दक्षिण कोरिया की परमाणु-संचालित पनडुब्बी महत्वाकांक्षा: एशिया में बदलता सामरिक समीकरण और एक उभरती जलमग्न हथियार दौड़
प्रस्तावना
इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र आज वैश्विक सामरिक प्रतिस्पर्धा का प्रमुख केंद्र बन चुका है। दक्षिण चीन सागर से लेकर जापान के समुद्री सीमांत तक शक्ति-संतुलन लगातार बदल रहा है। इसी पृष्ठभूमि में दक्षिण कोरिया का परमाणु-संचालित पनडुब्बियों (SSN) के अधिग्रहण की दिशा में निर्णायक कदम उठाना एशिया की सुरक्षा संरचना में एक गहरा मोड़ दर्शाता है। दिसंबर 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दी गई स्पष्ट सहमति केवल तकनीकी सहयोग की अनुमति नहीं है—यह एक भू-राजनीतिक संदेश है कि अमेरिका अब अपने सहयोगियों को अधिक आक्रामक और स्वतंत्र रक्षा क्षमता विकसित करने देना चाहता है।
यह निर्णय उन सभी नीतिगत बाधाओं को समाप्त करता है जो 1970 के दशक से वाशिंगटन की “नॉन-प्रोलिफ़रेशन फर्स्ट” नीति के कारण सियोल को रोकती आई थीं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: अधूरी महत्वाकांक्षाओं से पुनर्जीवित आकांक्षाओं तक
दक्षिण कोरिया की परमाणु-संचालित पनडुब्बी की आकांक्षा नई नहीं है।
1974 में तत्कालीन राष्ट्रपति पार्क चुंग-ही ने उत्तर कोरिया के बढ़ते परमाणु ख़तरे के जवाब में एक गुप्त परमाणु हथियार एवं परमाणु पनडुब्बी कार्यक्रम शुरू किया था। किंतु अमेरिका ने कड़े कूटनीतिक दबाव के माध्यम से इसे रोक दिया। शीत युद्ध के समय अमेरिकी नीति दो बातों पर आधारित थी—
- कोरियाई प्रायद्वीप में परमाणु हथियारों का प्रसार न होने देना,
- दक्षिण कोरिया को पारंपरिक हथियारों तक सीमित रखना ताकि सामरिक स्थिरता बनी रहे।
परिणामस्वरूप, सियोल को जर्मनी से आयातित Type 209 पनडुब्बियों और बाद में घरेलू विकसित KSS-III जैसे डीज़ल-इलेक्ट्रिक प्लेटफ़ॉर्म तक सीमित रहना पड़ा।
2025 में पहली बार यह स्थिति बदली है—और वह भी अमेरिका की स्वैच्छिक नीति-परिवर्तन के कारण।
ट्रंप प्रशासन का नीति-परिवर्तन: क्या बदला और क्यों?
डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में इंडो-पैसिफ़िक की सामरिक प्राथमिकताएँ स्पष्ट रूप से पुनर्परिभाषित हुई हैं। वाशिंगटन का यह यू-टर्न तीन अहम कारणों पर आधारित है—
1. उत्तर कोरिया की बढ़ती पनडुब्बी-बैलिस्टिक क्षमता
प्योंगयांग लगातार अपनी SLBM क्षमता का विस्तार कर रहा है। इसकी नई “सिन्पो क्लास” पनडुब्बियाँ क्षेत्रीय स्तर पर दक्षिण कोरिया की दूसरी हड़ताल (second strike) क्षमता को चुनौती दे रही हैं।
2. चीन का उभरता पानी के नीचे साम्राज्य
चीन की Type 093B और अगली पीढ़ी की Type 095 SSN तकनीक अधिक शांत, तेज़ और टिकाऊ होने का दावा करती है। ये प्लेटफ़ॉर्म दक्षिण चीन सागर में चीन के ‘near-seas dominance’ को मजबूत कर रहे हैं।
3. “Armed Allies Doctrine” का उदय
ट्रंप की नई सुरक्षा रणनीति यह मानती है कि अमेरिका अपने सहयोगियों को अधिक सक्षम और स्वायत्त बनाए, ताकि चीन और उत्तर कोरिया के विरुद्ध first-line deterrence का निर्माण हो सके।
इन तीनों कारकों ने मिलकर दक्षिण कोरिया की SSN परियोजना को हरी झंडी दिलाई है।
दक्षिण कोरिया को मिलने वाले सामरिक लाभ
परमाणु-संचालित पनडुब्बी केवल एक हथियार प्लेटफ़ॉर्म नहीं, बल्कि एक रणनीतिक प्रतिरोध (strategic deterrent) है। इसके प्रमुख लाभ निम्न हैं—
1. लंबे समय तक पानी के भीतर रहने की क्षमता
डीज़ल पनडुब्बियों को हर 10–14 दिन में सतह पर आकर बैटरी चार्ज करनी पड़ती है। SSN बिना किसी बाधा के महीनों तक जलमग्न रह सकती हैं। यह उन्हें अप्रत्याशितता और गोपनीयता का सर्वोच्च स्तर देता है।
