ईरान में सामाजिक प्रतिबंधों की ढील और राजनीतिक दमन की बढ़ती सख्ती: एक द्वंद्वात्मक विश्लेषण
परिचय
ईरान इन दिनों एक गहरे राजनीतिक और सामाजिक द्वंद्व से गुजर रहा है। एक ओर सरकार ने सार्वजनिक रूप से सामाजिक प्रतिबंधों, विशेष रूप से हिजाब कानून के प्रवर्तन में ढील देकर सुधारों का आभास कराया है; वहीं दूसरी ओर, राजनीतिक असहमति और नागरिक स्वतंत्रता पर नियंत्रण को पहले से अधिक सख्त बना दिया गया है। यह परिघटना न केवल ईरान की आंतरिक सत्ता-संरचना को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि किस प्रकार एक अधिनायकवादी शासन "नियंत्रित उदारीकरण" के माध्यम से असंतोष को शांत करने की कोशिश करता है, जबकि असहमति की जड़ों को व्यवस्थित रूप से कुचलता जाता है।
रॉयटर्स की हालिया रिपोर्ट (2025) के अनुसार, ईरान में कार्यरत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पुष्टि की है कि "धार्मिक शासन भय और निगरानी की नीति के ज़रिए किसी भी संभावित विद्रोह को समय से पहले निष्प्रभावी बनाने में जुटा है।" यह नीति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि सामाजिक ढील का उद्देश्य जनतांत्रिक उदारीकरण नहीं, बल्कि शासन की वैधता और स्थायित्व बनाए रखना है।
1. सामाजिक ढील की पृष्ठभूमि और उसकी राजनीतिक प्रेरणा
2022 में महसा अमिनी की संदिग्ध मृत्यु के बाद शुरू हुआ “Women, Life, Freedom” आंदोलन ईरान के भीतर एक व्यापक सामाजिक जागृति का प्रतीक बन गया। इस आंदोलन ने न केवल हिजाब कानून के प्रति जन असहमति को खुलकर सामने लाया, बल्कि शासन के नैतिक वैधता पर भी सवाल खड़े किए।
इसके बाद, सरकार ने कुछ क्षेत्रों में नैतिक पुलिस (मोरैलिटी पुलिस) की गश्त कम कर दी और कई शहरों में हिजाब उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई में ढील दी। इसे सामाजिक "लिबरलाइजेशन" के संकेत के रूप में प्रस्तुत किया गया। किंतु यह सुधार सीमित और नियंत्रित था—सिर्फ प्रतीकात्मक। इसका मूल उद्देश्य था जनता में यह विश्वास पैदा करना कि सरकार उनकी बात सुन रही है, जबकि सत्ता-संरचना के वास्तविक स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
यह रणनीति अधिनायकवादी शासन की एक पुरानी पद्धति को दर्शाती है: “सतही उदारीकरण, गहन नियंत्रण।”
ईरान के नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई और रिवोल्यूशनरी गार्ड्स इस नीति को दोहरे लाभ के रूप में देखते हैं—एक ओर जनता के दबाव को कम करना, और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश देना कि ईरान "सुधार की राह" पर है।
2. राजनीतिक दमन की गहराती परतें
जबकि आम नागरिकों को सामाजिक जीवन में कुछ हद तक लचीलापन दिख रहा है, उसी समय राजनीतिक क्षेत्र में अभूतपूर्व कठोरता देखी जा रही है।
रॉयटर्स (2025) की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान में:
- राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गुप्त निगरानी कई गुना बढ़ाई गई है।
- मनमानी गिरफ्तारियाँ आम हो चुकी हैं, विशेषकर वे लोग जो सोशल मीडिया या सार्वजनिक मंचों पर शासन की आलोचना करते हैं।
- न्यायिक प्रक्रिया का क्षरण स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है—मुकदमों में पारदर्शिता नहीं, और बिना सबूत लंबी सजाएँ दी जा रही हैं।
