🖋️ हर गली में कवि: एआई युग का साहित्यिक मृगतृष्णा
✍️ प्रस्तावना
कभी कविता लेखन एक आत्मसंघर्ष था — जीवन, समाज और संवेदना की गहराइयों से जन्म लेने वाली अनुभूति। लेकिन 2022 के बाद परिदृश्य अचानक बदल गया। हर गली, हर मोहल्ले में कवि और रचनाकार जन्म लेने लगे। शुरुआत में यह आश्चर्य का विषय था कि एकाएक इतने अधिक कवि कहां से आ गए। धीरे-धीरे यह रहस्य खुला कि ये रचनाएं कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की सहायता से तैयार की जा रही थीं।
💡 तकनीक ने साहित्य को लोकतांत्रिक बनाया, पर आत्मा छीन ली
निस्संदेह, एआई ने सृजन के द्वार सबके लिए खोल दिए हैं। जो पहले शब्दों के प्रति झिझक महसूस करता था, अब एक क्लिक में कवि बन गया। लेखन अब केवल साहित्यिक प्रशिक्षण का विषय नहीं रहा; यह तकनीक की पहुँच का परिणाम बन गया है।
परंतु सवाल यह है कि क्या तकनीकी सुलभता ही साहित्यिक सृजन का पर्याय है?
कविता केवल व्याकरण और छंदों का संयोजन नहीं होती — वह मनुष्य की भीतरी हिलोरों, टूटनों, आकांक्षाओं और मौन में छिपी व्यथा का विस्तार होती है। एआई रचनाएं, चाहे वे कितनी भी भाषिक कसावट लिए हों, उनमें वह “मानवीय कंपन” नहीं होता जो पाठक के हृदय तक पहुँचता है।
📖 जब कविता बाज़ार में गुम हो गई
एआई की मदद से कुछ उत्साही लोगों ने जल्दी-जल्दी पुस्तकें भी प्रकाशित करवा दीं। लेकिन इन पुस्तकों की बिक्री और प्रभाव दोनों सीमित रहे। कारण स्पष्ट था — पाठक को भाषा में चमक तो मिली, पर भाव में गहराई नहीं।
पाठक जानता है कि कविता केवल “शब्दों का सुन्दर संकलन” नहीं, बल्कि एक संवेदना है जो उसकी अपनी पीड़ा या प्रसन्नता से संवाद करती है। जब यह संवाद टूट जाता है, तो कविता केवल “टेक्स्ट” बनकर रह जाती है — सजी हुई, पर निर्जीव।
💭 ‘साहित्य दिल से दिल का कनेक्शन है’
साहित्य हमेशा एक “सजीव संवाद” रहा है। लेखक जब लिखता है, तो वह अपने पाठक को ईमेजिन करता है — महसूस करता है कि कौन-सा शब्द, कौन-सा वाक्य उसके दिल में उतर जाएगा। यह प्रक्रिया केवल लेखन नहीं, बल्कि आत्मा से आत्मा का जुड़ाव है।
परंतु एआई के युग में यह ‘कनेक्शन’ कृत्रिम हो गया है। भाषा और व्याकरण का कसाव तो उत्कृष्ट है, पर उसमें ‘मनुष्य की साँस’ नहीं है। वह भाषा, जो कभी जीवन की गंध लिए होती थी, अब सर्वर की ध्वनि बनकर रह गई है।
⚙️ साहित्य बनाम एल्गोरिद्म
एआई रचनाओं की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि वे भावनात्मक नहीं, विश्लेषणात्मक होती हैं। वे शब्दों के बीच के रिक्त स्थान में छिपे मौन को नहीं पहचानतीं। कविता में जो ‘अव्यक्त’ होता है — जो कहा नहीं गया पर महसूस होता है — वही असली कविता होती है।
एआई इस ‘अव्यक्त’ को कभी नहीं जान सकता क्योंकि उसमें ‘अनुभव’ नहीं, केवल ‘डेटा’ होता है।
🕊️ आगे का रास्ता: मनुष्य और मशीन का संतुलन
यह कहना अनुचित होगा कि एआई साहित्य का शत्रु है। बल्कि यह एक उपयोगी उपकरण है — लेकिन केवल सहायक, सर्जक नहीं। सच्चा सृजन तभी संभव है जब कवि अपने भीतर के द्वंद्व, प्रश्न, प्रेम और पीड़ा से जूझे।
भविष्य का साहित्य शायद मनुष्य और मशीन — दोनों की साझी यात्रा होगा, जहाँ तकनीक शब्द गढ़ेगी और मनुष्य उनमें अर्थ भरेगा।
🔚 निष्कर्ष
आज का समय यह याद दिलाने वाला है कि कविता लिखी नहीं जाती, जी जाती है। एआई से कविता बन सकती है, पर ‘कवि’ नहीं बनता।
शब्दों की निपुणता से नहीं, संवेदना की गहराई से साहित्य जीवित रहता है। इसलिए ज़रूरत है कि हम एआई को औज़ार की तरह इस्तेमाल करें, पर अपने भीतर के कवि को जीवित रखें — वह कवि, जो अपने शब्दों में पाठक का चेहरा देख सकता है और उसकी नब्ज़ महसूस कर सकता है।
Note- UPSC के दृष्टिकोण से यह लेख निबंध लेखन, विज्ञान व प्रौद्योगिकी खंड में AI के बढ़ते प्रयोग तथा एथिक्स पेपर के लिए उपयोगी हो सकता है।
साथ ही आपके लिए साहित्य लेखन मैंस का उत्तर लेखन है, इस लेख से आप यह सीख सकते हैं की आप अपने उत्तर लेखन से मूल्यांकन कर्ता को किस प्रकार प्रभावित करके अधिकतम अंक प्राप्त कर सकते हैं। AI की मदद से आप नोट्स तैयार कर सकते हैं लेकिन उसमें मौलिकता और अपनी विशिष्ट दृष्टि अवश्य जोड़ें।
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