Skip to main content

MENU👈

Show more

Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

UPSC Current Affairs: 7 May 2025

 दैनिक समसामयिकी लेख संकलन व विश्लेषण: 7 मई 2025

आज के इस अंक में निम्नलिखित 5 लेखों को संकलित किया गया है।सभी लेख UPSC लेबल का दृष्टिकोण विकसित करने के लिए बेहद उपयोगी हैं।

1-भारत-यू.के. मुक्त व्यापार समझौता: एक नई आर्थिक और रणनीतिक उड़ान

परिचय

भारत और यूनाइटेड किंगडम (यू.के.) के बीच हाल ही में हुआ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) और दोहरा कराराधान संधि (Double Taxation Convention) एक ऐतिहासिक कदम है, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक और कूटनीतिक रिश्तों को नई ऊँचाइयों पर ले जाता है। यह समझौता, जो लंबी और गहन वार्ताओं का परिणाम है, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के दौर में भारत और यू.के. को एक मजबूत, समावेशी और भविष्योन्मुखी साझेदारी की राह दिखाता है। यह न केवल व्यापार और निवेश को बढ़ावा देगा, बल्कि दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और रणनीतिक जुड़ाव को भी गहरा करेगा।

समझौते का स्वरूप और उसकी आत्मा  

मुक्त व्यापार समझौता (FTA): यह समझौता दोनों देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार को आसान बनाने के लिए बनाया गया है। सीमा शुल्क में कटौती, व्यापारिक प्रक्रियाओं का सरलीकरण और बाजार तक बेहतर पहुंच इसके प्रमुख लक्ष्य हैं। इससे भारतीय मसालों से लेकर ब्रिटिश व्हिस्की तक, और भारतीय सॉफ्टवेयर से लेकर यू.के. की वित्तीय सेवाओं तक, हर क्षेत्र में व्यापार को नई गति मिलेगी।  

दोहरा कराराधान संधि: यह संधि सुनिश्चित करती है कि कोई कंपनी या व्यक्ति एक ही आय पर दोनों देशों में दोहरा कर न दे। इससे निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा और भारत में ब्रिटिश कंपनियों, साथ ही यू.के. में भारतीय उद्यमियों के लिए नए दरवाजे खुलेंगे।

आर्थिक अवसर: भारत और यू.के. के लिए सुनहरा मौका  

व्यापार में उछाल: वर्तमान में भारत और यू.के. के बीच करीब 36 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार होता है। इस समझौते से अगले कुछ वर्षों में इसमें 30-40% की वृद्धि की उम्मीद है। भारतीय टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स, और आईटी सेवाएँ यू.के. में और ब्रिटिश ऑटोमोबाइल, मशीनरी, और वित्तीय सेवाएँ भारत में नया बाजार पाएँगी।  

रोजगार की बहार: यह समझौता भारत के सेवा क्षेत्र, खासकर सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, शिक्षा और फार्मा में ब्रिटिश निवेश को आकर्षित करेगा। इससे लाखों नौकरियाँ सृजित होंगी, खासकर युवाओं के लिए। यू.के. में भी भारतीय पेशेवरों, जैसे इंजीनियरों और डॉक्टरों, के लिए नए अवसर खुलेंगे।  

MSME को नई ताकत: भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) इस समझौते से सबसे अधिक लाभान्वित होंगे। सरल नियम और यू.के. के बाजार तक आसान पहुंच से भारतीय हस्तशिल्प, ज्वेलरी, और खाद्य उत्पादों को वैश्विक पहचान मिलेगी।  

'मेक इन इंडिया' को बल: यह समझौता भारत के विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित करेगा। ब्रिटिश कंपनियाँ भारत में उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करेंगी, जिससे 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' जैसे अभियान और मजबूत होंगे।

रणनीतिक और भू-राजनीतिक महत्व: वैश्विक मंच पर नई साझेदारी  

ब्रेग्ज़िट के बाद यू.के. की रणनीति: ब्रेग्ज़िट के बाद यू.के. अपनी आर्थिक और कूटनीतिक पहचान को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में मजबूत करना चाहता है। भारत, जो इस क्षेत्र का एक उभरता हुआ आर्थिक और रणनीतिक दिग्गज है, यू.के. के लिए एक आदर्श साझेदार है।  

भारत की वैश्विक कूटनीति: भारत की 'वसुधैव कुटुंबकम्' (विश्व एक परिवार है) की भावना इस समझौते में साफ झलकती है। यह समझौता भारत को पश्चिमी देशों के साथ अपने रिश्तों को और विविधतापूर्ण बनाने का मौका देता है, साथ ही उसकी रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करता है।  

सांस्कृतिक और तकनीकी जुड़ाव: यह समझौता केवल व्यापार तक सीमित नहीं है। यह दोनों देशों के बीच शिक्षा, अनुसंधान, और नवाचार में सहयोग को बढ़ावा देगा। भारतीय छात्रों के लिए यू.के. की यूनिवर्सिटीज़ और ब्रिटिश शोधकर्ताओं के लिए भारत की तकनीकी क्षमता नए अवसर लाएगी।

चुनौतियाँ: सावधानी बरतने की जरूरत  

कृषि और डेयरी क्षेत्र पर दबाव: यू.के. से सस्ते कृषि और डेयरी उत्पादों का आयात भारतीय किसानों के लिए चुनौती बन सकता है। भारत को अपने किसानों के हितों की रक्षा के लिए सख्त नियम लागू करने होंगे।  

