ट्रंप के 50% टैरिफ बनाम भारत की जीएसटी कटौती: क्या जीडीपी वृद्धि बढ़ेगी? | यूपीएससी विश्लेषण
परिचय
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तावित 50% टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था पर एक बड़ा झटका साबित हो सकते हैं, क्योंकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। ये टैरिफ भारतीय निर्यात को अमेरिकी बाजार में अन कंपटीटिव बना देंगे, जिससे अरबों डॉलर का नुकसान हो सकता है। हालांकि, भारत सरकार की हालिया जीएसटी दरों में कटौती और अन्य रणनीतियां इस प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, ये कदम न केवल टैरिफ के नकारात्मक प्रभाव को संतुलित कर सकते हैं, बल्कि भारत की जीडीपी वृद्धि को 6.5% से बढ़ाकर 6.7% तक ले जा सकते हैं। यह लेख यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) के दृष्टिकोण से इस पूरे घटनाक्रम को कवर करता है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार, घरेलू नीतियां, आर्थिक प्रभाव और भारत की वैश्विक रणनीतियां शामिल हैं। यूपीएससी के संदर्भ में, यह विषय अर्थशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय संबंध और नीति निर्माण के पेपरों के लिए प्रासंगिक है, जहां व्यापार युद्ध, टैरिफ नीतियां और घरेलू सुधारों का विश्लेषण आवश्यक होता है।
ट्रंप के 50% टैरिफ का पृष्ठभूमि और प्रभाव
डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी कार्यकाल की नीतियों के तहत, अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा है, जो मुख्य रूप से व्यापार असंतुलन को दूर करने के उद्देश्य से है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है, जहां भारत के कुल निर्यात का लगभग 50% हिस्सा प्रभावित हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार, यह टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर का नुकसान पहुंचा सकता है, और जीडीपी वृद्धि पर 30 से 90 आधार अंकों का नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
यूपीएससी के दृष्टिकोण से, यह ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का हिस्सा है, जो विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों को चुनौती देती है। भारत, जो विकासशील देश के रूप में विशेष और विभेदीकरण उपचार (एसपीडी) का लाभ लेता है, इस टैरिफ से प्रभावित होगा। इससे भारत के निर्यात-निर्भर क्षेत्र जैसे वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पाद प्रभावित होंगे। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के संदर्भ में, यह भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को परीक्षा की घड़ी में डाल देगा, जहां द्विपक्षीय व्यापार समझौते (जैसे 2+2 डायलॉग) की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। आर्थिक रूप से, भारत की अर्थव्यवस्था जो मुख्य रूप से घरेलू खपत (लगभग 60%) पर आधारित है, निर्यात हानि को कुछ हद तक सहन कर सकती है, लेकिन छोटे और श्रम-गहन उद्योगों पर दबाव बढ़ेगा।
भारत की रणनीति: विविधीकरण और घरेलू सुधार
भारत सरकार ने टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाई है। सबसे पहले, निर्यातकों को राहत प्रदान करने के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन पैकेज पर विचार किया जा रहा है। दूसरा, बाजार विविधीकरण पर जोर दिया जा रहा है, जहां यूरोपीय संघ, आसियान देशों और अन्य उभरते बाजारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) तेजी से लागू किए जाएंगे। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए बाद में वर्ष में प्रभावी हो सकते हैं, जो टेक्सटाइल जैसे प्रभावित क्षेत्रों को नई दिशा देंगे।
यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता:
यह रणनीति भारत की 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' पहलों से जुड़ी है, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारत की भूमिका को मजबूत करती है। नीति निर्माण के पेपर में, यह दिखाता है कि कैसे भारत डब्ल्यूटीओ में विवाद निपटान तंत्र का उपयोग कर सकता है या द्विपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से संतुलन बनाए रख सकता है। इसके अलावा, विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) 2023 के तहत निर्यात प्रोत्साहन योजनाएं (जैसे रेमिशन ऑफ ड्यूटीज एंड टैक्सेस ऑन एक्सपोर्टेड प्रोडक्ट्स - RoDTEP) इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं।
जीएसटी कटौती: टैरिफ के प्रभाव को कम करने का हथियार
