सुंदरबन की दुल्हनें: समलैंगिक प्रेम से LGBTQ+ विवाह अधिकारों तक – पूरी समीक्षा 2025
परिचय: सुंदरबन से उठी सामाजिक लहर
5 नवंबर 2025 की शाम, सुंदरबन के एक छोटे से गांव में एक ऐसी घटना घटी जिसने प्रेम की परिभाषा को सामाजिक सीमाओं से परे जाकर पुनर्लेखित कर दिया। 19 वर्षीय रिया सरदार और 20 वर्षीय राखी नस्कर ने एक-दूसरे का हाथ थामा, साथ रहने की प्रतिज्ञा ली, और पूरे गांव के सामने अपने प्रेम को सार्वजनिक किया। यह विवाह परंपरागत अर्थों में नहीं था—यह सामाजिक विद्रोह था। मंदिर की घंटियाँ नहीं बजीं, परंतु दिलों में समानता और स्वतंत्रता की ध्वनि गूँज उठी।
वीडियो वायरल हुआ, हैशटैग #SundarbanKiDulhan देशभर में ट्रेंड हुआ। लेकिन इस वायरल कहानी के पीछे छिपे प्रश्न गहरे हैं—क्या यह प्रेम केवल भावनात्मक है, या इसे कानूनी और सामाजिक मान्यता मिलनी चाहिए? क्या ऐसे जोड़े बच्चे गोद ले सकते हैं? IVF का सहारा ले सकते हैं? और क्या भारतीय कानून इस तरह के रिश्तों के लिए तैयार है?
I. कानूनी स्थिति: “लिव-इन रिलेशनशिप” की सीमा में कैद प्रेम
रिया और राखी का यह “विवाह” भारत के कानून के अनुसार वैधानिक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय Supriyo v. Union of India (2023) ने यह स्पष्ट कर दिया कि वर्तमान में भारत में समलैंगिक विवाह को वैधानिक मान्यता नहीं प्राप्त है।
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 दोनों ही विषमलैंगिक (पुरुष-स्त्री) विवाह की परिभाषा पर आधारित हैं।
- इस प्रकार, रिया और राखी को कानून की दृष्टि में केवल “लिव-इन पार्टनर” माना जा सकता है।
हालांकि, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (“जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार”) ऐसे संबंधों को जीने के अधिकार के दायरे में संरक्षण देता है।
साथ ही, Protection of Women from Domestic Violence Act (PWDVA), 2005 और CrPC की धारा 125 (अब BNSS 144) के अंतर्गत, लंबे समय तक साथ रहने वाले जोड़ों को मेंटेनेंस, आश्रय, और साझा संपत्ति का अधिकार मिलता है—यदि निर्भरता और सहजीवन सिद्ध हो जाए।
तीन वर्षों से साथ रहने वाली रिया और राखी इस कानूनी दायरे में आती हैं। लेकिन यह अधिकार “विवाहिक अधिकार” नहीं, बल्कि “सहजीवन संरक्षण” का सीमित रूप है।
II. मातृत्व की दीवार: IVF और गोद लेने का कानूनी विरोधाभास
भारतीय समाज में मातृत्व को स्त्री की पूर्णता का प्रतीक माना गया है, लेकिन जब यह इच्छा समलैंगिक जोड़े में जन्म लेती है, तो कानून मौन हो जाता है।
Assisted Reproductive Technology (ART) Act, 2021 के अनुसार:
- IVF की अनुमति केवल विवाहित विषमलैंगिक जोड़ों या अकेली महिला (विधवा या तलाकशुदा) को दी गई है।
- समलैंगिक जोड़े इस परिभाषा से बाहर हैं।
इसका अर्थ है कि रिया यदि IVF करवाना चाहें तो वे “अकेली महिला” के रूप में आवेदन कर सकती हैं। बच्चे का जैविक संबंध रिया से होगा, लेकिन राखी को उस बच्चे की कानूनी माता नहीं माना जाएगा।
इसी प्रकार, Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015 और CARA (Central Adoption Resource Authority) Guidelines के अनुसार:
- अकेला व्यक्ति गोद ले सकता है, परंतु समलैंगिक जोड़ा नहीं।
इस स्थिति में राखी अकेले गोद ले सकती हैं, लेकिन रिया का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होगा।
यह कानूनी असमानता केवल अधिकारों की कमी नहीं, बल्कि मातृत्व और परिवार की परिभाषा पर एक गहरी सामाजिक टिप्पणी है।
III. सामाजिक दस्तावेज़ों में पहचान की चुनौती
यदि यह जोड़ा किसी बच्चे की परवरिश करे, तो प्रशासनिक प्रक्रियाएँ उनके सामने सबसे बड़ी दीवार बन जाती हैं।
स्कूल, अस्पताल, बैंक, या सरकारी फॉर्म—हर जगह “माता” और “पिता” के कॉलम होते हैं।
- IVF बच्चे के लिए दाता का नाम गोपनीय रखा जाता है, इसलिए “पिता” कॉलम में “अज्ञात” लिखना पड़ता है।
- गोद लिए बच्चे के प्रमाणपत्र में केवल एक माता का नाम दर्ज होता है।
हालाँकि, CBSE ने 2024 में एक महत्वपूर्ण सर्कुलर (No. Acad-45/2024) जारी किया, जिसमें “Parent 1 / Parent 2” का विकल्प दिया गया है।