डेटा और पर्यावरणीय मानक: डेटा सुरक्षा, श्रम नियम, और पर्यावरणीय मानकों पर सहमति बनाना आसान नहीं होगा। दोनों देशों को इन मुद्दों पर संतुलित और पारदर्शी नीतियाँ बनानी होंगी।  

घरेलू उद्योगों की सुरक्षा: भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह समझौता उसके स्थानीय विनिर्माण और सेवा क्षेत्र को नुकसान न पहुँचाए। सावधानीपूर्वक नीति और चरणबद्ध कार्यान्वयन इसकी कुंजी होगी।

निष्कर्ष: एक सुनहरे भविष्य की ओर

भारत-यू.के. मुक्त व्यापार समझौता केवल एक आर्थिक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि दो ऐतिहासिक साझेदारों के बीच विश्वास और महत्वाकांक्षा का प्रतीक है। यह भारत को वैश्विक आर्थिक मंच पर एक सशक्त और आत्मविश्वास से भरे खिलाड़ी के रूप में स्थापित करता है। यदि इस समझौते को बुद्धिमानी, पारदर्शिता, और समावेशी दृष्टिकोण के साथ लागू किया जाए, तो यह न केवल आर्थिक आँकड़ों में बल्कि रोजगार, नवाचार, और सामाजिक समृद्धि में भी क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। यह समझौता भारत और यू.के. को न केवल व्यापारिक साझेदार बनाता है, बल्कि एक ऐसी साझेदारी की नींव रखता है जो वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होगी।  

2-ऑपरेशन सिंदूर: आतंकवाद पर करारा प्रहार, शांति का नया संदेश

प्रस्तावना

भारत ने एक बार फिर अपनी अटल इच्छाशक्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति दृढ़ संकल्प को दुनिया के सामने रखा है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत जम्मू-कश्मीर (PoJK) में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर यह साफ कर दिया कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीति अब केवल शब्दों तक सीमित नहीं, बल्कि ठोस और सटीक कार्रवाई पर आधारित है। यह ऑपरेशन न सिर्फ सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि कूटनीति, मानवीय संवेदनाओं और क्षेत्रीय शांति के लिए भी गहरे निहितार्थ रखता है।  

1. ऑपरेशन की पृष्ठभूमि: क्यों जरूरी थी यह कार्रवाई?

पिछले कुछ महीनों में जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में तेजी, सीमा पार से घुसपैठ और हिंसक हमलों ने भारत की धैर्य की परीक्षा ली। खुफिया एजेंसियों ने पुख्ता सबूतों के साथ पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवादी संगठनों की साजिशों का खुलासा किया। ऐसे में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ कोई जल्दबाजी में लिया गया फैसला नहीं, बल्कि एक सुनियोजित और लक्षित सैन्य अभियान था, जिसका मकसद आतंक के गढ़ को ध्वस्त करना था। यह कार्रवाई भारत की उस नीति को रेखांकित करती है, जो कहती है: “आतंकवाद बर्दाश्त नहीं, जवाब जरूर मिलेगा।”

2. निशाने पर आतंक के आका

‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भारतीय वायुसेना और विशेष बलों ने नौ प्रमुख आतंकी ठिकानों को तबाह किया। ये ठिकाने लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे कुख्यात संगठनों के थे, जिनका नाम भारत के खिलाफ आतंकी हमलों से बार-बार जुड़ा है। चाहे 26/11 का मुंबई हमला हो, उरी का कायराना कृत्य हो या पुलवामा की दर्दनाक स्मृति—ये संगठन भारत की शांति के लिए खतरा बने हुए हैं। इस ऑपरेशन ने इनके प्रशिक्षण शिविरों और हथियारों के भंडार को नेस्तनाबूद कर एक साफ संदेश दिया: भारत अब आतंक को पनपने नहीं देगा।  

3. पाकिस्तान की बौखलाहट और सीमा पर तनाव

ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा (LoC) पर गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें तीन निर्दोष नागरिकों की जान गई और सात अन्य घायल हुए। यह प्रतिक्रिया पाकिस्तान की हताशा को दर्शाती है। भारत ने स्पष्ट किया कि उसकी कार्रवाई का निशाना आतंकी ढांचे थे, न कि पाकिस्तानी सेना। फिर भी, सीमा पर बढ़ता तनाव इस बात की याद दिलाता है कि सैन्य कार्रवाइयों के साथ-साथ कूटनीतिक संतुलन भी जरूरी है।  

4. मानवीय कोण: नागरिकों की पीड़ा और चुनौतियां

‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने आतंकवाद पर गहरी चोट की, लेकिन इसकी आंच सीमा पर बसे आम नागरिकों तक भी पहुंची। गोलीबारी और तनाव के बीच विस्थापन, डर और अनिश्चितता ने इन लोगों की जिंदगी को प्रभावित किया। यह ऑपरेशन हमें याद दिलाता है कि आतंकवाद का खात्मा जरूरी है, लेकिन इसके साथ ही नागरिकों की सुरक्षा और उनके जीवन को सामान्य बनाने के लिए दीर्घकालिक उपाय भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। शिक्षा, रोजगार और बुनियादी ढांचे का विकास ही वह आधार है, जो स्थायी शांति की नींव रख सकता है।  

5. वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति

भारत ने ऑपरेशन के तुरंत बाद अपनी स्थिति को दुनिया के सामने स्पष्ट किया: यह एक आत्मरक्षात्मक कार्रवाई थी, जिसका मकसद आतंकवाद को कुचलना था, युद्ध को भड़काना नहीं। भारत ने अंतरराष्ट्रीय नियमों और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत अपनी कार्रवाई को उचित ठहराया। प्रारंभिक प्रतिक्रियाओं में अमेरिका, फ्रांस और अन्य पश्चिमी देशों ने भारत के “आत्मरक्षा के अधिकार” का समर्थन किया। वहीं, कुछ देशों ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की। यह भारत की कूटनीतिक परिपक्वता को दर्शाता है कि वह सैन्य शक्ति और वैश्विक सहमति के बीच संतुलन बनाए रखने में सक्षम है।  

 भविष्य का रास्ता: ताकत के साथ संवाद की जरूरत

‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत की नई रणनीति का प्रतीक है—आतंकवाद के खिलाफ निष्क्रिय रुख की जगह अब सक्रिय और पूर्व-खतरनाक (प्री-एम्पटिव) कार्रवाइयां। लेकिन क्या यह रणनीति स्थायी समाधान दे सकती है? आतंकवाद की जड़ें केवल सैन्य कार्रवाइयों से नहीं मिट सकतीं। इसके लिए जरूरी है कश्मीर में सामाजिक-आर्थिक विकास, क्षेत्रीय सहयोग और पड़ोसी देशों के साथ सार्थक संवाद। भारत को अपनी सैन्य ताकत के साथ-साथ कूटनीतिक और मानवीय पहलुओं पर भी जोर देना होगा।  

निष्कर्ष

‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत की उस दृढ़ता का प्रतीक है, जो कहती है: आतंकवाद के खिलाफ न चुप्पी, न सिर्फ बयानबाजी, बल्कि ठोस कार्रवाई। यह ऑपरेशन न केवल आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने में सफल रहा, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को भी मजबूत किया। लेकिन असली जीत तभी होगी, जब सैन्य दृढ़ता के साथ-साथ कूटनीति, विकास और संवाद के रास्ते पर चलकर स्थायी शांति स्थापित की जाए। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का संदेश है—शांति के लिए ताकत और संवेदना दोनों जरूरी हैं।  

3-शीर्षक: चीन का एंटी-डंपिंग टैक्स: भारत के लिए चुनौती या नई राह?

प्रस्तावना

भारत और चीन के बीच व्यापारिक रिश्तों में एक बार फिर तनाव की लकीर खींच गई है। चीन ने भारत से आयात होने वाले साइपरमेथ्रिन (Cypermethrin) पर 48.4% से लेकर 166.2% तक का भारी-भरकम एंटी-डंपिंग टैक्स लगाने का ऐलान किया है। यह टैक्स अगले पांच साल तक लागू रहेगा। चीन का दावा है कि भारत से सस्ते दामों पर आने वाला साइपरमेथ्रिन उसके स्थानीय उद्योगों को नुकसान पहुंचा रहा है। लेकिन क्या यह केवल आर्थिक कदम है, या इसके पीछे कूटनीतिक मंशा भी छिपी है? यह लेख इस फैसले के पीछे की कहानी, इसके असर और भारत के सामने खुलने वाली राहों की पड़ताल करता है।  

1. साइपरमेथ्रिन: छोटा नाम, बड़ा महत्व

साइपरमेथ्रिन कोई साधारण रसायन नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली कीटनाशक है, जो फसलों को कीटों से बचाने में अहम भूमिका निभाता है। भारत इस रसायन का एक बड़ा उत्पादक और निर्यातक है, खासकर विकासशील देशों के लिए। चीन भी भारतीय साइपरमेथ्रिन का प्रमुख खरीदार रहा है। लेकिन अब यह टैक्स भारतीय निर्यातकों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। सवाल यह है: क्या भारत इस चुनौती को अवसर में बदल सकता है?  

2. एंटी-डंपिंग टैक्स: आखिर यह है क्या?

एंटी-डंपिंग टैक्स एक तरह का व्यापारिक हथियार है। जब कोई देश अपने उत्पादों को दूसरे देश में उनकी लागत से बेहद कम कीमत पर बेचता है, तो वहां के स्थानीय उद्योगों को नुकसान होता है। इसे रोकने के लिए आयातित माल पर अतिरिक्त शुल्क लगाया जाता है, जिसे एंटी-डंपिंग टैक्स कहते हैं। चीन का कहना है कि भारत का सस्ता साइपरमेथ्रिन उसके स्थानीय उत्पादकों को डुबो रहा है। लेकिन क्या यह टैक्स वाकई जरूरी था, या यह भारत को आर्थिक दबाव में लाने की रणनीति है?  

3. टैक्स के पीछे की कहानी

चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने अपनी जांच के बाद यह टैक्स लगाया। जांच में दावा किया गया कि भारतीय साइपरमेथ्रिन की कम कीमत ने चीनी उद्योगों को भारी नुकसान पहुंचाया। लेकिन इस फैसले के समय को देखें, तो यह संयोग नहीं लगता। भारत और चीन के बीच पहले से ही व्यापारिक और सीमा विवादों को लेकर तनाव है। भारत ने भी हाल के वर्षों में चीनी स्टील, रसायनों और इलेक्ट्रॉनिक्स पर एंटी-डंपिंग जांच शुरू की है। क्या चीन का यह कदम जवाबी कार्रवाई है? यह सवाल गहरा और विचारणीय है।  

4. भारत पर क्या होगा असर?  

