Skip to main content

MENU👈

Show more

Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Repo Rate Cut: New RBI Governor's Policy Initiatives and Potential Impact on the Economy


रेपो रेट में कटौती: नए RBI गवर्नर की नीतिगत पहल और अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने हाल ही में मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में एक बड़ा निर्णय लिया, जिसमें रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती करके इसे 6.25% कर दिया गया। यह पिछले 5 वर्षों में पहली बार हुआ है जब रेपो रेट में कमी की गई है। इस फैसले से बाजार, बैंकिंग सेक्टर और आम जनता पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है।

इस संपादकीय में हम रेपो रेट के इस बदलाव के पीछे के कारणों, इसके संभावित प्रभावों और भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

रेपो रेट क्या है और इसका अर्थव्यवस्था पर प्रभाव?

रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण प्रदान करता है। जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति बढ़ने लगती है, तो RBI रेपो रेट बढ़ाकर मुद्रा प्रवाह को नियंत्रित करता है। इसके विपरीत, जब आर्थिक गतिविधियाँ धीमी पड़ने लगती हैं, तो रेपो रेट में कटौती की जाती है ताकि सस्ते कर्ज के जरिए उपभोग और निवेश को बढ़ावा दिया जा सके।

रेपो रेट कम होने से क्या होता है?

1. बैंकों को सस्ता कर्ज मिलता है, जिससे वे कम ब्याज दर पर आम जनता को ऋण दे सकते हैं।

2. होम लोन, ऑटो लोन, बिजनेस लोन आदि की ब्याज दरों में कमी आ सकती है।

3. उपभोक्ता मांग में वृद्धि होती है, जिससे उद्योगों को फायदा होता है और आर्थिक विकास को गति मिलती है।

4. बाजार में नकदी प्रवाह बढ़ता है, जिससे शेयर बाजार में भी सकारात्मक रुझान देखने को मिल सकता है।

रेपो रेट में कटौती के पीछे के प्रमुख कारण

1. आर्थिक विकास को गति देने की जरूरत

भारत की GDP वृद्धि दर में हाल के वर्षों में मंदी के संकेत देखे गए हैं। कोविड-19 महामारी के बाद, अर्थव्यवस्था ने भले ही वापसी की हो, लेकिन उपभोग और निवेश अभी भी अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंचे हैं। रेपो रेट में कटौती से उद्योगों को अधिक ऋण मिलेगा, जिससे विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में वृद्धि हो सकती है।

2. महंगाई दर में नियंत्रण

महंगाई (Inflation) को नियंत्रण में रखना RBI का एक प्रमुख उद्देश्य होता है। यदि महंगाई दर ज्यादा होती है, तो रेपो रेट बढ़ाया जाता है, और यदि यह नियंत्रित स्तर पर होती है, तो कटौती संभव होती है। हाल के महीनों में मुद्रास्फीति दर में कुछ स्थिरता देखने को मिली है, जिससे RBI को रेपो रेट घटाने का अवसर मिला।

3. वैश्विक आर्थिक परिस्थितियाँ

अमेरिका और यूरोप में ब्याज दरों में स्थिरता आने लगी है, जिससे भारत जैसे विकासशील देशों को अपनी मौद्रिक नीतियों में कुछ नरमी लाने का मौका मिला है। वैश्विक स्तर पर भी कच्चे तेल की कीमतों में नरमी आई है, जिससे महंगाई पर नियंत्रण रखने में मदद मिली है।

4. रोजगार बढ़ाने की जरूरत

भारत में बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। रेपो रेट में कटौती से लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) को सस्ता कर्ज मिलेगा, जिससे वे अधिक निवेश कर सकेंगे और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव

1. बैंकों की ब्याज दरों में कमी

जब RBI रेपो रेट घटाता है, तो बैंकों को सस्ता कर्ज मिलता है, जिससे वे ऋण की ब्याज दरें कम कर सकते हैं। इसका सीधा असर होम लोन, ऑटो लोन, एजुकेशन लोन, पर्सनल लोन और बिजनेस लोन पर पड़ता है। इससे उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी और ऋण लेने की प्रवृत्ति बढ़ेगी।

