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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

South Africa G20 Summit 2025: Impact of US Absence and the New Climate Declaration – A Comprehensive Analysis

G20 शिखर सम्मेलन 2025: दक्षिण अफ्रीका की अगुवाई और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर निर्णायक संकेत

भूमिका

जोहान्सबर्ग में आयोजित 2025 का G20 शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति के लिए एक असाधारण क्षण था। पहली बार समूह ने Leaders’ Declaration को शिखर बैठक की शुरुआत में ही पारित कर दिया—जबकि सामान्यतः यह दस्तावेज़ अंत तक जारी होता है। यह परिवर्तन केवल प्रक्रिया में सुधार नहीं था, बल्कि एक सामूहिक राजनीतिक संदेश था कि वैश्विक मुद्दों पर अब एकतरफ़ा दबावों का प्रभाव सीमित हो चुका है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा सम्मेलन का बहिष्कार और जलवायु घोषणा को रोकने की कथित कोशिशों के बावजूद, 18 देशों और यूरोपीय संघ ने दृढ़ता दिखाते हुए घोषणा को समय से पहले अपनाया। इसने स्पष्ट किया कि उभरती अर्थव्यवस्थाएँ अब वैश्विक निर्णयों पर अधिक प्रभाव डालने के लिए तैयार हैं।


पृष्ठभूमि: वैश्विक दक्षिण की बढ़ती भूमिका

दक्षिण अफ्रीका ने 2024 में G20 अध्यक्षता संभालते ही यह संकेत दिया था कि इसका एजेंडा समानता, सहयोग और स्थिरता पर केंद्रित रहेगा।

संदर्भ को समझना महत्वपूर्ण है:

  • कोविड-19 के बाद आर्थिक असमानता गहरी हुई।
  • ऊर्जा एवं खाद्य सुरक्षा संकट बढ़ा।
  • जलवायु परिवर्तन से वैश्विक दक्षिण सबसे अधिक प्रभावित हुआ।
  • अमेरिका की “America First” नीति ने बहुपक्षीय मंचों में अविश्वास बढ़ाया।

अमेरिका ने घोषणा में “क्लाइमेट चेंज” शब्द पर आपत्ति जताई और दक्षिण अफ्रीका से इसे रोकने का आग्रह किया। लेकिन भारत, ब्राज़ील, अफ्रीकी देशों और यूरोपीय संघ के समर्थन ने इस दबाव को अप्रासंगिक बना दिया।

UPSC दृष्टिकोण से यह चरण बहुध्रुवीयता और Global South solidarity की उभरती प्रवृत्ति को दर्शाता है।


घोषणा को तुरंत पारित करना: एक नया वैश्विक संदेश

घोषणा के शुरुआती अनुमोदन में चार मुख्य प्राथमिकताएँ उभरकर सामने आईं:

1. जलवायु परिवर्तन पर ठोस प्रतिबद्धता (GS-3)

  • मानव-जनित जलवायु परिवर्तन को स्वीकार किया गया।
  • 2050 तक नेट-ज़ीरो और नवीकरणीय ऊर्जा निवेश पर जोर।
  • जलवायु वित्त के लिए विशेष सहायता—जो विकासशील देशों के लिए महत्त्वपूर्ण है।

यह अमेरिकी प्रशासन के जलवायु संशयवाद को अप्रत्यक्ष चुनौती थी।


2. वैश्विक व्यापार और आर्थिक संरचना सुधार (GS-3)

  • WTO सुधार की आवश्यकता पर बल।
  • निष्पक्ष, खुली और समावेशी व्यापार व्यवस्था का समर्थन।
  • ऋण पुनर्गठन और छोटे किसानों के संरक्षण जैसे विषयों को महत्व।

यह संरक्षणवाद के उभार के विरुद्ध सामूहिक रुख था।


3. वैश्विक सुरक्षा और संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान (GS-2)

  • आतंकवाद की सभी रूपों में निंदा—बिना “अच्छा-बुरा” का भेद।
  • यूक्रेन, सूडान, गाज़ा और DRC जैसे क्षेत्रों में शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन।
  • UN चार्टर, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर पुनः जोर।

