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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Current Affairs in Hindi : 13 April 2025

समसामयिकी लेख संकलन : 13 अप्रैल 2025


1. संविधान की आत्मा और संघवाद की पुकार: बहुसंख्यकवाद के दौर में क्षेत्रीय नेतृत्व की भूमिका

प्रस्तावना

भारतीय संविधान मात्र एक दस्तावेज नहीं, बल्कि एक जीवंत संकल्पना है जो विविधता में एकता, न्याय, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की नींव पर टिका है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में जब बहुसंख्यकवादी प्रवृत्तियाँ लोकतांत्रिक संतुलन को चुनौती देने लगी हैं, ऐसे में जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती द्वारा विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर संवैधानिक मूल्यों की रक्षा हेतु हस्तक्षेप की अपील करना एक महत्वपूर्ण संकेत है।


1. बहुसंख्यकवाद बनाम संवैधानिक मूल्य

  • भारतीय लोकतंत्र का सौंदर्य इसकी बहुलतावादी प्रकृति में निहित है।
  • संविधान में स्पष्ट रूप से अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा, सांस्कृतिक विविधता का सम्मान, और सत्ता के विकेंद्रीकरण की व्यवस्था की गई है।
  • वर्तमान में बहुसंख्यक हितों को प्राथमिकता देने की प्रवृत्तियाँ संवैधानिक संतुलन को कमजोर कर रही हैं।
  • महबूबा मुफ़्ती का पत्र इसी संदर्भ में संवैधानिक चेतना को जागृत करने का प्रयास है।

2. संविधानिक सुरक्षा कवच और उसकी प्रभावशीलता

भारतीय संविधान ने बहुसंख्यकवाद से रक्षा हेतु निम्नलिखित उपाय किए हैं:

  • अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता
  • अनुच्छेद 15-16: भेदभाव निषेध
  • अनुच्छेद 25-30: धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता
  • प्रस्तावना: न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की गारंटी

वर्तमान संदर्भ:
जब संवैधानिक संस्थानों पर राजनीतिक प्रभाव बढ़ता है और अभिव्यक्ति संकुचित होती है, तब ये सुरक्षा कवच सैद्धांतिक तो दिखते हैं, पर व्यावहारिक नहीं


3. संघवाद और अंतर-राज्यीय सहयोग की भूमिका

  • महबूबा मुफ़्ती द्वारा लिखे गए पत्र इस बात का प्रमाण हैं कि राज्यों की भूमिका केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि नैतिक और वैचारिक भी हो सकती है।
  • Cooperative Federalism और Empathetic Federalism दोनों की आज ज़रूरत है।
  • राज्य सरकारें केंद्र के इकतरफा निर्णयों का विवेकपूर्ण विरोध कर सकती हैं और लोकतंत्र की रक्षा कर सकती हैं।

4. क्षेत्रीय नेतृत्व और संवैधानिक नैतिकता

  • ममता बनर्जी, एम.के. स्टालिन, और सिद्धारमैया जैसे नेता संविधान की आत्मा की रक्षा के लिए आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।
  • जब केंद्र सरकार मौन हो या पक्षपात करे, तब क्षेत्रीय नेतृत्व संविधानिक नैतिकता का रक्षक बनता है।

5. निष्कर्ष

संविधान की रक्षा केवल न्यायपालिका या केंद्र की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर राज्य, हर राजनीतिक दल और हर जागरूक नागरिक की सामूहिक जिम्मेदारी है।
संवैधानिक नैतिकता को जीवित रखना ही सच्ची राष्ट्रभक्ति है।


UPSC Relevance (GS Paper 2 + Essay)

GS Paper 2 Topics:

  • Indian Constitution: मूलभूत सिद्धांत, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद
  • Centre-State Relations
  • Role of Regional Leaders
  • Majoritarianism vs. Pluralism

Essay Topics:

  • “The Constitution is not a mere document; it is a vehicle of life.”
  • “In a democracy, majority has its way, but minority must have its say.”

उदाहरण:
"जैसे हाल ही में महबूबा मुफ़्ती ने संविधान की रक्षा हेतु मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा — यह संघवाद और नैतिक नेतृत्व का उदाहरण है।"


संभावित UPSC प्रश्न:

  1. बढ़ती बहुसंख्यक प्रवृत्तियों के संदर्भ में, संविधानिक मूल्यों की रक्षा और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा में राज्य सरकारों की भूमिका का परीक्षण करें।
  2. सहकारी संघवाद संविधान की रक्षा में किस प्रकार योगदान देता है?
  3. भारत में बहुसंख्यकवाद के विरुद्ध संवैधानिक सुरक्षा उपाय क्या हैं? वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें।
  4. संवैधानिक नैतिकता की रक्षा में क्षेत्रीय नेतृत्व की भूमिका पर चर्चा करें।

2. सारस Mk2: भारत के स्वदेशी नागरिक विमान निर्माण की नई उड़ान

परिचय

भारत की स्वदेशी विमानन क्षमताओं को एक नई गति देने के उद्देश्य से विकसित किया गया सारस Mk2 वर्ष 2027 के दिसंबर में अपनी पहली परीक्षण उड़ान के लिए तैयार है। यह परियोजना भारतीय वैमानिकी शोध संस्थान CSIR-NAL (National Aerospace Laboratories) के निर्देशन में चल रही है।


क्या है सारस Mk2?

