सत्यकथा: सरहद की एक माँ भारत-पाक सीमा पर माँ-बेटे की जुदाई: एक मर्मस्पर्शी मानवीय संकट अटारी बॉर्डर पर ठंडी हवाएँ चल रही थीं, पर फ़रहीन की आँखों से गर्म आँसुओं की धार थमने का नाम नहीं ले रही थी। उसके कांपते हाथों में 18 महीने का मासूम बेटा सिकुड़ा हुआ था, जैसे उसे भी पता हो कि कुछ अनहोनी होने वाली है। सिर पर दुपट्टा था, पर चेहरे पर मातृत्व की वेदना ने जैसे सारी दुनिया की नज़रों को थाम रखा था। "उतर जा बेटा... उतर जा," — सास सादिया की आवाज़ रिक्शे के भीतर से आई, लेकिन वह आवाज़ न तो कठोर थी, न ही साधारण। वह टूटे हुए रिश्तों की वह कराह थी जिसे सिर्फ़ एक माँ ही समझ सकती है। रिक्शा भारत की ओर था, पर फ़रहीन को पाकिस्तान जाना था—अपनी जन्मभूमि, पर अब बेगानी सी लगने लगी थी। फ़रहीन, प्रयागराज के इमरान से दो साल पहले ब्याही गई थी। प्यार हुआ, निकाह हुआ और फिर इस प्यार की निशानी—एक नन्हा बेटा हुआ। बेटे का नाम उन्होंने आरिफ़ रखा था, जिसका मतलब होता है—“जानने वाला, पहचानने वाला।” लेकिन आज वो नन्हा आरिफ़ समझ नहीं पा रहा था कि उसकी माँ उसे क्यों छोड़ रही है। "मैं माँ हूँ... कोई अपराधी नही...
ब्रेन रॉट: डिजिटल युग की नई मानसिक चुनौती इस लेख में "ब्रेन रॉट" की समस्या पर विस्तार से चर्चा की गई है, जो डिजिटल युग में अत्यधिक सोशल मीडिया और शॉर्ट-फॉर्म कंटेंट की लत के कारण हमारी मानसिक क्षमता को प्रभावित कर रही है। लेख में ब्रेन रॉट के लक्षण, कारण, सामाजिक और मानसिक प्रभाव के साथ-साथ इससे बचने के उपाय बताए गए हैं। यदि आप भी अत्यधिक स्क्रीन टाइम और कम ध्यान केंद्रित करने की समस्या से जूझ रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित हो सकता है। ब्रेन रॉट क्या है?? आज का युग डिजिटल क्रांति का युग है। स्मार्टफोन, सोशल मीडिया, और इंटरनेट की आसान उपलब्धता ने हमें सूचनाओं और मनोरंजन के असीमित स्रोतों से जोड़ दिया है। लेकिन इसके नकारात्मक प्रभाव भी स्पष्ट रूप से सामने आ रहे हैं। इन्हीं प्रभावों में से एक है "ब्रेन रॉट" (Brain Rot), जो मुख्य रूप से अत्यधिक डिजिटल उपभोग, विशेष रूप से कम गुणवत्ता वाले कंटेंट की लत, के कारण मानसिक क्षमताओं के कमजोर होने की स्थिति को दर्शाता है। हालांकि यह शब्द अनौपचारिक रूप से सोशल मीडिया और पॉप संस्कृति में प्रचलित हुआ है, लेकिन इसके प्रभा...