Syria’s New Horizon: Ahmad Al-Sharaa’s White House Visit and the Geopolitical Rebalancing of the Middle East
सीरिया का नया क्षितिज: व्हाइट हाउस में अहमद अल-शरआ और बदलता मध्य-पूर्व
12 नवंबर 2025 की सुबह व्हाइट हाउस के दक्षिणी लॉन पर उतरते ही सीरियाई राष्ट्रपति अहमद अल-शरआ ने एक ऐसे क्षण को जन्म दिया, जो न केवल सीरिया के लिए, बल्कि पूरे मध्य-पूर्व की राजनीति के लिए ऐतिहासिक था। चौदह वर्षों तक चले रक्तरंजित गृहयुद्ध की राख से उठकर एक पूर्व विद्रोही—जो कभी ‘अबू मोहम्मद अल-जौलानी’ के नाम से जिहादी नेटवर्क का हिस्सा था—अब वैश्विक महाशक्ति अमेरिका के आमंत्रित अतिथि के रूप में कदम रख रहा था। यह दृश्य जितना प्रतीकात्मक था, उतना ही राजनीतिक रूप से गहन: कट्टरपंथ से राज्य-व्यवस्था तक की यात्रा, चरमपंथ से कूटनीति तक का परिवर्तित मार्ग।
अमेरिका-सीरिया समीकरण: अविश्वास के बाद साझेदारी?
अल-शरआ की यह यात्रा मुख्यतः संबंधों के पुनर्निर्माण का संकेत थी। वर्षों तक अमेरिका ने हयात तहरीर अल-शाम (HTS) को आतंकवादी संगठन घोषित कर उस पर हवाई कार्रवाई की। मगर 2025 में असद शासन के पतन के बाद जब HTS-आधारित अंतरिम सरकार उभरी, तो वाशिंगटन ने सीरिया को ईरानी प्रभाव-क्षेत्र से बाहर निकालने के लिए एक नए दृष्टिकोण को अपनाया।
ट्रम्प प्रशासन का प्रस्तावित 17 अरब डॉलर का पुनर्निर्माण पैकेज इस बदलाव की मजबूत पुष्टि है। इसके पीछे रणनीतिक उद्देश्य स्पष्ट है—ईरान को सीमित करना, तुर्की के साथ समन्वय बढ़ाना और सीरिया को एक ‘मध्यम इस्लामी शासन’ की दिशा में ढालना, जो क्षेत्रीय स्थिरता में सहायक हो सके। अल-शरआ का यह कथन, “भविष्य साझा हितों पर टिकता है,” केवल कूटनीतिक विनम्रता नहीं, बल्कि नए भू-राजनीतिक समीकरण का सार्वजनिक संकेत था।
इज़राइल-सीरिया समीकरण: टकराव से संभावित समझौते तक
सबसे रोचक पहलू वह था जब अल-शरआ ने इज़राइल के साथ संभावित शांति प्रक्रिया का संकेत दिया।
उन्होंने स्पष्ट कहा:
“गोलान पर संप्रभुता से कोई समझौता नहीं, लेकिन सम्मान आधारित शांति सम्भव है।”
यह दो कारणों से महत्वपूर्ण है–
- HTS जैसी जिहादी पृष्ठभूमि वाले समूह द्वारा इज़राइल के साथ बातचीत की संभावना कभी अकल्पनीय थी।
- तुर्की की मध्यस्थता में चल रही बैक-चैनल वार्ताएँ इन बयानों को अधिक विश्वसनीय बनाती हैं।
अमेरिका भी चाहता है कि सीरिया अब क्षेत्रीय तनाव का हिस्सा न होकर स्थिरता का घटक बने—विशेषकर तब जब ईरान-इज़राइल संघर्ष की रेखाएँ पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर रही हैं।
युद्धोत्तर सीरिया: सांप्रदायिक भय और राज्य-निर्माण की चुनौती
अल-शरआ ने व्हाइट हाउस में स्वीकार किया कि उनका सबसे कठिन कार्य सैन्य जीत या राजनयिक मान्यता से कहीं अधिक जटिल है—
“राष्ट्रीय सुलह”।
अलावाइट, द्रूज़, कुर्द और ईसाई समुदायों में भय और असुरक्षा व्याप्त है।
नवंबर 2025 में ही 47 सांप्रदायिक हमलों में 12000 से अधिक लोग विस्थापित हुए।
पूर्व शासन समर्थक अल्पसंख्यक क्षेत्रों में बदले की भावना अभी भी तीव्र है।
राष्ट्रीय सुलह आयोग की शुरुआती कोशिशें—पूर्व असद अधिकारियों को सीमित क्षमादान, स्थानीय मिलिशियाओं को एकीकृत करने की पहल—महत्वपूर्ण तो हैं, पर अपर्याप्त भी।
सीरिया का भविष्य इस बात पर टिका है कि क्या अल-शरआ अपने विद्रोही अतीत से ऊपर उठकर विविध समुदायों के बीच भरोसा कायम कर पाते हैं।
अल-शरआ का ‘परिवर्तन मॉडल’: युद्ध से शासन तक का सफर
अहमद अल-शरआ का उदय केवल व्यक्तिगत कथा नहीं है; यह आधुनिक संघर्षों में ‘विद्रोही-से-शासक’ मॉडल के पुनर्मूल्यांकन का अवसर है।
2017 के बाद HTS ने स्कूलों, अस्पतालों, कर-व्यवस्था और स्थानीय प्रशासन को इस तरह संगठित किया कि वह एक प्रकार से “अर्ध-राज्य” बन गया।
राजनीति विज्ञान में पॉल स्टैनिलैंड के सिद्धांत—“सशस्त्र समूहों का राज्यकरण”—इस प्रक्रिया का सबसे उपयुक्त वर्णन करते हैं।
युद्ध और शासन दोनों की आवश्यकताओं ने HTS को वैचारिक कट्टरता से व्यावहारिकता की ओर धकेला।
अल-शरआ इस बदलाव के केंद्र में रहे—यही उनकी सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ी कमजोरी दोनों है।
क्या सीरिया नया मॉडल बन सकता है?
अल-शरआ की व्हाइट हाउस यात्रा उस मोड़ का प्रतीक है जहाँ सीरिया एक नए मार्ग पर कदम रख सकता है—
- सांप्रदायिक सुलह
- बाहरी प्रभावों से स्वतंत्रता
- आर्थिक पुनर्निर्माण
- और एक व्यवहारिक विदेश नीति
यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो सीरिया वैश्विक राजनीति में एक अनूठा उदाहरण बन सकता है—जहाँ हथियारबंद विद्रोह से निकला नेतृत्व लोकतांत्रिक शासन की दिशा में यात्रा करता है।
लेकिन खतरा अभी टला नहीं है।
एक भी बड़ी गलती—विशेषकर अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा—समूचे क्षेत्र को फिर से अराजकता की ओर धकेल सकती है।
मध्य-पूर्व में ऐसे अवसर दुर्लभ हैं, और दूसरा मौका अक्सर मिलता नहीं।
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