  • यह एक 19 सीटों वाला टर्बोप्रॉप विमान है।
  • पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है।
  • सारस विमान परियोजना का उन्नत संस्करण।
  • उद्देश्य: छोटे और मध्यम दूरी की उड़ानों के लिए क्षेत्रीय हवाई संपर्क बढ़ाना।

मुख्य विशेषताएँ:

  • उन्नत एवियोनिक्स और आधुनिक नेविगेशन सिस्टम
  • उच्च ईंधन दक्षता और कम परिचालन लागत
  • छोटे रनवे पर उड़ान भरने और उतरने की क्षमता
  • UDAN योजना के तहत छोटे हवाईअड्डों को जोड़ने की क्षमता

रणनीतिक महत्त्व:

  1. UDAN योजना में योगदान:

    • क्षेत्रीय हवाई संपर्क को सस्ता और सुलभ बनाएगा।
  2. मेक इन इंडिया को बढ़ावा:

    • स्वदेशी निर्माण और तकनीक का सशक्त उदाहरण।
    • विदेशी विमान निर्माता कंपनियों पर निर्भरता कम होगी।
  3. दूसरे क्षेत्रों में संभावनाएँ:

    • सीमावर्ती क्षेत्रों में निगरानी
    • चिकित्सा आपूर्ति
    • आपदा प्रबंधन

निष्कर्ष:

सारस Mk2 केवल एक विमान नहीं, बल्कि भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता, वैज्ञानिक क्षमता और स्वदेशी निर्माण की नई उड़ान है। इसकी सफलता भारत को वैश्विक विमानन मानचित्र पर गौरवान्वित स्थान दिला सकती है।


3-MGNREGS की प्रभावशीलता जांचने हेतु स्वतंत्र सर्वेक्षण की संसदीय सिफारिश: एक विश्लेषणात्मक लेख

प्रस्तावना

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) भारत की सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में से एक है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका की गारंटी प्रदान करती है। हाल ही में संसद की ग्रामीण विकास संबंधी स्थायी समिति ने इस योजना की प्रभावशीलता और चुनौतियों का समुचित मूल्यांकन करने के लिए एक स्वतंत्र सर्वेक्षण की सिफारिश की है। यह कदम योजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और श्रमिकों की संतुष्टि को केंद्र में रखकर उठाया गया है।

सर्वेक्षण की आवश्यकता और उद्देश्य

समिति के अनुसार, इस स्वतंत्र सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य योजना के विभिन्न पहलुओं—जैसे श्रमिकों की संतुष्टि, मजदूरी भुगतान में देरी, भागीदारी की प्रवृत्तियाँ और वित्तीय अनियमितताएँ—का निष्पक्ष मूल्यांकन करना है। पिछले कुछ वर्षों में इन मुद्दों को लेकर शिकायतें और असंतोष बढ़ा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि योजना की वास्तविक जमीनी स्थिति को समझने के लिए एक स्वतंत्र और वैज्ञानिक सर्वेक्षण अनिवार्य हो गया है।

मुख्य जांच क्षेत्र

  1. श्रमिक संतुष्टि:
    योजना की सफलता का आधार श्रमिकों की संतुष्टि है। सर्वेक्षण यह जानने का प्रयास करेगा कि ग्रामीण मजदूरों को कितना काम उपलब्ध हो रहा है, उनकी मजदूरी समय पर मिल रही है या नहीं, तथा उनके अनुभव और शिकायतों का समाधान कितना प्रभावी है।

  2. मजदूरी भुगतान में देरी:
    मजदूरी भुगतान में देरी MGNREGS की एक प्रमुख समस्या रही है। यह न केवल श्रमिकों की आर्थिक स्थिति पर असर डालता है, बल्कि उनकी योजना में भागीदारी को भी प्रभावित करता है।

  3. भागीदारी की प्रवृत्तियाँ:
    महिला श्रमिकों की भागीदारी, अनुसूचित जातियों और जनजातियों का समावेश, तथा विभिन्न राज्यों में कार्य दिवसों की स्थिति सर्वेक्षण के महत्वपूर्ण भाग होंगे।

  4. वित्तीय अनियमितताएँ:
    कई राज्यों में जालसाजी, फर्जी जॉब कार्ड और भ्रष्टाचार की शिकायतें सामने आई हैं। यह सर्वेक्षण ऐसे मामलों की प्रकृति और प्रसार को उजागर करने का प्रयास करेगा।

समिति की चिंता और सुझाव

संसदीय समिति ने यह भी उल्लेख किया कि मौजूदा निगरानी प्रणाली और सामाजिक लेखा-जोखा (Social Audit) पर्याप्त नहीं हैं। उसने सुझाव दिया है कि सर्वेक्षण की रिपोर्ट के आधार पर नीति में सुधार किए जाएँ, ताकि योजना वास्तव में “काम की गारंटी” बन सके, न कि केवल आंकड़ों की योजना।

