Israel’s Covert Support to Syrian Druze Militias: Strategy, Security Interests, and Regional Implications
इज़राइल की सीरियाई द्रूज़ मिलिशिया को गुप्त सहायता: क्या राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने की रणनीति?
भूमिका
दिसंबर 2024 में बशर अल-असद शासन के पतन के बाद सीरिया एक नए राजनीतिक संक्रमण काल में प्रवेश करता है। हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के नेता अहमद अल-शारा (अबू मोहम्मद अल-जोलानी) के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार देश की प्रशासनिक एकजुटता बहाल करने का प्रयास कर रही है। हालांकि, दक्षिणी सीरिया—विशेषकर सुवैदा (जेबल अल-द्रूज़)—में बढ़ती अशांति और इस क्षेत्र में इज़राइल की कथित गुप्त भूमिका इस प्रक्रिया को जटिल बना देती है।
वाशिंगटन पोस्ट (23 दिसंबर 2025) की एक खोजी रिपोर्ट के अनुसार, इज़राइल ने सुवैदा क्षेत्र से जुड़ी द्रूज़ मिलिशियाओं को हथियार, बॉडी आर्मर, गोला-बारूद और वित्तीय सहायता प्रदान की। इस सहायता का बड़ा हिस्सा उस “मिलिट्री काउंसिल” को मिला, जो असद शासन के पतन से पहले ही स्थानीय सुरक्षा संरचना के रूप में उभर रही थी। रिपोर्ट का केंद्रीय दावा यह है कि इस कदम के पीछे इज़राइल का उद्देश्य सीरिया की राष्ट्रीय एकता को कमजोर करना तथा नई सरकार के समेकन प्रयासों को चुनौती देना था।
द्रूज़ समुदाय: इतिहास, पहचान और भू-राजनीतिक संदर्भ
द्रूज़ समुदाय 11वीं शताब्दी में इस्माइली-शिया परंपरा से विकसित एक विशिष्ट धार्मिक समूह है। आज यह समुदाय मुख्यतः सीरिया, लेबनान और इज़राइल में फैला है।
- इज़राइल में द्रूज़ नागरिक सेना में सेवा करते हैं और राज्य के साथ उनका औपचारिक सामाजिक-राजनीतिक अनुबंध मौजूद है।
- सीरिया में उनका प्रमुख केंद्र सुवैदा प्रांत है, जहाँ स्थानीय परंपराओं, सामुदायिक नेतृत्व और सांस्कृतिक स्वायत्तता की मजबूत जड़ें हैं।
असद शासन के काल में द्रूज़ समुदाय ने अपेक्षिक रूप से राजसत्ता-समर्थक रुख अपनाया, क्योंकि अलावी नेतृत्व वाली सत्ता संरचना ने उन्हें सुरक्षा और पहचान का आश्वासन दिया। किंतु शासन परिवर्तन के बाद, नई इस्लामवादी-उन्मुख अंतरिम सरकार के प्रति उनके भीतर अविश्वास, सुरक्षा चिंताएँ और सांस्कृतिक आशंकाएँ गहराने लगीं। इसी पृष्ठभूमि में स्थानीय मिलिशियाओं का सशक्तिकरण और बाहरी हस्तक्षेप का प्रश्न उभरता है।
इज़राइल की सहायता: स्वरूप, माध्यम और समय-क्रम
रिपोर्टों के अनुसार इज़राइल द्वारा दी गई सहायता के कुछ प्रमुख आयाम निम्न रहे—
- 17 दिसंबर 2024 को इज़राइली हेलीकॉप्टरों से मानवीय सामग्री के साथ हथियार-किट्स और बॉडी आर्मर गिराए गए।
- अप्रैल 2025 में हिंसक झड़पों के दौरान समर्थन अपने चरम पर पहुँचा।
- अगस्त 2025 के बाद हथियारों की आपूर्ति कम हुई, परंतु नॉन-लेथल सहायता और नियमित भुगतान जारी रहे।
- फंडिंग के कुछ हिस्से reportedly सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज (SDF) के माध्यम से पहुँचे।
- प्रयुक्त हथियारों में से कुछ उन समूहों से जब्त बताए गए जो पहले हमास या हिज़्बुल्लाह से जुड़े थे।
यह प्रक्रिया केवल सैन्य या सुरक्षा आयाम तक सीमित नहीं थी। इज़राइल के द्रूज़ नेता और सीरियाई द्रूज़ प्रतिनिधि, जैसे तारेक अल-शौफी, एक व्यापक सामुदायिक सुरक्षा-दृष्टिकोण पर काम कर रहे थे। इसी काल में स्वायत्त “द्रूज़ क्षेत्र” के विचार ने भी आकार लेना शुरू किया, जिसे कुछ पश्चिमी नीति-निर्माताओं के समक्ष अनौपचारिक रूप से रखा गया।
रणनीतिक उद्देश्य: संरक्षण या विभाजन?
