Thailand-Cambodia Border Dispute and Suspension of the Kuala Lumpur Accord: A Blow to Southeast Asia’s Fragile Peace
थाईलैंड–कंबोडिया सीमा विवाद और कुआलालंपुर समझौते का निलंबन: दक्षिण–पूर्व एशिया की अस्थिर शांति पर प्रश्न
प्रस्तावना
दक्षिण–पूर्व एशिया लंबे समय से भू–राजनीतिक तनावों, सीमाई विवादों और शक्ति–संतुलन की राजनीति का केंद्र रहा है। इस परिदृश्य में थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद एक पुरानी लेकिन लगातार सुलगती हुई समस्या है, जिसने बार–बार क्षेत्रीय स्थिरता को चुनौती दी है। हाल ही में थाईलैंड द्वारा कुआलालंपुर समझौते (Kuala Lumpur Accord) को निलंबित करने का निर्णय इस विवाद को पुनः अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में ले आया है। यह वही समझौता था, जो मलेशिया और अमेरिका की मध्यस्थता में कुछ सप्ताह पहले ही दोनों देशों के बीच युद्धविराम और सीमाई तनाव को समाप्त करने के उद्देश्य से संपन्न हुआ था।
विवाद की पृष्ठभूमि
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच लगभग 800 किलोमीटर लंबी सीमा 20वीं शताब्दी की औपनिवेशिक विरासत से उपजी जटिलताओं का परिणाम है। विशेष रूप से प्रीह विहार मंदिर (Preah Vihear Temple) और उसके आसपास का इलाका दोनों देशों के लिए संवेदनशील और प्रतीकात्मक महत्व रखता है। 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने इस मंदिर पर कंबोडिया का स्वामित्व मान्यता दी थी, किंतु थाईलैंड ने इस निर्णय को कभी पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। समय–समय पर दोनों देशों के बीच झड़पें, सीमा चौकियों पर गोलीबारी, और लैंडमाइन विस्फोट जैसी घटनाएँ इस विवाद की गंभीरता को रेखांकित करती रही हैं।
कुआलालंपुर समझौते की उत्पत्ति
जुलाई 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की एशिया यात्रा के दौरान थाईलैंड और कंबोडिया के प्रतिनिधियों ने मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता युद्धविराम, डी–मिलिटराइजेशन, और सीमाई इलाकों में लैंडमाइन हटाने के लिए एक संयुक्त कार्यदल के गठन से संबंधित था। अमेरिका और मलेशिया ने इस समझौते को दक्षिण–पूर्व एशिया में स्थिरता की दिशा में “कूटनीतिक विजय” के रूप में प्रस्तुत किया था।
राष्ट्रपति ट्रंप ने तब स्पष्ट शब्दों में कहा था कि यदि यह संघर्ष जारी रहा, तो अमेरिका दोनों देशों पर भारी आयात शुल्क (Heavy Tariffs) लगाएगा। यह आर्थिक दबाव ही समझौते की नींव बना।
समझौते का निलंबन: एक अस्थिर संतुलन का टूटना
हालिया लैंडमाइन विस्फोट ने इस नाजुक संतुलन को तोड़ दिया। थाईलैंड के कई सैनिक इस विस्फोट में घायल हुए, जिसके बाद बैंकॉक ने समझौते के कार्यान्वयन को निलंबित करने की घोषणा की। कंबोडिया ने इस घटना में अपनी किसी भूमिका से इंकार करते हुए इसे “उकसावे की कार्रवाई” कहा है।
थाईलैंड का निर्णय यह संकेत देता है कि घरेलू सैन्य दबाव और राष्ट्रवादी भावना किसी भी अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता से अधिक प्रभावशाली हो सकती है। थाई सेना, जो देश की राजनीति में लंबे समय से एक प्रमुख भूमिका निभाती रही है, इस घटना को अपने “राष्ट्रीय सम्मान” से जोड़कर देख रही है।
अमेरिका की कूटनीतिक चुनौती
कुआलालंपुर समझौते के टूटने से अमेरिकी कूटनीति की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग गया है। दक्षिण–पूर्व एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका लंबे समय से “शांतिपूर्ण समाधान” की नीति पर काम कर रहा है। किंतु थाईलैंड–कंबोडिया विवाद यह दिखाता है कि बाहरी मध्यस्थता तब तक स्थायी नहीं हो सकती, जब तक दोनों पक्षों के भीतर राजनीतिक इच्छाशक्ति और पारस्परिक विश्वास का निर्माण न हो।
यह निलंबन न केवल अमेरिका की क्षेत्रीय साख को प्रभावित करेगा, बल्कि आसियान (ASEAN) के भीतर भी विभाजन की रेखाएँ गहरी कर सकता है।
क्षेत्रीय सुरक्षा और मानवीय आयाम
थाई–कंबोडिया सीमा क्षेत्र लैंडमाइन से सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों के अनुसार, पिछले दो दशकों में यहां सैकड़ों नागरिक माइन विस्फोटों में मारे जा चुके हैं। इस संदर्भ में, कुआलालंपुर समझौते का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा लैंडमाइन–क्लियरेंस मिशन था। उसका रुक जाना स्थानीय नागरिकों के लिए खतरे को और बढ़ाता है।
इसके अलावा, सीमा के दोनों ओर व्यापार, आवागमन और सांस्कृतिक संपर्कों पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।
घरेलू राजनीति और जनमत
थाईलैंड में वर्तमान सैन्य–नागरिक सरकार पर विपक्ष लगातार दबाव बना रहा है कि वह “राष्ट्रीय सुरक्षा” पर कोई समझौता न करे। वहीं कंबोडिया में प्रधानमंत्री हुन मानेट अपनी जनता के बीच यह छवि बनाए रखना चाहते हैं कि कंबोडिया किसी भी प्रकार की “थाई आक्रामकता” का जवाब देने में सक्षम है। इस प्रकार, दोनों देशों के भीतर घरेलू राजनीतिक समीकरण भी समझौते के भविष्य को अनिश्चित बना रहे हैं।
निष्कर्ष
थाईलैंड–कंबोडिया सीमा विवाद यह स्पष्ट करता है कि अंतरराष्ट्रीय समझौते तब तक टिकाऊ नहीं हो सकते, जब तक उनके पीछे ठोस विश्वास–निर्माण तंत्र और पारदर्शी कार्यान्वयन व्यवस्था न हो। कुआलालंपुर समझौते का निलंबन न केवल दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के लिए झटका है, बल्कि यह दक्षिण–पूर्व एशिया में अमेरिकी प्रभाव की सीमाओं को भी उजागर करता है।
अब आवश्यकता है कि आसियान, संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस विवाद को केवल कूटनीतिक दबाव से नहीं, बल्कि संरचनात्मक शांति–निर्माण (Structural Peace-Building) के माध्यम से सुलझाने का प्रयास करें।
स्थायी शांति के लिए संयुक्त निगरानी मिशन, लैंडमाइन हटाने की पारदर्शी प्रक्रिया, और सीमा क्षेत्रों के विकास के लिए साझा आर्थिक परियोजनाएँ आवश्यक होंगी। अन्यथा, यह विवाद बार–बार राजनीतिक नफा–नुकसान की भेंट चढ़ता रहेगा।
लेख का सार:
थाईलैंड–कंबोडिया सीमा विवाद केवल भू–राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता, मानवीय सुरक्षा और कूटनीतिक विश्वसनीयता का परीक्षण है। कुआलालंपुर समझौते का निलंबन यह संकेत देता है कि दक्षिण–पूर्व एशिया में शांति की राह अभी लंबी और कठिन है।With Washington post Inputs
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