भारत–रूस द्विपक्षीय संबंधों का नया अध्याय: हैदराबाद हाउस वार्ता और सात समझौतों का बहुआयामी विश्लेषण
परिचय
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कुछ साझेदारियाँ समय की कसौटी पर खरी उतरती हैं—भारत और रूस का संबंध उन्हीं में से एक है। शीत युद्ध के तनावपूर्ण दौर से लेकर वैश्विक शक्ति-संतुलन के वर्तमान परिवर्तनों तक, दोनों देशों ने एक-दूसरे का साथ निभाया है। 5 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई वार्ता उन समानताओं और रणनीतिक विश्वास की पुनर्पुष्टि है, जिन पर यह संबंध खड़ा है। सात नए समझौतों पर हस्ताक्षर कर भारत और रूस ने न केवल अपने पारंपरिक सहयोग को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला, बल्कि वैश्विक मल्टी-पोलैरिटी के दौर में मजबूत साझेदारी का संकेत भी दिया।
यह लेख इन समझौतों के प्रासंगिक आयामों, भू-राजनीतिक निहितार्थों, आर्थिक परिणामों और भारत–रूस संबंधों के भविष्य का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: सात दशक की रणनीतिक संगति
भारत–रूस संबंधों की मजबूत नींव ऐतिहासिक घटनाओं में निहित है।
- 1971 का भारत–सोवियत मैत्री संधि और संयुक्त राष्ट्र में सोवियत समर्थन ने मित्रता को स्थायी दिशा दी।
- वर्ष 2000 में “रणनीतिक साझेदारी” और 2010 में “विशेष व विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” ने संबंधों को औपचारिक रूप से उच्चतम स्तर पर पहुंचाया।
- रक्षा, अंतरिक्ष, ऊर्जा और तकनीकी सहयोग में रूस भारत का पारंपरिक भागीदार रहा है — एस-400 प्रणाली, ब्रह्मोस मिसाइल, और परमाणु ऊर्जा संयंत्र इसका उदाहरण हैं।
यूक्रेन संकट और पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस के प्रति संतुलित कूटनीति अपनाई है। पुतिन और मोदी के बीच दो दशक में 20+ से अधिक शिखर वार्ताएँ इस विश्वासपूर्ण संबंध को और रेखांकित करती हैं।
हैदराबाद हाउस वार्ता: एजेंडा, संवाद और कूटनीतिक संकेत
वार्ता में दोनों नेताओं के बीच निम्न प्रमुख मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हुई:
- वैश्विक शांति और क्षेत्रीय स्थिरता
- ऊर्जा सुरक्षा, सप्लाई चेन और आर्थिक सहयोग
- आर्कटिक, रूस–फार ईस्ट, और हिंद महासागर के उभरते सामरिक आयाम
- उच्च तकनीक, शिक्षा, चिकित्सा और श्रम-गतिशीलता
प्रधानमंत्री मोदी का रूसी पर्यटकों के लिए 30 दिनों का 'फ्री ई-टूरिस्ट वीजा' शुरू करने का निर्णय लोगों-से-लोगों के संपर्क को नई दिशा देता है।
वहीं पुतिन ने भारत को “विश्वसनीय मित्र और सभ्यतागत भागीदार” बताते हुए संबंधों को अगले दशक के लिए “रणनीतिक विस्तार के मार्ग” पर बताया।
संयुक्त प्रेस वक्तव्य में दोनों देशों ने यूक्रेन विवाद पर शांति समाधान का समर्थन किया—एक ऐसा रुख जो भारत की “विश्व एक परिवार” की परिकल्पना से मेल खाता है।
सात महत्वपूर्ण समझौतों का गहन विश्लेषण
1. प्रवासन और संगठित श्रमिक गतिशीलता समझौता
भारत से रूस में कुशल और अर्ध-कुशल श्रमिकों की सुरक्षित, संस्थागत और कानूनी आवाजाही सुनिश्चित करेगा।
- भारतीय युवाओं के लिए रोजगार अवसरों में वृद्धि
- रूसी उद्योगों में कुशल श्रमिकों की कमी को भरने में सहायता
- वैश्विक प्रतिबंधों के बीच रूस के लिए ‘मानव संसाधन आपूर्ति का विश्वसनीय स्रोत’ बन सकता है भारत
2. अस्थायी श्रम गतिविधि समझौता
विनिर्माण, निर्माण, फार्मा, और आईटी क्षेत्रों में अल्पकालिक रोजगार अवसर उपलब्ध होंगे।
- भारत के रेमिटेंस में वृद्धि
- कौशल उन्नयन और द्विपक्षीय कार्य-बल प्रशिक्षण कार्यक्रमों का मार्ग प्रशस्त
3. स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा शिक्षा सहयोग
रूसी चिकित्सा शोध और विशेषज्ञता को भारतीय संस्थानों से जोड़ा जाएगा।
