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Adi Shankaracharya: The Eternal Light of Indian Intellectual Tradition

 आदि शंकराचार्य: भारतीय चेतना के चिरस्थायी प्रकाश भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर कुछ ही ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समय की धारा को मोड़ा और युगों तक प्रेरणा दी। आदि शंकराचार्य उनमें से एक हैं – एक ऐसी ज्योति, जिसने 8वीं शताब्दी में भारतीय बौद्धिक और आध्यात्मिक जगत को नया जीवन दिया। केरल के छोटे से कालड़ी गाँव में जन्मे इस युवा सन्यासी ने न केवल वेदों के गूढ़ ज्ञान को सरल बनाया, बल्कि उसे घर-घर तक पहुँचाकर भारत को एक सूत्र में बाँध दिया। एक युग का संकट और शंकर का उदय उस समय भारत एक बौद्धिक और धार्मिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। अंधविश्वास, पंथों की भीड़ और बौद्ध धर्म के प्रभुत्व ने वैदिक परंपराओं को धूमिल कर दिया था। लोग सत्य की खोज में भटक रहे थे। ऐसे में शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का झंडा उठाया और कहा – "सत्य एक है, बाकी सब माया है।" उनका यह संदेश सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक नया तरीका था। "अहं ब्रह्मास्मि" – मैं ही ब्रह्म हूँ शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत सरल लेकिन गहरा है। वे कहते थे कि आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं। हमारी आँखों के सामने ...

Women Empowerment: Achievements and Challenges

महिला सशक्तिकरण : उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ

भूमिका

भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में पिछले 11 वर्षों में कई महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं। सरकार ने महिलाओं के उत्थान के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य उन्हें आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना है। हालांकि, इन उपलब्धियों के बावजूद, कई क्षेत्रों में चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। इस लेख में हम महिला सशक्तिकरण की उपलब्धियों का मूल्यांकन करेंगे और उन क्षेत्रों की समालोचना करेंगे जहां सुधार की आवश्यकता है।
Women Empowerment: Achievements and Challenges


महिला सशक्तिकरण की प्रमुख उपलब्धियाँ


1. लैंगिक अनुपात में सुधार

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में जन्म के समय लिंगानुपात 918 लड़कियों प्रति 1000 लड़कों का था। सरकार द्वारा 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसी योजनाओं के तहत जागरूकता अभियान चलाने और कड़ी निगरानी रखने के कारण यह आंकड़ा 933 तक पहुंच गया। यह सुधार सकारात्मक है, लेकिन अभी भी यह आदर्श स्तर से काफी कम है।

2. शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी


विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हुई है। पिछले कुछ वर्षों में इन क्षेत्रों में लगभग आधे प्रवेश लड़कियों के हुए हैं। इसके अलावा, सैनिक स्कूलों और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में भी महिलाओं को प्रवेश दिया गया है, जो लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है।


3. आर्थिक सशक्तिकरण और उद्यमिता


महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं:

↪मुद्रा योजना: इस योजना के तहत लगभग 70% लाभार्थी महिलाएं रही हैं, जिससे उन्हें स्वरोजगार के अवसर मिले।

↪स्टार्टअप इंडिया: भारत में 48% से अधिक स्टार्टअप्स में कम से कम एक महिला डायरेक्टर है, जिससे महिलाएं नेतृत्व की भूमिकाओं में आ रही हैं।

↪प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना: इस योजना के तहत 3.7 करोड़ महिलाओं को ₹16,500 करोड़ की सहायता दी गई, जिससे गर्भवती महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा मिली।


4. स्वास्थ्य और सुरक्षा में सुधार

↪मातृत्व अवकाश की अवधि को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है, जिससे कामकाजी महिलाओं को अधिक सहूलियत मिली है।

↪ग्रामीण क्षेत्रों में 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) से जोड़ा गया है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है।

↪ट्रिपल तलाक पर कानूनी प्रतिबंध लगाकर मुस्लिम महिलाओं को सुरक्षा और अधिकार दिए गए हैं।


5. बुनियादी सुविधाओं तक महिलाओं की पहुंच

↪प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत 10 करोड़ से अधिक परिवारों को गैस कनेक्शन प्रदान किए गए हैं, जिससे महिलाएं धुएं से मुक्त रसोई में भोजन बना पा रही हैं।

↪15 करोड़ से अधिक घरों तक नल से जल पहुंचाया गया है, जिससे महिलाओं को दूर-दूर तक पानी लाने की परेशानी से मुक्ति मिली है।

