Iran’s Hijab Protests After Mahsa Amini: A Historic Turning Point in Social and Cultural Transformation
महसा अमीनी के बाद ईरान में अनिवार्य हिजाब के विरुद्ध खुला प्रतिरोध: सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन की दिशा में एक ऐतिहासिक विकास
सारांश (Abstract)
महसा अमीनी की मृत्यु के पश्चात् ईरान में उभरा “महिला, जीवन, स्वतंत्रता” आंदोलन अब केवल क्षणिक जनआक्रोश नहीं, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक चेतना के दीर्घकालिक पुनर्गठन का प्रतीक बन चुका है। तीन वर्षों में यह प्रतिरोध राजधानी तेहरान से निकलकर छोटे नगरों और परंपरागत रूप से रूढ़िवादी क्षेत्रों तक फैल गया है। यह लेख स्थानीय समाचार, सोशल मीडिया सामग्री, साक्षात्कारों और उपलब्ध अकादमिक अध्ययनों के आधार पर यह विश्लेषण करता है कि अनिवार्य हिजाब-विरोध अब किस प्रकार एक व्यापक सामाजिक विमर्श में परिवर्तित हो गया है, जो न केवल लैंगिक समानता की मांग करता है बल्कि शासन की वैचारिक वैधता को भी चुनौती देता है।
1. परिचय (Introduction)
सितंबर 2022 में महसा अमीनी, एक 22 वर्षीय कुर्द-ईरानी युवती, को ईरान की मोरैलिटी पुलिस ने कथित रूप से “अनुचित तरीके से हिजाब पहनने” के आरोप में हिरासत में लिया। कुछ ही घंटों बाद उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना ने न केवल घरेलू बल्कि वैश्विक स्तर पर आक्रोश भड़काया।
“महिला, जीवन, स्वतंत्रता (زن، زندگی، آزادی)” का नारा उस असंतोष का प्रतीक बन गया जो वर्षों से ईरानी समाज में दबा हुआ था—राज्य नियंत्रण, लैंगिक असमानता, और धार्मिक आदेशों के नाम पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दमन के विरुद्ध।
प्रारंभिक विरोध मुख्यतः तेहरान और कुछ विश्वविद्यालय परिसरों तक सीमित था, परंतु अगले वर्षों में यह आंदोलन धीरे-धीरे देश के भीतर सामाजिक चेतना के एक स्थायी स्वरूप में बदल गया। आज रश्त, केर्मानशाह, हमदान और देज़फुल जैसे पारंपरिक नगरों में भी महिलाएँ सार्वजनिक स्थलों पर बिना हिजाब देखी जा सकती हैं—यह ईरान के समाज में हो रहे गहरे मानसिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का द्योतक है।
2. अध्ययन की पद्धति (Methodology)
यह लेख गुणात्मक पद्धति पर आधारित है। विश्लेषण के लिए उपयोग किए गए प्रमुख स्रोत निम्न हैं—
- साक्षात्कार: विभिन्न आयु-वर्ग की ईरानी महिलाओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं से लिए गए अनाम साक्षात्कार (2025)।
- स्थानीय समाचार और रिपोर्टें: रश्त, केर्मानशाह, देज़फुल और हमदान में प्रतिरोध की घटनाओं पर आधारित स्थानीय पत्रकारिता रिपोर्टें।
- सोशल मीडिया सामग्री: इंस्टाग्राम और X (पूर्व ट्विटर) पर प्रसारित वीडियो, पोस्ट और प्रत्यक्ष नागरिक गवाही।
- अकादमिक साहित्य: लिंग, प्रतिरोध और राज्य सत्ता पर आधारित शोध—जैसे बेयात (2024) और रहीमीह (2023) के कार्य।
संवेदनशीलता के कारण साक्षात्कारकर्ताओं की पहचान गोपनीय रखी गई है। विश्लेषण का उद्देश्य किसी राजनीतिक पक्ष का समर्थन नहीं, बल्कि ईरानी समाज में हो रहे सामाजिक-सांस्कृतिक रूपांतरण को समझना है।
3. प्रतिरोध का भौगोलिक और सामाजिक प्रसार (The Geographical and Social Spread of Defiance)
