मणिपुर जीएसटी द्वितीय संशोधन विधेयक 2025: भारत के संघीय राजकोषीय समन्वय पर प्रभाव
सार
भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था, 2017 में लागू होने के बाद से, एक विभाजित अप्रत्यक्ष कर प्रणाली से एकीकृत, पारदर्शी और सहकारी संघवाद की दिशा में महत्वपूर्ण कदम रही है। हाल में 1 दिसंबर 2025 को लोकसभा द्वारा पारित मणिपुर वस्तु एवं सेवा कर (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2025 यह दर्शाता है कि राज्य-स्तरीय कानूनों को केंद्र के साथ कितनी निरंतरता से समन्वित रखना आवश्यक है। यह विधेयक 7 अक्टूबर 2025 को लागू अध्यादेश का स्थान लेता है, जो 56वीं जीएसटी परिषद द्वारा तय दर-तर्कसंगतिकरण (rate rationalization) को लागू करने हेतु जारी किया गया था। मणिपुर में राष्ट्रपति शासन, शीतकालीन सत्र की जटिल संसदीय पृष्ठभूमि और परोक्ष कर सुधारों के व्यापक संदर्भ—सभी मिलकर इस विधायी कार्रवाई को संघवाद, कार्यपालिका-विधायिका संतुलन तथा राजकोषीय संघवाद की दृष्टि से विश्लेषण योग्य बनाते हैं। यह लेख विधेयक की प्रमुख विशेषताओं, इसके विधायी मार्ग, तथा भारत के कर-परिदृश्य पर इसके प्रभावों का अध्ययन करता है।
1. प्रस्तावना
भारत का जीएसटी ढाँचा—संविधान के 101वें संशोधन के तहत—केंद्र और राज्यों दोनों को साझा अधिकार देने वाली द्वैध कराधान व्यवस्था है। जीएसटी परिषद इस संरचना का केंद्रीय स्तंभ है, जिसकी सिफारिशें दर, छूट और अनुपालन प्रणालियों में परिवर्तनों का आधार बनती हैं। परिषद के निर्णयों के अनुरूप सभी राज्यों को अपने-अपने एसजीएसटी अधिनियमों में संशोधन करने होते हैं।
इसी परिप्रेक्ष्य में मणिपुर जीएसटी (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2025 एक महत्वपूर्ण कदम है, जो लगभग 375 वस्तुओं पर लागू दर-तर्कसंगतिकरण को राज्य के कर कानून में शामिल करता है। मई 2023 से चले आ रहे जातीय तनाव और प्रशासनिक अस्थिरता के कारण फरवरी 2025 से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है, जिसके चलते विधानमंडल की अनुपस्थिति में अध्यादेश शासन प्राथमिक उपकरण बन गया है। यह विधेयक अध्यादेश को विधिक वैधता प्रदान करता है और राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर-परिवर्तनों से राज्य को समरूप करता है।
2. पृष्ठभूमि: जीएसटी व्यवस्था और दर-तर्कसंगतिकरण
56वीं जीएसटी परिषद ने, अनुपालन बढ़ाने और कर-विवाद घटाने के उद्देश्य से, पुरानी 5%, 12%, 18% और 28% की चार-स्लैब संरचना का सरलीकरण कर दो प्रमुख स्लैब—5% और 18%—को अपनाने की सिफारिश की। इसके अतिरिक्त अत्यधिक विलासिता वाली वस्तुओं हेतु 40% का एक उच्च स्लैब प्रस्तावित किया गया। ये परिवर्तन 22 सितंबर 2025 से लागू हुए, जिनके अनुरूप राज्यों को अपने कानूनों में तत्काल संशोधन करना आवश्यक था।
मणिपुर जैसे सीमावर्ती, संघर्ष-प्रभावित और राजकोषीय रूप से निर्भर राज्य के लिए यह संशोधन विशेष रूप से महत्वपूर्ण था। असंगत दरें व्यापार बाधित कर सकती थीं और राज्य के लिए अनुमानतः 15–20% तक राजस्व हानि की संभावना थी। यही कारण था कि राज्यपाल ने अध्यादेश जारी कर तत्काल कार्रवाई सुनिश्चित की।
आर्थिक दृष्टि से, यह तर्कसंगतिकरण केंद्र की राजकोषीय सुदृढ़ीकरण रणनीति (FRBM अधिनियम, 2003) के अनुरूप है। दरों के सरल होने से व्यापार-सुविधा सूचकांक में सुधार, अनुपालन वृद्धि और अनुमानतः 0.5–1% तक की संभावित जीडीपी वृद्धि की उम्मीद व्यक्त की गई है।
3. विधायी प्रक्रिया और संसदीय संदर्भ
लोकसभा में 1 दिसंबर 2025 को सत्र के पहले दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने शून्यकाल के पश्चात इस विधेयक को प्रस्तुत किया। अध्यादेश को छह सप्ताह के भीतर संसद की स्वीकृति मिलना संवैधानिक अनिवार्यता (अनुच्छेद 123) है, इसलिए विधेयक का त्वरित पारित होना अपेक्षित था।