पश्चिम बंगाल शिक्षा विभाग ने कुछ स्कूलों में “Guardian” शब्द को जोड़ा है।
फिर भी, अधिकांश स्कूलों और सरकारी दस्तावेज़ों में पुराना प्रारूप चलता है, जिससे ऐसे परिवारों को लगातार “प्रमाण” देना पड़ता है कि वे भी अभिभावक हैं।
ऐसे में, रिया-राखी जैसे जोड़ों के लिए नोटरी एफिडेविट बनाना अत्यंत आवश्यक है—जिसमें दोनों एक-दूसरे को अभिभावक घोषित करें, ताकि किसी भी प्रशासनिक संस्था में विवाद न हो।
IV. “मैत्री करार” और कोहैबिटेशन एग्रीमेंट: कानूनी सुरक्षा का भारतीय मार्ग
भारत में अभी समलैंगिक विवाह भले मान्य न हो, परंतु कानूनी अनुबंध (Contractual Relationship) के रूप में रिश्ते को संरक्षित किया जा सकता है।
गुजरात हाईकोर्ट (2020) ने “मैत्री करार” (Friendship Agreement) को मान्यता दी थी, जिसमें दो वयस्क अपने सहजीवन की शर्तें तय करते हैं—संपत्ति, स्वास्थ्य, अलगाव या मृत्यु के बाद अधिकारों की स्थिति आदि।
रिया-राखी यदि कोहैबिटेशन एग्रीमेंट तैयार करें, तो यह दस्तावेज़ निम्न बिंदुओं को कवर कर सकता है:
- अलगाव की स्थिति में मेंटेनेंस की शर्तें
- संपत्ति का बँटवारा
- संतान की परवरिश पर सहमति
- स्वास्थ्य संबंधी निर्णय (Hospital Consent Rights)
- संयुक्त बैंक खाता या वसीयत का प्रावधान
यह अनुबंध कानूनी रूप से विवाह नहीं, परंतु कानूनी सुरक्षा कवच अवश्य है।
V. वैश्विक परिप्रेक्ष्य: भारत क्यों पीछे है?
दुनिया के कई देश इस दिशा में भारत से कहीं आगे हैं।
- कनाडा, नीदरलैंड्स, दक्षिण अफ्रीका, और स्पेन में समलैंगिक जोड़ों को विवाह, गोद लेने और IVF की पूर्ण कानूनी मान्यता है।
- अमेरिका के अधिकांश राज्यों में “Same-Sex Parentage Certificates” जारी होते हैं, जिनमें दोनों अभिभावकों का नाम दर्ज किया जाता है।
- दक्षिण अफ्रीका ने 2006 में संविधान संशोधन द्वारा समलैंगिक विवाह को समान अधिकार दिया था।
भारत में यह परिवर्तन धीरे-धीरे हो सकता है—लेकिन इसके लिए संवैधानिक इच्छाशक्ति और सामाजिक स्वीकृति दोनों आवश्यक हैं।
VI. भविष्य की दिशा: 2030 का संभावित रोडमैप
यदि भारत वास्तव में “समता” की संवैधानिक भावना को व्यावहारिक रूप से लागू करना चाहता है, तो 2030 तक निम्न कदम आवश्यक हैं:
- “समलैंगिक विवाह विधेयक” का प्रारूप और पारित होना।
- ART Act, 2021 में संशोधन कर IVF की अनुमति समलैंगिक जोड़ों को देना।
- CARA Guidelines में संशोधन, जिससे समलैंगिक जोड़े संयुक्त रूप से गोद ले सकें।
- सभी शैक्षणिक और प्रशासनिक फॉर्म में “Parent 1 / Parent 2” या “Guardian” कॉलम अनिवार्य करना।
- तहसील स्तर पर कोहैबिटेशन रजिस्ट्री का निर्माण, ताकि ऐसे जोड़ों को आधिकारिक सुरक्षा मिले।
- सामाजिक जागरूकता अभियान—जो LGBTQ+ संबंधों को “विकृति” नहीं, बल्कि “विविधता” के रूप में प्रस्तुत करें।
VII. निष्कर्ष: प्रेम कानून से आगे चलता है
रिया ने मीडिया से कहा था—
“हमने शादी नहीं की, हमने जिया है। और अब जीना सिखाएंगे।”
यह वाक्य केवल एक भावनात्मक कथन नहीं, बल्कि भारतीय समाज के लिए एक चुनौती है।
सुंदरबन की दो दुल्हनों ने यह दिखाया कि प्रेम को मान्यता की नहीं, सम्मान की आवश्यकता है।
परंतु जब उनके बच्चे के स्कूल फॉर्म में “पिता” का कॉलम आता है, या IVF के लिए आवेदन अस्वीकार हो जाता है—तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारा कानून अभी “प्रेम” की गति को पकड़ नहीं पाया है।
प्रेम हमेशा कानून से आगे चलता है। अब समय है कि कानून प्रेम के बराबर चले।
संदर्भ
- Supriyo v. Union of India (2023) 10 SCC 1
- Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005
- Assisted Reproductive Technology (Regulation) Act, 2021
- Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015
- CBSE Circular No. Acad-45/2024
- Gujarat High Court Judgment on Maitri Karar, 2020
- CARA Guidelines, 2023
- United Nations Human Rights Council Report on LGBTQ+ Rights, 2024
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