प्रारंभिक विरोध की जड़ें तेहरान जैसे शहरी केंद्रों में थीं, जहाँ उच्च शिक्षा, इंटरनेट की पहुँच और राजनीतिक बहसों की संस्कृति अपेक्षाकृत विकसित है। किंतु 2023 से 2025 के बीच आंदोलन का प्रसार उल्लेखनीय रूप से प्रांतीय नगरों तक हुआ।
- रश्त (उत्तर ईरान): स्थानीय बाजारों और परिवहन स्थलों पर महिलाओं का खुले सिर के साथ चलना आम दृश्य बन चुका है। स्थानीय रिपोर्टें बताती हैं कि अब वहां पुलिस गश्त कम प्रभावी रही है।
- केर्मानशाह (पश्चिम ईरान): यहाँ धार्मिक प्रभाव अधिक है, फिर भी कई शिक्षित युवतियाँ अब विश्वविद्यालय परिसरों में हिजाब उतारकर चलती हैं।
- देज़फुल (दक्षिण-पश्चिम): पारंपरिक परिवारों की कुछ महिलाओं ने कहा कि वे “पूर्व-क्रांतिकारी (1979) फैशन और परिधान शैली” से प्रेरणा ले रही हैं—यह एक सांस्कृतिक पुनर्परिभाषा का संकेत है।
हमदान की एक छात्रा ने बताया—“महसा के बाद यह समझ आया कि यह केवल एक कपड़े का प्रश्न नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व की गरिमा का प्रश्न है।” यह बयान पूरे आंदोलन की आत्मा को अभिव्यक्त करता है।
4. प्रतिरोध के सामाजिक-राजनीतिक कारक (Socio-Political Drivers)
(क) पीढ़ीय परिवर्तन (Generational Shift)
ईरान की नई पीढ़ी, विशेषकर मिलेनियल्स और जेनरेशन Z, वैश्विक डिजिटल संस्कृति में पली-बढ़ी है। इन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से न केवल पश्चिमी विचारों बल्कि अरबी, कुर्दिश और तुर्की नारी आंदोलनों से भी संवाद का अवसर मिला।
बेयात (2024) के अनुसार, “डिजिटल माध्यमों ने ईरान में महिला प्रतिरोध को निजी असहमति से सामूहिक चेतना में रूपांतरित कर दिया।”
(ख) आर्थिक असंतोष और राजनीतिक निराशा
महँगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार ने आम जनता को शासन के प्रति असंतुष्ट किया है। मोरैलिटी पुलिस और धार्मिक नियंत्रण अब आर्थिक दुर्दशा का प्रतीक बन चुके हैं। महिलाएँ जब हिजाब उतारती हैं, तो वह केवल लिंग आधारित असहमति नहीं, बल्कि शासन के नैतिक अधिकार को चुनौती देने का प्रतीक बन जाता है (रहीमीह, 2023)।
(ग) सांस्कृतिक आत्म-पुनर्प्राप्ति (Cultural Reclamation)
हिजाब त्यागना केवल आधुनिकता की ओर झुकाव नहीं, बल्कि अपनी ऐतिहासिक पहचान की पुनःप्राप्ति भी है। कई महिलाएँ इसे “पूर्व-क्रांतिकारी ईरान” से सांस्कृतिक संवाद के रूप में देखती हैं, जब परिधान पर राज्य नियंत्रण नहीं था। यह राष्ट्र की सांस्कृतिक स्मृति को पुनः सक्रिय करने की प्रक्रिया है।
5. राज्य की प्रतिक्रिया और समाज की प्रत्युत्तर प्रक्रिया (State Response and Societal Reaction)
राज्य की प्रतिक्रिया दोहरी रही है—
एक ओर, सरकार ने मोरैलिटी पुलिस की गश्त और निगरानी कैमरों की संख्या बढ़ाई; दूसरी ओर, व्यावहारिक रूप से उसने कई शहरों में ढील भी दी।
इस दमन के बावजूद महिलाओं का प्रतिरोध रुका नहीं। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में पुलिस हिंसा, जब्ती और गिरफ्तारी की घटनाएँ दर्ज की गईं, जिन्होंने विरोध को और अधिक नैतिक बल प्रदान किया।