निष्कर्ष

MGNREGS ने वर्षों तक ग्रामीण भारत के लिए एक जीवन रेखा के रूप में कार्य किया है, विशेषकर संकट कालों में जैसे कोविड-19 महामारी के दौरान। हालांकि, वर्तमान समय में इसके सामने क्रियान्वयन और पारदर्शिता संबंधी कई चुनौतियाँ हैं। संसद की स्थायी समिति द्वारा सुझाया गया स्वतंत्र सर्वेक्षण एक सकारात्मक पहल है, जिससे योजना को अधिक प्रभावशाली, उत्तरदायी और समावेशी बनाया जा सकता है।

चुस्त प्रशासनिक ढाँचा, तकनीकी सशक्तिकरण और श्रमिकों की सक्रिय भागीदारी—इन्हीं के सम्मिलन से MGNREGS अपने उद्देश्य की पूर्ति कर सकती है।

यहाँ इस विषय पर आधारित कुछ संभावित प्रश्न दिए जा रहे हैं, जो UPSC Mains (GS Paper 2), निबंध या साक्षात्कार के लिए उपयोगी हो सकते हैं:


GS Paper 2 (Governance / Welfare Schemes)

  1. MGNREGS की वर्तमान चुनौतियों और सुधार की संभावनाओं का विश्लेषण कीजिए।
  2. संसदीय स्थायी समितियों की भूमिका को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की पारदर्शिता और प्रभावशीलता बढ़ाने के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
  3. क्या स्वतंत्र सर्वेक्षण ग्रामीण योजनाओं के मूल्यांकन के लिए एक उपयुक्त उपाय है? MGNREGS के संदर्भ में उत्तर दीजिए।
  4. MGNREGS में मजदूरी भुगतान में देरी की समस्या को हल करने हेतु क्या कदम उठाए जा सकते हैं? चर्चा कीजिए।
  5. सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit) बनाम स्वतंत्र सर्वेक्षण – कौन सा अधिक प्रभावी है? तर्क सहित उत्तर दें।

निबंध / Essay

  1. "रोज़गार की गारंटी से आत्मनिर्भरता तक: क्या MGNREGS ग्रामीण भारत का भविष्य बदल सकता है?"
  2. "सर्वेक्षण, सतर्कता और सामाजिक न्याय: कल्याणकारी योजनाओं की आत्मा"

साक्षात्कार / Interview

  1. आपको क्या लगता है कि सरकार को MGNREGS जैसी योजनाओं की निगरानी कैसे करनी चाहिए?
  2. यदि आपको MGNREGS में सुधार के लिए तीन प्रमुख सुझाव देने हों, तो वे क्या होंगे?
  3. क्या आप मानते हैं कि ऐसी योजनाओं का राजनीतिक दुरुपयोग होता है? समाधान क्या हो सकते हैं?

4-भारत का शेनझेन सपना: किस शहर को मिलेगा "नया सिलिकॉन वैली" का ताज?

हाल ही में महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा द्वारा किया गया एक सोशल मीडिया पोस्ट वायरल हो गया, जिसमें उन्होंने भारत के किसी शहर को "India’s Shenzhen" के रूप में उभरते देखने की उम्मीद जताई। इसके बाद सोशल मीडिया और नीति मंचों पर तीव्र बहस छिड़ गई — क्या भारत को भी अपना शेनझेन मिल सकता है? अगर हां, तो वह कौन-सा शहर होगा?

शेनझेन मॉडल: प्रेरणा की मिसाल

चीन का शेनझेन कभी एक साधारण मछुआरा गाँव हुआ करता था, लेकिन सरकार की दूरदर्शी आर्थिक नीतियों, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) के गठन और नवाचार को बढ़ावा देने की रणनीति के चलते यह शहर आज वैश्विक तकनीकी नवाचार और हार्डवेयर उत्पादन का केंद्र बन चुका है। भारत भी ऐसा ही एक सफल "टेक हब" चाहता है जो न केवल वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करे, बल्कि घरेलू नवाचार को भी उड़ान दे।

भारत के संभावित "शेनझेन": एक नजर

1. धोलेरा (गुजरात)

धोलेरा स्मार्ट सिटी परियोजना को भारत का पहला प्लांड ग्रीनफील्ड इंडस्ट्रियल सिटी कहा जा रहा है। बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टिक कनेक्टिविटी और तकनीकी निवेश के लिए अनुकूल नीतियाँ इसे एक प्रमुख दावेदार बनाती हैं।

2. पुणे (महाराष्ट्र)

शैक्षिक संस्थानों, आईटी सेक्टर और ऑटोमोबाइल उद्योग की मज़बूत मौजूदगी पुणे को पहले से ही एक मिनी-सिलिकॉन वैली जैसा बनाती है। पुणे की प्रतिभा और स्टार्टअप इकोसिस्टम इसे तकनीकी हब बनने में सक्षम बनाते हैं।

3. हैदराबाद (तेलंगाना)

हैदराबाद में ‘T-Hub’ जैसे नवाचार प्लेटफॉर्म, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी दिग्गज कंपनियों की मौजूदगी और राज्य सरकार की टेक-फ्रेंडली नीतियाँ इसे प्रतिस्पर्धी बनाती हैं।

4. बेंगलुरु (कर्नाटक)

हालांकि बेंगलुरु को पहले से ही भारत की सिलिकॉन वैली कहा जाता है, लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर समस्याएं, ट्रैफिक और अत्यधिक शहरीकरण इसे नए विकल्पों के लिए खुला बनाते हैं।

5. नोएडा और ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

डेटा सेंटर, इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग और ग्लोबल कंपनियों की रुचि के कारण NCR क्षेत्र में टेक्नोलॉजी क्लस्टर बनने की क्षमता है।

कौन होगा विजेता?

