संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अमेरिकी प्रस्ताव का पारित होना गाजा संघर्ष समाधान की दिशा में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप का निर्णायक मोड़
प्रस्तावना
मध्य-पूर्व के इतिहास में गाजा पट्टी हमेशा से भू-राजनीतिक अस्थिरता, मानवीय संकट और सत्ता-संघर्ष का प्रतीक रही है। 2024–25 के युद्ध ने इस संकट को और अधिक गहरा कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोगों का विस्थापन, बुनियादी ढांचे का पतन और क्षेत्रीय कूटनीति की जटिलता बढ़ी। ऐसे दौर में 17 नवंबर 2025 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अमेरिका के प्रस्ताव को 15–0 के अभूतपूर्व मतों से पारित किया जाना न केवल एक कूटनीतिक उपलब्धि है, बल्कि संघर्ष समाधान की वैश्विक इच्छा का भी संकेत है।
रूस और चीन जैसे स्थायी सदस्यों द्वारा विरोध न करना इस घटना को और विशेष बनाता है।
यह प्रस्ताव अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की “गाजा युद्ध समाप्ति योजना”—जिसे अनौपचारिक रूप से Deal of the Century 2.0 का विस्तार माना जा रहा है—को औपचारिक अंतरराष्ट्रीय वैधता प्रदान करता है तथा गाजा में एक बहुराष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल (ISF) की तैनाती का मार्ग प्रशस्त करता है।
1. प्रस्ताव का संस्थागत महत्व : सुरक्षा परिषद की सामूहिक इच्छा का पुनरुत्थान
पिछले एक दशक में सुरक्षा परिषद पर “अकार्यकुशलता” और “भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण” के आरोप लगते रहे। परंतु यह प्रस्ताव इस तथ्य को रेखांकित करता है कि जब किसी संकट का मानवीय और क्षेत्रीय प्रभाव अत्यधिक हो जाता है, तो वैश्विक शक्तियाँ भी अपने मतभेदों को सीमित कर सकती हैं।
समर्थन में डाले गए सर्वसम्मत मत निम्न संकेत देते हैं—
- अमेरिका की पहल को अनौपचारिक रूप से व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला है।
- रूस और चीन ने इसे पश्चिमी प्रभाव-विस्तार की बजाय मानवीय अनिवार्यता के रूप में स्वीकार किया।
- मध्य-पूर्व की शक्तियों—विशेषकर मिस्र, जॉर्डन और सऊदी अरब—के दबाव और तैयारी ने वैश्विक सहमति को वैधता प्रदान की।
2. ट्रम्प योजना का औपचारिक अनुमोदन : कूटनीति और शक्ति-राजनीति का मिश्रण
योजना के तीन केंद्रीय स्तंभ इसे अन्य शांति प्रस्तावों से अलग करते हैं—
(क) हमास की सैन्य क्षमता का पूर्ण उन्मूलन
अमेरिका और इसराइल लंबे समय से यह मानते रहे हैं कि गाजा में स्थायी शांति केवल हमास के विमुद्रीकरण और विघटन के बाद ही संभव है।
प्रस्ताव में पहली बार किसी UN दस्तावेज़ में हमास को “आतंकवादी संगठन” के रूप में चिह्नित किया गया—जो एक अत्यंत महत्वपूर्ण कूटनीतिक विकास है।
(ख) इसराइल की सुरक्षा गारंटी
प्रस्ताव यह सुनिश्चित करता है कि गाजा से इसराइल की ओर रॉकेट हमले या सीमा-पार आतंकवादी गतिविधियाँ समाप्त हों।
हालाँकि, इसराइली सेना को स्वयं स्थिरीकरण बल का हिस्सा नहीं बनाया गया—जो अरब देशों की संवेदनशीलताओं को ध्यान में रखकर लिया गया संतुलित निर्णय है।
(ग) अरब देशों द्वारा पुनर्निर्माण के लिए आर्थिक ढाँचा
सऊदी अरब, यूएई और कतर जैसे देशों द्वारा वित्त-पोषित “गाजा पुनर्निर्माण फंड” इस योजना की रीढ़ है।
इसके अंतर्गत—
- बुनियादी ढाँचे का पुनर्वास
- ऊर्जा आपूर्ति
- आवास निर्माण
- शहरी शासन का पुनर्गठन
जैसे दीर्घकालिक कार्यक्रम शामिल किए गए हैं।
3. अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल : क्षेत्रीय सैन्य सहयोग का नया प्रयोग
(अ) बल की संरचना और भूमिका
यह बल अध्याय VII के अंतर्गत गठित किया गया है, अतः इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी और प्रवर्तन-आधारित अधिकार प्राप्त है।
इसकी प्राथमिक भूमिकाएँ हैं—
- हमास सहित सभी सशस्त्र गुटों का निरस्त्रीकरण एवं निराकरण
- मानवीय सहायता का सुरक्षित वितरण
- अस्थायी शासन संरचना का संचालन
