Bihar Election 2025: Prashant Kishor aur Jan Suraj ki Zero Seat Haar — Kya ‘Vikalp Ki Rajneeti’ Ka Ant Ya Nayi Shuruaat?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की असफलता:
क्या यह ‘विकल्प की राजनीति’ का अंत है या नए प्रयोगों की सीख?
परिचय
“राजनीति में सफलता का पैमाना सीटें नहीं, विचारों की गहराई होती है।” — कांशीराम
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कई स्तरों पर महत्वपूर्ण रहेगा। एक ओर एनडीए की भारी जीत, दूसरी ओर प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (JSP) का शून्य पर सिमट जाना — दोनों ने मिलकर राजनीति के विकल्प मॉडल पर गहरा विमर्श खड़ा किया। प्रशांत किशोर, जो एक समय भारत के सबसे सफल चुनावी रणनीतिकार माने जाते थे, पिछले तीन वर्षों से बिहार के गांव-गांव पैदल चलकर एक वैकल्पिक राजनीतिक ढांचा खड़ा करने की कोशिश कर रहे थे। सामाजिक संवाद, जनता के मुद्दों पर शोध, युवाओं को राजनीति में लाने का प्रयास और भ्रष्टाचार-विरोधी नैरेटिव — सब मिलाकर जन सुराज एक “लंबी रेस का प्रोजेक्ट” माना जा रहा था।
परंतु 00 सीटों का परिणाम यह प्रश्न उठाता है:
- क्या बिहार ने विकल्प राजनीति को नकार दिया?
- या यह सिर्फ वैकल्पिक राजनीति के परिपक्व होने की प्रारंभिक पीड़ा (birth pain) है?
इसी द्वंद्व का विश्लेषण यह निबंध करता है।
मुख्य भाग
1. जन सुराज की असफलता: संरचनात्मक व रणनीतिक कारण
(क) जाति समीकरण की अनदेखी
बिहार की राजनीति में विचारों से अधिक पहचान (identity) निर्णायक भूमिका निभाती है। यादव-कुर्मी-कायस्थ-दलित-EBC जैसे ब्लॉकों का अपना ठोस वोट व्यवहार है। जन सुराज ने बेरोजगारी, शिक्षा, माइग्रेशन, सुशासन जैसे मुद्दों को केंद्र में रखा, पर जाति आधारित सामाजिक वास्तविकताओं से दूरी बनाए रखी।
इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी का नैरेटिव सुना गया, पर वोट नहीं मिला।
(ख) संगठनात्मक ढाँचे की कमजोरी
तीन साल की पदयात्रा ने प्रशांत किशोर को जनसंपर्क तो दिलाया, पर बूथ लेवल तक संगठन नहीं बन पाया।
- न ब्लॉक प्रभारी मज़बूत
- न पंचायत कमेटियों में पैठ
- न बूथ एजेंटों का बेस
- न महिला और युवा मोर्चे का ठोस ढांचा
दिल्ली में ‘आप’ को पाँच वर्षों तक कैडर बनाने के बाद सफलता मिली—पर JSP के पास यह समय या तैयारी नहीं थी।
(ग) वोट शेयर का सीटों में रूपांतरण न हो पाना
कई सीटों पर 4–7% वोट मिलने के बावजूद पार्टी कोई सीट नहीं जीत सकी।
कारण:
- वोट हर जगह बिखरे, केंद्रित नहीं रहे।
- ना एनडीए के साथ गठबंधन, ना विपक्ष के — बीच में फँसी स्थिति।
- तीसरे मोर्चे का लाभ सत्ता पक्ष को गया।
उदाहरण स्वरूप, कई सीटों पर JSP ने 3–5 हजार वोट लिए, पर यह वोट विपक्ष की हार और एनडीए की जीत सुनिश्चित कर गए।
(घ) व्यक्तिगत ब्रांड की सीमाएँ
प्रशांत किशोर रणनीतिकार के रूप में लोकप्रिय हैं, पर “मतदाताओं के नेता” के रूप में उनकी स्वीकृति सीमित रही।
सोशल मीडिया और शहरों में उनकी चर्चा अधिक थी, पर गांवों में यह प्रभाव वोट में नहीं बदल पाया।
2. क्या यह ‘विकल्प की राजनीति’ का अंत है? — विश्लेषण
