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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Trump Targets India in UNGA 2025 Speech: Outrageous War and Peace Claims Analyzed

संपादकीय: ट्रंप का यूएनजीए भाषण और भारत पर अनुचित निशाना

संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 80वें सत्र में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हालिया भाषण एक बार फिर उनकी अप्रत्याशित और विवादास्पद शैली को सामने लाया। इस भाषण में भारत को बार-बार निशाना बनाया गया, जिसमें ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष को समाप्त करने का श्रेय लिया और रूस-यूक्रेन युद्ध को भारत व चीन द्वारा वित्तपोषित बताया। ये दावे न केवल अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, बल्कि तथ्यों से परे भी हैं। ट्रंप का यह रवैया न केवल भारत-अमेरिका संबंधों के लिए चुनौतीपूर्ण है, बल्कि वैश्विक कूटनीति में उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है।

ट्रंप ने अपने भाषण में दावा किया कि उन्होंने सात महीनों में सात युद्ध समाप्त किए, जिनमें भारत-पाकिस्तान संघर्ष भी शामिल है। यह दावा हैरान करने वाला है, क्योंकि भारत ने स्पष्ट किया है कि इस मुद्दे पर कोई अमेरिकी हस्तक्षेप नहीं हुआ। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ट्रंप के दावों को खारिज करते हुए कहा कि भारत-पाकिस्तान सीजफायर में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी। इसी तरह, ट्रंप का यह आरोप कि भारत रूसी तेल खरीदकर युद्ध को वित्तपोषित कर रहा है, न केवल अनुचित है, बल्कि यह भी भूल जाता है कि भारत की ऊर्जा खरीद राष्ट्रीय हितों और वैश्विक बाजार की वास्तविकताओं पर आधारित है। भारत ने इस आलोचना का जवाब देते हुए कहा कि उसका तेल व्यापार राष्ट्रीय बाध्यता नहीं, बल्कि किफायती ऊर्जा सुनिश्चित करने की जरूरत है। यह देखना विडंबनापूर्ण है कि ट्रंप ने उन यूरोपीय देशों की आलोचना नहीं की, जो रूसी ऊर्जा पर निर्भर हैं, जबकि भारत को निशाना बनाया।

ट्रंप का यह भाषण उनकी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का एक और उदाहरण है, जिसमें वह वैश्विक मंच का उपयोग अपनी छवि को चमकाने और घरेलू राजनीति को मजबूत करने के लिए करते हैं। नोबेल शांति पुरस्कार की उनकी अप्रत्यक्ष मांग और संयुक्त राष्ट्र को 'निष्क्रिय' बताना उनकी कूटनीतिक शैली की अपरिपक्वता को दर्शाता है। वैश्विक समुदाय, विशेष रूप से भारत जैसे उभरते देश, इस तरह की बयानबाजी को गंभीरता से लेने के बजाय तथ्यों पर ध्यान देना पसंद करते हैं। ट्रंप के दावों में ठोस सबूतों का अभाव और उनके द्वारा उल्लिखित कई संघर्षों का अभी भी अनसुलझा होना उनकी विश्वसनीयता को कम करता है।

भारत के लिए यह भाषण एक महत्वपूर्ण संदेश है। ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीतियां और भारत पर व्यापारिक दबाव वैश्विक व्यापार और कूटनीति में नई चुनौतियां ला सकते हैं। भारत को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को और मजबूत करते हुए वैकल्पिक व्यापारिक साझेदारियों और ऊर्जा स्रोतों की तलाश करनी होगी। साथ ही, यह भी जरूरी है कि भारत वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को स्पष्ट और दृढ़ता से रखे। ट्रंप की आलोचना को एक अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए, जहां भारत अपनी कूटनीतिक परिपक्वता और आत्मनिर्भरता को प्रदर्शित कर सकता है।

वैश्विक कूटनीति में संयम और तथ्यपरकता की जरूरत होती है, न कि अतिशयोक्तिपूर्ण दावों और एकपक्षीय आलोचनाओं की। ट्रंप का भाषण इस बात का सबूत है कि उनकी नीतियां वैश्विक सहयोग के बजाय टकराव को बढ़ावा दे सकती हैं। भारत को इस तरह के दबावों का जवाब अपनी मजबूत आर्थिक और कूटनीतिक रणनीतियों के साथ देना होगा। यह समय है कि भारत न केवल अपनी स्थिति को स्पष्ट करे, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को और सशक्त करे।

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