- भविष्य के फिलिस्तीनी प्रशासन हेतु संस्थागत ढांचा तैयार करना
(ब) क्षेत्रीय राजनीति में परिवर्तन
अरब देशों की प्रत्यक्ष सैन्य भागीदारी मध्य-पूर्व की रणनीतिक ध्रुवता में एक बड़ा बदलाव है।
अब तक जहाँ अरब दुनिया ने गाजा के सैन्य प्रशासन से दूरी रखी थी, वहीं अब वे स्थायी सुरक्षा संरचना में प्रमुख भूमिका निभाने को तैयार हैं।
इससे दो संकेत मिलते हैं—
- अरब राष्ट्र इसराइल के साथ “व्यावहारिक सामरिक सहयोग” के युग में प्रवेश कर चुके हैं।
- हमास के प्रभाव को सीमित करने को लेकर क्षेत्रीय सहमति बन चुकी है।
4. क्षेत्रीय प्रतिक्रियाएँ : सहमति और असहमति के अंतर्विरोध
इसराइल
प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इसे “ऐतिहासिक विजय” कहा।
उनके अनुसार प्रस्ताव—
- हमास को निष्प्रभावी करता है,
- इसराइल की सुरक्षा चिंताओं को मान्यता देता है,
- और गाजा शासन में अरब देशों की जिम्मेदारी तय करता है।
फिलिस्तीनी प्राधिकरण (PA)
PA ने इसे सावधानीपूर्ण समर्थन दिया है।
उनकी मुख्य चिंता यह है कि—
- बिना फिलिस्तीनी जनता की सहमति और
- बिना लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व
किसी भी बाहरी बल को वैधता नहीं मिल सकती।
हमास
हमास ने प्रस्ताव को पूरी तरह अस्वीकार करते हुए कहा कि यह—
- फिलिस्तीनी अधिकारों का हनन है,
- विदेशी हस्तक्षेप का उपकरण है,
- और संघर्ष का “नई रूप में औपनिवेशीकरण” है।
ईरान
ईरान ने इसे “अमेरिकी-इजराइली साजिश” बताया और चेतावनी दी कि यह पश्चिम एशिया में नए सैन्य तनाव को जन्म देगा।
5. व्यापक प्रभाव : मध्य-पूर्व में शक्ति-संतुलन की नई रेखाएँ
(अ) फिलिस्तीनी राजनीति का पुनर्गठन
यदि अंतरिम शासन व्यवस्था सफल रही, तो—
- हमास का राजनीतिक प्रभाव सीमित होगा,
- फिलिस्तीनी प्राधिकरण की वैधता पुनर्जीवित होगी,
- और एक नए, तकनीकी व प्रशासनिक रूप से सक्षम फिलिस्तीनी शासन की नींव रखी जा सकती है।
(ब) अमेरिका की पुनः उभरती मध्य-पूर्व रणनीति
यह कदम बताता है कि—
- अमेरिका अभी भी क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन का निर्णायक नियामक है,
- और उसके कूटनीतिक प्रस्ताव अब भी वैश्विक स्वीकृति प्राप्त कर सकते हैं।
(स) रूस-चीन की तटस्थता के अर्थ
दोनों देशों का समर्थन न करना, परंतु विरोध भी न करना, दर्शाता है कि—
- वे मध्य-पूर्व में प्रत्यक्ष टकराव से बचना चाहते हैं,
- और अरब देशों के साथ बढ़ते आर्थिक संबंधों को ध्यान में रखकर संतुलन बनाए हुए हैं।
(द) क्षेत्रीय स्थिरता की संभावनाएँ
प्रस्ताव के सफल क्रियान्वयन से—
- दक्षिण लेबनान, पश्चिम तट और गाजा तीनों में तनाव कम हो सकता है,
- इसराइल–अरब सामान्यीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है,
- और तेल बाजारों में स्थिरता आ सकती है।
निष्कर्ष : ऐतिहासिक क्षण, परंतु चुनौतीपूर्ण भविष्य
सुरक्षा परिषद का यह प्रस्ताव गाजा संघर्ष के समाधान की दिशा में अब तक का सबसे ठोस तथा बहुपक्षीय कदम है।
यह पहली बार है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की व्यक्तिगत योजना को वैश्विक वैधता मिली है और अरब राष्ट्र सैन्य-प्रशासनिक जिम्मेदारी लेने को तैयार हुए हैं।
किन्तु—
युद्धविराम को शांति में बदलना केवल सैन्य कार्रवाई से नहीं, बल्कि राजनीतिक वैधता, संस्थागत पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय सहमति से संभव होगा।
आगामी महीने यह तय करेंगे कि—
- क्या ISF गाजा में प्रभावी नियंत्रण और मानवीय सुरक्षा सुनिश्चित कर पाएगा,
- क्या फिलिस्तीनी समाज इस हस्तक्षेप को स्वीकार करेगा,
- और क्या मध्य-पूर्व एक नए सामरिक युग की ओर बढ़ेगा।
यदि इन चुनौतियों को पार किया जा सका, तो यह प्रस्ताव केवल कागजी दस्तावेज़ नहीं रहेगा, बल्कि गाजा और समूचे पश्चिम एशिया के लिए स्थायी शांति की आधारशिला बन सकता है।
With Reuters Inputs
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