हालाँकि, शीतकालीन सत्र (1–22 दिसंबर 2025) कई विवादों से घिरा रहा। विपक्ष ने 12 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में चुनाव आयोग द्वारा घोषित विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर गंभीर आपत्तियाँ उठाईं। बूथ लेवल अधिकारियों पर अत्यधिक बोझ और 2026 के पूर्व-निर्धारित विधानसभा चुनावों के संदर्भ में राजनीतिक ध्रुवीकरण की आशंकाओं ने सदन में अवरोध उत्पन्न किए।
इसके समानांतर, सरकार ने वर्ष 2025–26 के लिए ₹45,000 करोड़ के अनुपूरक अनुदान प्रस्तुत किए और तंबाकू व पान मसाला पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने से जुड़े विधेयक भी पेश किए। इस प्रकार, जीएसटी संशोधन व्यापक राजस्व-संतुलन रणनीति का हिस्सा बनकर सामने आया।
4. विश्लेषण: संघीय ढाँचे और राजकोषीय नीति पर प्रभाव
4.1 संघवाद और जीएसटी परिषद की भूमिका
विधेयक का पारित होना इस सत्य को पुनः स्पष्ट करता है कि अनुच्छेद 246A के तहत जीएसटी परिषद एक “सहकारी-संघवाद” की संस्था है, जिसकी सिफारिशों के अनुरूप राज्यों को अपना कानून बदलना पड़ता है। इससे कर-असमन्वय रोका जा सकता है और यह राज्यों के बीच अवांछित प्रतिस्पर्धी कर-नीति (race to the bottom) को कम करता है।
मणिपुर के संदर्भ में, जो म्यांमार से लगती सीमा पर व्यापार-निर्भर अर्थव्यवस्था है, दर-समरूपता आंतरिक और अंतर-राज्यीय व्यापार को निर्बाध बनाती है। जीएसटी नेटवर्क की प्रारंभिक आकलन रिपोर्टों के अनुसार इससे 10–12% तक कर-उपज बढ़ने की संभावना है।
4.2 अध्यादेश शासन के संवैधानिक प्रश्न
मणिपुर में 2023 के बाद से 15 अध्यादेश जारी होना कार्यपालिका-प्रधान शासन का संकेत देता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2021 के RC Cooper बनाम भारत संघ निर्णय में अध्यादेश जारी करने की आवृत्ति पर चिंता व्यक्त की गई थी। राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य-विधानमंडल की अनुपस्थिति कार्यपालिका की शक्ति को अत्यधिक बढ़ा देती है, जिससे संघीय संतुलन प्रभावित हो सकता है।
4.3 आर्थिक प्रभाव
दर-तर्कसंगतिकरण से आवश्यक उपभोग वस्तुओं पर कर-भार घटा है (12% से 5% तक), जिससे उपभोक्ता कल्याण बढ़ता है। लेकिन 40% विलासिता कर से कीमतें बढ़ेंगी, जिससे उपभोग पैटर्न पर मिश्रित प्रभाव पड़ेगा। राजस्व में वृद्धि तो होगी, किंतु उच्च दरों से मूल्य-कम घोषित करने (under-invoicing) की प्रवृत्ति बढ़ने का जोखिम भी है—जो 2017–23 के बीच 20% तक बढ़ा था।
4.4 संसदीय प्रक्रिया और विधायी गुणवत्ता
2025 में पेश 70% विधेयक बिना स्थायी समिति समीक्षा के सदन के समक्ष आए—यह प्रवृत्ति नीति-निर्माण की गुणवत्ता पर प्रश्न खड़े करती है। अत्यधिक त्वरित विधिनिर्माण से बहु-हितधारक परामर्श, पारदर्शिता और प्रभाव-विश्लेषण कमज़ोर होते हैं।
5. निष्कर्ष
मणिपुर जीएसटी (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2025 एक तकनीकी, फिर भी अत्यंत महत्वपूर्ण हस्तक्षेप है। यह भारत के व्यापक जीएसटी ढाँचे को मजबूत करता है और दर-तर्कसंगतिकरण को राज्यों में समान रूप से लागू करने का मार्ग प्रशस्त करता है। किंतु इसके साथ ही यह अध्यादेश-आधारित शासन, संघीय संतुलन और संसदीय विमर्श की सीमाओं को भी उजागर करता है—विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा-चुनौतियाँ निरंतर बनी रहती हैं।
जीएसटी के भविष्य को अधिक मजबूत बनाने हेतु राज्यों की भागीदारी, परिषद की पारदर्शिता, और विधायी प्रक्रियाओं की परामर्शात्मकता बढ़ाना आवश्यक है। पूर्वोत्तर राज्यों के संदर्भ में आगे का शोध राज्य-स्तरीय कर-लचीलापन, सीमावर्ती व्यापार और प्रशासनिक क्षमता पर केंद्रित होना चाहिए, ताकि कर-सुधार समानतापूर्ण विकास को बढ़ावा दे सकें।
With LiveMint Inputs
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