पुतिन का भारत इंटरव्यू: विश्व राजनीति के बदलते समीकरणों में एक नया संकेत
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इन दिनों भारत दौरे पर हैं। दिल्ली पहुंचते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़कर एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया। दोनों नेताओं के बीच यह मुलाक़ात सिर्फ़ औपचारिकता नहीं, बल्कि दो पुराने साझेदारों के बीच बढ़ते विश्वास और नई वैश्विक राजनीति की पृष्ठभूमि में उभरते साझेदारी मॉडल का प्रतीक है।
भारत पहुंचने से पहले पुतिन ने एक विस्तृत बातचीत में भारत–रूस संबंधों, वैश्विक परिस्थिति, ऊर्जा नीति, रक्षा सहयोग, अमेरिका और यूक्रेन संघर्ष जैसे बड़े विषयों पर खुलकर अपने विचार रखे। उनकी बातचीत आज की बदलती विश्व-व्यवस्था पर एक अवधारणात्मक दृष्टि प्रस्तुत करती है।
भारत–रूस संबंध: इतिहास से आधुनिक रणनीति तक
पुतिन के अनुसार भारत और रूस के रिश्ते केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि समय की कसौटी पर खरे उतरने वाले ऐतिहासिक संबंध हैं।
भारत की आज़ादी से लेकर आज 77 वर्षों में हुए परिवर्तन का वे विशेष उल्लेख करते हैं। वे कहते हैं:
- भारत ने कम समय में असाधारण प्रगति की है।
- औसत जीवन-आयु दोगुनी से अधिक हो चुकी है।
- सामाजिक-आर्थिक सूचकांकों में भारत ने दुनिया को चौंकाने वाली छलांग लगाई है।
पुतिन का मानना है कि मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व राजनीति में एक स्वतंत्र आवाज के रूप में उभरा है, जो न दबाव में आता है, न टकराव की राह चुनता है—बल्कि अपने हितों की रक्षा करते हुए संतुलिन और व्यवहारिक नीति अपनाता है।
दोस्ती की परंपरा: मॉस्को से SCO समिट तक
SCO समिट के दौरान दोनों नेताओं की कार यात्रा का उल्लेख करते हुए पुतिन कहते हैं कि यह मुलाक़ात कोई औपचारिक बातचीत नहीं थी—यह दो दोस्तों के बीच सहज संवाद जैसा था।
उनके अनुसार:
- दोनों नेताओं के बीच हर मुलाक़ात में “बहुत कुछ चर्चा करने को” रहता है।
- दोनों नेताओं की बातचीत तैयार किए गए स्क्रिप्ट से अधिक, वास्तविक मुद्दों पर केंद्रित होती है।
यह बातें उनकी निजी समीपता को दर्शाती हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती का आधार है।
ऊर्जा सहयोग: क्यों परेशान है पश्चिम?
पुतिन के अनुसार भारत–रूस ऊर्जा साझेदारी को पश्चिमी देश राजनीतिक दबाव बनाकर प्रभावित करना चाहते हैं, लेकिन यह सहयोग “विश्वास और दीर्घकालिक साझेदारी” पर आधारित है।
मुख्य बिंदु:
- रूस ने भारत में लगभग 20 अरब डॉलर का निवेश तेल रिफाइनरी क्षेत्र में किया है।
- भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर यूरोप का प्रमुख सप्लायर बन गया है।
- पश्चिम इस बदलते समीकरण से असहज है।
पुतिन का आरोप है कि भारत को “राजनीतिक हथकंडों” से परेशान किया जा रहा है, क्योंकि सस्ते रूसी तेल ने वैश्विक बाजारों में शक्तियों का संतुलन बदल दिया है।
रक्षा साझेदारी: हथियारों से आगे बढ़कर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर
रूसी राष्ट्रपति के अनुसार रक्षा क्षेत्र में भारत–रूस सहयोग विश्व में अद्वितीय है:
- भारत केवल रूसी हथियार नहीं खरीदता, बल्कि
टेक्नोलॉजी, लाइसेंस और उत्पादन अधिकार प्राप्त करता है। - चाहें ब्रह्मोस, टी-90, एसयू-57, या कलाश्निकोव—भारत इनका संयुक्त उत्पादन करता है।
- रक्षा सहयोग केवल सौदेबाज़ी नहीं, बल्कि “साझा निर्माण और उन्नत तकनीक साझा करने” का मॉडल है।
पुतिन का कहना है कि रक्षा क्षेत्र में इस स्तर का विश्वास किसी भी दो देशों में दुर्लभ है।
रुपया–रूबल व्यापार: डॉलर निर्भरता से मुक्ति की दिशा
रूसी राष्ट्रपति बताते हैं कि भारत और रूस के बीच 90% लेन-देन राष्ट्रीय मुद्राओं में होता है।
हालांकि, मध्यस्थ बैंकिंग व्यवस्था में कुछ समस्याएं हैं जिन्हें जल्द ही दोनों देश मिलकर हल करना चाहते हैं।
उनका लक्ष्य है:
- भारत–रूस बैंकिंग गेटवे,
- जो किसी बाहरी दबाव से मुक्त वित्तीय प्रणाली प्रदान करेगा।
परमाणु ऊर्जा में रूस की अहम भूमिका
पुतिन ने संकेत दिया कि भारत के साथ छोटे और आधुनिक परमाणु रिएक्टरों पर बड़ा समझौता संभव है।
रूस की विशेषज्ञता:
- दुनिया के विभिन्न देशों में 22 रिएक्टर स्थापित,
- छोटे-मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) तकनीक में अग्रणी,
- समुद्र, भूमि और दुर्गम क्षेत्रों में लागू किए जाने योग्य समाधान।
यह सहयोग आने वाले वर्षों में भारत की ऊर्जा सुरक्षा का महत्वपूर्ण स्तंभ बन सकता है।
अमेरिका पर सीधा सवाल: भारत करे तो गलत क्यों?
