वैश्विक भूख संकट: अंतरराष्ट्रीय खाद्य सहायता को दोगुना करने की आवश्यकता
परिचय
21वीं सदी में जब मानवता ने अभूतपूर्व तकनीकी प्रगति, अंतरिक्ष अभियानों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी उपलब्धियाँ हासिल कर ली हैं, तब भी विश्व की एक बड़ी आबादी आज भूख के दंश से जूझ रही है। संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्टों के अनुसार, विश्व के लगभग 2 अरब लोग, यानी प्रत्येक चार में से एक व्यक्ति, खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहा है। ऐसे समय में जब संसाधनों की असमानता बढ़ रही है और जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादन को प्रभावित कर रहा है, तो वैश्विक भूख एक मानवतावादी संकट के रूप में उभरकर सामने आई है।
हाल ही में, वर्ल्ड फूड प्राइज फाउंडेशन द्वारा वैश्विक भूख से निपटने में उल्लेखनीय योगदान के लिए विश्व खाद्य पुरस्कार वितरित किया गया। इस मंच पर पुरस्कार विजेताओं ने चेतावनी दी है कि इस बढ़ते संकट से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय खाद्य सहायता को दोगुना करना आवश्यक है। यह सुझाव केवल एक अपील नहीं, बल्कि मानवता के अस्तित्व से जुड़ी चेतावनी है।
वैश्विक भूख की वर्तमान स्थिति
विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2025 तक वैश्विक भूख में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।
- लगभग 2 अरब लोग पर्याप्त भोजन प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।
- 60 से अधिक देशों में खाद्य कीमतें औसतन 30% तक बढ़ चुकी हैं।
- अफ्रीका के साहेल क्षेत्र, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्से सबसे अधिक प्रभावित हैं।
इन क्षेत्रों में न केवल भोजन की कमी है, बल्कि पौष्टिक आहार की अनुपलब्धता ने कुपोषण को गंभीर बना दिया है। बच्चों और महिलाओं में माइक्रोन्यूट्रिएंट की कमी से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ तेजी से बढ़ रही हैं।
भूख के प्रमुख कारण
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संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता
गाजा, यमन, सीरिया, सूडान और यूक्रेन जैसे देशों में लंबे समय से चले आ रहे संघर्षों ने खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को नष्ट कर दिया है। युद्धों के कारण कृषि भूमि बंजर हो गई है और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं, जिससे भोजन तक पहुँच सीमित हो गई है। -
जलवायु परिवर्तन
वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण सूखा, बाढ़, चक्रवात जैसी चरम घटनाएँ बढ़ी हैं। इससे कृषि उत्पादन में गिरावट आई है और किसानों की आजीविका पर संकट गहराया है। -
आर्थिक असमानता और गरीबी
दुनिया की सबसे गरीब 40% आबादी के पास वैश्विक आय का मात्र 10% हिस्सा है। खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतों और बेरोजगारी ने लाखों लोगों को भूख और गरीबी के दुष्चक्र में फँसा दिया है। -
महामारी और स्वास्थ्य संकट
कोविड-19 महामारी ने दिखाया कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएँ कितनी संवेदनशील हैं। लाखों लोगों की नौकरी जाने और उत्पादन ठप होने से कई देशों में भोजन की उपलब्धता गंभीर रूप से प्रभावित हुई।
खाद्य सहायता को दोगुना करने की आवश्यकता क्यों?