↪12 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया है, जिससे महिलाओं की स्वच्छता और सुरक्षा में सुधार हुआ है।

6. धार्मिक स्वतंत्रता और यात्रा की सुविधा

पहले मुस्लिम महिलाओं को हज यात्रा के लिए पुरुष अभिभावक की जरूरत होती थी, लेकिन अब वे अकेले यात्रा कर सकती हैं। यह महिलाओं को धार्मिक स्वतंत्रता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।

महिला सशक्तिकरण पर समालोचना और चुनौतियाँ

1. लैंगिक अनुपात अभी भी चिंता का विषय

हालांकि जन्म के समय लिंगानुपात में सुधार हुआ है, लेकिन यह अभी भी संतोषजनक स्तर पर नहीं पहुंचा है। कई राज्यों में यह अनुपात अभी भी 900 से कम है। इसके अलावा, बालिका शिक्षा और सुरक्षा के लिए जमीनी स्तर पर अधिक प्रभावी प्रयासों की आवश्यकता है।


2. शिक्षा में नामांकन बढ़ा, लेकिन ड्रॉपआउट दर अभी भी अधिक


STEM क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर अभी भी अधिक बनी हुई है। गरीबी, बाल विवाह और पारिवारिक दबाव के कारण कई लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पातीं।

3. महिलाओं की कार्यक्षमता और रोजगार के अवसर

↪भारत में महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR) अभी भी 25% से कम है, जो कई विकसित और विकासशील देशों से बहुत कम है।

↪स्टार्टअप और मुद्रा योजना के तहत महिलाओं को सहायता मिली है, लेकिन बड़ी संख्या में महिलाएं अभी भी संगठित कार्यबल का हिस्सा नहीं बन पाई हैं।

↪लैंगिक वेतन असमानता (Gender Pay Gap) भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। महिलाओं को समान कार्य के लिए पुरुषों की तुलना में 20-30% कम वेतन मिलता है।

4. घरेलू हिंसा और सुरक्षा के मुद्दे

↪महिला सुरक्षा: हालांकि सरकार ने 'निर्भया फंड' जैसी योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर महिला सुरक्षा की स्थिति अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है। बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों की संख्या अधिक बनी हुई है, और न्याय प्रक्रिया धीमी है।

↪घरेलू हिंसा: लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई, जिससे पता चलता है कि महिलाओं की सुरक्षा केवल बाहरी वातावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके घरों में भी सुधार की जरूरत है।

5. राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि लेकिन सीमित प्रभाव

↪पंचायतों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण दिया गया है, लेकिन उच्च राजनीतिक पदों पर महिलाओं की संख्या अभी भी सीमित है।

↪संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है, और कई बार उन्हें केवल नाममात्र की भूमिका दी जाती है।

6. कानूनी सुधारों की जरूरत

↪ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन मुस्लिम महिलाओं के लिए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लेकर अभी भी बहस जारी है।

↪कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए कानून हैं, लेकिन कई महिलाओं को न्याय नहीं मिल पाता, क्योंकि कई कंपनियां इन कानूनों का सही पालन नहीं करतीं।

निष्कर्ष

पिछले 11 वर्षों में महिला सशक्तिकरण की दिशा में कई महत्वपूर्ण सुधार किए गए हैं। सरकार की योजनाओं और नीतियों के चलते महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति और सुरक्षा में सुधार हुआ है। लेकिन यह भी सच है कि अभी भी कई क्षेत्रों में चुनौतियां बनी हुई हैं।

1. महिलाओं की शिक्षा और रोजगार में भागीदारी को और बढ़ाने की जरूरत है।

2. कार्यस्थलों और समाज में लैंगिक समानता को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।

3. महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध को रोकने के लिए अधिक कठोर कानूनों और उनके प्रभावी कार्यान्वयन की जरूरत है।

4. महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को और मजबूत करने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।

महिला सशक्तिकरण केवल सरकारी योजनाओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि समाज की मानसिकता में बदलाव भी आवश्यक है। जब तक पुरुष और महिलाएं समान रूप से हर क्षेत्र में भाग नहीं लेंगे, तब तक वास्तविक सशक्तिकरण अधूरा रहेगा। भारत को सही मायने में महिला सशक्तिकरण का आदर्श देश बनाने के लिए अभी लंबा सफर तय करना बाकी है।


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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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