Prince Andrew and the Epstein Scandal: The Fall of Royal Titles and the Crisis of Accountability in the British Monarchy
ब्रिटेन के राजकुमार एंड्रयू: उपाधियों का ह्रास और एपस्टीन कांड
परिचय
ब्रिटेन के राजकुमार एंड्रयू, महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के दूसरे पुत्र और वर्तमान सम्राट चार्ल्स तृतीय के अनुज, आधुनिक ब्रिटिश राजतंत्र के लिए सबसे विवादास्पद नामों में से एक बन गए। 13 जनवरी 2022 को बकिंघम पैलेस ने घोषणा की कि राजकुमार एंड्रयू से उनकी सभी सैनिक उपाधियाँ और शाही संरक्षण वापस ले लिए गए हैं। यह निर्णय उन पर लगे यौन शोषण के आरोपों की पृष्ठभूमि में लिया गया था, जिनका संबंध अमेरिकी वित्तीय अपराधी जेफरी एपस्टीन से था।
यह घटना केवल एक शाही विवाद नहीं थी, बल्कि उसने ब्रिटिश राजपरिवार की नैतिकता, जवाबदेही और सार्वजनिक विश्वास की सीमाओं को परखा। इस प्रकरण ने यह प्रश्न उठाया कि क्या आधुनिक लोकतांत्रिक समाज में राजपरिवार जैसी संस्थाएँ अब भी पारदर्शिता और नैतिक दायित्व के मानदंडों पर खरी उतर सकती हैं।
आरोपों की पृष्ठभूमि
वर्जीनिया जिउफ्रे (पूर्व नाम वर्जीनिया रॉबर्ट्स) ने 2015 में अमेरिकी अदालत में दावा किया कि 2001 में, जब वह मात्र 17 वर्ष की थीं, उन्हें एपस्टीन और उनकी सहयोगी घिस्लेन मैक्सवेल द्वारा लंदन, न्यूयॉर्क और एपस्टीन के निजी द्वीप पर राजकुमार एंड्रयू के साथ यौन संबंध बनाने के लिए बाध्य किया गया।
राजकुमार एंड्रयू ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने 2019 में बीबीसी के “न्यूज़नाइट” कार्यक्रम में एक साक्षात्कार दिया, जिसमें उन्होंने स्वयं को निर्दोष बताया। किंतु उनका वह साक्षात्कार उनके लिए भारी साबित हुआ — उनकी देहभाषा, उत्तरों की असंगति और सहानुभूति की कमी ने जनता में उनके प्रति अविश्वास पैदा किया।
2021 में वर्जीनिया जिउफ्रे ने न्यूयॉर्क की संघीय अदालत में राजकुमार के खिलाफ दीवानी मुकदमा दायर किया। हालांकि फरवरी 2022 में दोनों पक्षों के बीच गोपनीय समझौते से मामला निपटा दिया गया, जिसमें राजकुमार ने कथित रूप से लाखों पाउंड का भुगतान किया। कानूनी दृष्टि से यह दोषसिद्धि नहीं थी, लेकिन जनमत में राजकुमार की छवि लगभग ध्वस्त हो गई।
बकिंघम पैलेस का निर्णय
बकिंघम पैलेस की घोषणा में कहा गया:
“ड्यूक ऑफ यॉर्क की सभी सैनिक उपाधियाँ और शाही संरक्षण महारानी को लौटा दिए जा रहे हैं। वे अब ‘हिज़ रॉयल हाइनेस’ की उपाधि का प्रयोग नहीं करेंगे।”
राजकुमार से छीनी गई उपाधियों में शामिल थीं:
- सैनिक उपाधियाँ: कर्नल-इन-चीफ (विभिन्न रेजिमेंट्स), ऑनरेरी एयर कमोडोर (रॉयल एयर फोर्स)
- शाही संरक्षण: 100 से अधिक चैरिटी और सामाजिक संगठन
- उपाधि प्रतिबंध: अब वे किसी भी आधिकारिक समारोह में “हिज़ रॉयल हाइनेस” के रूप में नहीं जाने जाएंगे
यह निर्णय केवल व्यक्तिगत दंड नहीं था, बल्कि यह शाही संस्थान की साख बचाने का कदम था। महारानी एलिज़ाबेथ ने यह निर्णय राजपरिवार की सामूहिक प्रतिष्ठा की रक्षा हेतु लिया, ताकि व्यक्तिगत विवाद पूरे राजतंत्र की नैतिक नींव को प्रभावित न करे।
एपस्टीन कांड का व्यापक संदर्भ