2. बैंकों की मार्जिन पर प्रभाव

हालांकि रेपो रेट में कटौती से कर्ज की मांग बढ़ती है, लेकिन बैंकों की नेट इंटरेस्ट मार्जिन (NIM) पर दबाव पड़ सकता है। यदि बैंकों को अपने मौजूदा ग्राहकों की सावधि जमा (Fixed Deposits) पर ऊंची ब्याज दरें देनी पड़ती हैं, तो उनके लिए कम ब्याज दर पर ऋण देना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

3. गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) घट सकती हैं

यदि ब्याज दरें कम होती हैं, तो ग्राहकों के लिए ऋण चुकाना आसान हो जाता है, जिससे डिफॉल्ट की संभावना कम होती है और बैंकों की NPA समस्या को हल करने में मदद मिल सकती है।

आम जनता पर प्रभाव

1. होम लोन और ऑटो लोन होंगे सस्ते

रेपो रेट में कटौती का सबसे बड़ा फायदा होम लोन और ऑटो लोन लेने वालों को मिलेगा। ब्याज दरों में कमी से नए खरीदारों के लिए ऋण सस्ता होगा, जिससे रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल सेक्टर को फायदा होगा।

2. बचत पर प्रभाव

कम ब्याज दरों का मतलब यह भी है कि बैंकों में जमा राशि पर मिलने वाला ब्याज कम हो सकता है। इससे FD और बचत खातों पर ब्याज दरों में कटौती हो सकती है, जिससे वरिष्ठ नागरिकों और उन लोगों को नुकसान हो सकता है जो अपनी बचत पर निर्भर रहते हैं।

3. महंगाई पर संभावित असर

यदि ब्याज दरें कम होने के कारण मांग में बहुत अधिक वृद्धि होती है, तो महंगाई बढ़ सकती है। हालांकि, वर्तमान परिस्थितियों में महंगाई दर नियंत्रण में है, इसलिए इसका तत्काल प्रभाव देखने को नहीं मिलेगा।

शेयर बाजार पर प्रभाव

1. निवेशकों की धारणा होगी मजबूत

कम ब्याज दरें होने से निवेशकों का झुकाव शेयर बाजार की ओर बढ़ सकता है क्योंकि FD और अन्य सुरक्षित निवेश विकल्पों पर रिटर्न कम होगा। इससे शेयर बाजार में तेजी आने की संभावना है।

2. रियल एस्टेट और ऑटो सेक्टर में उछाल

होम लोन और ऑटो लोन सस्ते होने से इन सेक्टरों में मांग बढ़ेगी, जिससे शेयर बाजार में इनसे जुड़े स्टॉक्स में भी तेजी देखी जा सकती है।

सरकार और RBI की चुनौतियाँ

हालांकि रेपो रेट में कटौती से कई फायदे हैं, लेकिन सरकार और RBI को कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों से भी निपटना होगा—

1. महंगाई नियंत्रण में रखना: यदि सस्ते कर्ज से बहुत अधिक नकदी प्रवाहित होती है, तो महंगाई बढ़ सकती है।

2. बैंकों की स्थिरता सुनिश्चित करना: बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि सस्ते ऋण देने के बावजूद उनकी वित्तीय सेहत मजबूत बनी रहे।

3. बचतकर्ताओं को संतुलित रिटर्न देना: कम ब्याज दरों के कारण बचत पर असर पड़ सकता है, जिससे वरिष्ठ नागरिकों को दिक्कत हो सकती है।

निष्कर्ष

RBI का यह फैसला भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे बाजार में नकदी प्रवाह बढ़ेगा, निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और आम जनता को कर्ज सस्ता मिलेगा। हालांकि, इसके कुछ संभावित जोखिम भी हैं, जिनका संतुलन बनाए रखना आवश्यक होगा।

आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि बैंक इस कटौती को ग्राहकों तक कितनी जल्दी और कितने प्रभावी तरीके से पहुंचाते हैं। यदि सही नीतियाँ अपनाई जाती हैं, तो यह निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।


Previous & Next Post in Blogger
|
✍️ARVIND SINGH PK REWA

Comments

Advertisement

POPULAR POSTS