निर्यात में रुकावट: चीन भारतीय साइपरमेथ्रिन का बड़ा बाजार है। इस टैक्स से भारतीय निर्यातकों को भारी नुकसान हो सकता है, क्योंकि उनकी कीमतें अब चीनी बाजार में प्रतिस्पर्धी नहीं रहेंगी।  

कंपनियों पर दबाव: इंडिया पेस्टिसाइड्स लिमिटेड जैसी कंपनियां, जो साइपरमेथ्रिन का उत्पादन करती हैं, पहले ही शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का सामना कर रही हैं। छोटे उत्पादकों के लिए यह संकट और गहरा सकता है।  

व्यापारिक तनाव: यह टैक्स भारत-चीन के पहले से ही जटिल व्यापारिक रिश्तों में और खटास डाल सकता है। दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन पहले ही भारत के पक्ष में नहीं है, और यह कदम असंतुलन को और बढ़ा सकता है।

5. भारत के पास क्या हैं विकल्प?

चीन का यह कदम भारत के लिए चुनौती तो है, लेकिन यह नए रास्ते भी खोलता है। भारत कुछ ठोस कदम उठतौर पर विचार कर सकता है:  

WTO में शिकायत: अगर भारत को लगता है कि चीन की जांच निष्पक्ष नहीं थी, तो वह विश्व व्यापार संगठन (WTO) में इस टैक्स को चुनौती दे सकता है। यह एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन इससे कूटनीतिक दबाव बनेगा।  

नए बाजारों की तलाश: भारत अपने साइपरमेथ्रिन के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे वैकल्पिक बाजारों की तलाश कर सकता है।  

घरेलू उपयोग और भंडारण: अतिरिक्त उत्पादन को भारतीय किसानों के लिए सस्ते दामों पर उपलब्ध कराया जा सकता है, जिससे कृषि क्षेत्र को फायदा हो।  

उत्पादन में विविधता: भारतीय कंपनियां नए कीटनाशकों या रसायनों के उत्पादन पर ध्यान दे सकती हैं, ताकि एक उत्पाद पर निर्भरता कम हो।

6. वैश्विक परिप्रेक्ष्य: व्यापार युद्ध की आहट?

चीन का यह कदम वैश्विक व्यापार में बढ़ते संरक्षणवाद (प्रोटेक्शनिज्म) का हिस्सा दिखता है। अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य देश भी हाल के वर्षों में एंटी-डंपिंग टैक्स जैसे उपायों का सहारा ले रहे हैं। भारत और चीन, जो दोनों ही उभरती अर्थव्यवस्थाएं हैं, अब इस वैश्विक व्यापार युद्ध के नए मोर्चे बन सकते हैं। भारत को अपनी रणनीति सावधानी से तैयार करनी होगी, ताकि वह आर्थिक और कूटनीतिक दोनों मोर्चों पर मजबूत रहे।  

निष्कर्ष

चीन का एंटी-डंपिंग टैक्स सिर्फ एक आर्थिक फैसला नहीं, बल्कि भारत-चीन के बीच गहरे कूटनीतिक और व्यापारिक तनाव का प्रतीक है। यह भारत के लिए अल्पकालिक नुकसान तो ला सकता है, लेकिन यह एक मौका भी है—नए बाजार तलाशने, घरेलू उद्योगों को मजबूत करने और वैश्विक मंच पर अपनी आवाज बुलंद करने का। भारत को इस चुनौती का जवाब रणनीतिक धैर्य और नवाचार के साथ देना होगा, ताकि वह न केवल इस टैक्स के असर को कम कर सके, बल्कि वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति को और मजबूत कर सके। यह समय है, जब भारत अपनी आर्थिक ताकत और कूटनीतिक चतुराई को एक साथ साबित करे। 

 4-प्रधानमंत्री मोदी का अंतरिक्ष सपना: 2035 में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन, 2040 तक चाँद पर तिरंगा

परिचय:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने Global Space Exploration Conference (GLEX) 2025 में अपने प्रेरणादायक संदेश के ज़रिए भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक ऐसा खाका पेश किया, जो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर देता है। उन्होंने 2035 तक 'भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन' (Bharatiya Antariksha Station) स्थापित करने और 2040 तक किसी भारतीय अंतरिक्ष यात्री को चाँद की सैर कराने का ऐलान किया। इतना ही नहीं, मंगल और शुक्र की खोज को लेकर भी भारत की योजनाएँ तैयार हैं। यह विज़न न केवल वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रतीक है, बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।

प्रमुख बिंदु:

1. 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन – आत्मनिर्भर भारत की उड़ान

प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की कि 2035 तक भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन अंतरिक्ष में तिरंगा लहराएगा। यह स्टेशन केवल एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला नहीं होगा, बल्कि भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान में दुनिया के अग्रणी देशों की कतार में ला खड़ा करेगा।  

यहाँ भारतीय वैज्ञानिक माइक्रोग्रैविटी में प्रयोग करेंगे, अंतरिक्ष से पृथ्वी का अध्ययन करेंगे और जैव चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में क्रांतिकारी खोज करेंगे।  

यह स्टेशन भारत को अंतरराष्ट्रीय सहयोग का एक नया मंच देगा, जैसा कि अमेरिका, रूस और चीन अपने अंतरिक्ष स्टेशनों के ज़रिए कर रहे हैं।  

यह भारत की आत्मनिर्भरता का प्रतीक होगा, जो स्वदेशी तकनीक और नवाचार पर आधारित होगा।

2. 2040 तक चाँद पर भारतीय – चंद्रमा पर तिरंगे का सपना

चंद्रयान-3 की शानदार सफलता ने भारत को चाँद पर अपनी छाप छोड़ने वाला देश बनाया। अब प्रधानमंत्री ने 2040 तक किसी भारतीय अंतरिक्ष यात्री को चाँद पर भेजने का लक्ष्य रखा है। यह मिशन ISRO के गगनयान कार्यक्रम का विस्तार है, जो भारत को मानव अंतरिक्ष मिशन में नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा।  