साथ ही, समाज के भीतर एक नई सहानुभूति उभरी। पुरुष व्यापारियों, कलाकारों और विश्वविद्यालय प्राध्यापकों ने सार्वजनिक रूप से इस आंदोलन का समर्थन किया। केर्मानशाह के कुछ दुकानदारों ने कहा—“हम किसी भी महिला की शिकायत नहीं करेंगे; यह उनका अधिकार है।”
इस प्रकार, प्रतिरोध केवल महिला मुद्दा नहीं रहा; यह सामाजिक नैतिकता और सामुदायिक एकता का नया विमर्श बन चुका है।
6. व्यापक निहितार्थ (Implications for Iran’s Future)
ईरान में हिजाब-विरोध आंदोलन ने इस्लामी गणराज्य की वैचारिक संरचना को चुनौती दी है, जो 1979 की क्रांति के बाद से “धार्मिक अनुशासन के माध्यम से नैतिक समाज” के सिद्धांत पर आधारित रही है।
अब यह सिद्धांत अंदर से क्षीण होता दिख रहा है—विशेषकर तब जब छोटे शहरों की महिलाएँ भी धार्मिक निर्देशों को सामाजिक दबाव से अधिक व्यक्तिगत चयन के रूप में देखने लगी हैं।
भविष्य के लिए यह आंदोलन दो स्तरों पर निर्णायक सिद्ध हो सकता है—
- सांस्कृतिक स्तर पर यह ईरान की युवा पीढ़ी में नई नागरिक पहचान और स्वायत्तता की भावना को जन्म दे रहा है।
- राजनीतिक स्तर पर यह शासन को नैतिक वैधता और जन-सहमति के नए मापदंडों की ओर धकेल सकता है।
हालाँकि, शासन की दमनकारी प्रवृत्ति और धार्मिक परिषदों का संस्थागत नियंत्रण इस परिवर्तन को धीमा कर सकता है। फिर भी, यह आंदोलन अब लौटने की स्थिति में नहीं दिखता।
7. निष्कर्ष (Conclusion)
महसा अमीनी की मृत्यु से उपजा आक्रोश अब ईरानी समाज के भीतर एक दीर्घकालिक आंदोलन में परिवर्तित हो चुका है। यह आंदोलन महिलाओं के शरीर पर राज्य के अधिकार को अस्वीकार करता है और नागरिकता के नये प्रतिमान प्रस्तुत करता है।
तेहरान से देज़फुल तक फैले इस प्रतिरोध ने यह सिद्ध कर दिया है कि सांस्कृतिक परिवर्तन किसी सरकारी आदेश से नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक चेतना से आता है। हिजाब-विरोध अब केवल परिधान की असहमति नहीं, बल्कि ईरान के भविष्य की सामाजिक दिशा पर एक खुली बहस है।
यदि यह चेतना इसी रूप में बनी रही, तो आने वाले दशक में ईरान के समाज में एक नई संवैधानिक और सांस्कृतिक पुनर्संरचना की संभावना असंभव नहीं है।
संदर्भ सूची (References)
- बेयात, असीफ. (2024). डिजिटल प्रतिरोध और ईरान में लैंगिक विमर्श. जर्नल ऑफ मिडल ईस्ट स्टडीज़, 45(3), 123–140.
- रहीमीह, नईला. (2023). पोस्ट-क्रांतिकारी ईरान में महिला आंदोलन और राज्य की प्रतिक्रिया. जेंडर एंड सोसाइटी, 37(2), 89–105.
- वॉशिंगटन पोस्ट. (2025). “Iran’s Women Defy Hijab Laws in Growing Numbers.”
- स्थानीय समाचार (2025). रश्त, केर्मानशाह, हमदान एवं देज़फुल से संकलित रिपोर्टें.
- सोशल मीडिया विश्लेषण (2025). इंस्टाग्राम और X से संकलित वीडियो एवं पोस्टों का विश्लेषण.
- साक्षात्कार (2025). ईरानी महिलाओं के छद्मनामित साक्षात्कार.
✍️ लेखक टिप्पणी (Author’s Note)
यह लेख ईरान में उभरते सामाजिक परिवर्तन की एक अकादमिक व्याख्या प्रस्तुत करता है। यह किसी राजनीतिक दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करता, बल्कि उस ऐतिहासिक प्रक्रिया को रेखांकित करता है जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मांग धीरे-धीरे सामूहिक चेतना का रूप ले रही है।
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