- डिजिटल निगरानी तंत्र इतना व्यापक हो चुका है कि नागरिक अब ऑनलाइन अपनी राय देने में भी भय महसूस करते हैं।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन Amnesty International और Human Rights Watch ने भी पिछले वर्ष अपनी रिपोर्टों में चेताया था कि ईरान का यह “साइबर-सर्विलांस स्टेट” नागरिक स्वतंत्रताओं के लिए गंभीर खतरा बन गया है।
इस प्रकार, सामाजिक प्रतिबंधों में ढील मात्र एक “स्मोकस्क्रीन” है, जिसके पीछे राजनीतिक नियंत्रण की दीवार और मजबूत होती जा रही है।
3. शासन की रणनीतिक सोच: ‘दबाव वाल्व खोलो, पर नियंत्रण न छोड़ो’
ईरान की वर्तमान नीति अधिनायकवादी शासनों के उस पारंपरिक सिद्धांत को मूर्त रूप देती है, जिसे राजनीतिक विज्ञान में “प्रबंधित असहमति” (Managed Dissent) कहा जाता है। शासन यह जानता है कि लगातार दमन जनता में विस्फोटक स्थिति पैदा कर सकता है, इसलिए वह समय-समय पर सीमित राहत देता है ताकि असंतोष का उफान शांत हो जाए।
इस प्रक्रिया में शासन एक “दबाव वाल्व” की तरह काम करता है—वह जनता की नाराज़गी को थोड़ी राहत देकर नियंत्रित करता है, लेकिन वास्तविक शक्ति-संरचना को अछूता रखता है।
ईरान का यह मॉडल चीन या रूस जैसे देशों की नीति से मिलता-जुलता है, जहाँ नागरिक जीवन के कुछ क्षेत्रों में आज़ादी दी जाती है, किंतु राजनीतिक स्वतंत्रता पर पूर्ण नियंत्रण बना रहता है।
4. अंतरराष्ट्रीय संदर्भ और परिणाम
ईरान की यह द्वंद्वात्मक नीति केवल आंतरिक स्थिरता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका अंतरराष्ट्रीय प्रभाव भी गहरा है।
- अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ उसके परमाणु समझौते (JCPOA) पर वार्ताएँ इस छवि से प्रभावित हो सकती हैं। यदि पश्चिमी देश ईरान के सतही सुधारों से भ्रमित होते हैं, तो वे एक ऐसे शासन को वैधता प्रदान कर सकते हैं जो मानवाधिकारों का दमन कर रहा है।
- क्षेत्रीय स्थिरता के दृष्टिकोण से, ईरान का यह नियंत्रण-प्रधान शासन मध्य-पूर्व में धार्मिक उग्रवाद और असंतुलन को और बढ़ा सकता है।
- मानवाधिकारों का प्रश्न वैश्विक कूटनीति में पुनः प्रमुख मुद्दा बन सकता है, विशेषकर तब जब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् ईरान की जवाबदेही तय करने की दिशा में ठोस कदम उठाए।
5. निष्कर्ष: सुधार का भ्रम और नियंत्रण की वास्तविकता
ईरान का वर्तमान परिदृश्य अधिनायकवादी राजनीति की जटिलता का जीवंत उदाहरण है। सामाजिक क्षेत्र में दिखने वाली ढील एक रणनीतिक आवरण है, जिसके भीतर असहमति, स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों का दमन निरंतर तीव्र होता जा रहा है।
यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ “सुधार और दमन” साथ-साथ चल रहे हैं—एक दूसरे के पूरक बनकर। सरकार अपने नागरिकों को सीमित स्वतंत्रता का भ्रम देकर सत्ता-संरचना को बनाए रखने का प्रयत्न कर रही है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह आवश्यक है कि वह इन सतही सुधारों को “लोकतांत्रिक संक्रमण” के रूप में न माने, बल्कि ईरान की वास्तविकता को समझे—जहाँ स्वतंत्रता की झिलमिलाती रोशनी के पीछे दमन की लंबी छाया छिपी है।
संदर्भ
- Reuters. (2025). Iran eases social curbs but tightens political crackdown, activists say. Retrieved from
- Amnesty International Report, 2024. State of Human Rights in Iran.
- Human Rights Watch, 2024. Iran: Tightening Grip on Dissent.
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