उत्तर: नहीं।
भारतीय राजनीति का इतिहास बताता है कि बड़े परिवर्तन अक्सर प्रारंभिक असफलताओं से ही शुरू हुए हैं।
| नेता/पार्टी | पहला चुनाव | परिणाम | आगे का परिणाम |
|---|---|---|---|
| कांशीराम (BSP) | 1984 | 0 सीट | 2007 में यूपी में पूर्ण बहुमत |
| अरविंद केजरीवाल (AAP) | 2013 | शुरुआती संघर्ष | 2020 में 62 सीट |
| ममता बनर्जी (TMC) | 1998 | सीमित बढ़त | 2011 में सरकार |
इसलिए शून्य सीटों को विकल्प राजनीति का अंत कहना जल्दबाज़ी होगी।
यह “नई राजनीति” के लिए डेटा, जनधारणा और संगठनात्मक सुधार का पहला चरण मात्र है।
3. जन सुराज की असफलता से मिली प्रमुख सीखें
(क) नैरेटिव + नेटवर्क = सफलता
केवल विचार और मुद्दे पर्याप्त नहीं।
मजबूत विचार को मजबूत नेटवर्क (organisational machinery) चाहिए।
- सोशल मीडिया पर नैरेटिव गूंजा
- लेकिन बूथ तक एजेंट नहीं पहुँचे
(ख) स्थानीय अस्मिता की राजनीति
बिहार में मुद्दों के साथ-साथ भाषा और क्षेत्रीय संस्कृति भी महत्वपूर्ण है।
जन सुराज को भोजपुरी-मैथिली-मगही में संचार, स्थानीय चेहरों को नेतृत्व और क्षेत्रीय भावनाओं को समाहित करना चाहिए था।
(ग) लंबी अवधि की योजना
पार्टी निर्माण एक दशक लंबी प्रक्रिया है।
यदि JSP 2027 के पंचायत चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर पाती है, तो 2030 में विधानसभा में उसके लिए आधार तैयार होगा।
(घ) ग्रामीण-डिजिटल जोड़
युवा यूट्यूब/X पर सक्रिय हैं, पर निर्णय परिवार और जातीय समुदाय स्तर पर होते हैं।
भविष्य का मॉडल होगा:
डिजिटल हाइप + जमीनी ढांचा = चुनावी सफलता
4. व्यापक संदर्भ: भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता
(क) मतदाता का निर्णय विचार बनाम स्थिरता
मतदाता विकल्प को अस्वीकार नहीं करता, बल्कि स्थिरता को प्राथमिकता देता है।
मतदाता ने माना कि JSP अभी शासन देने की स्थिति में नहीं।
(ख) युवा और महिला वोट का नया समीकरण
- बिहार में 42% मतदाता युवा हैं—पर JSP इन्हें वोट बैंक में बदल नहीं सकी।
- 52% महिला वोट टर्नआउट — पर JSP की महिला नेतृत्व नीति कमजोर रही।
(ग) लोकतांत्रिक प्रयोगों की निरंतरता
भारत का लोकतंत्र वैकल्पिक राजनीति को हमेशा जगह देता आया है: JP आंदोलन, BSP, TMC, AAP आदि।
JSP उसी श्रृंखला की नई कड़ी है।
निष्कर्ष (150 शब्द)
प्रशांत किशोर की शून्य सीटें किसी राजनीतिक यात्रा का अंत नहीं, बल्कि जन सुराज की रणनीति-निर्माण प्रक्रिया का पहला मसौदा हैं। इतिहास बताता है कि वैकल्पिक राजनीति हमेशा संघर्ष, संगठन निर्माण और सामाजिक यथार्थ को समझने की प्रक्रिया से ही उभरती है। बिहार ने इस चुनाव में विचारों को खारिज नहीं किया, बल्कि अधूरे संगठन को नकारा।
यदि जन सुराज पार्टी जाति समीकरण, स्थानीय नेतृत्व, बूथ नेटवर्क और युवा-महिला सहभागिता पर कार्य करती है, तो 2030 या 2035 में वह बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
अंततः—
“राजनीति में हार अंत नहीं, दिशा का संकेत होती है।”
बिहार 2025 परीक्षा थी; 2030 शायद उसकी डिग्री साबित हो।
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