2. 30–35 नॉट की उच्च गति
उत्तर कोरिया और चीन की ASW क्षमताओं से बचना, गश्त क्षेत्र बदलना और लक्ष्य क्षेत्र में त्वरित पहुंच—इन सभी क्षेत्रों में गति निर्णायक होती है।
3. मिशन-बहुलता और VLS क्षमता
दक्षिण कोरिया की प्रस्तावित SSN में 10–12 बैलिस्टिक/क्रूज़ मिसाइलें ले जाने की संभावना है, जिनसे
- भूमि-आधारित ठिकानों पर प्रहार,
- चीनी समुद्री ठिकानों की निगरानी,
- उत्तर कोरिया की मिसाइल प्रणालियों पर प्रतिरोध
संभव होगा।
4. “Persistent Presence” की क्षमता
जापानी सागर, पीला सागर और दक्षिण चीन सागर में निरंतर गश्त सियोल को क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरण में एक नया स्थान दिलाएगी।
क्षेत्रीय प्रभाव: एशिया की जलमग्न सुरक्षा संरचना में उथल-पुथल
1. उत्तर कोरिया: रणनीतिक असंतुलन का भय
सियोल की SSN क्षमता उत्तर कोरिया की कमजोर पनडुब्बी-बैलिस्टिक प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती है। प्योंगयांग का दूसरा प्रहार (second-strike) क्षमता का दावा अब कमज़ोर दिखेगा।
2. चीन: पूर्वी और दक्षिण चीन सागर में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी
चीन की SSN और SSBN गश्त अब दक्षिण कोरियाई SSN की निगरानी और अवरोधन क्षमताओं के सामने कम सुरक्षित रहेंगी। इससे बीजिंग की sea denial और sea control रणनीतियाँ प्रभावित होंगी।
3. जापान: परमाणु पनडुब्बियों की बहस तेज़
जापान पहले से ही अपनी हाइड्रोजन-फ्यूल या परमाणु-संचालित पनडुब्बियों पर विचार कर रहा है। सियोल का निर्णय टोक्यो में इस बहस को और तीव्र करेगा।
4. ऑस्ट्रेलिया: AUKUS क्लब का विस्तार?
AUKUS के बाद ऑस्ट्रेलिया को SSN तकनीक मिलनी तय है। अब दक्षिण कोरिया का इसमें शामिल होना एक “नया इंडो-पैसिफ़िक सबमरीन गठबंधन” बना सकता है।
जोखिम, आलोचनाएँ और वैश्विक चिंताएँ
1. NPT और परमाणु प्रसार का जोखिम
यद्यपि दक्षिण कोरिया परमाणु हथियार नहीं बनाएगा, परंतु SSN बनाने के लिए उसे उच्च-समृद्ध यूरेनियम (HEU) तकनीक की आवश्यकता होगी। यह कदम परमाणु प्रसार की सीमा पर खड़ा प्रतीत होता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चिंता बढ़ी है।
2. चीन और रूस की कड़ी प्रतिक्रिया
बीजिंग और मॉस्को ने इस कदम को “क्षेत्रीय हथियार दौड़ का सूत्रपात” बताया है। उनकी नजर में यह AUKUS की तरह एक और सामरिक गठबंधन का संकेत हो सकता है।
3. IAEA निगरानी और कोरियाई प्रायद्वीप पर तनाव
IAEA अब दक्षिण कोरिया के परमाणु कार्यक्रम की अधिक कठोर जांच करेगा, जिससे सियोल-प्योंगयांग संबंधों में नया तनाव जुड़ सकता है।
निष्कर्ष
दक्षिण कोरिया की SSN महत्वाकांक्षा अब केवल एक रणनीतिक विचार नहीं, बल्कि एक उभरती सैन्य वास्तविकता है। ट्रंप प्रशासन के समर्थन ने इस परियोजना को “असंभव” से “अनिवार्य” के चरण में ला दिया है।
2036–38 तक पहले दक्षिण कोरियाई SSN के जलावतरण का अनुमान है, और इसके साथ ही पूर्वी एशिया के समुद्री गहराइयों में शक्ति-संतुलन स्थायी रूप से बदल जाएगा।
इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र आने वाले दशक में केवल समुद्री सतह पर ही नहीं, बल्कि समुद्र की गहराइयों में भी महान शक्ति प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा बनने जा रहा है—जहाँ दक्षिण कोरिया की नई परमाणु-संचालित पनडुब्बियाँ इस बदलते सामरिक शतरंज की प्रमुख खिलाड़ी होंगी।
With Reuters Inputs
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