NORAD Tracks Santa: History, Technology, and Global Cultural Impact of a Military Christmas Tradition
नॉराड द्वारा सांता क्लॉज़ की ट्रैकिंग: एक सैन्य-आधारित क्रिसमस परंपरा का विश्लेषण
भूमिका
क्रिसमस की पूर्व संध्या दुनिया भर के बच्चों के लिए उत्सुकता, उम्मीद और कल्पना का सबसे बड़ा उत्सव है। लोककथाओं के अनुसार, सांता क्लॉज़ इस रात उत्तर ध्रुव से निकलकर अपने जादुई स्लेज और रेनडियर के साथ पूरी दुनिया में उपहार बांटते हैं। इस कल्पनाशील यात्रा को तकनीकी-रोमांचक रूप में जीवंत करने का श्रेय जाता है नॉर्थ अमेरिकन एयरोस्पेस डिफेंस कमांड (NORAD) को, जो 1955 से हर वर्ष “NORAD Tracks Santa” कार्यक्रम के माध्यम से सांता की काल्पनिक उड़ान को ट्रैक करता है। 2025 में यह परंपरा अपने 70वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है — और अब यह केवल एक गतिविधि नहीं, बल्कि एक वैश्विक सांस्कृतिक घटना बन चुकी है।
ऐतिहासिक विकास: एक संयोग से जन्मी परंपरा
इस परंपरा की शुरुआत एक रोचक दुर्घटना से हुई। 1955 में एक अख़बार में सांता से बात करने के लिए प्रकाशित फोन नंबर गलती से CONAD (NORAD के पूर्ववर्ती संगठन) के नियंत्रण कक्ष का निकल आया। जब एक बच्चे ने वहां फोन किया, तो अधिकारी कर्नल हैरी शूप ने उसे निराश करने के बजाय “रडार से सांता को खोजने” का आश्वासन दिया। यही मानवीय भाव आगे चलकर एक वार्षिक परंपरा में बदल गया।
1958 में NORAD के गठन के बाद यह दायित्व उसके पास आ गया। शीत युद्ध के दौर का यह रक्षा संगठन हर वर्ष हजारों वॉलंटियर्स, तकनीकी उपकरणों और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की मदद से इस उत्सव को उत्साहपूर्वक संचालित करता है। आज यह कार्यक्रम वेबसाइट, ऐप, हॉटलाइन और सोशल मीडिया के माध्यम से करोड़ों परिवारों को जोड़ता है।
तकनीकी और परिचालन ढांचा
यद्यपि यह कार्यक्रम प्रतीकात्मक और मनोरंजन-आधारित है, फिर भी इसे प्रस्तुत करने का ढंग अत्यंत आधुनिक और तकनीकी है। NORAD सांता की “यात्रा” दिखाने के लिए निम्न आधारों का उपयोग करता है—
- रडार नेटवर्क
- भूस्थिर उपग्रह
- एनिमेटेड “सांता-कैम” दृश्य
- कंप्यूटरीकृत उड़ान-मानचित्र
ट्रैकिंग का क्रम अंतरराष्ट्रीय समय-रेखा के अनुसार आगे बढ़ता है—
दक्षिण प्रशांत → ऑस्ट्रेलिया → एशिया → अफ्रीका → यूरोप → उत्तर व दक्षिण अमेरिका।
इस प्रकार सांता की यात्रा विश्व-समय और प्रतीकात्मक वैश्विकता — दोनों का अनुभव कराती है।
भारत में सांता की यात्रा: 2025 का एक सांस्कृतिक अध्ययन
2025 की क्रिसमस ईव पर NORAD के ट्रैकर के अनुसार सांता की प्रतीकात्मक यात्रा भारत से भी होकर गुज़री। भारत-प्रवेश के दौरान उनकी उड़ान का मार्ग देश के तीन बड़े महानगरों से होकर गुजरता हुआ दिखाया गया—
- बेंगलुरु — तकनीकी-नवाचार का शहर
- मुंबई — समुद्री-व्यापार और सिनेमाई संस्कृति का केंद्र
- कोलकाता — औपनिवेशिक विरासत और बौद्धिक परंपरा का नगर
यह काल्पनिक यात्रा केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि यह दर्शाती है कि सांस्कृतिक प्रतीकों की पहुँच किस तरह भौगोलिक सीमाओं से परे फैलती है।
सांस्कृतिक, सामाजिक और प्रतीकात्मक अर्थ
NORAD Tracks Santa को अक्सर सॉफ्ट-पावर डिप्लोमसी के रूप में देखा जाता है — जहाँ एक सैन्य संगठन स्वयं को युद्धक छवि से परे, मानवीय, सौहार्दपूर्ण और बाल-मनोविज्ञान से जुड़ी भूमिका में प्रस्तुत करता है।
भारत जैसे बहु-धार्मिक और विविध समाज में, जहाँ क्रिसमस अनेक समुदायों के बीच साझा उत्सव के रूप में विकसित हो चुका है, यह परंपरा बच्चों और डिजिटल-पीढ़ी के लिए कल्पना और तकनीक के संगम का प्रतीक बनती है। यहाँ यह उत्सव धार्मिक सीमाओं से ऊपर उठकर वैश्विक सांस्कृतिक नागरिकता की भावना को पुष्ट करता है।
निष्कर्ष
सत्तर वर्षों से चल रही NORAD की यह परंपरा हमें बताती है कि कभी-कभी तकनीक केवल विज्ञान नहीं रहती, वह भावना और कल्पना की दुनिया को नए प्रतीक प्रदान करती है। सांता की यह “उड़ान” वास्तविक नहीं, परंतु वह जिस आनंद, जिज्ञासा और वैश्विक एकात्मता की अनुभूति कराती है — वह पूरी तरह वास्तविक है।
इस अर्थ में NORAD Tracks Santa केवल एक मनोरंजक परंपरा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत, सामाजिक संवाद और मानवीय सौहार्द का उत्सव है — जो हर वर्ष दुनिया को यह संदेश देता है कि
कल्पना भी विश्व-समाज को जोड़ सकती है।
With Reuters and Hindustan Times Inputs
Comments
Post a Comment