Tribal Pride Day 2025: Celebrating Birsa Munda’s 150th Birth Anniversary and India’s Indigenous Legacy
जनजातीय गौरव दिवस: आदिवासी विरासत का उत्सव और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती
परिचय
भारत का स्वतंत्रता संग्राम केवल दिल्ली, मुंबई या कोलकाता जैसे शहरों की सीमाओं में नहीं सिमटा था, बल्कि यह संघर्ष जंगलों, पहाड़ियों और आदिवासी अंचलों में भी उतनी ही प्रखरता से लड़ा गया था। इन्हीं आदिवासी संघर्षों की विरासत के केंद्र में हैं भगवान बिरसा मुंडा—एक ऐसे युवा नायक, जिन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध “उलगुलान” (महान विद्रोह) का बिगुल फूंका और आदिवासी स्वाभिमान का प्रतीक बन गए।
15 नवंबर को मनाया जाने वाला “जनजातीय गौरव दिवस” बिरसा मुंडा की जयंती के उपलक्ष्य में 2021 में केंद्र सरकार द्वारा घोषित किया गया था। यह दिवस न केवल एक ऐतिहासिक स्मृति है, बल्कि भारत की विविधता, लोक संस्कृति और जनजातीय अस्मिता का राष्ट्रीय उत्सव भी है। 2025 में जब यह दिवस पांचवीं बार मनाया जा रहा है, तब यह अवसर भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती वर्ष के समापन का प्रतीक भी बन रहा है।
भगवान बिरसा मुंडा: धरती आबा और उलगुलान के अग्रदूत
भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के उलीहातु गांव में हुआ। वे मुंडा जनजाति से थे—एक ऐसा समुदाय जो सदियों से जंगलों और धरती से गहरे रूप में जुड़ा रहा है। बिरसा के बचपन ने उन्हें प्रत्यक्ष रूप से औपनिवेशिक शोषण, बेगार (बिना वेतन श्रम) और 'दिकुओं' (बाहरी जमींदारों) के अत्याचारों से परिचित कराया। शिक्षा के दौरान चाइबासा और खेसारीहल मिशन स्कूलों में उन्होंने देखा कि मिशनरियों के धर्मांतरण प्रयास कैसे आदिवासी संस्कृति को चुनौती दे रहे हैं।
इन्हीं परिस्थितियों ने उनके भीतर परिवर्तन की अग्नि प्रज्वलित की। उन्होंने “बिरसैत” नामक एक सामाजिक-धार्मिक आंदोलन की शुरुआत की, जो आदिवासी धर्म, रीति-रिवाज और परंपराओं की पुनर्स्थापना का आह्वान था। 1895 में उन्होंने “मुंडा राज” की परिकल्पना की—एक ऐसी व्यवस्था, जहां आदिवासी अपने भूमि, जल और जंगल पर स्वयं नियंत्रण रख सकें।
1899-1900 के दौरान जब उन्होंने ब्रिटिश शासन और जमींदारों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष शुरू किया, तो वह “उलगुलान” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यद्यपि ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को कठोरता से दबा दिया, परंतु बिरसा मुंडा का यह विद्रोह आदिवासी चेतना की पुनर्जागृति का प्रतीक बन गया।
उनकी गिरफ्तारी के बाद 1900 में रांची जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई, परंतु उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनके आंदोलन के प्रभाव से 1908 में चोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम बना, जिसने आदिवासियों के भूमि अधिकारों को कानूनी मान्यता दी—यह बिरसा मुंडा के “अबुआ राज” (हमारा शासन) के स्वप्न की पहली झलक थी।
जनजातीय गौरव दिवस का महत्व
जनजातीय गौरव दिवस केवल एक तिथि का उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय राष्ट्र-निर्माण में आदिवासी समुदायों की भूमिका को सम्मानित करने का अवसर है। यह दिवस बिरसा मुंडा के अलावा तांत्या भील, रानी दुर्गावती, वीर नारायण सिंह, सीताराम उरांव और अन्य अनेक जनजातीय नायकों की स्मृति को भी जीवंत करता है, जिन्होंने औपनिवेशिक शासन और सामाजिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई।
यह दिवस भारत के आदिवासी समाज की विशिष्ट पहचान—प्रकृति के साथ सहअस्तित्व, सामूहिक जीवनशैली और संसाधनों के न्यायपूर्ण उपयोग—को भी राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बनाता है। 2025 में केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि 1 से 15 नवंबर तक राज्य, जिला और ग्राम स्तर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनियां, पदयात्राएं और योजनाओं के लाभ वितरण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।
“धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान” और “पीएम-जन्मन पैकेज” जैसे कार्यक्रम इसी दिशा में हैं, जो आदिवासी समाज को शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और डिजिटल सशक्तिकरण से जोड़ते हैं।
समकालीन संदर्भ: विकास और चुनौतियां
जनजातीय गौरव दिवस का आधुनिक स्वरूप केवल स्मरण का माध्यम नहीं, बल्कि नीति और विकास की दिशा को पुनर्परिभाषित करने का अवसर है। केंद्र सरकार द्वारा 63,000 से अधिक जनजाति बहुल गांवों में 79,000 करोड़ रुपये की योजनाएं लागू की जा रही हैं, जिनका उद्देश्य मूलभूत सुविधाओं—सड़क, बिजली, जल, शिक्षा और स्वास्थ्य—की उपलब्धता सुनिश्चित करना है। विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) के लिए 24,000 करोड़ का पैकेज आधारभूत पहचान, वित्तीय समावेशन और स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी देता है।
फिर भी, आदिवासी समाज आज भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। खनन परियोजनाओं, औद्योगिक विस्तार और वन कानूनों के दुरुपयोग के कारण उनकी पारंपरिक भूमि और आजीविका लगातार संकट में है। जलवायु परिवर्तन और वन्यजीव संरक्षण कानूनों के कठोर प्रावधानों ने कई क्षेत्रों में विस्थापन की समस्या को बढ़ाया है।
ऐसे में बिरसा मुंडा का “अबुआ राज” का संदेश आज के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) से सीधा जुड़ता है—जहां विकास के साथ सांस्कृतिक पहचान और पर्यावरणीय संतुलन दोनों को समान महत्व दिया जाए। जनजातीय गौरव दिवस का सच्चा उद्देश्य तभी पूरा होगा जब नीति निर्माण में आदिवासी ज्ञान प्रणाली और उनकी पारंपरिक जीवनशैली को केंद्रीय स्थान दिया जाए।
निष्कर्ष
जनजातीय गौरव दिवस, भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के साथ, भारत की आत्मा में बसने वाले उस संघर्ष और गर्व का उत्सव है जो देश की बहुलतावादी पहचान को परिभाषित करता है। बिरसा मुंडा का जीवन, भले ही अल्पकालिक रहा हो, लेकिन उसका प्रभाव अनंत है—उन्होंने दिखाया कि अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज उठाना ही सच्ची स्वतंत्रता का मार्ग है।
आज जब भारत “अमृतकाल” की ओर बढ़ रहा है, तब बिरसा का संदेश हमें याद दिलाता है कि समावेशी विकास केवल आर्थिक प्रगति से नहीं, बल्कि न्याय, समानता और सांस्कृतिक सम्मान से संभव है।
जनजातीय गौरव दिवस हमें यही प्रेरणा देता है—कि भारत का भविष्य तभी उज्ज्वल होगा जब उसके सबसे हाशिए पर बसे समुदायों की आवाज केंद्र में सुनी जाएगी, और उनके अधिकारों को केवल स्मृति में नहीं, बल्कि नीति और व्यवहार में भी सम्मान मिलेगा।
“धरती हमारी है, जीवन हमारा है — यही बिरसा मुंडा की विरासत है, और यही भारत के समावेशी भविष्य की दिशा।”
🪔 स्रोत (Sources):
- भारत सरकार, जनजातीय कार्य मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs) – “जनजातीय गौरव दिवस 2025” से संबंधित आधिकारिक प्रेस विज्ञप्तियाँ और दिशा-निर्देश (2025)
- प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB), भारत सरकार – भगवान बिरसा मुंडा 150वीं जयंती वर्ष एवं धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान पर आधिकारिक वक्तव्य (अक्टूबर 2025)
- भारत का स्वतंत्रता संग्राम: वॉल्यूम VI, भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख परिषद (ICHR) – “उलगुलान आंदोलन और बिरसा मुंडा का योगदान”
- यूनेस्को और UNDP रिपोर्ट (2024–25) – “Indigenous Knowledge and Sustainable Development Goals (SDGs) in India”
- द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस और डाउन टू अर्थ (अक्टूबर–नवंबर 2025) – जनजातीय गौरव दिवस, पीएम-जन्मन योजना और PVTG विकास अभियानों पर विशेष रिपोर्टें
- छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 – भारत सरकार का विधिक दस्तावेज (National Archives of India)
नोट: यह लेख मौलिक विश्लेषण पर आधारित है और उपर्युक्त स्रोतों से प्राप्त जानकारी का संदर्भ लेकर तैयार किया गया है।
Comments
Post a Comment