जेफरी एपस्टीन का नाम वैश्विक यौन अपराध और वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों में कुख्यात रहा है। 2008 में उन्हें फ्लोरिडा में नाबालिगों के यौन शोषण के लिए दोषी ठहराया गया, पर उन्हें अपेक्षाकृत हल्की सजा मिली — एक ऐसा निर्णय जिसने अमेरिकी न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न उठाए।
2019 में उनकी पुनः गिरफ्तारी के बाद, एपस्टीन को जेल में मृत पाया गया। यह “आत्महत्या” थी या किसी गहरे षड्यंत्र का हिस्सा — यह अब भी बहस का विषय है। एपस्टीन का नेटवर्क राजनेताओं, उद्योगपतियों, अरबपतियों और सेलिब्रिटियों तक फैला हुआ था।
राजकुमार एंड्रयू की एपस्टीन से पुरानी जान-पहचान, उनकी 1999 से चली आ रही मित्रता और 2010 में लंदन में उनकी मुलाकात ने ब्रिटिश जनमानस में गहरी असहजता पैदा की। एक ऐसे समय में जब #MeToo आंदोलन ने दुनियाभर में महिलाओं की आवाज़ को सशक्त किया था, राजकुमार का नाम इस घोटाले में जुड़ना ब्रिटिश शाही परिवार के लिए नैतिक संकट का प्रतीक बन गया।
संस्थागत प्रतिक्रिया और जनमत
राजकुमार एंड्रयू के खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं हुई, किंतु नैतिक दृष्टि से उन्हें सार्वजनिक जीवन से लगभग बाहर कर दिया गया।
- ब्रिटिश मीडिया ने उनके साक्षात्कारों और सार्वजनिक बयानों को “self-damaging” बताया।
- चैरिटी संगठनों ने उनसे जुड़ी सभी भूमिकाएँ समाप्त कर दीं।
- जनमत सर्वेक्षणों में 70% से अधिक ब्रिटिश नागरिकों ने माना कि राजकुमार को स्थायी रूप से सार्वजनिक कर्तव्यों से मुक्त कर देना चाहिए।
राजपरिवार ने इस संकट को सीमित रखने के लिए संस्थागत अनुशासन का परिचय दिया, परंतु आलोचकों का मत है कि यह निर्णय “नैतिक दबाव” के कारण लिया गया, न कि पारदर्शिता की भावना से।
व्यापक निहितार्थ
राजकुमार एंड्रयू प्रकरण ने आधुनिक राजतंत्रों की उस सीमा रेखा को स्पष्ट किया जहाँ व्यक्तिगत नैतिकता, कानूनी जिम्मेदारी और संस्थागत गरिमा आपस में टकराते हैं।
- यह मामला दर्शाता है कि नैतिक जवाबदेही अब किसी भी शाही विशेषाधिकार से ऊपर हो चुकी है।
- सार्वजनिक विश्वास अब राजतंत्र की वैधता का मुख्य आधार बन गया है।
- इस घटना ने ब्रिटिश समाज में यह विमर्श भी जन्म दिया कि क्या राजपरिवार जैसी संस्थाएँ अब केवल प्रतीकात्मक भूमिका तक सीमित हो जानी चाहिए।
निष्कर्ष
राजकुमार एंड्रयू की उपाधियों का ह्रास केवल व्यक्तिगत पतन की कहानी नहीं, बल्कि एक संस्थागत चेतावनी है। यह उस युग की शुरुआत का संकेत है जहाँ पारंपरिक सत्ता और विशेषाधिकार अब नैतिक दायित्वों से मुक्त नहीं रह सकते।
ब्रिटिश राजपरिवार ने व्यक्ति की बजाय संस्था को प्राथमिकता देकर अपनी प्रतिष्ठा बचाने का प्रयास किया, किंतु यह भी स्पष्ट हो गया कि जनता की दृष्टि में राजतंत्र को अब निरंतर पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और नैतिक सुदृढ़ता के साथ स्वयं को प्रमाणित करना होगा।
भविष्य में, ब्रिटिश राजतंत्र की प्रासंगिकता केवल उसके इतिहास पर नहीं, बल्कि उसके आचरण और नैतिक नेतृत्व पर निर्भर करेगी।
संदर्भ
- Buckingham Palace Statement, 13 January 2022.
- Giuffre v. Prince Andrew, U.S. District Court, Southern District of New York (2021).
- BBC Newsnight Interview with Prince Andrew, 16 November 2019.
- U.S. v. Epstein, Southern District of Florida (2008).
Comments
Post a Comment