Pope Leo XIV’s Lebanon Visit: A New Era of Peace, Interfaith Dialogue, and Middle East Religious Diplomacy
पोप लियो XIV का लेबनान दौरा: मध्य पूर्व में धार्मिक कूटनीति का पुनरुत्थान
सारांश
यह लेख 30 नवंबर से 2 दिसंबर 2025 के बीच संपन्न पोप लियो XIV के लेबनान दौरे का विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जो आधुनिक धार्मिक कूटनीति के परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण अध्याय माना जा रहा है। मध्य पूर्व के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संकटों के बीच, पोप की यह यात्रा न केवल लेबनान के लिए एक नैतिक समर्थन थी, बल्कि वैश्विक शांति, धार्मिक संवाद और मानवीय मूल्यों के संरक्षण की दिशा में एक व्यापक संदेश भी थी। लेख में इस यात्रा का ऐतिहासिक संदर्भ, राजनीतिक-धार्मिक आयाम, सांकेतिक यात्रा-स्थल, तथा इसके परिणामों का विश्लेषण किया गया है।
1. प्रस्तावना
धार्मिक नेतृत्व इतिहास में अनेक बार वैश्विक संघर्षों के मध्य शांति के स्वर के रूप में उभरा है। 2025 में कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च पद पर निर्वाचित पहले अमेरिकी मूल के पोप, लियो XIV, इसी परंपरा के वाहक प्रतीत होते हैं। अपनी पोंटिफिकेट की प्रारंभिक अवस्था में ही तुर्की और लेबनान जैसे संवेदनशील देशों का चयन करना इस बात का संकेत था कि उनका नेतृत्व केवल धार्मिक सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह मानवता के समक्ष उपस्थित व्यापक संकटों को संबोधित करने का प्रयास होगा।
लेबनान में उनका तीन दिवसीय प्रवास एक बहुआयामी संदेश समेटे हुए था—यह यात्रा उस क्षेत्र में की गई जहाँ आर्थिक पतन, राजनीतिक अस्थिरता, और ईसाई पलायन जैसी समस्याएँ गंभीर सामाजिक तनाव पैदा कर चुकी हैं। ऐसे संदर्भ में यह दौरा, आशा के एक नए अध्याय की तरह, स्थानीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण था।
2. लेबनान का संकट-परिदृश्य और उसके निहितार्थ
लेबनान अपने धार्मिक विविधतापूर्ण चरित्र के कारण लंबे समय से "मध्य पूर्व का संदेश" (Message of the Middle East) कहलाता है। देश की पहचान 18 आधिकारिक धार्मिक संप्रदायों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर आधारित है, परंतु 2019 के वित्तीय संकट, 2020 के बेरूत बंदरगाह विस्फोट, और इजरायल–हिजबुल्लाह तनाव ने इस संतुलन को अस्थिर कर दिया है।
ईसाई समुदाय लगातार पलायन का सामना कर रहा है, जबकि दक्षिणी क्षेत्रों में सैन्य तनाव और हवाई हमलों का भय जनजीवन पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। इसी पृष्ठभूमि में पोप लियो XIV का आगमन अनेक समुदायों द्वारा ‘आशा का क्षण’ माना गया।
3. यात्रा का कार्यक्रम: अर्थपूर्ण प्रतीकवाद और मानवीय दृष्टि
3.1 राजनीतिक नेतृत्व से वार्ता
बेरूत में आगमन पर पोप का स्वागत राष्ट्रपति जोसेफ आउन तथा अन्य शीर्ष राजनैतिक अधिकारियों द्वारा किया गया। सरकार, संसद और राजनयिक समुदाय से उनकी मुलाकातें लेबनान की स्थिरता के प्रति वेटिकन की चिंता तथा संवाद-आधारित समाधान की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा:
“शांति केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि एक साहसिक विकल्प है—भय और प्रतिशोध से ऊपर उठने का निर्णय।”
इन वार्ताओं में हिजबुल्लाह के वरिष्ठ सांसद मोहम्मद राद की उपस्थिति विशेष महत्व रखती है, जो धार्मिक और राजनीतिक वर्गों के बीच संवाद के नए आयाम को रेखांकित करती है।
