वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन (GFRA) 2025: भारत के संदर्भ में एक विश्लेषणात्मक लेख
परिचय
22 अक्टूबर 2025 को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने इंडोनेशिया के बाली में आयोजित “वैश्विक वन अवलोकन पहल (GFOI)” सम्मेलन के दौरान वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन (Global Forest Resources Assessment - GFRA) 2025 जारी किया। यह FAO की एक प्रतिष्ठित और दीर्घकालिक पहल है, जो पिछले 80 वर्षों से वनों की स्थिति, विस्तार और स्वास्थ्य पर निगरानी रखती आ रही है। यह रिपोर्ट हर पाँच वर्ष में प्रकाशित होती है और इसमें 200 से अधिक देशों के उपग्रह चित्रण, राष्ट्रीय सर्वेक्षणों, और फील्ड डेटा का विश्लेषण शामिल होता है।
GFRA 2025 का उद्देश्य वनों की पारिस्थितिक स्थिति, कार्बन भंडारण, जैव-विविधता, और मानव जीवन में उनके योगदान का मूल्यांकन करना है। यह रिपोर्ट न केवल वैश्विक पर्यावरणीय प्रवृत्तियों को रेखांकित करती है, बल्कि देशों के लिए सतत वन प्रबंधन की दिशा में नीति निर्धारण हेतु एक ठोस आधार भी प्रदान करती है।
वैश्विक परिदृश्य
GFRA 2025 के अनुसार, विश्व के वनों की स्थिति में सुधार और चुनौतियों दोनों के संकेत मिले हैं।
वन क्षेत्रफल
वर्तमान में विश्व में कुल 4.14 अरब हेक्टेयर वन क्षेत्र है, जो कुल भू-क्षेत्र का लगभग 32 प्रतिशत भाग है। यद्यपि यह अनुपात स्थिर प्रतीत होता है, किंतु जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र घटकर मात्र 0.50 हेक्टेयर रह गया है। इसका सीधा अर्थ है कि अधिक लोग सीमित वन संसाधनों पर निर्भर हो रहे हैं।
वन ह्रास की गति
वनों की कटाई और ह्रास की दर में वैश्विक स्तर पर गिरावट आई है। वर्ष 1990 से 2000 के बीच प्रतिवर्ष औसतन 17.6 मिलियन हेक्टेयर वन नष्ट हो रहे थे, जो 2015–2025 के दशक में घटकर 10.9 मिलियन हेक्टेयर रह गई। हालांकि यह कमी सराहनीय है, परंतु अभी भी प्रति वर्ष लगभग 4 मिलियन हेक्टेयर की शुद्ध हानि बनी हुई है। एशिया और दक्षिण अमेरिका में बड़े पैमाने पर पुनर्वनीकरण और वृक्षारोपण कार्यक्रमों ने इस गिरावट को धीमा किया है।
कार्बन अवशोषण और पारिस्थितिकी भूमिका
वन पृथ्वी के कार्बन चक्र में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। GFRA 2025 के अनुसार, विश्व के वन प्रति वर्ष लगभग 3.6 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) अवशोषित करते हैं। यह आंकड़ा वैश्विक जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण में वनों की अपरिहार्य भूमिका को स्पष्ट करता है। विशेष रूप से यह उल्लेखनीय है कि विश्व के 90% से अधिक वन प्राकृतिक पुनर्जनन के माध्यम से स्वयं को पुनर्स्थापित कर रहे हैं, जो पारिस्थितिक संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
प्रमुख चुनौतियाँ
वन संरक्षण के बावजूद, कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अवैध कटाई, जंगल की आग, तथा कृषि विस्तार जैसे कारक वन ह्रास के प्रमुख कारण हैं। इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन वनों की कार्बन अवशोषण क्षमता को प्रभावित कर रहा है। कई देशों में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के कारण वनों पर दबाव लगातार बढ़ रहा है।
भारत की स्थिति एवं उपलब्धियाँ
भारत ने पिछले दो दशकों में वन प्रबंधन और संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। देश ने न केवल वन क्षेत्र में वृद्धि की है, बल्कि समुदाय आधारित संरक्षण के माध्यम से वनवासियों की भागीदारी को भी सशक्त बनाया है। GFRA 2025 के आँकड़े भारत के इस प्रयास को वैश्विक स्तर पर मान्यता देते हैं।
भारत की वैश्विक स्थिति
| संकेतक | भारत की वैश्विक रैंकिंग | स्थिति/आँकड़ा |
|---|---|---|
| कुल वन क्षेत्र | 9वीं (2020 में 10वीं) | 72 मिलियन हेक्टेयर (कुल भू-क्षेत्र का ~21%) |