यह सवाल न केवल इंफ्रास्ट्रक्चर या निवेश पर निर्भर करेगा, बल्कि सरकार की दीर्घकालिक नीति, नवाचार के लिए पारिस्थितिकी तंत्र, और जीवन की गुणवत्ता जैसे पहलुओं पर भी आधारित होगा।

निष्कर्ष:

भारत का “शेनझेन सपना” केवल एक शहर की पहचान नहीं, बल्कि एक विजन है — ऐसा विजन जो देश को वैश्विक तकनीकी मानचित्र पर नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकता है। प्रतियोगिता शुरू हो चुकी है, लेकिन अंततः वही शहर शीर्ष पर होगा जो केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि नवाचार, समावेशी विकास और सतत शहरीकरण के रास्ते पर चलेगा।

अब सवाल यह नहीं कि कौन बनेगा भारत का शेनझेन, बल्कि यह है — कौन सबसे पहले भविष्य की दिशा को समझकर, उसे साकार करेगा?

नीचे दिया गया लेख UPSC GS पेपर 3 के विश्लेषणात्मक प्रारूप में प्रस्तुत है — जिसमें आर्थिक विकास, औद्योगिक नीतियाँ, शहरीकरण एवं तकनीकी नवाचार को केंद्र में रखते हुए तर्क और विश्लेषणात्मक ढांचा अपनाया गया है:


प्रश्न:
भारत का ‘शेनझेन सपना’ केवल औद्योगीकरण नहीं, बल्कि एक समावेशी तकनीकी विज़न है। विभिन्न शहरों की क्षमताओं का मूल्यांकन करते हुए स्पष्ट करें कि भारत का अगला तकनीकी केंद्र कौन बन सकता है और क्यों।


परिचय:

भारत तेजी से तकनीकी और आर्थिक विकास के रास्ते पर अग्रसर है। इस संदर्भ में हाल ही में उद्योगपति आनंद महिंद्रा के एक सोशल मीडिया पोस्ट ने देशव्यापी बहस छेड़ दी — क्या भारत को अपना "शेनझेन" मिल सकता है? चीन का शेनझेन मात्र 40 वर्षों में वैश्विक नवाचार और मैन्युफैक्चरिंग हब बन चुका है। भारत में भी कई शहर ऐसे हैं जो इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हैं।


शेनझेन मॉडल: भारत के लिए क्यों प्रेरणास्रोत?


भारत के प्रमुख शहरों का विश्लेषण:

1. धोलेरा (गुजरात):

  • ग्रीनफील्ड स्मार्ट सिटी परियोजना
  • विशेष निवेश क्षेत्र (SIR) के रूप में विकास
  • डीएमआईसी (Delhi-Mumbai Industrial Corridor) का प्रमुख बिंदु
  • चुनौती: धीमी गति से निर्माण, मानव संसाधन की अनुपस्थिति

2. पुणे (महाराष्ट्र):

  • मजबूत शैक्षणिक और तकनीकी आधार
  • ऑटोमोबाइल, IT, और स्टार्टअप्स का हब
  • उच्च जीवन गुणवत्ता और टैलेंट पूल
  • चुनौती: भूमि और इंफ्रास्ट्रक्चर सीमाएँ

3. हैदराबाद (तेलंगाना):

  • T-Hub, WE-Hub जैसे नवाचार केंद्र
  • IT कंपनियों की पसंदीदा जगह
  • सरकारी सहयोग: टेक्नोक्रेटिक नेतृत्व
  • चुनौती: पानी की आपूर्ति और जनसंख्या दबाव

4. नोएडा/ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश):

  • इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग हब (Apple, Dixon)
  • डेटा सेंटर नीति, फिल्म सिटी योजना
  • चुनौती: प्रदूषण, दिल्ली-निर्भरता

5. बेंगलुरु (कर्नाटक):

  • वर्तमान ‘सिलिकॉन वैली’
  • वैश्विक कंपनियों की मौजूदगी
  • चुनौती: ट्रैफिक, अर्बन स्पेस संकट, बढ़ती लागत

नीतिगत ढांचा और सरकार की भूमिका:

  • Make in India और Digital India के ज़रिए तकनीकी उत्पादन को बढ़ावा
  • Production Linked Incentive (PLI) Scheme से हार्डवेयर निर्माण को बढ़ावा
  • National Logistics Policy से निर्यात और विनिर्माण प्रतिस्पर्धा में वृद्धि
  • Gati Shakti योजना के तहत इंटीग्रेटेड इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण

चुनौतियाँ:

