Sheikh Hasina Death Sentence: Political Justice, Fair Trial Debate & Bangladesh’s Democratic Crisis (2025 Analysis)
शेख हसीना को मृत्युदंड : बांग्लादेश के राजनीतिक न्याय का एक समालोचनात्मक विश्लेषण
बांग्लादेश की राजनीति ने 17 नवंबर 2025 को एक ऐसे मोड़ में प्रवेश किया जिसने पूरे दक्षिण एशिया को हिला दिया। अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (International Crimes Tribunal–ICT) ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के विरुद्ध अपराध का दोषी ठहराते हुए मृत्युदंड सुनाया।
आरोप था कि जुलाई–अगस्त 2024 के छात्र–जनांदोलन पर हुए निर्मम दमन का आदेश स्वयं उन्होंने दिया। यह निर्णय न केवल बांग्लादेश के लोकतांत्रिक इतिहास में अभूतपूर्व है, बल्कि यह इस बात की भी याद दिलाता है कि सत्ता और न्याय के बीच खींची रेखा कितनी बार धुंधली हो जाती है।
1. मुकदमे की प्रक्रिया: न्याय या राजनीतिक प्रतिशोध?
1.1 गैर-हाजिरी में मुकदमा (Trial in absentia)
5 अगस्त 2024 से शेख हसीना भारत में राजनीतिक शरण लिए हुए हैं। ICT ने 1973 के अंतरराष्ट्रीय अपराध अधिनियम के तहत उनकी अनुपस्थिति में ही मुकदमा पूरा किया।
तकनीकी रूप से यह प्रावधान वैध है, परंतु मृत्युदंड जैसी अंतिम सजा परिस्थितियों में यह गंभीर नैतिक और कानूनी प्रश्न उत्पन्न करता है—
- क्या आरोपी को स्वतः अपनी बात रखने का अवसर मिला?
- क्या बिना उपस्थिति के अधिकतम सजा दी जा सकती है?
यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय, ICC और अन्य अंतरराष्ट्रीय मानदंड स्पष्ट रूप से कहते हैं कि फांसी की सजा के लिए आरोपी की उपस्थिति, क्रॉस-एग्ज़ामिनेशन और बचाव-वकील की सक्रिय भागीदारी अनिवार्य है।
1.2 राजनीतिक प्रतिशोध की छाया
मुकदमे की निगरानी अंतरिम सरकार और छात्र आंदोलन का नेतृत्व करने वाले गठबंधन ने की। न्यायाधीशों की नियुक्ति, गवाहों की सूची और जांच प्रक्रिया में राजनीतिक पक्षपात के आरोप बार-बार उठे।
ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस मुकदमे को “victor’s justice” कहा—
यानी विजेता का न्याय, जिसमें प्रतिशोध न्याय पर हावी हो जाता है।
1.3 साक्ष्य और गवाहों की विश्वसनीयता
अभियोजन पक्ष ने 327 गवाह पेश किए, पर बचाव पक्ष का यह दावा कि अधिकांश गवाह विपक्षी राजनीतिक समूहों से थे, पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता।
सबसे विवादास्पद बात—
- जिस वीडियो और टेलीफोन रिकॉर्डिंग के आधार पर हसीना को दोषी ठहराया गया,
- उसकी स्वतंत्र फोरेंसिक जांच नहीं हुई,
- जबकि आरोप इतने गंभीर थे कि किसी भी साक्ष्य की तकनीकी सत्यता सबसे पहली शर्त होनी चाहिए थी।
2. ऐतिहासिक संदर्भ: ICT पर पुराने आरोपों की वापसी
2010–2024 के बीच ICT ने 1971 के युद्ध अपराधों के मामले चलाए थे।
उस समय भी—
- राजनीतिक दबाव,
- चुनिंदा गवाही,
- विपक्षी दलों के नेताओं को निशाना बनाने—
जैसे आरोप लगे थे।