यह भारत की कूटनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप था।


4. समावेशी विकास और मानव-केंद्रित नीतियाँ (GS-2 / Essay)

  • डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य सुरक्षा और कौशल विकास पर सहयोग।
  • समानता और मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता को मजबूत समर्थन।

यह वैश्विक विकास मॉडल को “लोग-केंद्रित” बनाने की दिशा में कदम था।


अमेरिकी दबाव की अनदेखी: दुनिया का बदलता संतुलन

अमेरिकी बहिष्कार और दबाव के बावजूद घोषणा पारित होना तीन महत्वपूर्ण संकेत देता है:

1. बहुपक्षीयता का पुनर्जीवन

G20 ने दिखाया कि वैश्विक सहमति अब किसी एक शक्ति पर निर्भर नहीं है।
यह संयुक्त राष्ट्र, BRICS+, G20 जैसे मंचों में नए संतुलन की ओर इशारा करता है।

2. जलवायु मुद्दों का राजनीतिकरण अब सीमित

वैश्विक जलवायु मुद्दे अब वैज्ञानिक आवश्यकता और नैतिक दायित्व हैं—राजनीतिक बहस नहीं।

3. वैश्विक दक्षिण का उभार

भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका और अफ्रीकी संघ का प्रभाव पहले से अधिक दिखाई देता है।
यह वैश्विक शासन में शक्ति-संतुलन के पुनर्गठन का हिस्सा है।


भारत की भूमिका: संतुलन और सेतु का कार्य

प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय बैठकों (यूके, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा आदि) ने:

  • वैश्विक दक्षिण की आवाज़ मजबूत की,
  • डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और मानव-केंद्रित विकास मॉडल को आगे बढ़ाया,
  • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को और स्थिर किया।

UPSC दृष्टिकोण से भारत का यह रुख “Vishwamitra diplomacy” या bridge-builder diplomacy का एक उदाहरण है।


भविष्य की दिशा: अवसर और चुनौतियाँ

अवसर

  • वैश्विक दक्षिण का एजेंडा—जलवायु वित्त, ऋण राहत, व्यापार सुधार—अब केंद्र में है।
  • बहुध्रुवीयता से अधिक संतुलित वैश्विक शासन संभव।
  • सहयोग के नए मॉडल—डिजिटल अर्थव्यवस्था, हरित वित्त, आपदा प्रबंधन—सामने आ रहे हैं।

चुनौतियाँ

  • अमेरिका की अनुपस्थिति से कुछ नीतियों का कार्यान्वयन कठिन हो सकता है।
  • सदस्य देशों में भू-राजनीतिक मतभेद आगे भी बाधा बन सकते हैं।
  • जलवायु वित्त और व्यापार सुधार पर ठोस कार्रवाई अभी अधूरी है।

निष्कर्ष

दक्षिण अफ्रीका में आयोजित 2025 का G20 शिखर सम्मेलन बताता है कि वैश्विक कूटनीति अब पहले जैसी नहीं रही।
घोषणा को उद्घाटन में ही पारित करना इस बात का प्रमाण है कि सदस्य देश अब समयोचित निर्णयों, सामूहिक हितों और बहुध्रुवीय सहयोग को प्राथमिकता देना चाहते हैं।

यह सम्मेलन एक स्पष्ट संदेश छोड़ता है:

21वीं सदी का वैश्विक शासन एक सहयोगी, समावेशी और बहुध्रुवीय विश्व में आकार ले रहा है—जहाँ किसी एक महाशक्ति की अनुपस्थिति से निर्णय रुकते नहीं हैं।

UPSC के दृष्टिकोण से यह शिखर सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में परिवर्तनशील भू-राजनीति, बहुपक्षीय संस्थाओं की प्रासंगिकता, और Global South की बढ़ती भूमिका का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।


Note- लेख UPSC के GS-2 (अंतरराष्ट्रीय संबंध), GS-3 (अर्थव्यवस्था/जलवायु), GS-4 (एथिक्स) के अनुरूप तैयार किया गया है।

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