  • समग्र शहरी योजना की कमी
  • भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय स्वीकृति
  • सामाजिक समावेशन और मजदूर हित
  • नवाचार और अनुसंधान में निवेश की आवश्यकता

निष्कर्ष:

भारत का शेनझेन सपना महज भौगोलिक प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि एक नीति-संचालित तकनीकी दृष्टिकोण है। जिस शहर में मजबूत शहरी नियोजन, नीतिगत समर्थन, नवाचार-अनुकूल वातावरण और जनभागीदारी की स्पष्टता होगी, वही भारत का अगला वैश्विक तकनीकी केंद्र बन पाएगा।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में धोलेरा दीर्घकालिक योजना का उदाहरण हो सकता है, जबकि पुणे और हैदराबाद निकट भविष्य के प्रबल दावेदार हैं। इस दौड़ में अंततः विजेता वही होगा जो शहरी स्मार्टता को सामाजिक समावेशन और तकनीकी नवाचार से संतुलित कर सके।


5-मुर्शिदाबाद हिंसा: UPSC GS के दृष्टिकोण से विश्लेषण

13 अप्रैल 2025 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ संशोधन विधेयक 2024 के खिलाफ प्रदर्शन हिंसक हो गया, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई। केंद्र सरकार ने स्थिति पर नजर रखने और कानून-व्यवस्था बहाल करने के लिए केंद्रीय गृह सचिव को निर्देश दिए हैं। यह घटना UPSC सामान्य अध्ययन (GS) के लिए अत्यंत प्रासंगिक है, क्योंकि यह शासन, सामाजिक न्याय, और आंतरिक सुरक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों को प्रभावित करती है।
GS Paper 2: शासन, संविधान, और सामाजिक न्याय
  1. वक्फ संशोधन विधेयक 2024
    वक्फ संशोधन विधेयक का उद्देश्य वक्फ बोर्डों में पारदर्शिता बढ़ाना और गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना है। हालांकि, इसने धार्मिक समुदायों में असंतोष पैदा किया है, क्योंकि इसे अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है।
    • संवैधानिक प्रावधान: यह मुद्दा अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 26 (धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार) से जुड़ा है। UPSC के दृष्टिकोण से, यह सवाल उठता है कि क्या यह विधेयक अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन करता है या यह सुशासन के लिए आवश्यक है?
    • शासन: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी इस घटना में स्पष्ट है। पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र के बीच वैचारिक मतभेद ने स्थिति को और जटिल बनाया। यह केंद्र-राज्य संबंधों (अनुच्छेद 256 और 257) और सहकारी संघवाद की विफलता को दर्शाता है।
  2. सामाजिक न्याय
    • यह घटना सामाजिक ध्रुवीकरण और धार्मिक तनाव को उजागर करती है, जो सामाजिक समावेशन और समानता के सिद्धांतों को चुनौती देती है।
    • अल्पसंख्यक समुदायों में विश्वास की कमी और सामाजिक असमानता इस हिंसा की जड़ में हो सकती है। UPSC में सामाजिक एकता और अल्पसंख्यक कल्याण से संबंधित प्रश्न इस संदर्भ में पूछे जा सकते हैं।
GS Paper 3: आंतरिक सुरक्षा
  1. कानून-व्यवस्था की स्थिति
    • मुर्शिदाबाद में हिंसा ने स्थानीय प्रशासन की तैयारियों और भीड़ प्रबंधन की कमियों को उजागर किया। हिंसा में तीन लोगों की मौत से पता चलता है कि पुलिस बल समय पर स्थिति को नियंत्रित करने में विफल रहा।
    • यह घटना आंतरिक सुरक्षा के लिए एक चुनौती है, क्योंकि धार्मिक आधार पर हिंसा सामाजिक स्थिरता को खतरे में डाल सकती है।
  2. सामाजिक तनाव और सुरक्षा प्रभाव
    • धार्मिक मुद्दों पर आधारित हिंसा का इतिहास (जैसे, 1992 बाबरी मस्जिद विध्वंस, 2020 दिल्ली दंगे) भारत में बार-बार देखा गया है। यह घटना सामाजिक तनाव को बढ़ावा दे सकती है, जो आतंकवादी संगठनों द्वारा भुनाया जा सकता है।
    • केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय गृह सचिव का हस्तक्षेप राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, लेकिन यह राज्य पुलिस की स्वायत्तता पर भी सवाल उठाता है।
UPSC के लिए संभावित प्रश्न
  • "वक्फ संशोधन विधेयक 2024 के संदर्भ में, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और सुशासन के बीच संतुलन की चुनौतियों पर चर्चा करें।" (GS Paper 2)
  • "धार्मिक आधार पर होने वाली हिंसा भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए कैसे खतरा बनती है? मुर्शिदाबाद हिंसा के संदर्भ में विश्लेषण करें।" (GS Paper 3)
  • "केंद्र-राज्य संबंधों में सहकारी संघवाद की भूमिका क्या है? हाल की घटनाओं के आधार पर इसकी कमियों का मूल्यांकन करें।" (GS Paper 2)
निष्कर्ष
मुर्शिदाबाद हिंसा भारत में धार्मिक संवेदनशीलता, शासन की चुनौतियों, और आंतरिक सुरक्षा के मुद्दों को रेखांकित करती है। यह घटना UPSC अभ्यर्थियों के लिए एक केस स्टडी के रूप में महत्वपूर्ण है, जो संवैधानिक प्रावधानों, सामाजिक न्याय, और सुरक्षा नीतियों के बीच जटिल संबंधों को समझने में मदद करती है। सरकार को इस मुद्दे पर संवेदनशीलता के साथ काम करने और सामाजिक सौहार्द सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

