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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

India: The World's 4th Most Equal Country – Or a Misleading Statistic?

 संपादकीय लेख

शीर्षक: ‘बराबरी’ का भ्रम: भारत की असमानता पर एक कठोर दृष्टि

प्रस्तावना
हाल ही में सरकार द्वारा जारी एक दावा कि "भारत अब दुनिया का चौथा सबसे समान देश है" – वैश्विक असमानता के संदर्भ में एक उत्साहवर्धक समाचार प्रतीत होता है। यह दावा 25.5 के निम्न गिनी इंडेक्स स्कोर पर आधारित है, जो 'समानता' को दर्शाता है। परंतु गहराई से देखने पर यह दावा एक भ्रम उत्पन्न करता है। कारण यह है कि यह आंकड़ा खपत (consumption) पर आधारित है, आय (income) पर नहीं – और यहीं से असल सच्चाई छुपाई जाती है।


खपत और आय: एक भ्रामक तुलना
भारत में आर्थिक सर्वेक्षण मुख्यतः उपभोग (spending) के आधार पर होते हैं। लेकिन आय और उपभोग में स्पष्ट असमानता होती है, खासकर समाज के उच्चतम तबके में। एक निर्धन परिवार अपनी सीमित आय का अधिकांश हिस्सा खर्च करता है, जबकि धनी वर्ग अपनी आय का एक अंश ही खर्च करता है और बाकी निवेश, बचत या विलासिता पर लगाता है – जो सर्वेक्षणों से बाहर रह जाता है। परिणामस्वरूप, गिनी इंडेक्स पर आधारित खपत आंकड़े, आय की असमानता को कृत्रिम रूप से कम करके दर्शाते हैं


वास्तविकता: असमानता बढ़ रही है
World Inequality Database के अनुसार भारत में शीर्ष 10% आबादी की औसत आय, निचले 10% से 13 गुना अधिक है। यही नहीं, 2020 के बाद की असंगठित अर्थव्यवस्था, महामारी से उत्पन्न संकट और श्रम बाजार की संरचनात्मक समस्याएं, इन अंतरालों को और चौड़ा कर रही हैं। इस असमानता का प्रभाव सामाजिक गतिशीलता, शिक्षा, स्वास्थ्य और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व तक फैला है।


राजनीतिक प्रचार बनाम नीति-आधारित वास्तविकता
सरकारी दावों में अक्सर आंकड़ों की 'चुनिंदा व्याख्या' (selective interpretation) की जाती है। 25.5 के गिनी स्कोर का प्रचार "समावेशी विकास" के प्रमाण के रूप में किया गया, जबकि यह केवल आर्थिक दृश्य का आधा चित्र प्रस्तुत करता है। अगर भारत वास्तव में समानता की दिशा में अग्रसर है, तो आय, संपत्ति, और अवसरों में भी समानता दिखनी चाहिए – न कि केवल खर्च करने की आदतों में।


नीति सुधार की आवश्यकता
भारत को सही मायनों में समानता प्राप्त करनी है तो निम्नलिखित क्षेत्रों में सुधार अनिवार्य है:

  1. आय पर आधारित व्यापक सर्वेक्षण की स्थापना।
  2. प्रगतिशील कर नीति जो शीर्ष आय वर्ग पर अधिक कर लगाए।
  3. सार्वजनिक शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार सृजन में व्यापक निवेश।
  4. सामाजिक सुरक्षा ढांचे को मजबूत करना, खासकर अनौपचारिक क्षेत्र के लिए।

निष्कर्ष
भारत की आर्थिक असमानता को केवल खपत पर आधारित एक ‘सकारात्मक कहानी’ के रूप में प्रस्तुत करना नीतिगत आत्म-संतोष और सामाजिक यथार्थ से पलायन है। जब तक हम आय, संपत्ति और अवसरों की असमानता को पारदर्शिता से नहीं स्वीकारते और उनका समाधान नहीं खोजते, तब तक "विश्व का चौथा सबसे समान देश" केवल एक खोखला दावा ही बना रहेगा।


हास्य में कटाक्ष:
"अगर कोई राजा और रंक, दोनों दिन में दो बार खाना खाते हैं, तो क्या वे समान हैं?" — यह सवाल हमें असल असमानता पर पुनर्विचार करने को विवश करता है।


Gynamic GK | विश्लेषण श्रृंखला



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