पुरस्कार विजेताओं का यह कथन इस तथ्य पर आधारित है कि मौजूदा स्तर की खाद्य सहायता मात्र 20% जरूरतों को पूरा कर पा रही है। बाकी आबादी तक सहायता पहुँच ही नहीं पा रही।
खाद्य सहायता को दोगुना करने से निम्नलिखित लाभ होंगे:
- तत्काल राहत: अकालग्रस्त और संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में करोड़ों लोगों को जीवन रक्षक सहायता मिलेगी।
- दीर्घकालिक प्रभाव: बेहतर पोषण से बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास में सुधार होगा, जिससे भविष्य में उत्पादकता बढ़ेगी।
- सामाजिक स्थिरता: भोजन की उपलब्धता सामाजिक अशांति और प्रवासन की समस्या को कम कर सकती है।
सुधार और निवेश की रणनीतियाँ
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वित्तीय योगदान में वृद्धि
विकसित देशों को अपने ODA (Official Development Assistance) में खाद्य सुरक्षा के लिए विशेष आवंटन करना चाहिए। वैश्विक मानवीय फंड को बढ़ाकर दोगुना करना अब अनिवार्य है। -
स्थानीय कृषि और बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना
स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सिंचाई, कोल्ड स्टोरेज और परिवहन नेटवर्क में निवेश बढ़ाना होगा। इससे आयात पर निर्भरता घटेगी और स्थानीय किसानों को सशक्त बनाया जा सकेगा। -
संघर्ष समाधान और शांति निर्माण
जहाँ युद्ध हैं, वहाँ भूख हमेशा बढ़ती है। इसलिए राजनयिक समाधान और मानवीय गलियारों (Humanitarian Corridors) की स्थापना जरूरी है, ताकि सहायता सुचारु रूप से पहुँच सके। -
जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा
सूखा-रोधी फसलें, जल संरक्षण तकनीक, और नवीकरणीय ऊर्जा आधारित सिंचाई प्रणाली अपनाकर कृषि को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाया जा सकता है।
भूख के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
भूख केवल शारीरिक पीड़ा नहीं है, बल्कि यह मानव विकास की सबसे बड़ी बाधा है।
- शिक्षा पर असर: भूखे बच्चों की सीखने की क्षमता घटती है।
- आर्थिक उत्पादकता में गिरावट: कुपोषित व्यक्ति श्रम क्षमता में 30–40% तक कमी दर्ज करते हैं।
- राजनीतिक अस्थिरता: भोजन की कमी सामाजिक अशांति, प्रवासन, और हिंसक विरोधों को जन्म देती है।
संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास लक्ष्य (SDG-2: Zero Hunger), 2030 तक भूख समाप्त करने का संकल्प लेता है, परंतु मौजूदा रफ्तार से यह लक्ष्य कम से कम 2050 तक भी हासिल नहीं हो पाएगा।
वैश्विक सहयोग की अनिवार्यता
खाद्य संकट एक देश या क्षेत्र की समस्या नहीं है, बल्कि मानवता की साझा चुनौती है। इसे हल करने के लिए बहुपक्षीय सहयोग आवश्यक है।
- संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, और FAO जैसे संस्थानों को अपनी नीतियों में आपसी समन्वय बढ़ाना होगा।
- गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और निजी क्षेत्र की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। डिजिटल कृषि, ब्लॉकचेन आधारित आपूर्ति निगरानी, और खाद्य अपशिष्ट को घटाने वाली तकनीकें परिवर्तनकारी भूमिका निभा सकती हैं।
- नागरिक समाज को भी “Food for All” अभियानों में भाग लेना होगा, ताकि खाद्य सुरक्षा एक जनांदोलन बने।
निष्कर्ष
भूख केवल पेट की आग नहीं बुझाती—यह एक सभ्यता की संवेदनशीलता की कसौटी है। आज जब विश्व के एक हिस्से में भोजन की बर्बादी हो रही है, वहीं दूसरा हिस्सा भोजन के एक दाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
वार्षिक पुरस्कार विजेताओं की यह अपील कि “अंतरराष्ट्रीय खाद्य सहायता को दोगुना किया जाए”, केवल नीति सिफारिश नहीं, बल्कि नैतिक कर्तव्य की पुकार है। यदि वैश्विक समुदाय आज इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाता, तो आने वाले वर्षों में भूख और प्रवासन का संकट मानवीय त्रासदी का रूप ले सकता है।
अब समय है कि राष्ट्र, संस्थान और व्यक्ति—सभी मिलकर यह सुनिश्चित करें कि कोई भी मनुष्य भूखा न सोए।
संदर्भ
- Reuters Report: “Global hunger laureates call for doubling international food aid”
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