3.2 धार्मिक स्थलों और समुदायों से सहभागिता
1 दिसंबर को अन्नाया स्थित सेंट चारबेल मक़लूफ मठ की यात्रा आध्यात्मिक प्रतीकवाद से परिपूर्ण थी। संत चारबेल लेबनानी मरोनाइट परंपरा के एक प्रमुख सन्त हैं, जिनका जीवन तप और करुणा का प्रतीक है। उनकी समाधि पर प्रार्थना करते हुए पोप ने युवाओं को संत के समर्पित जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया।
इसके उपरांत बकरके में मरोनाइट पितृसत्ता के समक्ष युवा समूहों को संबोधित करते हुए उन्होंने संप्रदायिक विभाजनों के पार सामुदायिक जिम्मेदारी और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
हारिसा स्थित हमारी लेडी ऑफ लेबनान तीर्थस्थल पर पादरियों और चर्च प्रशासन से की गई वार्ताएँ लेबनानी ईसाइयों के मनोबल को ऊँचा उठाने का प्रयास थीं।
3.3 मानवीय आयाम: विकलांगता और पीड़ा के बीच करुणा
अंतिम दिन पोप द्वारा मध्य पूर्व के सबसे बड़े मानसिक विकलांगता केंद्र—डे ला क्रॉइक्स अस्पताल—का भ्रमण उनकी मानवीय संवेदना का सशक्त उदाहरण है। विकलांग बच्चों से मुलाकात कर उन्होंने ‘दया’ को धार्मिक और सामाजिक दायित्व के रूप में पुनर्परिभाषित किया।
यात्रा की पराकाष्ठा 2020 में हुए बेरूत बंदरगाह विस्फोट स्थल पर मौन प्रार्थना थी—एक ऐसा क्षण जिसने राष्ट्रीय स्मृति में गहरे घावों को फिर से उजागर किया, लेकिन साथ ही उपचार की दिशा में सामूहिक संकल्प का संदेश दिया।
4. मुख्य संदेश: शांति, संवाद और करुणा के वैश्विक आयाम
पोप लियो XIV के भाषणों में तीन प्रमुख तत्व उभर कर आए:
4.1 संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में शांति की अनिवार्यता
इजरायल-लेबनान तनाव की पृष्ठभूमि में पोप ने स्पष्ट किया कि युद्ध केवल विनाश को जन्म देता है। उन्होंने वैश्विक समुदाय को चेतावनी दी कि आधुनिक संघर्ष “मानवता के भविष्य के लिए सीधा खतरा” बन चुके हैं।
4.2 धार्मिक विविधता के मध्य संवाद की आवश्यकता
उन्होंने लेबनान की मिश्रित धार्मिक संरचना को “सांस्कृतिक और धार्मिक संगम का उदाहरण” बताते हुए कहा कि लेबनान केवल एक देश नहीं, बल्कि सहअस्तित्व का संदेश है। द्रुज नेता शेख सामी अबी अल-मुना ने इस संदेश को “आशा की चमक” कहा।
4.3 युवाओं और हाशिये पर खड़े समुदायों के लिए सहानुभूति
संत चारबेल के जीवन को युवाओं के लिए प्रेरणा और विकलांग व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति को समाज की नैतिक जिम्मेदारी बताते हुए पोप ने करुणा-आधारित नेतृत्व को प्रमुखता दी।
5. निष्कर्ष
लेबनान की त्रासदी—आर्थिक पतन, सामाजिक विखंडन और राजनीतिक जड़ता—के बीच पोप लियो XIV की यह यात्रा एक नैतिक हस्तक्षेप थी। हालांकि सुरक्षा कारणों से दक्षिणी क्षेत्रों की यात्रा न कर पाने पर कुछ समुदायों में निराशा अवश्य दिखाई दी, परंतु समग्र रूप से यह दौरा लेबनान की आत्मा को पुनर्जीवित करने वाला माना गया।
यह यात्रा इस विचार को पुनर्स्थापित करती है कि धार्मिक नेतृत्व, राजनीतिक सीमाओं के पार, शांति और मानवीय गरिमा को प्रोत्साहित करने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। भविष्य में यह कूटनीतिक पहल न केवल मध्य पूर्व, बल्कि वैश्विक धार्मिक-राजनीतिक परिदृश्य को नई दिशा प्रदान कर सकती है।
With Reuters Inputs
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