न्यू START संधि: पुतिन का ट्रंप को ऑफर और वैश्विक शांति का भविष्य
शुरुआत: एक नाजुक लेकिन रोमांचक कदम
जब दुनिया युद्ध, तनाव और न्यूक्लियर हथियारों की छाया में सांस ले रही है, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को एक दिलचस्प प्रस्ताव दिया है। उन्होंने न्यू स्ट्रैटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी (न्यू START) को एक साल और बढ़ाने की बात कही है, जो फरवरी 2026 में खत्म होने वाली है। यह संधि रूस और अमेरिका के न्यूक्लियर हथियारों को काबू में रखती है और वैश्विक शांति की एक मोटी रस्सी की तरह है। लेकिन क्या यह प्रस्ताव सचमुच शांति की राह खोलेगा, या यह सिर्फ एक राजनयिक चाल है? आइए, इस कहानी को सरल और रोचक अंदाज में समझते हैं, खासकर UPSC की नजर से, क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों और भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा मसला है।
न्यू START क्या है और क्यों खास है?
न्यू START कोई सुपरहीरो का नाम नहीं, बल्कि 2010 में बनी एक संधि है, जो रूस और अमेरिका को कहती है: "अपने खतरनाक न्यूक्लियर हथियारों को 1,550 तक सीमित रखो और सिर्फ 700 डिलीवरी सिस्टम (मिसाइलें, बॉम्बर वगैरह) रखो।" यह संधि दोनों देशों को एक-दूसरे के शस्त्रागार पर नजर रखने और भरोसा बनाए रखने का मौका देती है। 2021 में इसे पांच साल के लिए बढ़ाया गया था, लेकिन यूक्रेन युद्ध ने सारी बातचीत को फ्रीज कर दिया। अब यह संधि खत्म होने की कगार पर है, और अगर ऐसा हुआ, तो न्यूक्लियर हथियारों की होड़ फिर से शुरू हो सकती है।
पुतिन का ताजा ऑफर है कि दोनों देश एक साल तक इस संधि की शर्तों को "खुद से" मानें, ताकि नई बातचीत के लिए वक्त मिले। लेकिन शर्त यह है कि अमेरिका को भी ऐसा ही करना होगा, और कोई ऐसी हरकत नहीं करनी होगी जो "सामरिक संतुलन" को बिगाड़े। पुतिन ने यह भी कहा कि भविष्य में चीन को भी ऐसी वार्ता में शामिल करना चाहिए, जो ट्रंप का पुराना आइडिया है।
दुनिया की सियासत: कौन क्या चाहता है?
इस प्रस्ताव के पीछे की कहानी किसी जासूसी फिल्म से कम नहीं। आइए, इसे समझते हैं:
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रूस की चाल: पुतिन यह दिखाना चाहते हैं कि रूस जिम्मेदार देश है, जो दुनिया को न्यूक्लियर खतरे से बचाना चाहता है। लेकिन यूक्रेन युद्ध के चलते रूस और पश्चिम के बीच भरोसा टूट चुका है। पुतिन का यह ऑफर एक तरह से दुनिया को यह कहने की कोशिश है, "देखो, हम शांति चाहते हैं, गेंद अब अमेरिका के पाले में है।"
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अमेरिका का रुख: ट्रंप, जो "अमेरिका फर्स्ट" की नीति पर चलते हैं, हमेशा से चाहते हैं कि चीन भी न्यूक्लियर बातचीत में शामिल हो। लेकिन चीन ने अब तक इसमें रुचि नहीं दिखाई। ट्रंप का जवाब अभी नहीं आया, लेकिन उनकी सख्त नीति और सैन्य श्रेष्ठता की चाहत इस डील को मुश्किल बना सकती है।
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चीन का अनमना रवैया: चीन का न्यूक्लियर शस्त्रागार रूस और अमेरिका से छोटा है, लेकिन वह इसे तेजी से बढ़ा रहा है। फिर भी, चीन का कहना है कि वह अभी ऐसी वार्ताओं के लिए तैयार नहीं। यह ट्रंप के लिए बड़ा सिरदर्द है।
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यूक्रेन का साया: यूक्रेन युद्ध ने रूस-अमेरिका संबंधों को बर्फ की तरह जमा दिया है। संधि के तहत होने वाले निरीक्षण (जो यह चेक करते हैं कि दोनों देश नियम मान रहे हैं या नहीं) बंद हैं। बिना भरोसे के यह डील कितनी कारगर होगी, यह बड़ा सवाल है।
वैश्विक शांति पर क्या असर होगा?
