सत्यकथा: सरहद की एक माँ भारत-पाक सीमा पर माँ-बेटे की जुदाई: एक मर्मस्पर्शी मानवीय संकट अटारी बॉर्डर पर ठंडी हवाएँ चल रही थीं, पर फ़रहीन की आँखों से गर्म आँसुओं की धार थमने का नाम नहीं ले रही थी। उसके कांपते हाथों में 18 महीने का मासूम बेटा सिकुड़ा हुआ था, जैसे उसे भी पता हो कि कुछ अनहोनी होने वाली है। सिर पर दुपट्टा था, पर चेहरे पर मातृत्व की वेदना ने जैसे सारी दुनिया की नज़रों को थाम रखा था। "उतर जा बेटा... उतर जा," — सास सादिया की आवाज़ रिक्शे के भीतर से आई, लेकिन वह आवाज़ न तो कठोर थी, न ही साधारण। वह टूटे हुए रिश्तों की वह कराह थी जिसे सिर्फ़ एक माँ ही समझ सकती है। रिक्शा भारत की ओर था, पर फ़रहीन को पाकिस्तान जाना था—अपनी जन्मभूमि, पर अब बेगानी सी लगने लगी थी। फ़रहीन, प्रयागराज के इमरान से दो साल पहले ब्याही गई थी। प्यार हुआ, निकाह हुआ और फिर इस प्यार की निशानी—एक नन्हा बेटा हुआ। बेटे का नाम उन्होंने आरिफ़ रखा था, जिसका मतलब होता है—“जानने वाला, पहचानने वाला।” लेकिन आज वो नन्हा आरिफ़ समझ नहीं पा रहा था कि उसकी माँ उसे क्यों छोड़ रही है। "मैं माँ हूँ... कोई अपराधी नही...
इस संपादकीय लेख में भारत के नए मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति, उनके प्रशासनिक अनुभव, और चुनाव आयोग के सामने मौजूद बड़ी चुनौतियों पर चर्चा की गई है। लेख में चुनावों की पारदर्शिता, निष्पक्षता, फर्जी मतदान, धन-बल, और मतदाता जागरूकता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को रेखांकित किया गया है। साथ ही, राजनीतिक विवादों और चुनावी सुधारों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया है। यह लेख लोकतंत्र की मजबूती और स्वतंत्र चुनाव प्रणाली के भविष्य को समझने के लिए उपयोगी है। भारत के नए मुख्य चुनाव आयुक्त: चुनौतियां और अपेक्षाएं भारत के लोकतंत्र की सफलता में चुनाव आयोग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी इस संस्था पर होती है। हाल ही में ज्ञानेश कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) नियुक्त किया गया है। उनके सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं, जिनका प्रभाव आगामी लोकसभा चुनावों और देश की चुनावी प्रक्रिया पर पड़ेगा। एक अनुभवी प्रशासनिक अधिकारी ज्ञानेश कुमार, 1988 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी रह चुके हैं। वे विभिन्न महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर कार्य कर चुके...