नए मुकदमे ने मानो उन पुराने आरोपों को फिर से जीवित कर दिया है। कई विश्लेषक इसे “प्रतिशोध का दूसरा चरण” कह रहे हैं, जहाँ पुरानी सरकार को सत्ता से हटाकर न्याय के नाम पर राजनीतिक सफाई का अभियान चलाया जा रहा है।
3. अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: एक असहज चुप्पी और बढ़ती चिंता
3.1 भारत: ‘आंतरिक मामला’ कहकर दूरी
भारत ने इस फैसले को बांग्लादेश का “आंतरिक मामला” बताकर कूटनीतिक चुप्पी साध ली है।
इसका एक स्पष्ट परिणाम—
शेख हसीना का प्रत्यर्पण लगभग असंभव हो गया है।
3.2 अमेरिका, यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र की चिंताएँ
इन तीनों ने मुकदमे की निष्पक्षता पर सवाल उठाया है।
- प्रक्रिया की पारदर्शिता,
- राजनीतिक हस्तक्षेप,
- गवाहों की विश्वसनीयता,
इन सब पर गंभीर चिंता जताई गई है।
3.3 चुनावी राजनीति पर असर
फरवरी 2026 में चुनाव होने हैं।
इस फैसले से “कानूनी वैधता” के नाम पर अवामी लीग के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर कठोर कार्रवाई का रास्ता खुल सकता है।
यानी दमन को न्याय का लबादा पहनाकर वैध राजनीतिक सफाई अभियान चलाना अब आसान हो जाएगा।
4. क्या शेख हसीना निर्दोष थीं?—यह प्रश्न असली मुद्दा नहीं
यह सत्य है कि उनके शासन में मानवाधिकार उल्लंघन आम हो गए थे।
2024 के आंदोलन में सैकड़ों छात्र और नागरिक मारे गए—यह तथ्य झुठलाया नहीं जा सकता।
मगर लोकतंत्र का बुनियादी नियम है—
न्याय, प्रतिशोध का उपकरण नहीं बनना चाहिए।
यदि न्याय की प्रक्रिया ही निष्पक्ष न हो, तो सच्चाई भी राजनीतिक प्रतीक बनकर रह जाती है।
5. भविष्य की राह: बांग्लादेश के लोकतंत्र का असली परीक्षण
बांग्लादेश का वर्तमान संकट दो बातों पर निर्भर करेगा—
- क्या सत्ता परिवर्तन प्रतिशोध का साधन बनता रहेगा?
- क्या न्याय प्रणाली स्वतंत्र होकर खुद को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त कर पाएगी?
यदि राज्य अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए मृत्युदंड का उपयोग करने लगे, तो यह लोकतंत्र नहीं, बल्कि कानूनी प्रतिशोध बन जाता है।
न्याय तभी अर्थपूर्ण है जब—
- वह पारदर्शी हो
- सभी पक्षों को समान अवसर मिले
- और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार चले
अन्यथा इतिहास बार-बार उसी हिंसक चक्र को दोहराता रहता है, जिसमें सत्ता परिवर्तन खून, बदला और न्याय के नाम पर अन्याय का रूप ले लेता है।
निष्कर्ष
शेख हसीना का शासन निस्संदेह कठोर था और 2024 की हिंसा किसी भी लोकतांत्रिक मूल्य के अनुकूल नहीं थी।
लेकिन एक पक्ष के अपराध का उत्तर दूसरे पक्ष के प्रतिशोध से नहीं दिया जा सकता।
यह फैसला बांग्लादेश को दो रास्तों पर खड़ा करता है—
- एक ओर न्याय का मार्ग, जो निष्पक्ष और पारदर्शी है;
- दूसरी ओर राजनीतिक प्रतिशोध का मार्ग, जो लोकतंत्र को कमजोर करेगा।
बांग्लादेश का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस रास्ते को चुनता है।
न्याय यदि पक्षपाती हो, तो इतिहास केवल बदलते नामों के साथ खुद को दोहराता रहता है।
With Reuters Inputs
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