पुतिन का सवाल तर्कपूर्ण था:
“अमेरिका खुद रूस से यूरेनियम और परमाणु ईंधन खरीदता है,
तो भारत द्वारा ऊर्जा खरीदने पर उसे समस्या क्यों है?”
उनका तर्क है कि वैश्विक राजनीति में दोहरे मानदंड स्वीकार्य नहीं हो सकते।
यूक्रेन संघर्ष: पुतिन की नजर में ‘रक्षा युद्ध’
पुतिन का पक्ष:
- रूस ने युद्ध शुरू नहीं किया, बल्कि पश्चिम और यूक्रेन के कट्टरपंथियों ने संघर्ष भड़काया।
- रूस 8 साल तक शांतिपूर्ण समाधान की प्रतीक्षा करता रहा।
- डोनबास क्षेत्र में रूसी-भाषी लोगों पर अत्याचार हुए।
- मिन्स्क समझौते केवल “समय खरीदने का तरीका” थे—पश्चिम का वास्तविक इरादा युद्ध को टालना नहीं था।
पुतिन इसे
धर्म, भाषा, संस्कृति और परंपरा की रक्षा
का युद्ध बताते हैं।
ट्रंप पर टिप्पणी: पीसमेकर?
पुतिन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में सकारात्मक रुख दिखाया:
- उनका विश्वास है कि ट्रंप वास्तव में युद्ध समाप्त करना चाहते हैं हलाकि इसमें उनके राष्ट्रीय हित हो सकते हैं।
- बड़े-बड़े अमेरिकी निगम भी रूस–यूक्रेन तनाव खत्म होते ही रूस से व्यापार फिर से शुरू करने को तैयार हैं।
- पुतिन ट्रंप को “मानवीय दृष्टि रखने वाला नेता” बताते हैं।
हालांकि, वे यह भी कहते हैं कि वार्ता अभी शुरुआती चरण में है और निष्कर्ष पर पहुँचना जल्दबाज़ी होगी।
जेलेंस्की सरकार पर कठोर आरोप
पुतिन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की पर तीखा हमला किया:
- उन्होंने शांति का वादा किया, पर नियो-नाजी समूहों के दबाव में युद्ध का रास्ता अपनाया।
- रूसी भाषा और रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च पर प्रतिबंध लगाए।
- राजनीतिक टकराव को पहचान संबंधी संघर्ष में बदल दिया।
वे कहते हैं:
“समस्याओं का समाधान केवल वार्ता से संभव है,
युद्ध से नहीं।”
नाटो: रूस की सुरक्षा चिंता
पुतिन स्पष्ट कहते हैं:
- हर देश को सुरक्षा का अधिकार है,
- लेकिन किसी की सुरक्षा दूसरे देश की असुरक्षा में बदल जाए—यह स्वीकार्य नहीं।
यूक्रेन नाटो के माध्यम से सुरक्षा चाहता है लेकिन यह रूस की असुरक्षा को खतरे में डालता है, यही विवाद की जड़ है।
हम चाहते हैं की यूक्रेन ऐसी नीति पर चले जिसमें उक्रेन की भी सुरक्षा हो और रूस की भी सुरक्षा को कोई खतरा न हो।
निष्कर्ष: बदलते विश्व-व्यवस्था में भारत–रूस साझेदारी
इस विस्तृत बातचीत से स्पष्ट है कि:
- पुतिन भारत को केवल साझेदार नहीं—सबसे विश्वसनीय मित्र मानते हैं।
- रक्षा, ऊर्जा, आर्थिक और भू-राजनीतिक क्षेत्रों में भारत–रूस संबंध नए युग में प्रवेश कर चुके हैं।
- अमेरिका और पश्चिम की नीतियों पर पुतिन का दृष्टिकोण सीधा और आलोचनात्मक है।
- यूक्रेन संकट पर उनकी स्थिति पहले से अधिक स्पष्ट, आक्रामक और वैचारिक है।
भारत की भूमिका इस नए वैश्विक परिदृश्य में “संतुलनकारी शक्ति” की है—जो न किसी ब्लॉक का कठपुतली है, न किसी दबाव में झुकने वाला राष्ट्र।
पुतिन की नजर में यही भारत की वास्तविक ताकत है।
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