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“भारत की घटती विधायी गुणवत्ता: 2025 में 70% विधेयक बिना समिति परीक्षण के पारित होने के प्रभाव” प्रस्तावना भारत की संसदीय प्रणाली विश्व की सबसे विशाल और बहुस्तरीय लोकतांत्रिक संरचनाओं में से एक है। तथापि, पिछले एक दशक में संसद की विधायी प्रक्रिया में एक चिंताजनक प्रवृत्ति उभरी है—विधेयकों को बिना विभागीय स्थायी समितियों (Departmentally Related Standing Committees – DRSCs) के परीक्षण के सीधे पारित करना। PRS Legislative Research के आंकड़े बताते हैं कि 16वीं लोकसभा (2014–2019) में जहाँ केवल 25% विधेयक बिना समिति परीक्षण के पारित हुए थे, वहीं 17वीं लोकसभा (2019–2024) में यह संख्या बढ़कर 60% हो गई। 18वीं लोकसभा के प्रारंभिक तीन सत्रों (जून 2024–अगस्त 2025) के दौरान यह आँकड़ा और बढ़कर 70% तक पहुँच गया। वर्ष 2025 के तीनों सत्रों (बजट, मानसून और शीतकालीन) के दौरान कुल 47 विधेयकों में से केवल 14 ही समिति को भेजे गए। यह प्रवृत्ति न केवल संख्यात्मक रूप से चिंताजनक है, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक विधिनिर्माण की गुणवत्ता, पारदर्शिता और जवाबदेही की मूलभूत संरचनाओं पर गंभीर प्रभाव छोड़ती है। स्थ...

Justice Suryakant Becomes the 53rd Chief Justice of India: A New Direction for the Judiciary and Key Constitutional Challenges

भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति सूर्य कांत : न्यायपालिका की नई दिशा का उद्घोष 24 नवंबर 2025 भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक नए अध्याय का आरंभ होगा, जब न्यायमूर्ति सूर्य कांत भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे। वे न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई के उत्तराधिकारी बनेंगे, जिनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 को समाप्त हुआ। न्यायमूर्ति गवई की विदाई न केवल एक संवैधानिक पदावनति का क्षण थी, बल्कि सामाजिक न्याय की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव भी—क्योंकि वे स्वतंत्र भारत के प्रथम बौद्ध और दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश रहे। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई : संवैधानिक साहस और सामाजिक न्याय की विरासत न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल कई दृष्टियों से ऐतिहासिक रहा। उन्होंने उन पीठों का नेतृत्व या सदस्यता निभाई, जिनके निर्णयों ने भारतीय संघवाद, लोकतांत्रिक जवाबदेही और व्यक्तिगत अधिकारों के विमर्श को गहराई से प्रभावित किया। अनुच्छेद 370 निर्णय संविधान पीठ के सदस्य के रूप में उन्होंने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त करने के केंद्र सरकार के निर्णय को संवैधानिक ठहराने ...

IAS Santosh Verma Controversy: How a Reservation Remark Turned Daughters into “Objects of Donation”

IAS संतोष वर्मा का विवादित बयान – जब आरक्षण की आड़ में बेटियों को “दान” की वस्तु बना दिया गया नमस्कार साथियों, कभी-कभी एक वाक्य इतना शक्तिशाली होता है कि वह पूरे समाज की धड़कनें बदल देता है। आईएएस संतोष वर्मा का हालिया बयान बिल्कुल ऐसा ही था—चिंगारी की तरह फेंका गया और पलक झपकते ही आग बन गया। उन्होंने कहा— “जब तक ब्राह्मण अपनी बेटी मेरे बेटे को दान नहीं देगा, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए।” इस एक वाक्य ने पूरे मध्यप्रदेश की राजनीति, समाज और प्रशासन को हिला दिया। सड़कें गरम, सोशल मीडिया उफान पर, और सरकार ने तत्काल कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित कर दिया। लेकिन इस विवाद के शोर में एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल दब गया— क्या अंतरजातीय विवाह वास्तव में सामाजिक बराबरी का सटीक पैमाना हैं? विवाद का संक्षिप्त लेकिन पूरा घटनाक्रम 23 नवंबर 2025 – भोपाल, अंबेडकर मैदान। अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी-कर्मचारी संघ (AJAKS) की बैठक में नए अध्यक्ष संतोष वर्मा भाषण दे रहे थे। आरक्षण पर बहस के बीच उन्होंने “रोटी-बेटी संबंध” का जिक्र किया—जो कई नेता पहले भी करते रहे हैं। लेकिन आगे जो कहा, वही विस...