इस उपलब्धि के साथ भारत दुनिया का चौथा देश बन सकता है, जो अपने अंतरिक्ष यात्री को चंद्रमा पर भेजेगा।  

यह न केवल वैज्ञानिक उपलब्धि होगी, बल्कि हर भारतीय के लिए गर्व का पल होगा, जो हमें वैश्विक मंच पर और मजबूत बनाएगा।

3. मंगल और शुक्र की राह – भारत की नई अंतरिक्ष गाथा

प्रधानमंत्री ने साफ किया कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम चाँद तक सीमित नहीं है। मंगल और शुक्र भी हमारी नज़र में हैं।  

मंगलयान-1 की सफलता ने भारत को दुनिया भर में सम्मान दिलाया था। अब Mangalyaan-2 और Shukrayaan-1 जैसे मिशन सौरमंडल के रहस्यों को खोलने की दिशा में अगला कदम होंगे।  

ये मिशन न केवल वैज्ञानिक खोजों को बढ़ावा देंगे, बल्कि भारत की रणनीतिक ताकत को भी मजबूत करेंगे।  

ये परियोजनाएँ भारत को अंतरिक्ष विज्ञान और खगोलशास्त्र में वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाएँगी।

राष्ट्रीय और वैश्विक महत्व:  

राष्ट्रीय स्तर पर:  

यह विज़न भारत के युवाओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के क्षेत्र में प्रेरित करेगा।  

अंतरिक्ष उद्योग में नए रोज़गार के अवसर पैदा होंगे, जिससे अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।  

यह भारत की वैज्ञानिक सोच और आत्मविश्वास को नई ऊर्जा देगा।

वैश्विक स्तर पर:  

भारत पहले से ही किफायती और भरोसेमंद उपग्रह प्रक्षेपण के लिए जाना जाता है। यह विज़न भारत को अंतरिक्ष कूटनीति में और मजबूत बनाएगा।  

वैश्विक सहयोग के नए रास्ते खुलेंगे, जिससे भारत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष समुदाय में अपनी जगह और मज़बूत करेगा।

चुनौतियाँ और उनके समाधान:  

1. तकनीकी चुनौतियाँ

चुनौती: अंतरिक्ष स्टेशन और मानवयुक्त चंद्र मिशन के लिए अत्याधुनिक तकनीक और विशेषज्ञता चाहिए।

समाधान:  

NASA, ESA जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग।  

स्वदेशी स्टार्टअप्स और निजी कंपनियों जैसे Skyroot और Agnikul को बढ़ावा देना।  

दीर्घकालिक अनुसंधान और विकास में निवेश।

2. आर्थिक संसाधन

चुनौती: ऐसे बड़े मिशनों के लिए भारी धनराशि की ज़रूरत है, जो बजट पर दबाव डाल सकती है।

समाधान:  

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को अपनाना।  

उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष सेवाओं से होने वाली कमाई को पुनर्निवेश करना।  

कॉरपोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (CSR) फंडिंग को प्रोत्साहन देना।

3. मानव संसाधन की कमी

चुनौती: इन मिशनों के लिए विश्वस्तरीय वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और अंतरिक्ष यात्रियों की ज़रूरत है।

समाधान:  

विश्वविद्यालयों में अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक के पाठ्यक्रमों को बढ़ावा देना।  

ISRO और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना।  

युवाओं को अंतरिक्ष अनुसंधान में करियर बनाने के लिए प्रेरित करना।

4. अंतरिक्ष कचरा और पर्यावरणीय जोखिम

चुनौती: अंतरिक्ष मिशनों से अंतरिक्ष कचरे (space debris) की समस्या बढ़ रही है।

समाधान:  

सतत तकनीकों (sustainable technology) का विकास और उपयोग।  

पुराने उपग्रहों को हटाने (decommissioning) की नीतियाँ लागू करना।  

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष कचरा प्रबंधन मानकों का पालन करना।

5. वैश्विक प्रतिस्पर्धा

चुनौती: अमेरिका, चीन और अन्य देशों की तेज़ प्रगति भारत पर रणनीतिक दबाव डाल सकती है।

समाधान:  

भारत को अपनी तकनीकी संप्रभुता बनाए रखते हुए सहयोग और प्रतिस्पर्धा का संतुलन बनाना होगा।  

कम लागत और उच्च गुणवत्ता वाले प्रक्षेपणों के ज़रिए वैश्विक बाज़ार में अपनी जगह मज़बूत करना।

निष्कर्ष:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अंतरिक्ष विज़न भारत के लिए एक नई राह का प्रतीक है। यह केवल चाँद, मंगल या शुक्र तक पहुँचने की बात नहीं है, बल्कि भारत को एक आत्मनिर्भर, नवाचार से भरी और वैश्विक नेतृत्व वाली अंतरिक्ष शक्ति बनाने का सपना है। यह विज़न हर भारतीय को प्रेरित करता है कि हमारा देश न केवल धरती पर, बल्कि अंतरिक्ष की अनंत ऊँचाइयों में भी अपनी पहचान बनाएगा। यह भारत के उज्ज्वल भविष्य की शुरुआत है, जहाँ तिरंगा न केवल धरती पर, बल्कि चाँद और सितारों के बीच भी लहराएगा।  



क्रमशः...


