प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2015 में आरंभ किया गया "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" अभियान भारतीय समाज में बेटियों की स्थिति को सशक्त बनाने के लिए एक ऐतिहासिक पहल साबित हुआ है। यह अभियान बेटी के जन्म से लेकर उसकी शिक्षा और सशक्तिकरण तक के हर पहलू को शामिल करता है।
अभियान का उद्देश्य
इस पहल का मुख्य उद्देश्य समाज में लड़कियों के प्रति व्याप्त लैंगिक असमानता को समाप्त करना, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना और बेटियों के लिए बेहतर शिक्षा एवं अवसर सुनिश्चित करना था।
जन-संचालित पहल की सफलता
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अभियान की 10वीं वर्षगांठ पर इसे 'जन-संचालित पहल' करार दिया। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन लोगों की सोच में बदलाव लाने और समाज में बेटियों की स्थिति को सुधारने में क्रांतिकारी सिद्ध हुआ है।
उपलब्धियां और प्रभाव
1. लिंग अनुपात में सुधार: कई राज्यों में लिंग अनुपात में सुधार देखने को मिला है।
2. शिक्षा का विस्तार: बेटियों को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित किया गया, जिससे उनकी स्कूलों में भागीदारी बढ़ी।
3. सोच में बदलाव: यह अभियान समाज में बेटियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में सफल रहा।
चुनौतियां और आगे का रास्ता
हालांकि इस पहल ने बड़ी सफलता प्राप्त की है, लेकिन अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित कई मुद्दे बरकरार हैं। इन समस्याओं को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास और समाज की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
निष्कर्ष
"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" केवल एक अभियान नहीं है, बल्कि यह भारत के उज्जवल भविष्य की नींव है। यह हमें यह संदेश देता है कि बेटियां समाज का अभिन्न हिस्सा हैं और उनके सशक्तिकरण से ही समाज प्रगति कर सकता है।
प्रधानमंत्री का यह अभियान सही मायनों में परिवर्तन का प्रतीक बन गया है।
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