Fatima Bosch Fernández and Miss Universe Controversy: A New Global Debate on Gender Respect and Dignity

फ़ातिमा बोश फ़र्नांडीज़ और मिस यूनिवर्स विवाद: गरिमा, लैंगिक सम्मान और वैश्विक विमर्श का नया अध्याय भूमिका मिस यूनिवर्स जैसी प्रतियोगिताएँ अक्सर ग्लैमर और मनोरंजन की सुर्खियों तक सीमित मानी जाती हैं, लेकिन वर्ष 2025 की विजेता फ़ातिमा बोश फ़र्नांडीज़ के इर्द-गिर्द उभरा घटनाक्रम इससे कहीं अधिक व्यापक सामाजिक संदेश देता है। केवल कुछ दिन पहले एक प्रभावशाली अधिकारी द्वारा कैमरे के सामने “ dumb ” कहकर उनका अपमान किया गया। किंतु परिणाम घोषित होते ही वही महिला—दृढ़, शांत और आत्मविश्वासी—वैश्विक मंच पर सौंदर्य से अधिक सम्मान और सहनशक्ति का प्रतीक बनकर उभरी। यह विवाद केवल एक मॉडल की व्यक्तिगत यात्रा नहीं है; यह लैंगिक गरिमा , सार्वजनिक भाषा की मर्यादा , कार्यस्थल में शक्ति असमानता , और महिला-सम्मान से जुड़ी व्यापक समस्याओं को उजागर करता है। UPSC के दृष्टिकोण से यह घटना सामाजिक-नैतिक मूल्यों , महिला अधिकारों , और सार्वजनिक संस्थानों की जवाबदेही जैसे बड़े विमर्शों से जुड़ी है। घटना का सार 16 नवंबर 2025 को आयोजित मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता के दौरान एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि फ़ातिमा “du...

Temple–Mosque Dispute: Path to Resolution or Escalation of Tensions?

मंदिर–मस्जिद विवाद: समाधान का मार्ग या तनाव का विस्तार? एक समग्र विश्लेषण परिचय भारतीय समाज में धार्मिक स्थलों को लेकर उत्पन्न होने वाले विवाद कोई नई बात नहीं हैं। इतिहास, आस्था और राजनीति—इन तीनों के संगम पर खड़े ऐसे मुद्दे अक्सर समाज को विचार-विमर्श और टकराव, दोनों की ओर ले जाते हैं। हाल ही में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक के.के. मुहम्मद ने एक इंटरव्यू में सुझाव दिया है कि धार्मिक विवादों को अयोध्या, मथुरा और ज्ञानवापी जैसे तीन स्थलों तक सीमित रखा जाए। उन्होंने ताजमहल के “हिंदू मूल” के दावों को पूरी तरह खारिज करते हुए चेताया कि नए और आधारहीन दावे सामाजिक तनाव को और बढ़ाएँगे। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश के कई हिस्सों में धार्मिक स्थलों को लेकर अदालती कार्यवाहियाँ जारी हैं और जनमत निरंतर विभाजित हो रहा है। यह लेख इसी पृष्ठभूमि में यह समझने का प्रयास करता है कि क्या और अधिक विवाद उठाना न्याय की ओर बढ़ना होगा या केवल तनाव को ही बढ़ाएगा। ऐतिहासिक संदर्भ भारत का इतिहास धार्मिक संरचनाओं के निर्माण–विध्वंस और पुनर्निर्माण की घटनाओं से भरा पड़ा...

DynamicGK.in: Rural and Hindi Background Candidates UPSC and Competitive Exam Preparation

डायनामिक जीके: ग्रामीण और हिंदी पृष्ठभूमि के अभ्यर्थियों के सपनों को साकार करने का सहायक लेखक: RITU SINGH भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी एक चुनौतीपूर्ण यात्रा है, खासकर उन अभ्यर्थियों के लिए जो ग्रामीण इलाकों से आते हैं या हिंदी माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। अंग्रेजी-प्रधान संसाधनों की भरमार में हिंदी भाषी छात्रों को अक्सर कठिनाई होती है। ऐसे में dynamicgk.in जैसी वेबसाइट एक वरदान साबित हो रही है। यह न केवल सामान्य ज्ञान (जीके) और समसामयिक घटनाओं पर केंद्रित है, बल्कि ग्रामीण और हिंदी पृष्ठभूमि के युवाओं के सपनों को साकार करने में विशेष रूप से सहायक भूमिका निभा रही है। इस लेख में हम समझेंगे कि यह प्लेटफॉर्म कैसे इन अभ्यर्थियों की मदद करता है। हिंदी माध्यम की पहुंच: भाषा की बाधा को दूर करना ग्रामीण भारत में अधिकांश छात्र हिंदी माध्यम से पढ़ते हैं, लेकिन अधिकांश प्रतियोगी परीक्षा संसाधन अंग्रेजी में उपलब्ध होते हैं। dynamicgk.in इस कमी को पूरा करता है। वेबसाइट का अधिकांश कंटेंट हिंदी में उपलब्ध है, जो हिंदी भाषी अभ्यर्थियों को सहज रूप से समझने में मद...