अगर यह प्रस्ताव कामयाब हो गया, तो यह दुनिया के लिए राहत की सांस हो सकता है। न्यूक्लियर हथियारों की दौड़ रुक सकती है, और रूस-अमेरिका के बीच बातचीत की नई राह खुल सकती है। लेकिन रास्ता आसान नहीं।
- निरीक्षण की मुश्किल: बिना एक-दूसरे के शस्त्रागार की जांच के यह संधि सिर्फ कागजी शेर होगी।
- नई टेक्नॉलजी का ट्विस्ट: आजकल हाइपरसोनिक मिसाइलें और ड्रोन जैसे नए हथियार हैं, जो इस संधि के दायरे से बाहर हैं। इन्हें शामिल करना होगा।
- चीन का फैक्टर: अगर चीन बातचीत में नहीं आया, तो ट्रंप शायद इस डील को ठुकरा दें।
अगर यह संधि खत्म हुई, तो दुनिया एक खतरनाक दौर में पहुंच सकती है, जहां रूस और अमेरिका (जो दुनिया के 90% न्यूक्लियर हथियार रखते हैं) बेलगाम होकर अपने शस्त्रागार बढ़ा सकते हैं। यह वैश्विक शांति के लिए खतरे की घंटी है।
भारत के लिए क्या मायने?
भारत, जो न्यूक्लियर हथियारों वाला देश है लेकिन NPT का हिस्सा नहीं, इस मसले से अछूता नहीं है। आइए देखें यह भारत के लिए क्यों जरूरी है:
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अपनी सुरक्षा: अगर रूस और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर होड़ शुरू हुई, तो भारत को भी अपनी रक्षा रणनीति पर नए सिरे से सोचना पड़ सकता है। भारत की "नो फर्स्ट यूज" नीति और न्यूनतम प्रतिरोध की रणनीति पर दबाव बढ़ सकता है।
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वैश्विक मंच पर मौका: भारत BRICS, SCO और G20 जैसे मंचों पर न्यूक्लियर शांति की वकालत कर सकता है। भारत की जिम्मेदार न्यूक्लियर शक्ति की छवि इसे मध्यस्थ की भूमिका दे सकती है।
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रक्षा सौदों का फायदा: रूस भारत का पुराना रक्षा साझेदार है। इस तनाव से भारत को रूस और अन्य देशों से उन्नत हथियार और तकनीक हासिल करने के मौके मिल सकते हैं।
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गैर-प्रसार की छवि: भारत न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) में जगह चाहता है। अगर वैश्विक न्यूक्लियर ढांचा मजबूत होता है, तो भारत की इस कोशिश को बल मिलेगा।
नैतिक और रणनीतिक नजरिया
नैतिक नजरिया: न्यूक्लियर हथियार इंसानियत के लिए खतरा हैं। न्यू START जैसे समझौते न सिर्फ हथियारों को काबू में रखते हैं, बल्कि देशों को एक-दूसरे पर भरोसा करने की वजह भी देते हैं। यह शांति की राह है।
रणनीतिक नजरिया: पुतिन का ऑफर एक चतुर चाल है। यह रूस को दुनिया में जिम्मेदार देश की तरह पेश करता है। लेकिन बिना भरोसे और निरीक्षण के यह डील अधूरी है। अगर यह कामयाब हुआ, तो यह शांति के लिए एक मौका है; अगर नहीं, तो दुनिया न्यूक्लियर खतरे के नए दौर में जा सकती है।
UPSC की नजर से
यह मसला UPSC के लिए गोल्ड माइन है। चाहे प्रारंभिक हो, मुख्य परीक्षा हो या निबंध, यह हर जगह काम आएगा।
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प्रारंभिक प्रश्न:
- न्यू START संधि किन देशों के बीच है? (उत्तर: अमेरिका-रूस)
- इस संधि में तैनात वारहेड्स की सीमा क्या है? (उत्तर: 1,550)
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मुख्य परीक्षा (GS-2): "पुतिन के न्यू START विस्तार प्रस्ताव के वैश्विक और भारतीय निहितार्थ क्या हैं? विवेचना करें।"
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निबंध: "न्यूक्लियर हथियार: शांति का रास्ता या विनाश का खतरा?" या "वैश्विक शांति में हथियार नियंत्रण की भूमिका।"
निष्कर्ष: शांति का मौका या सियासत की चाल?
पुतिन का यह प्रस्ताव एक नाजुक रस्सी पर चलने जैसा है। अगर ट्रंप हां कहते हैं, तो यह दुनिया को न्यूक्लियर खतरे से बचाने का सुनहरा मौका हो सकता है। लेकिन यूक्रेन का तनाव, चीन की अनिच्छा और भरोसे की कमी इसे मुश्किल बनाते हैं। भारत के लिए यह समय है अपनी रणनीतिक ताकत को बढ़ाने और वैश्विक मंच पर शांति की वकालत करने का। यह डील कामयाब होगी या नहीं, यह ट्रंप के जवाब और दुनिया की सियासत पर निर्भर है। लेकिन इतना तय है कि यह कहानी दुनिया की नजरों में रहेगी, और UPSC के लिए यह एक हॉट टॉपिक है!
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