संपादकीय लेख: “भारत-चीन संबंधों की नई समझ : ‘Unwrapping the China Enigma’ का विमोचन”
परिचय
भारत-चीन संबंध 21वीं सदी की एशियाई भू-राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण और जटिल समीकरणों में से एक हैं। सीमा विवाद, व्यापारिक असंतुलन, रणनीतिक प्रतिस्पर्धा और वैश्विक मंच पर बढ़ते प्रभाव की होड़ — ये सभी कारक इस रिश्ते को चुनौतीपूर्ण बनाते हैं। ऐसे समय में जब नीति-निर्माण और सार्वजनिक विमर्श दोनों में चीन को लेकर दृष्टिकोण और गहराई की आवश्यकता है, द हिंदू ग्रुप द्वारा आयोजित Unwrapping the China Enigma का विमोचन विशेष महत्व रखता है।
किताब का विमोचन: विचार और विमर्श का मंच
नई दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम ने भारत-चीन संबंधों को समझने की नई दृष्टि दी। पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले, अशोक कांठा, मनोज जोशी, संतोष पाई और अन्य विशेषज्ञों ने पुस्तक के माध्यम से चीन के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक आयामों पर चर्चा की। यह आयोजन केवल पुस्तक विमोचन नहीं, बल्कि संवाद, चिंतन और वैकल्पिक दृष्टिकोण के आदान-प्रदान का मंच बना।
चीन पर भारत का दृष्टिकोण: विशेषज्ञों के संकेत
पहले पैनल में तियानजिन शिखर सम्मेलन (2025) को भारत-चीन संबंधों में स्थिरता की दिशा में एक कदम माना गया। अशोक कांठा ने जहां इसे सकारात्मक संकेत बताया, वहीं मनोज जोशी ने इसे संतुलित दृष्टि से देखने की सलाह दी। यह संदेश स्पष्ट है कि भारत को चीन के साथ संवाद बनाए रखते हुए यथार्थवादी रणनीति अपनानी होगी।
दूसरे पैनल ने चीन की सामाजिक और आर्थिक गतिशीलता को उजागर किया। विजय गोखले ने भारत को “सबसे स्थिर अर्थव्यवस्था” बताते हुए चीन के केंद्रीकरण और नियंत्रण की नीतियों पर प्रश्न उठाया। पूनम सूरी और अंतरा घोषाल सिंह ने चीन के युवा वर्ग, सांस्कृतिक परतों और जनमत की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नीति-निर्माण को समझने के लिए चीन के समाज को गहराई से जानना आवश्यक है।
भारत-चीन संबंधों के भविष्य की दिशा
चर्चा में यह साफ़ हुआ कि भारत-चीन संबंधों को केवल सीमा विवाद के चश्मे से नहीं देखा जा सकता। तिब्बत, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, आर्थिक सहयोग, और शिक्षा—ये सभी पहलू इस रिश्ते को बहुआयामी बनाते हैं। विजय गोखले का यह कहना कि “हमें चीन को प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर समझना होगा” इस दिशा में एक व्यावहारिक सुझाव है। भारत में चीन-अध्ययन को मज़बूत करना और निजी क्षेत्र को भी इसमें जोड़ना समय की आवश्यकता है।
संपादकीय दृष्टिकोण: क्यों यह विमोचन महत्वपूर्ण है
Unwrapping the China Enigma केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि भारत-चीन विमर्श को नई भाषा देने का प्रयास है। जब दोनों देशों के बीच विश्वास का संकट गहराता है, तब इस तरह की पहलें संवाद और समझ के नए पुल बना सकती हैं। यह हमें याद दिलाती है कि भारत-चीन संबंध केवल प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र नहीं, बल्कि सहयोग का भी अवसर प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष
भारत और चीन एशिया की स्थिरता और वैश्विक व्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में दोनों देशों के बीच गहन अध्ययन, प्रत्यक्ष अनुभव और ईमानदार संवाद को बढ़ावा देना अनिवार्य है। द हिंदू द्वारा आयोजित यह आयोजन और Unwrapping the China Enigma जैसी पुस्तकों का विमोचन इस दिशा में एक रचनात्मक कदम है। यह पहल बताती है कि नीति-निर्माण में गहराई और नागरिक विमर्श में सूक्ष्मता ही दोनों देशों को वास्तविक समझ के रास्ते पर ले जा सकती है।
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