| शुद्ध वार्षिक वन वृद्धि | 3री | 0.5–1 मिलियन हेक्टेयर/वर्ष |
| कार्बन अवशोषण क्षमता | 5वीं | 150 मिलियन टन CO₂/वर्ष (2021–2025) |
| एशियाई योगदान (भारत+चीन) | — | 0.9 अरब टन CO₂/वर्ष |
इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि भारत न केवल अपने वनों की सुरक्षा में बल्कि वैश्विक कार्बन संतुलन में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
भारत की नीतिगत पहलकदमियाँ
भारत की वन नीति का दृष्टिकोण संरक्षण और विकास के बीच संतुलन स्थापित करने पर केंद्रित है।
1. हरित भारत मिशन
राष्ट्रीय कार्य योजना ऑन क्लाइमेट चेंज (NAPCC) के अंतर्गत प्रारंभ किया गया यह मिशन 2030 तक 5 मिलियन हेक्टेयर अतिरिक्त वन एवं वृक्षावरण बढ़ाने का लक्ष्य रखता है। इसका उद्देश्य न केवल कार्बन उत्सर्जन को कम करना है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी हरित आजीविका से जोड़ना है।
2. संयुक्त वन प्रबंधन (JFM)
भारत में वन संरक्षण की सबसे बड़ी विशेषता सामुदायिक भागीदारी है। देशभर में 1.2 लाख से अधिक संयुक्त वन प्रबंधन समितियाँ (JFM Committees) सक्रिय हैं, जो लगभग 25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र का संरक्षण कर रही हैं। इससे वनवासियों की आजीविका में सुधार और स्थानीय स्तर पर पारिस्थितिक जिम्मेदारी की भावना विकसित हुई है।
3. क्षतिपूरक वनीकरण फंड प्रबंधन (CAMPA)
जब किसी परियोजना के लिए वन भूमि का उपयोग होता है, तो उसके बदले क्षतिपूरक वनीकरण हेतु CAMPA फंड का उपयोग किया जाता है। इस निधि के माध्यम से वन्यजीव गलियारे, पुनर्वनीकरण, और वृक्षारोपण कार्यक्रमों को प्रोत्साहन मिला है।
निष्कर्ष
GFRA 2025 यह दर्शाता है कि वैश्विक स्तर पर वन ह्रास की दर धीमी हुई है, किंतु संकट अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। यह रिपोर्ट एक चेतावनी और अवसर दोनों प्रस्तुत करती है—चेतावनी इसलिए कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप अभी भी वनों के अस्तित्व को चुनौती दे रहे हैं, और अवसर इसलिए कि तकनीकी, नीतिगत और सामुदायिक उपायों के माध्यम से इस प्रवृत्ति को उलटने की संभावना है।
भारत के संदर्भ में यह रिपोर्ट उत्साहजनक है। देश ने न केवल अपने वन क्षेत्र में वृद्धि की है, बल्कि जलवायु कार्रवाई, जैव-विविधता संरक्षण, और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से सतत विकास के लिए एक सकारात्मक मॉडल प्रस्तुत किया है। हालांकि, जनसंख्या दबाव, शहरी विस्तार और अवैध खनन जैसी समस्याएँ भविष्य में चुनौती बनी रह सकती हैं।
नीतिगत सिफारिशें
- डिजिटल निगरानी और डेटा पारदर्शिता: उपग्रह-आधारित रियल-टाइम वन निगरानी प्रणाली को ग्राम स्तर तक विस्तारित किया जाए।
- सामुदायिक सशक्तिकरण: वनवासी समुदायों को कार्बन क्रेडिट, ईको-टूरिज्म, और जैव-संसाधन आधारित आजीविका में सीधा आर्थिक लाभ मिले।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत को REDD+, 30x30 लक्ष्य, और अन्य अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त योजनाओं के अंतर्गत अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
- वन-शिक्षा और अनुसंधान: विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों में वन विज्ञान और जलवायु अध्ययन को प्रोत्साहित किया जाए।
निष्कर्षात्मक टिप्पणी
GFRA 2025 यह स्पष्ट करता है कि सतत वन प्रबंधन केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्थिरता का भी आधार है। भारत के लिए यह अवसर है कि वह अपने अनुभव और उपलब्धियों के आधार पर वैश्विक वन संरक्षण के क्षेत्र में नेतृत्वकारी भूमिका निभाए।
वन, कार्बन और समुदाय—इन तीनों का संतुलन ही जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध भारत की सबसे बड़ी ताकत बन सकता है।
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