय का आलोचनात्मक विश्लेषण सार राजस्थान हाईकोर्ट ने 5 दिसंबर 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि दो सहमति देने वाले वयस्क , भले ही वे विवाह योग्य आयु (पुरुष—21 वर्ष, महिला—18 वर्ष) तक न पहुँचे हों, फिर भी लाइव-इन संबंध में रहने का पूर्ण संवैधानिक अधिकार रखते हैं। न्यायमूर्ति अनूप धंड ने इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गरिमा और निजता —जो अनुच्छेद 19(1)(a), 21 और 21-A में निहित हैं—का अभिन्न हिस्सा बताया। कोटा के 18 वर्षीय युवती और 19 वर्षीय युवक द्वारा सुरक्षा माँगते हुए दायर याचिका पर दिया गया यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुदृढ़ करता है बल्कि भारत के सामाजिक-कानूनी ढाँचे में गैर-पारंपरिक संबंधों की मान्यता को भी एक नया आयाम देता है। भूमिका भारत का वैवाहिक कानून लंबे समय तक विवाह संस्था को ही व्यक्तिगत संबंधों की वैधता का आधार मानता आया है। ऐसे माहौल में लाइव-इन संबंध , विशेषकर युवाओं के बीच, अभी भी परिवार और समाज की कठोर निगाहों से घिरे रहते हैं। सामाजिक प्रतिरोध, ...