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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Nishad Kumar: The Inspiring Journey of an Indian Para Champion Who Rose Beyond Limits

निशाद कुमार: ऊँचाई को छूने की उड़ान — जो हर सीमा को पार करती है

कल्पना कीजिए—एक छोटा सा बच्चा, जिसकी उम्र मात्र छह साल है। अचानक एक भयावह दुर्घटना उसकी जिंदगी को झकझोर देती है। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के बदुआं गांव में रहने वाले निशाद कुमार का दाहिना हाथ चारा काटने वाली मशीन में फंस गया। यह हादसा किसी भी बच्चे के लिए जीवन का अंत सा लग सकता था, लेकिन निशाद के लिए यह संघर्ष और विजय की नई कहानी की शुरुआत थी।

उनकी मां, पुष्पा कुमारी, खुद राज्य स्तरीय वॉलीबॉल खिलाड़ी और डिस्कस थ्रोअर रही हैं। उन्होंने निशाद को सिखाया कि हादसे इंसान को रोक नहीं सकते, जब तक मनोबल जीवित हो। मां की यही प्रेरणा निशाद की सबसे बड़ी ताकत बनी।


🌟 संघर्ष से शिखर तक: निशाद की यात्रा

निशाद ने शुरुआत में कुश्ती में हाथ आज़माया, फिर भाला फेंक में रुचि दिखाई, लेकिन किस्मत ने उन्हें ऊँची कूद की राह पर ला खड़ा किया। 2017 में पंचकूला में प्रशिक्षण लेते हुए उन्होंने पैरा एथलेटिक्स में कदम रखा। वहीं से शुरू हुई वह यात्रा, जिसने उन्हें दुनिया के शीर्ष पैराअथलीट्स की पंक्ति में खड़ा कर दिया।

उन्होंने एशियन यूथ पैरा गेम्स में स्वर्ण पदक जीता, फिर 2019 की वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य हासिल किया। इसके बाद टोक्यो 2020 और पेरिस 2024 पैरालंपिक में लगातार दो रजत पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया। लेकिन निशाद वहीं नहीं रुके—2025 में वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उन्होंने 2.14 मीटर की छलांग लगाकर न केवल एशियन रिकॉर्ड बनाया, बल्कि अमेरिकी दिग्गज रोडरिक टाउन्सेंड को पछाड़कर विश्व चैंपियन बन गए।

यह जीत सिर्फ पदक नहीं थी, बल्कि उस बच्चे की जीत थी जिसने अपनी विकलांगता को शक्ति में बदला।


💪 “कोई मुझे रोक नहीं सकता” — निशाद का विश्वास

जीत के बाद निशाद के शब्द उनकी आत्मा की झलक देते हैं —

“मैं इस दिन का इंतजार एक साल से कर रहा था। मैंने बहुत मेहनत की है। यह भगवान की इच्छा है। कोई मुझे रोक नहीं सकता।”

यह कथन सिर्फ आत्मविश्वास नहीं, बल्कि वर्षों के अनुशासन, असफलताओं से लड़ने की हिम्मत और अपने सपनों के प्रति अटूट विश्वास का परिणाम है।
उन्होंने कहा था कि वे अपने सिल्वर पदकों को अलमारी में रखकर भूल जाते हैं, क्योंकि उनका लक्ष्य सिर्फ गोल्ड होता है। यही मानसिकता उन्हें सबसे अलग बनाती है।


🌏 वैश्विक मंच पर भारत की पहचान

सैन डिएगो में उच्च स्तरीय प्रशिक्षण और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप मेहनत ने निशाद को दुनिया का सबसे स्मूथ अप्रोच वाला हाई जंपर बना दिया। उन्होंने साबित किया कि अगर हौसले बुलंद हों तो कोई बाधा बड़ी नहीं होती — न शरीर की, न परिस्थितियों की।

उनकी उपलब्धियाँ न सिर्फ व्यक्तिगत हैं, बल्कि भारत के लिए गर्व का प्रतीक हैं। उन्होंने यह दिखाया कि भारत में भी पैरा-स्पोर्ट्स का भविष्य उज्ज्वल है, यदि इच्छाशक्ति और समर्थन दोनों मिलें।


🏆 विकलांगता नहीं, विजय की परिभाषा

निशाद की कहानी हमें सिखाती है कि “विकलांगता” सिर्फ एक शब्द है, वास्तविक बाधा मन में होती है। गरीबी, चोट, असफलता — उन्होंने हर दीवार को तोड़ा और उड़ान भरी।
वे हमें यह संदेश देते हैं कि सपने सिर्फ कल्पनाओं में नहीं, कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास से साकार होते हैं

उनकी कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो किसी मुश्किल से जूझ रहा है —

“जीवन आपको नीचे गिरा सकता है, लेकिन उठने का निर्णय आपका होता है।”


समापन: उड़ो, ऊँचा उड़ो निशाद!

निशाद कुमार आज सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि एक आशा का प्रतीक हैं।
उनकी हर छलांग यह संदेश देती है कि सीमाएँ टूटने के लिए बनी हैं।
वे हमें यह सिखाते हैं कि जीवन की सच्ची ऊँचाई पदकों से नहीं, बल्कि संघर्ष और साहस से मापी जाती है।

निशाद कुमार, ऊँचाई के राजकुमार —
आपकी उड़ान सिर्फ आकाश को नहीं,
हम सबके हौसलों को भी ऊँचाई देती है।
उड़ो... ऊँचा उड़ो... हमेशा उड़ते रहो! 🇮🇳✨



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