Comments

Advertisement

POPULAR POSTS

China’s 2025 Mega Naval Deployment: Expanding Maritime Power in East Asian Waters

China's Maritime Power Projection in East Asian Waters: An Analysis of the 2025 Deployment Abstract दिसंबर 2025 में चीन ने पूर्वी एशियाई समुद्री क्षेत्रों में अपने अब तक के सबसे व्यापक नौसैनिक अभियान को अंजाम दिया, जिसमें 100 से अधिक नौसेना और कोस्ट गार्ड पोत शामिल थे। यह घटना, जिसे पहले रॉयटर्स ने रिपोर्ट किया, क्षेत्र में शक्ति-संतुलन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देती है। यह शोध-पत्र इस तैनाती के पैमाने, उद्देश्यों और संभावित सुरक्षा प्रभावों का विश्लेषण करता है। अध्ययन यह तर्क प्रस्तुत करता है कि यद्यपि इसे “नियमित प्रशिक्षण” के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन यह तैनाती चीन की ग्रे-ज़ोन रणनीति का हिस्सा है, जिसमें पारंपरिक सैन्य प्रदर्शन को कूटनीतिक दबाव के साथ मिश्रित कर बिना प्रत्यक्ष युद्ध में प्रवेश किए प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। Introduction इंडो-पैसिफिक क्षेत्र 21वीं सदी में सामरिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन चुका है। समुद्री क्षेत्रों पर नियंत्रण न केवल व्यापार और ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ा है, बल्कि यह महाशक्तियों के भू-राजनीतिक प्रभाव का भी मापक...

Declining Quality of India’s Legislative Process: Impact of Passing 70% Bills Without Committee Review in 2025

“भारत की घटती विधायी गुणवत्ता: 2025 में 70% विधेयक बिना समिति परीक्षण के पारित होने के प्रभाव” प्रस्तावना भारत की संसदीय प्रणाली विश्व की सबसे विशाल और बहुस्तरीय लोकतांत्रिक संरचनाओं में से एक है। तथापि, पिछले एक दशक में संसद की विधायी प्रक्रिया में एक चिंताजनक प्रवृत्ति उभरी है—विधेयकों को बिना विभागीय स्थायी समितियों (Departmentally Related Standing Committees – DRSCs) के परीक्षण के सीधे पारित करना। PRS Legislative Research के आंकड़े बताते हैं कि 16वीं लोकसभा (2014–2019) में जहाँ केवल 25% विधेयक बिना समिति परीक्षण के पारित हुए थे, वहीं 17वीं लोकसभा (2019–2024) में यह संख्या बढ़कर 60% हो गई। 18वीं लोकसभा के प्रारंभिक तीन सत्रों (जून 2024–अगस्त 2025) के दौरान यह आँकड़ा और बढ़कर 70% तक पहुँच गया। वर्ष 2025 के तीनों सत्रों (बजट, मानसून और शीतकालीन) के दौरान कुल 47 विधेयकों में से केवल 14 ही समिति को भेजे गए। यह प्रवृत्ति न केवल संख्यात्मक रूप से चिंताजनक है, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक विधिनिर्माण की गुणवत्ता, पारदर्शिता और जवाबदेही की मूलभूत संरचनाओं पर गंभीर प्रभाव छोड़ती है। स्थ...

Justice Suryakant Becomes the 53rd Chief Justice of India: A New Direction for the Judiciary and Key Constitutional Challenges

भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति सूर्य कांत : न्यायपालिका की नई दिशा का उद्घोष 24 नवंबर 2025 भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक नए अध्याय का आरंभ होगा, जब न्यायमूर्ति सूर्य कांत भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे। वे न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई के उत्तराधिकारी बनेंगे, जिनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 को समाप्त हुआ। न्यायमूर्ति गवई की विदाई न केवल एक संवैधानिक पदावनति का क्षण थी, बल्कि सामाजिक न्याय की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव भी—क्योंकि वे स्वतंत्र भारत के प्रथम बौद्ध और दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश रहे। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई : संवैधानिक साहस और सामाजिक न्याय की विरासत न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल कई दृष्टियों से ऐतिहासिक रहा। उन्होंने उन पीठों का नेतृत्व या सदस्यता निभाई, जिनके निर्णयों ने भारतीय संघवाद, लोकतांत्रिक जवाबदेही और व्यक्तिगत अधिकारों के विमर्श को गहराई से प्रभावित किया। अनुच्छेद 370 निर्णय संविधान पीठ के सदस्य के रूप में उन्होंने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त करने के केंद्र सरकार के निर्णय को संवैधानिक ठहराने ...

IAS Santosh Verma Controversy: How a Reservation Remark Turned Daughters into “Objects of Donation”

IAS संतोष वर्मा का विवादित बयान – जब आरक्षण की आड़ में बेटियों को “दान” की वस्तु बना दिया गया नमस्कार साथियों, कभी-कभी एक वाक्य इतना शक्तिशाली होता है कि वह पूरे समाज की धड़कनें बदल देता है। आईएएस संतोष वर्मा का हालिया बयान बिल्कुल ऐसा ही था—चिंगारी की तरह फेंका गया और पलक झपकते ही आग बन गया। उन्होंने कहा— “जब तक ब्राह्मण अपनी बेटी मेरे बेटे को दान नहीं देगा, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए।” इस एक वाक्य ने पूरे मध्यप्रदेश की राजनीति, समाज और प्रशासन को हिला दिया। सड़कें गरम, सोशल मीडिया उफान पर, और सरकार ने तत्काल कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित कर दिया। लेकिन इस विवाद के शोर में एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल दब गया— क्या अंतरजातीय विवाह वास्तव में सामाजिक बराबरी का सटीक पैमाना हैं? विवाद का संक्षिप्त लेकिन पूरा घटनाक्रम 23 नवंबर 2025 – भोपाल, अंबेडकर मैदान। अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी-कर्मचारी संघ (AJAKS) की बैठक में नए अध्यक्ष संतोष वर्मा भाषण दे रहे थे। आरक्षण पर बहस के बीच उन्होंने “रोटी-बेटी संबंध” का जिक्र किया—जो कई नेता पहले भी करते रहे हैं। लेकिन आगे जो कहा, वही विस...