India’s Strong Economic Momentum: A Comprehensive Analysis of Q2 FY26 GDP Growth Amid Global Challenges

भारत की सुदृढ़ आर्थिक प्रगति: वैश्विक चुनौतियों के बीच Q2 FY26 की GDP वृद्धि का विश्लेषण भारत की अर्थव्यवस्था ने एक बार फिर अपनी अंतर्निहित मजबूती का परिचय दिया है। वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) की दूसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आंकड़े इस तथ्य को मजबूती से रेखांकित करते हैं कि वैश्विक अनिश्चितताओं—विशेषकर अमेरिकी व्यापार शुल्कों—के बावजूद भारत की विकास गति प्रभावशाली बनी हुई है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार, वास्तविक GDP वृद्धि 8.2% तक पहुँच गई, जो पिछले वर्ष की समान तिमाही के 5.6% और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 7.8% से स्पष्ट रूप से अधिक है। यह छह तिमाहियों में सर्वाधिक वृद्धि है, जो भारत की आर्थिक संरचना की सहनशीलता और नीति-निर्माण की तत्परता को दर्शाती है। क्षेत्रीय प्रदर्शन: विकास का आधारभूत ढाँचा Q2 FY26 की वृद्धि का स्रोत व्यापक और बहुआयामी रहा। विनिर्माण, निर्माण और सेवाओं—इन तीनों क्षेत्रों ने मिलकर विकास को न केवल मजबूत आधार दिया, बल्कि संतुलन भी सुनिश्चित किया। 1. विनिर्माण—स्वदेशी उत्पादन का उभार विनिर्माण क्षे...

Parasocial Relationships in the AI Era: Why Cambridge’s 2025 Word of the Year Signals a New Social Reality

पैरासोशल संबंधों का उदय—डिजिटल युग का नया सामाजिक संकट कैम्ब्रिज डिक्शनरी द्वारा वर्ष 2025 के लिए “parasocial” शब्द को वर्ड ऑफ द ईयर घोषित किया जाना मात्र भाषाई घटना नहीं, बल्कि हमारे समय के सामाजिक परिवर्तन का दस्तावेज़ है। यह उस युग की स्वीकृति है जहाँ मनुष्य का गहनतम संबंध किसी जीवित व्यक्ति से नहीं, बल्कि एक एल्गोरिदम या स्क्रीन पर दिखने वाली हस्ती से बन रहा है। एकतरफा घनिष्ठता की जड़ें 1956 में हॉर्टन और वोल ने पैरासोशलिटी को उस भ्रमपूर्ण संबंध के रूप में परिभाषित किया जहाँ दर्शक किसी मीडिया हस्ती के प्रति घनिष्ठता महसूस करता है, जबकि वह हस्ती उससे पूर्णतः अनजान रहती है। तब यह अनुभव रेडियो और टीवी तक सीमित था—एकतरफा, पर नियंत्रित। परन्तु आज यह अवधारणा नियंत्रण से बाहर जा चुकी है। AI ने पैरासोशल संबंधों को नया रुप दिया कैम्ब्रिज डिक्शनरी ने इस वर्ष एक साहसिक कदम उठाते हुए पैरासोशल की परिभाषा में AI और बड़े भाषा मॉडल्स के साथ बनने वाले भावनात्मक लगाव को भी शामिल कर लिया है। यह निर्णय बताता है कि तकनीक अब केवल उपकरण नहीं, बल्कि रिश्तों का विकल्प बन चुकी है। Replika, Charact...

UPSC 2024 Topper Shakti Dubey’s Strategy: 4-Point Study Plan That Led to Success in 5th Attempt

UPSC 2024 टॉपर शक्ति दुबे की रणनीति: सफलता की चार सूत्रीय योजना से सीखें स्मार्ट तैयारी का मंत्र लेखक: Arvind Singh PK Rewa | Gynamic GK परिचय: हर साल UPSC सिविल सेवा परीक्षा लाखों युवाओं के लिए एक सपना और संघर्ष बनकर सामने आती है। लेकिन कुछ ही अभ्यर्थी इस कठिन परीक्षा को पार कर पाते हैं। 2024 की टॉपर शक्ति दुबे ने न सिर्फ परीक्षा पास की, बल्कि एक बेहद व्यावहारिक और अनुशासित दृष्टिकोण के साथ सफलता की नई मिसाल कायम की। उनका फोकस केवल घंटों की पढ़ाई पर नहीं, बल्कि रणनीतिक अध्ययन पर था। कौन हैं शक्ति दुबे? शक्ति दुबे UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2024 की टॉपर हैं। यह उनका पांचवां  प्रयास था, लेकिन इस बार उन्होंने एक स्पष्ट, सीमित और परिणामोन्मुख रणनीति अपनाई। न उन्होंने कोचिंग की दौड़ लगाई, न ही घंटों की संख्या के पीछे भागीं। बल्कि उन्होंने “टॉपर्स के इंटरव्यू” और परीक्षा पैटर्न का विश्लेषण कर अपनी तैयारी को एक फोकस्ड दिशा दी। शक्ति दुबे की UPSC तैयारी की चार मजबूत आधारशिलाएँ 1. सुबह की शुरुआत करेंट अफेयर्स से उन्होंने बताया कि सुबह उठते ही उनका पहला काम होता था – करेंट अफेयर्...