इज़राइल के इस हस्तक्षेप को दो परिप्रेक्ष्यों में समझा जा सकता है—
1. मानवीय-सामुदायिक संरक्षण का तर्क
इज़राइल के भीतर द्रूज़ समुदाय अपने सीरियाई हमस्वरों के साथ ऐतिहासिक-सांस्कृतिक जुड़ाव रखता है।
- सीमा पार हिंसा और उथल-पुथल के बीच सामुदायिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की भावना
- “नैतिक दायित्व” और सीमा-सुरक्षा चिंताओं का संयोजन
2. भू-रणनीतिक संतुलन-नीति
इज़राइल के सुरक्षा दृष्टिकोण से—
- एक मजबूत, केंद्रीकृत और वैचारिक रूप से शत्रुतापूर्ण सीरिया उसकी सीमा-सुरक्षा के लिए जोखिम माना जाता है
- क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन को विखंडित या नियंत्रित रखना एक रक्षात्मक रणनीति के रूप में देखा जा सकता है
यह रुख औपनिवेशिक कालीन “डिवाइड-एंड-रूल” रणनीतियों की याद दिलाता है, हालांकि इज़राइल दक्षिण लेबनान आर्मी जैसे अनुभवों से सतर्क दिखता है और पूर्ण प्रॉक्सी-स्टेट मॉडल से दूरी बनाए रखता है।
संभावित क्षेत्रीय प्रभाव
इस प्रकार की गुप्त सहायता के व्यापक परिणाम बहुस्तरीय हो सकते हैं—
- राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव – द्रूज़ स्वायत्तता की मांगों के उभरने से अन्य अल्पसंख्यक भी समान आग्रह उठा सकते हैं।
- संघर्ष-क्षेत्र का विस्तार – दक्षिणी सीरिया एक स्थायी अस्थिरता-क्षेत्र में बदल सकता है।
- महाशक्ति प्रतिस्पर्धा – तुर्की, अमेरिका और रूस के पहले से सक्रिय प्रभाव-क्षेत्रों में नई जटिलताएँ जुड़ सकती हैं।
- इज़राइल-सीरिया संबंधों में दीर्घकालिक तनाव – विश्वास-संकट और सीमाई असुरक्षा और गहरी हो सकती है।
निष्कर्ष
इज़राइल की द्रूज़ मिलिशियाओं को दी गई कथित सहायता को केवल एक-आयामी सुरक्षा प्रतिक्रिया के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह मानवीय सरोकार, सामुदायिक दबाव, सीमा-सुरक्षा और भू-रणनीतिक गणना—इन सभी का सम्मिश्रण है। किंतु यह भी सत्य है कि ऐसा हस्तक्षेप सीरिया के राजनीतिक पुनर्गठन और राष्ट्रीय एकता के प्रयासों के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी करता है।
यदि यह नीति जारी रहती है, तो दक्षिणी सीरिया एक दीर्घकालिक भू-राजनीतिक विवाद-क्षेत्र में परिवर्तित हो सकता है—जहाँ संरक्षण और हस्तक्षेप के बीच की रेखाएँ धुंधली पड़ जाती हैं। आने वाले समय में यह प्रश्न और प्रासंगिक होगा कि—
क्या यह सहायता द्रूज़ सुरक्षा को सुदृढ़ करेगी, या सीरिया के फिर से विभाजन का आधार बनेगी?
With Washington post Inputs
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