Fatima Bosch Fernández and Miss Universe Controversy: A New Global Debate on Gender Respect and Dignity

फ़ातिमा बोश फ़र्नांडीज़ और मिस यूनिवर्स विवाद: गरिमा, लैंगिक सम्मान और वैश्विक विमर्श का नया अध्याय भूमिका मिस यूनिवर्स जैसी प्रतियोगिताएँ अक्सर ग्लैमर और मनोरंजन की सुर्खियों तक सीमित मानी जाती हैं, लेकिन वर्ष 2025 की विजेता फ़ातिमा बोश फ़र्नांडीज़ के इर्द-गिर्द उभरा घटनाक्रम इससे कहीं अधिक व्यापक सामाजिक संदेश देता है। केवल कुछ दिन पहले एक प्रभावशाली अधिकारी द्वारा कैमरे के सामने “ dumb ” कहकर उनका अपमान किया गया। किंतु परिणाम घोषित होते ही वही महिला—दृढ़, शांत और आत्मविश्वासी—वैश्विक मंच पर सौंदर्य से अधिक सम्मान और सहनशक्ति का प्रतीक बनकर उभरी। यह विवाद केवल एक मॉडल की व्यक्तिगत यात्रा नहीं है; यह लैंगिक गरिमा , सार्वजनिक भाषा की मर्यादा , कार्यस्थल में शक्ति असमानता , और महिला-सम्मान से जुड़ी व्यापक समस्याओं को उजागर करता है। UPSC के दृष्टिकोण से यह घटना सामाजिक-नैतिक मूल्यों , महिला अधिकारों , और सार्वजनिक संस्थानों की जवाबदेही जैसे बड़े विमर्शों से जुड़ी है। घटना का सार 16 नवंबर 2025 को आयोजित मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता के दौरान एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि फ़ातिमा “du...

Temple–Mosque Dispute: Path to Resolution or Escalation of Tensions?

मंदिर–मस्जिद विवाद: समाधान का मार्ग या तनाव का विस्तार? एक समग्र विश्लेषण परिचय भारतीय समाज में धार्मिक स्थलों को लेकर उत्पन्न होने वाले विवाद कोई नई बात नहीं हैं। इतिहास, आस्था और राजनीति—इन तीनों के संगम पर खड़े ऐसे मुद्दे अक्सर समाज को विचार-विमर्श और टकराव, दोनों की ओर ले जाते हैं। हाल ही में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक के.के. मुहम्मद ने एक इंटरव्यू में सुझाव दिया है कि धार्मिक विवादों को अयोध्या, मथुरा और ज्ञानवापी जैसे तीन स्थलों तक सीमित रखा जाए। उन्होंने ताजमहल के “हिंदू मूल” के दावों को पूरी तरह खारिज करते हुए चेताया कि नए और आधारहीन दावे सामाजिक तनाव को और बढ़ाएँगे। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश के कई हिस्सों में धार्मिक स्थलों को लेकर अदालती कार्यवाहियाँ जारी हैं और जनमत निरंतर विभाजित हो रहा है। यह लेख इसी पृष्ठभूमि में यह समझने का प्रयास करता है कि क्या और अधिक विवाद उठाना न्याय की ओर बढ़ना होगा या केवल तनाव को ही बढ़ाएगा। ऐतिहासिक संदर्भ भारत का इतिहास धार्मिक संरचनाओं के निर्माण–विध्वंस और पुनर्निर्माण की घटनाओं से भरा पड़ा...

DynamicGK.in: Rural and Hindi Background Candidates UPSC and Competitive Exam Preparation

डायनामिक जीके: ग्रामीण और हिंदी पृष्ठभूमि के अभ्यर्थियों के सपनों को साकार करने का सहायक लेखक: RITU SINGH भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी एक चुनौतीपूर्ण यात्रा है, खासकर उन अभ्यर्थियों के लिए जो ग्रामीण इलाकों से आते हैं या हिंदी माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। अंग्रेजी-प्रधान संसाधनों की भरमार में हिंदी भाषी छात्रों को अक्सर कठिनाई होती है। ऐसे में dynamicgk.in जैसी वेबसाइट एक वरदान साबित हो रही है। यह न केवल सामान्य ज्ञान (जीके) और समसामयिक घटनाओं पर केंद्रित है, बल्कि ग्रामीण और हिंदी पृष्ठभूमि के युवाओं के सपनों को साकार करने में विशेष रूप से सहायक भूमिका निभा रही है। इस लेख में हम समझेंगे कि यह प्लेटफॉर्म कैसे इन अभ्यर्थियों की मदद करता है। हिंदी माध्यम की पहुंच: भाषा की बाधा को दूर करना ग्रामीण भारत में अधिकांश छात्र हिंदी माध्यम से पढ़ते हैं, लेकिन अधिकांश प्रतियोगी परीक्षा संसाधन अंग्रेजी में उपलब्ध होते हैं। dynamicgk.in इस कमी को पूरा करता है। वेबसाइट का अधिकांश कंटेंट हिंदी में उपलब्ध है, जो हिंदी भाषी अभ्यर्थियों को सहज रूप से समझने में मद...

