भारत-जर्मनी रक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा समझौते: सामरिक और पर्यावरणीय सहयोग की नई दिशा
भूमिका
21 अक्टूबर 2025 का दिन भारत-जर्मनी संबंधों में एक नई ऊँचाई लेकर आया। नई दिल्ली में आयोजित उच्चस्तरीय शिखर सम्मेलन में दोनों देशों ने रक्षा, साइबर सुरक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा, विशेषकर ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए। यह साझेदारी न केवल आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से बल्कि वैश्विक पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं और क्षेत्रीय सुरक्षा के संदर्भ में भी ऐतिहासिक है।
भारत की ‘मेक इन इंडिया’ पहल और जर्मनी की ‘फोकस ऑन इंडिया’ रणनीति इन समझौतों की बुनियाद में हैं। दोनों देशों ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वे न केवल व्यापारिक भागीदार हैं, बल्कि जलवायु, तकनीक और सुरक्षा के क्षेत्र में दीर्घकालिक सहयोगी बनना चाहते हैं।
प्रमुख समझौते और उनका महत्व
रॉयटर्स की रिपोर्ट (21 अक्टूबर 2025) के अनुसार, भारत और जर्मनी ने दो मुख्य क्षेत्रों — रक्षा सहयोग और नवीकरणीय ऊर्जा — में नए अध्याय खोले हैं।
(1) रक्षा सहयोग
दोनों देशों ने संयुक्त सैन्य अभ्यास, रक्षा प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण, और स्वदेशी उत्पादन पर सहमति जताई। इसके तहत जर्मनी भारत में रक्षा उपकरणों के सह-विकास और निर्माण में सहयोग करेगा।
यह कदम भारत की आत्मनिर्भर रक्षा नीति के अनुरूप है, जो ‘मेक इन इंडिया’ के माध्यम से विदेशी निर्भरता को कम करने और घरेलू क्षमता को मजबूत करने का लक्ष्य रखती है।
(2) साइबर सुरक्षा सहयोग
डिजिटल युग में साइबर खतरों का दायरा लगातार बढ़ रहा है। इस चुनौती को ध्यान में रखते हुए भारत-जर्मनी ने साइबर सुरक्षा रोडमैप तैयार किया है, जिसमें सूचना-साझाकरण, खतरा विश्लेषण, और संयुक्त प्रशिक्षण शामिल हैं।
यह भारत की राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013 और जर्मनी की साइबर सुरक्षा रणनीति 2021 के अनुरूप है — जिससे दोनों देशों की डिजिटल रक्षा क्षमता में सुधार होगा।
(3) नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन
दोनों देशों ने ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन, अनुसंधान और व्यापारिक उपयोग के क्षेत्र में संयुक्त परियोजनाएं शुरू करने का निर्णय लिया।
ग्रीन हाइड्रोजन — जो सौर और पवन ऊर्जा से उत्पन्न होती है — जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाने का एक स्वच्छ विकल्प है।
भारत, जिसने 2021 में राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत की थी, अब जर्मनी की तकनीकी विशेषज्ञता और वित्तीय सहायता से इस क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर सकेगा।
भारत-जर्मनी रणनीतिक दृष्टिकोण
भारत की "मेक इन इंडिया" पहल जहां स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देने की दिशा में अग्रसर है, वहीं जर्मनी की "फोकस ऑन इंडिया" नीति भारत को एक दीर्घकालिक निवेश और तकनीकी साझेदार के रूप में देखती है।
भारत के लिए, यह साझेदारी रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता को एक साथ आगे बढ़ाती है।
जर्मनी के लिए, यह अवसर एशिया में अपनी तकनीकी और सामरिक उपस्थिति को मजबूत करने का है, विशेषकर उस समय जब यूरोप इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है।
सामरिक प्रभाव
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इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में संतुलन – भारत-जर्मनी रक्षा सहयोग क्षेत्रीय सुरक्षा के संतुलन में नई परत जोड़ता है। जर्मनी की नौसेना पहले ही इंडो-पैसिफिक में गश्त बढ़ा चुकी है, और भारत के साथ संयुक्त अभ्यास चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच सामरिक संकेत देता है।
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प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और आत्मनिर्भरता – जर्मनी की उन्नत इंजीनियरिंग क्षमता भारत की रक्षा विनिर्माण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है, जिससे भारत न केवल अपनी जरूरतें पूरी करेगा बल्कि निर्यातक भी बन सकता है।
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साइबर डिफेंस नेटवर्क – यह सहयोग डिजिटल युग में भारत की साइबर सुरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करेगा, जिससे महत्वपूर्ण अवसंरचनाओं पर संभावित हमलों को रोका जा सकेगा।
पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभाव
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ऊर्जा सुरक्षा – ग्रीन हाइड्रोजन से भारत को पेट्रोलियम आयात पर निर्भरता घटाने और ऊर्जा आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद मिलेगी।
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जलवायु लक्ष्य – यह सहयोग भारत के 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य की दिशा में एक ठोस कदम है।
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रोज़गार और उद्योग – ग्रीन एनर्जी क्षेत्र में नए स्टार्टअप, विनिर्माण इकाइयाँ और अनुसंधान केंद्र खुलेंगे, जिससे हज़ारों रोजगार सृजित होंगे।
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प्रौद्योगिकी नवाचार – दोनों देश संयुक्त R&D केंद्र स्थापित करने पर सहमत हुए हैं, जो ग्रीन हाइड्रोजन के भंडारण, परिवहन और लागत घटाने जैसे तकनीकी चुनौतियों को हल करेंगे।
UPSC दृष्टिकोण से प्रासंगिकता
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GS Paper 2 (अंतरराष्ट्रीय संबंध) – भारत-जर्मनी संबंध, इंडो-पैसिफिक रणनीति, साइबर सुरक्षा और रक्षा साझेदारी।
उदाहरण प्रश्न: "भारत-जर्मनी रक्षा सहयोग के सामरिक प्रभावों की चर्चा करें।" -
GS Paper 3 (विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण) – ग्रीन हाइड्रोजन, जलवायु परिवर्तन नीति, और भारत की ऊर्जा रणनीति।
उदाहरण प्रश्न: "ग्रीन हाइड्रोजन भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में किस प्रकार योगदान दे सकती है?" -
Prelims के लिए तथ्यात्मक बिंदु:
- भारत-जर्मनी समझौता: 21 अक्टूबर 2025
- फोकस क्षेत्र: रक्षा, साइबर सुरक्षा, ग्रीन हाइड्रोजन
- संबंधित योजनाएँ: ‘मेक इन इंडिया’, ‘फोकस ऑन इंडिया’, ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन’
निष्कर्ष
भारत और जर्मनी के बीच 2025 के ये समझौते केवल आर्थिक या तकनीकी समझौते नहीं हैं, बल्कि वे एक बहुआयामी साझेदारी की दिशा में ठोस कदम हैं — जो सुरक्षा, ऊर्जा और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित करती है।
भारत के लिए यह साझेदारी आत्मनिर्भरता और स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में गति प्रदान करती है, जबकि जर्मनी के लिए यह वैश्विक दक्षिण में रणनीतिक उपस्थिति का विस्तार है।
भविष्य में, यह सहयोग भारत की वैश्विक स्थिति, हरित अर्थव्यवस्था और सामरिक स्वायत्तता — तीनों को सुदृढ़ करेगा।
संदर्भ
- रॉयटर्स (21 अक्टूबर 2025). “India and Germany Sign Defence and Renewable Energy Agreements.”
- भारत सरकार (2021). राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन.
- Make in India Official Portal
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