मोदी सरकार ने 22 सितंबर से (नवरात्रि के आरंभ के साथ) जीएसटी दरों में व्यापक कटौती की घोषणा की है, जो आम आदमी और मध्यम वर्ग के उपभोग वाले अधिकांश वस्तुओं पर लागू होगी। इन कटौतियों से उत्पादन लागत कम होगी, जो कंपनियों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मदद करेगी। राजस्व सचिव अरविंद श्रीवास्तव के अनुसार, 2023-24 की उपभोग आधार पर यह कर संग्रह पर 48,000 करोड़ रुपये का प्रभाव डालेगी, लेकिन अतीत के रुझानों से पता चलता है कि तर्कसंगतकरण से अनुपालन बढ़ता है और लंबे समय में राजस्व वृद्धि होती है।
प्रभावित क्षेत्रों में वस्त्र, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, खाद्य पदार्थ, उर्वरक, कृषि मशीनरी और नवीकरणीय ऊर्जा शामिल हैं, जो रोजगार-गहन हैं। ये कटौतियां उत्पादन लागत कम करके टैरिफ-प्रेरित मूल्य वृद्धि को आंशिक रूप से ऑफसेट करेंगी। यूपीएससी के अर्थशास्त्र पेपर में, जीएसटी को अप्रत्यक्ष कर सुधार के रूप में देखा जाता है, जो लाफर कर्व (Laffer Curve) के सिद्धांत पर आधारित है—कम दरें उच्च उपभोग और अनुपालन को बढ़ावा देती हैं। इससे मुद्रास्फीति कम होगी, वास्तविक क्रय शक्ति बढ़ेगी और घरेलू मांग को प्रोत्साहन मिलेगा, जो निर्यात हानि को संतुलित करेगा।
विशेषज्ञों की राय: जीडीपी वृद्धि में वृद्धि की संभावना
विशेषज्ञ जीएसटी कटौतियों को टैरिफ के प्रभाव को कम करने का एक मजबूत समर्थन मानते हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनाविस कहते हैं, “जीएसटी सुधार कंपनियों के उत्पादन लागत को कम करने में मदद करेंगे, जो वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए उपयोगी होगा। यह टैरिफ द्वारा लगाए गए उच्च लागत के लिए सीमित हद तक मुआवजा दे सकता है। यह निश्चित रूप से इलाज नहीं है, लेकिन समर्थन है।” वे आगे जोड़ते हैं कि जीएसटी घरेलू मांग को प्रोत्साहित करने और उल्टे ड्यूटी संरचना को सुधारने के लिए अधिक है।
लार्सन एंड टूब्रो के ग्रुप मुख्य अर्थशास्त्री सच्चिदानंद शुक्ला के अनुसार, “कुछ अध्ययनों में वृद्धि गुणक 1.08 है, लेकिन विभिन्न खंडों की लोच और कंपनियों की लाभ हस्तांतरण की प्रवृत्ति के आधार पर जीडीपी पर शुद्ध प्रभाव 500-900 अरब रुपये के बीच हो सकता है। हालांकि, यह अल्पकालिक दृष्टिकोण है। वास्तविक लाभ मध्यम से लंबे समय में चक्रवृद्धि होगा, जहां कम दरें/मूल्य उच्च उपभोग, अनुपालन और आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देंगे। अल्पकाल में, यह अमेरिकी टैरिफ के प्रतिकूल प्रभाव को 0.4% तक कम कर सकता है, लेकिन वास्तविक मैक्रो प्रभाव लंबे समय में कम मुद्रास्फीति, उच्च गतिविधि आदि से होंगे।”
डीबीएस बैंक, सिंगापुर की वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका राव कहती हैं, “घरेलू लंगर इस वर्ष चुनौतीपूर्ण बाहरी वातावरण के लिए महत्वपूर्ण ऑफसेट के रूप में उभरेगा। यह मुद्रास्फीति में कमी के अलावा है, जो वास्तविक क्रय शक्ति को राहत प्रदान करती है। टैरिफ घोषणाओं से प्रभावित व्यवसायों, विशेष रूप से छोटे और श्रम-गहन फर्मों को समर्थन देने के लिए प्रत्यक्ष उपायों की भी आवश्यकता है।”
ईवाई इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार डीके श्रीवास्तव का अनुमान है, “कुल मिलाकर, वित्तीय घाटे के जीडीपी अनुपात में कुछ फिसलन के बावजूद, हम 2025-26 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि को मौजूदा अनुमानों से 6.5% से बढ़ाकर 6.7% होने की अपेक्षा करते हैं। यह अमेरिकी टैरिफ वृद्धि के बावजूद होने की संभावना है। अधिकांश टैरिफ-प्रभावित क्षेत्र जैसे वस्त्र घरेलू मांग में वृद्धि और बाद में वर्ष में नए मुक्त व्यापार समझौतों वाले देशों में निर्यात विविधीकरण से प्रासंगिक आधार पुनः प्राप्त करेंगे।”
यूपीएससी के संदर्भ में, ये राय आर्थिक मॉडलिंग (जैसे गुणक प्रभाव) और नीति मूल्यांकन को दर्शाती हैं, जो जीएस पेपर 3 (अर्थव्यवस्था) में उपयोगी हैं।
निष्कर्ष
ट्रंप के 50% टैरिफ भारत के लिए एक चुनौती हैं, लेकिन जीएसटी कटौतियां और बाजार विविधीकरण जैसी रणनीतियां इस प्रभाव को कम करने में सक्षम हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, घरेलू मांग-प्रेरित वृद्धि और उत्पादन लागत में कमी से जीडीपी वृद्धि में वृद्धि भी संभव है, जो भारत की लचीलापन को दर्शाता है। यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए, यह घटनाक्रम वैश्विक व्यापार गतिशीलता, घरेलू सुधारों और सतत विकास के बीच संतुलन को समझने का अवसर प्रदान करता है। भारत को अब डब्ल्यूटीओ मंच पर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना चाहिए, ताकि लंबे समय में आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित हो।
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