- आयुष्मान भारत, टेली-मेडिसिन, और ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे को लाभ
- भारत में रूसी मेडिकल यूनिवर्सिटी शाखाओं की संभावना
- संयुक्त वैक्सीन अनुसंधान और फार्मा उत्पादन
4. खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता मानक समझौता
खाद्यान्न सुरक्षा दोनों देशों के बीच कृषि व्यापार को सुगठित बनाएगी।
- भारत के लिए उन्नत रूसी कृषि तकनीक और अनाज आपूर्ति की सुरक्षा
- रूस के लिए भारतीय फल, सब्ज़ी और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का नया बाज़ार
5. ध्रुवीय जहाजरानी और आर्कटिक सहयोग समझौता
यह सबसे रणनीतिक समझौतों में से एक है।
- भारत को आर्कटिक विज्ञान, संसाधन अन्वेषण और उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) तक पहुँच
- एशिया–यूरोप व्यापार के लिए वैकल्पिक मार्ग
- जलवायु परिवर्तन और ध्रुवीय शोध में संयुक्त परियोजनाएँ
6. समुद्री सुरक्षा और नौसैनिक सहयोग समझौता
हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा और निगरानी क्षमता के लिए महत्वपूर्ण।
- समुद्री डोमेन अवेयरनेस (MDA)
- एंटी-पायरेसी ऑपरेशन
- भारत की सागरमाला और IORA रणनीति को मजबूती
7. उर्वरक सहयोग (यूरिया संयुक्त उत्पादन सहित)
भारत प्रति वर्ष लगभग 30% यूरिया आयात करता है—यह समझौता आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- रूस में संयुक्त प्लांट
- दीर्घकालिक आपूर्ति सुरक्षा
- भारतीय किसानों के लिए मूल्य स्थिरीकरण
क्या ये संबंध और मजबूत होंगे?—भू-राजनीतिक व आर्थिक विश्लेषण
1. आर्थिक दृष्टि
द्विपक्षीय व्यापार 2024 में लगभग 65 बिलियन डॉलर था जिसे दोनों देश 2030 तक 100 बिलियन डॉलर तक ले जाने की योजना बना रहे हैं।
- श्रमिक समझौतों से मानव संसाधन निर्यात बढ़ेगा
- उर्वरक और खाद्य सुरक्षा समझौतों से कृषि लागत घटेगी
- आर्कटिक सहयोग व्यापार मार्गों को नया आयाम देगा
2. रणनीतिक दृष्टि
भारत-रूस सैन्य साझेदारी में अब "उद्योग-आधारित सहयोग" पर ज़ोर है।
- रक्षा प्रौद्योगिकी, मेंटेनेंस, और संयुक्त निर्माण
- समुद्री सुरक्षा में सहयोग क्वाड–रूस संतुलन को सहज बनाता है
3. कूटनीतिक दृष्टि
भारत पश्चिम और रूस—दोनों के साथ संतुलित संबंध रखकर “मध्य शक्ति कूटनीति” का मॉडल प्रस्तुत कर रहा है।
ये समझौते दर्शाते हैं कि भारत किसी भी वैश्विक ध्रुव पर निर्भर न होकर स्वायत्त कूटनीति अपनाता है।
4. चुनौतियाँ
- रूस पर पश्चिमी प्रतिबंध तकनीकी स्थानांतरण को धीमा कर सकते हैं
- पेमेंट मैकेनिज्म (रुपया–रूबल) अस्थिर
- चीन–रूस घनिष्ठता भारत के लिए सामरिक चुनौती
इसके बावजूद, द्विपक्षीय संबंधों में लचीलापन और ऐतिहासिक विश्वास इन बाधाओं को कम कर देता है।
निष्कर्ष
हैदराबाद हाउस वार्ता भारत–रूस संबंधों का केवल औपचारिक अध्याय नहीं, बल्कि आगामी दशक की रणनीतिक संरचना है। सात नए समझौते—श्रमिक गतिशीलता, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, आर्कटिक, समुद्री सहयोग और उर्वरक उत्पादन—दोनों देशों की दीर्घकालिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं।
भारत–रूस संबंध अब केवल रक्षा और पारंपरिक कूटनीति तक सीमित नहीं रहे; यह सहयोग आर्थिक विविधीकरण, वैश्विक मार्गों, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और जन-संपर्क के नए क्षितिज खोलता है।
यदि इन समझौतों का प्रभावी कार्यान्वयन होता है, तो यह साझेदारी उभरते बहुध्रुवीय विश्व में स्थिरता, सुरक्षा और विकास का वैश्विक मॉडल सिद्ध हो सकती है।
संदर्भ
1. भारत सरकार की आधिकारिक प्रेस रिलीज (5 दिसंबर 2025)।
2. रूस-भारत संयुक्त बयान, हैदराबाद हाउस वार्ता।
3. आर्थिक विश्लेषण: विश्व बैंक तथा यूरेशियन डेवलपमेंट बैंक रिपोर्ट्स।
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