India’s Strong Economic Momentum: A Comprehensive Analysis of Q2 FY26 GDP Growth Amid Global Challenges

भारत की सुदृढ़ आर्थिक प्रगति: वैश्विक चुनौतियों के बीच Q2 FY26 की GDP वृद्धि का विश्लेषण भारत की अर्थव्यवस्था ने एक बार फिर अपनी अंतर्निहित मजबूती का परिचय दिया है। वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) की दूसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आंकड़े इस तथ्य को मजबूती से रेखांकित करते हैं कि वैश्विक अनिश्चितताओं—विशेषकर अमेरिकी व्यापार शुल्कों—के बावजूद भारत की विकास गति प्रभावशाली बनी हुई है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार, वास्तविक GDP वृद्धि 8.2% तक पहुँच गई, जो पिछले वर्ष की समान तिमाही के 5.6% और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 7.8% से स्पष्ट रूप से अधिक है। यह छह तिमाहियों में सर्वाधिक वृद्धि है, जो भारत की आर्थिक संरचना की सहनशीलता और नीति-निर्माण की तत्परता को दर्शाती है। क्षेत्रीय प्रदर्शन: विकास का आधारभूत ढाँचा Q2 FY26 की वृद्धि का स्रोत व्यापक और बहुआयामी रहा। विनिर्माण, निर्माण और सेवाओं—इन तीनों क्षेत्रों ने मिलकर विकास को न केवल मजबूत आधार दिया, बल्कि संतुलन भी सुनिश्चित किया। 1. विनिर्माण—स्वदेशी उत्पादन का उभार विनिर्माण क्षे...

Parasocial Relationships in the AI Era: Why Cambridge’s 2025 Word of the Year Signals a New Social Reality

पैरासोशल संबंधों का उदय—डिजिटल युग का नया सामाजिक संकट कैम्ब्रिज डिक्शनरी द्वारा वर्ष 2025 के लिए “parasocial” शब्द को वर्ड ऑफ द ईयर घोषित किया जाना मात्र भाषाई घटना नहीं, बल्कि हमारे समय के सामाजिक परिवर्तन का दस्तावेज़ है। यह उस युग की स्वीकृति है जहाँ मनुष्य का गहनतम संबंध किसी जीवित व्यक्ति से नहीं, बल्कि एक एल्गोरिदम या स्क्रीन पर दिखने वाली हस्ती से बन रहा है। एकतरफा घनिष्ठता की जड़ें 1956 में हॉर्टन और वोल ने पैरासोशलिटी को उस भ्रमपूर्ण संबंध के रूप में परिभाषित किया जहाँ दर्शक किसी मीडिया हस्ती के प्रति घनिष्ठता महसूस करता है, जबकि वह हस्ती उससे पूर्णतः अनजान रहती है। तब यह अनुभव रेडियो और टीवी तक सीमित था—एकतरफा, पर नियंत्रित। परन्तु आज यह अवधारणा नियंत्रण से बाहर जा चुकी है। AI ने पैरासोशल संबंधों को नया रुप दिया कैम्ब्रिज डिक्शनरी ने इस वर्ष एक साहसिक कदम उठाते हुए पैरासोशल की परिभाषा में AI और बड़े भाषा मॉडल्स के साथ बनने वाले भावनात्मक लगाव को भी शामिल कर लिया है। यह निर्णय बताता है कि तकनीक अब केवल उपकरण नहीं, बल्कि रिश्तों का विकल्प बन चुकी है। Replika, Charact...

UPSC 2024 Topper Shakti Dubey’s Strategy: 4-Point Study Plan That Led to Success in 5th Attempt

UPSC 2024 टॉपर शक्ति दुबे की रणनीति: सफलता की चार सूत्रीय योजना से सीखें स्मार्ट तैयारी का मंत्र लेखक: Arvind Singh PK Rewa | Gynamic GK परिचय: हर साल UPSC सिविल सेवा परीक्षा लाखों युवाओं के लिए एक सपना और संघर्ष बनकर सामने आती है। लेकिन कुछ ही अभ्यर्थी इस कठिन परीक्षा को पार कर पाते हैं। 2024 की टॉपर शक्ति दुबे ने न सिर्फ परीक्षा पास की, बल्कि एक बेहद व्यावहारिक और अनुशासित दृष्टिकोण के साथ सफलता की नई मिसाल कायम की। उनका फोकस केवल घंटों की पढ़ाई पर नहीं, बल्कि रणनीतिक अध्ययन पर था। कौन हैं शक्ति दुबे? शक्ति दुबे UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2024 की टॉपर हैं। यह उनका पांचवां  प्रयास था, लेकिन इस बार उन्होंने एक स्पष्ट, सीमित और परिणामोन्मुख रणनीति अपनाई। न उन्होंने कोचिंग की दौड़ लगाई, न ही घंटों की संख्या के पीछे भागीं। बल्कि उन्होंने “टॉपर्स के इंटरव्यू” और परीक्षा पैटर्न का विश्लेषण कर अपनी तैयारी को एक फोकस्ड दिशा दी। शक्ति दुबे की UPSC तैयारी की चार मजबूत आधारशिलाएँ 1. सुबह की शुरुआत करेंट अफेयर्स से उन्होंने बताया कि सुबह उठते ही उनका पहला काम होता था – करेंट अफेयर्...